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इंटरनेट : एक अंधेरी सुरंग

इंटरनेट : एक अंधेरी सुरंग

by आशीष अंशू
in अक्टूबर-२०२१, तकनीक, विशेष, सामाजिक
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वहां फर्जी दस्तावेज बनवाने के लिए लोग जाते हैं और नया पहचान पत्र मिल जाता है। अफगानिस्तान के लोगों को कई मुल्कों में प्रवेश नहीं है। उनका पासपोर्ट भारत में बनाकर उन्हें विदेश भेजने वाला गिरोह दिल्ली के जंगपुरा-भोगल इलाके में सक्रिय रहा है। बताया जाता है कि नए पहचान पत्र से लेकर पासपोर्ट बनाने तक की उनकी यात्रा में डार्क नेट का बहुत बड़ा योगदान है।

ई-व्रत सुनने में एक नए तरह का विचार लगता है लेकिन अब भारतीय महानगरों में इसे लोग अपनाने लगे हैं। ई-व्रत के अन्तर्गत सूचना के आदान-प्रदान से जुड़े तमाम इलेक्ट्रॉनिक गजट से सप्ताह में एक दिन दूरी बनाकर रहना होता है। मतलब एक पूरे दिन इंटरनेट के माध्यम से पहुंचाई जा रही ढेर सारी सूचनाओं से मुक्ति। जिन लोगों ने अपने जीवन में ऐसा प्रयोग किया, उन्होंने अच्छा महसूस किया है। उन पर अनावश्यक सूचनाओं का दबाव नहीं था। पूरे दिन इंटरनेट के माध्यम से हम इतनी सारी सूचनाओं के उपभोक्ता बने होते हैं।

यदि ठहर कर विचार करें तो उनमें से आधी से अधिक सूचनाएं हमारे किसी काम की नहीं है। दिल्ली के नेहरू विहार में निर्माण क्षेत्र से जुड़े सुनील दास के अनुसार यदि व्यावसायिक मजबूरी ना हो, तो वे कभी स्मार्ट फोन को हाथ भी ना लगाएं। उनके पास रोजगार का माध्यम स्मार्ट फोन है। इसकी वजह से ही वे सभी तरह की सूचनाएं हासिल कर पाते हैं, जिसमें अच्छी जानकारी कम और नकारात्मक जानकारी अधिक होती है। वे इंटरनेट फ्रॉड के किस्से सुनकर डर भी जाते हैं इसलिए कम से कम इंटरनेट के इस्तेमाल की वकालत करते हैं।

इंटरनेट के दुष्प्रभाव अनेक

सूचना क्रांति के दौर में सूचनाएं अवश्य एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा तीव्र गति से कर लेती है लेकिन इस क्रांति का ही परिणाम है कि सच से भी अधिक तेजी से यहां झूठ उड़कर लोगों तक पहुंच रहा है। इस फैले झूठ की वजह से कई बार साम्प्रदायिक हिंसा तक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और जब तक सत्य के साधक सच सामने लाते हैं, तब तक काफी देर हो चुकी होती है।

जर्मनी में इंटरनेट के दुष्प्रभाव पर एक शोध हुआ, जिसके बाद आम आदमी के जीवन पर इसके दुष्प्रभाव का खुलासा हुआ। शोध के बाद कुछ वैज्ञानिकों ने मोबाइल टावर व वाई-फाई का संगठित विरोध करना शुरू कर दिया है। जर्मन वैज्ञानिकों ने जब शोध में आए खतरनाक परिणामों की बात सामने रखी। उसके बाद वहां की सरकार ने वायर के माध्यम से इंटरनेट कनेक्शन को अपनी नीति में प्राथमिकता देना प्रारम्भ किया, जिसके परिणास्वरुप जर्मनी में अब तक लगभग 85 फीसदी कनेक्शन को तार से जोड़ दिया गया है। शेष पन्द्रह फीसदी को भी तार से जोड़ने का काम जोर-शोर से चल रहा है।

वायर वाले कनेक्शन बढ़े

जर्मनी ऐसा अकेला देश नहीं है, जो इंटरनेट के ’वायरीकरण’ की दिशा में काम कर रहा है बल्कि फ्रांस, आस्ट्रिया, यूके और अमेरिका तक में वायर वाले कनेक्शन को इंटरनेट के लिए प्राथमिकता दी जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से जारी एक दिशा निर्देश में कहा गया है कि संवेदनशील जगहों पर मोबाइल टावर लगाने पर प्रतिबंध होना चाहिए। मोबाइल टावर से निकलने वाली रेडियोधर्मी किरणों का हमारे और आसपास मौजूद जीव जगत की सेहत पर घातक प्रभाव पड़ता है। इंटरनेट को दुनिया भर में तार सहित करने की बात की जा रही है। ताररहित इंटरनेट का समर्थन अपने जीवन को संकट में डालने के बराबर है।

सूचना का अधिकार कार्यकर्ता सुरेश चंद गुप्ता के एक सवाल पर 31 मार्च 2015 को सूचना आयुक्त का निर्णय आया कि ”मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की वजह है। डीएनए संरचना में बदलाव, कैंसर और हृदय रोगियों के लिए खतरनाक है। मोबाइल टावर के रेडिएशन गर्भवती महिलाओं, बच्चों, बीमार लोगों और पशु पक्षियों के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं इसलिए अस्पताल, रिहायशी इलाके, बच्चों के स्कूल आदि से इसे दूर रखा जाए।” इस निर्णय के अलावा यह बात भी बार-बार समाचार माध्यमों में आ चुकी है कि भारत के मोबाइल टावरों में मैग्नेटिक रेडिएशन दस गुना ज्यादा है लेकिन भारत में इस बात की गंभीरता को अब भी समझा नहीं जा रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री बार-बार पूरी दिल्ली को वाई-फाई उपलब्ध कराने की बात करते हैं जबकि कोविड महामारी से इतनी मुश्किल से निकली दिल्ली क्या अपनी सेहत की कीमत पर फ्री वाई-फाई लेने को तैयार है? इस मुद्दे पर बात-बात पर जनमत संग्रह कराने वाली आम आदमी पार्टी दिल्ली में ना जाने क्यों कोई जनमत संग्रह नहीं कराती?

इंटरनेट की अंधेरी दुनिया

सालों तक इंटरनेट पर घंटों खर्च करने के बाद भी कोई यह दावा इस माध्यम के लिए नहीं कर सकता कि उसे अब सब पता है। इंटरनेट पर डार्क नेट या डीप इंटरनेट के नाम से एक अंधेरी दुनिया भी सक्रिय है। जहां आम इंटरनेट उपयोगकर्ता जाता नहीं क्योंकि वह एक अंधेरी सुरंग है, जहां जाने के लिए बहुत संयम चाहिए। वहां मौजूद सामग्री गूगल के सर्च इंजन से भी बाहर है। उस काली दुनिया का जिक्र पढ़कर कोई भी उपयोगकर्ता जानना चाहेगा कि आखिर वहां मिलता क्या है? वहां फर्जी दस्तावेज बनवाने के लिए लोग जाते हैं और नया पहचान पत्र मिल जाता है। अफगानिस्तान के लोगों को कई मुल्कों में प्रवेश नहीं है। उनका पासपोर्ट भारत में बनाकर उन्हें विदेश भेजने वाला गिरोह दिल्ली के जंगपुरा-भोगल इलाके में सक्रिय रहा है। बताया जाता है कि नए पहचान पत्र से लेकर पासपोर्ट बनाने तक की उनकी यात्रा में डार्क नेट का बहुत बड़ा योगदान है।

डार्क नेट पर सक्रिय लोग किसी देश के कानून से ऊपर नहीं हैं इसलिए वे पकड़े भी जाते हैं और कानून सजा भी देता है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां अपराधियों को सजा हुई है। उदाहरण के लिए इस नेटवर्क के माध्यम से ड्रग्स खरीदने के लिए एक रूसी को चार वर्ष की कारावास की सजा सुनाई गई। डार्क नेट पर डील उसी तरह होती है, जैसे किसी ऑनलाइन पोर्टल से सामान मंगाते हैं। यहां सिर्फ डिलीवरी पर भुगतान का विकल्प नहीं होता। काम का भुगतान पहले करा लिया जाता है। वैसे अब जांच एजेंसियों की नजर में डार्क नेट आ गया है। उसके बाद अब यह जगह भी उतनी छुपी हुई नहीं रही है, जितनी सुनने में लगती है लेकिन अब भी छोटे-छोटे अपराधों को डार्क नेट पर पकड़ पाना बहुत कठिन है। वह ट्रैक नहीं हो पाता। बाहरी दुनिया में गैर कानूनी और प्रतिबंधित सामग्रियों का यह इसे एक मेला कह सकते हैं या एक ऐसा मॉल जहां ’ईमानदारी’ के लिए कोई रोजगार नहीं है। इंटरनेट जहां हमारे मार्गदर्शन के लिए अच्छी सामग्री का भंडार है, वहीं दूसरी तरफ यहां ड्रग्स भी बिक रहा है और लोग दूसरों की सुपारी भी दे रहे हैं। माध्यम एक ही है, महत्वपूर्ण यह है कि हम इसे बरतते कैसे हैं?

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