संपूर्ण देश के लिए शोक की घड़ी

निश्चित रूप से यह पूरे देश के लिए अत्यंत दुख की घड़ी है। पूरा देश स्तब्ध है। हमने भारत के प्रथम चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी प्रधान सेनापति को दुर्भाग्यपूर्ण हेलीकॉप्टर दुर्घटना में खो दिया। उनके साथ एक ब्रिगेडियर सहित 12 अन्य जवान भी विशेष रहे होंगे तभी उनके साथ यात्रा में थे। इस क्षति को वही समझ सकते हैं, जो कल्पना करेंगे कि एक सैनिक को तैयार करने में कितना परिश्रम पड़ता है। अलग-अलग क्षेत्रों और भौगोलिक परिस्थितियों में संघर्ष, रणनीति ,व्यूहरचना आदि का अनुभव प्राप्त करने के बाद हमारे लिए ऐसे हर जवान बेशकीमती हो जाते हैं। जनरल बिपिन रावत का पूरा कैरियर बहादुरी से भरा रहा। उनके सहित जान गंवाने वाले सारे सैनिक वीर, बहादुर ,देशभक्त एवं परम साहसी थे। इसलिए भारत की रक्षा – सुरक्षा की चिंता करने वाले हर व्यक्ति की आंखों में आंसू हैं। तमिलनाडु के कुन्नूर के निकट हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर आते ही लोग इन सबकी जीवन रक्षा की प्रार्थना करने लगे। लेकिन तब तक दुर्भाग्य घटित हो चुका था । 

यह सामान्य क्षति नहीं है। जनरल बिपिन रावत को पाकिस्तान , चीन जैसे संवेदनशील सीमाओं के अलावा हर भौगोलिक क्षेत्र व परिस्थितियों में संघर्ष तथा चुनौतियों का व्यावहारिक अनुभव था। वे भारत के ईर्द-गिर्द तथा विश्व की बदलती सामरिक परिस्थितियों का गहराई से अन्वेषण करते थे। जाहिर है ,हमारी सैन्य और विदेश नीति निर्धारित करने में उनके सुझावों एवं विचारों का गहरा योगदान था। हालांकि दुर्घटना हैरत में डालने वाली है। हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए वायु सेना ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का आदेश दे दिया है और जांच आरंभ भी हो गया है। तो हम जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा करेंगे। हालांकि अगर मामला सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा संवेदनशील हुआ तो शायद रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं भी हो। पहले अभी तक की सूचनाओं पर एक नजर डालते हैं। जनरल रावत अपनी पत्नी और सात कर्मचारियों के साथ सुबह 8:47 बजे कोयंबटूर के पास सुलूर आईएएफ बेस के लिए दिल्ली से उड़ान में सवार हुए थे। वे सुबह 11:34 बजे सुलूर में उतरे। वहां से वे 11:48 बजे एमआई17वी5 हेलीकॉप्टर में सवार होकर वेलिंगटन के लिए रवाना हुए। वहां उन्हें स्टाफ कॉलेज में व्याख्यान देना था। दोपहर 12:22 बजे, वायु यातायात नियंत्रण (एटीसी) का हेलिकॉप्टर से संपर्क टूट गया ।

पता चला कि  कुन्नूर से लगभग 7 किमी दूर एक वन क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। क्रैश की जो तस्वीरें सामने आईं वो बेहद हैरान करने वालीं थीं। पूरा विमान आग के गोले में तब्दील हो गया था। तस्वीर देखकर अंदाजा लग रहा था कि ये हादसा कितना भीषण था। एक प्रत्यक्षदर्शी कृष्णस्वामी ने बताया कि मैंने हेलीकॉप्टर को नीचे आते देखा। भयानक तेज आवाज सुनाई दी। हेलीकॉप्टर जमीन पर गिरने से पहले एक पेड़ से टकराया और तब आग लग गई थी। मैंने लोगों को हेलिकॉप्टर से गिरते व जलते हुए देखा तो मैं भी वहां से भाग खड़ा हुआ। हेलीकॉप्टर के जमीन पर गिरने के बाद धुएं का गुबार व आग की लपटें उठ रही थीं।  एक प्रत्यक्षदर्शी कह रहा था कि हेलीकॉप्टर आग की लपटों से घिरा हुआ था और इन्हीं लपटों के बीच तीन-चार लोग हेलीकॉप्टर से गिर रहे थे, वे खुद भी जल रहे थे। कैसी भयावह स्थिति रही होगी इसकी कल्पना की जा सकती है। घटनास्थल पर सबसे पहले स्थनीय लोग पहुंचे और उन्होंने बाल्टियों व पाइप से पानी डालकर आग बुझाने का प्रयास किया। लोग कंबल और रजाई मंगा रहे थे, ताकि जले हुए लोगों को बचाया जा सके। कंबल और चादर से स्ट्रेचर बनाया गया। इसकी मदद से घायलों को बाहर निकाला।

घटनास्थल की तस्वीरें बयां कर रही हैं कि इलाके में हेलीकॉप्टर के जलते हुए टुकड़े और धुआं फैला हुआ था।

भारतीय सेना का एम आई 17 वी 5  सबसे सुरक्षित हेलीकॉप्टरों में से एक है। वीवीआईपी दौरे में इसका उपयोग किया जाता है।इस हेलीकॉप्टर में बैकअप इंजन और ईंधन, दोनों की सुविधा रहती है।यह डबल इंजन का हेलीकॉप्टर है, जिससे एक इंजन में खराबी आने पर दूसरे इंजन के सहारे सुरक्षित लैंडिंग कराई जा सके। इस हेलीकॉप्टर की तुलना चिनूक हेलीकॉप्टर से की जाती है। यह आधुनिक तकनीक से लैस हेलीकॉप्टर है। सेना को इस हेलीकॉप्टर की तकनीक पर भरोसा रहा है। कई बार कुछ उपकरण ऐसे होते हैं, जिनकी विश्वसनीयता संदिग्ध रहती है, लेकिन एम आई 17 वी 5 ऐसा नहीं था। सबसे अनुभवी पायलटों को इन हेलीकॉप्टर को उडाने का मौका दिया जाता है। क्रू के चयन का भी ध्यान रखा जाता है। दो पायलट इस हेलीकॉप्टर को उड़ाते हैं। एक इंजीनियर भी रहता है। प्रशिक्षित क्रू मेंबर होते हैं। इस चॉपर को उड़ाने के लिए पायलट को एक विशेष प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। हेलीकॉप्टर पर बैठने से पहले सुरक्षाकर्मी जनरल रावत के साथ रहते थे और हेलीकॉप्टर से उतरने के बाद (जहां वे पहुंचते हैं) वहां के सुरक्षाकर्मी साथ होते थे।

 इसमें सामान्य परिस्थिति में ऐसी दुर्घटना हो नहीं सकती है। तो क्या परिस्थिति रही होगी इसका कुछ अंदाजा ब्लैक बॉक्स से लगेगा तथा जांच कमेटी इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकती हैं। केवल हेलीकॉप्टर के और उसके उड़ाने वालों एवं क्रू मेंबरों के ही विशिष्ट होने का विषय नहीं है। जनरल रावत भारतीय सेना के सबसे बड़े सुरक्षा अधिकारी थे। उनके लिए बहुत सख्त प्रोटोकॉल का पालन किया जाता था।वे कहीं भी जाते थे तो इसकी सूचना पहले रक्षा मंत्रालय को दी जाती थी। जब कोई भी वीवीआईपी जैसे प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री या सीडीएस हेलिकॉप्टर से यात्रा करते हैं तो वायुसेना सुरक्षा के मापदंडों का कड़ाई से पालन किया जाता है। सामान्य तौर पर भी चॉपर से आधिकारिक यात्रा पर जाते पर उनके साथ दो पायलट और स्टाफ ऑफिसर्स होते हैं। कई विशेष प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है। तो फिर?

कारण खराब मौसम को माना जा रहा है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि खराब मौसम में हेलीकॉप्टर फंस गया हो। अगर कोई दूसरी बात नहीं है तो फिर विशेषज्ञों की यह बात माननी पड़ेगी कि घने जंगल, पहाड़ी इलाका और लो विजिबिलिटी की वजह से ही हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ।वेलिंगटन का हेलिपैड जंगल और पहाड़ी इलाके के तुरंत बाद पड़ता है ।इसलिए पायलट के लिए इसे दूर से देख पाना मुश्किल होता है। वेलिंगटन का हेलिपैड लैंडिंग के लिए आसान नहीं है।वहां पहाड़ और जंगल, दोनों हैं। इनकी वजह से पायलट को हेलिपैड दूर से दिखाई नहीं देता। काफी नजदीक आने पर ही हेलिपैड नजर आता है। ऐसे में जब खराब मौसम के दौरान पायलट ने लैंडिग की कोशिश की होगी तो बादलों की वजह से विजिबिलिटी कम हो गई होगी। उसे हेलिपैड सही तरह नजर नहीं आया होगा और हादसा हो गया।खराब मौसम में हेलिकॉप्टर की लैंडिंग यहां हमेशा ही चुनौतीपूर्ण रहती है। यदि वह हेलीकॉप्टर ज्यादा ऊंचाई पर है और एकाएक मौसम खराब हो जाए तो भी चॉपर का संतुलन बिगड़ सकता है।

तकनीकी खराबी भी हो सकती है। खराब मौसम के दौरान बादलों में विजिबिलिटी कम होने की वजह से हेलिकॉप्टर को कम ऊंचाई पर उड़ान भरनी पड़ी। लैंडिंग पॉइंट से दूरी कम होने की वजह से भी हेलिकॉप्टर काफी नीचे था। नीचे घने जंगल थे, इसलिए क्रैश लैंडिंग भी फेल हो गई।

चूंकि इस हेलिकॉप्टर के पायलट ग्रुप कैप्टन रैंक के अधिकारी थे। ऐसे में मानवीय भूल की आशंका न के बराबर है। हो सकता है कि कोई बड़ा पक्षी इस हेलीकॉप्टर से टकरा गया हो। छोटा पक्षी यदि टकराता है, तो उससे हेलीकॉप्टर का संतुलन नहीं बिगड़ता। यह हेलीकॉप्टर छोटे पंक्तियों के टकराव से सुरक्षित रहने के सक्षम बनाया गया है। केवल बड़ा पक्षी ही इसे गिरा सकता है।

जो भी हो ऐसे कठिन समय में जब एक और चीन भारत को विदेश और रक्षा के स्तर पर हर दृष्टि से परेशान करने, तनाव में लाने की कोशिश कर रहा है तथा उसके उकसावे पर एवं स्वयं अपनी कठिनाइयों के कारण पाकिस्तान भी षडयंत्रों में लगा है ,जनरल रावत का जाना कई प्रकार की चिंताएं पैदा करता है। हालांकि भारत में योग्यता क्षमता की कमी नहीं है ,लेकिन उनको तलाशना और फिर इस प्रकार का अनुभव होना, निश्चय ही कठिन है। वैसे तो जनरल रावत के कैरियर में कई बड़ी उपलब्धियां है लेकिन दो बड़े सर्जिकल स्ट्राइक तथा पाकिस्तान के विरुद्ध एक बड़ी कार्रवाई का पूरा श्रेय उन्हें जाता है।

जून, 2015 में मणिपुर में एक आतंकी हमले में असम राइफल्स के 18 सैनिक शहीद हो गए थे। इसके बाद 21 पैरा कमांडो सीमा पार म्यांमार में प्रवेश किया। वहां खाने जंगलों के बीच आतंकी संगठन एनएससीएन-के आतंकियों को ढेर किया था। तब 21 पैरा थर्ड कॉर्प्स के अधीन थी जिसके कमांडर बिपिन रावत ही थे। यह भीषण इतिहास का एक महत्वपूर्ण अभियान था जिसे इतिहास में जगह मिल गई। इसे भी तब सैनिक भाषा में सर्जिकल स्ट्राइक ही माना गया। पूरी दुनिया जानती है कि 29 सितंबर, 2016 को भारतीय सेना के जवानों ने अंधेरी रात में सीमा पार कर पाक अधिकृत में सर्जिकल स्ट्राइक कर कई आतंकी शिविरों को ध्वस्त करते हुए भारी संख्या में आतंकियों को मार गिरा कर वापस सुरक्षित लौट आने का साहसिक कार्य किया था।

यह विश्व के साइन इतिहास का एक प्रमुख अध्याय है। इसने संपूर्ण भारत में रात की प्रखरता का ऐसा भाव प्रज्वलित किया जो आतंकवादी घटनाओं के संदर्भ में निराशा और कुछ न कर पाने की मलाल से दबा हुआ था । इसके बाद उरी में सेना के कैंप और पुलवामा में सीआरपीएफ पर हुए हमले में कई जवान शहीद हो जाने के बाद भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की थी। उस समय भी पाकिस्तान के सैनिक भारी संख्या में मारे गए थे। पाकिस्तान ने इसे लेकर काफी हो-हल्ला मचाया था। जनरल रावत की भाषा सैनिकों में जोश और उत्साह भरती थी। उन्हें देश के लिए मर मिटने को संकल्पित करता था। बाहरी और देश के अंदर के दुश्मनों को लेकर उनकी दृष्टि बिल्कुल साफ थी तथा इन्हें खत्म करने को लेकर सेना के कर्तव्यों के प्रति वे पूरी तरह दृढ़ संकल्पित थे। ऐसे वीर सपूत को खोकर कौन देश दुखी नहीं होगा।

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