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जनरल बिपिन रावत से क्यों खौफ खाते थे देश के दुश्मन

जनरल बिपिन रावत से क्यों खौफ खाते थे देश के दुश्मन

by मृत्युंजय दीक्षित
in देश-विदेश, विशेष
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8 दिसम्बर 2021 का दिन एक बेहद दुखद दुर्घटना के लिये याद किया जायेगा जिस दिन हमारे पहले चीफ आफ डिफेन्स स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी श्रीमती मधुलिका रावत समेत 11 अन्य सेना के अधिकारियों और र्कर्मियों की तमिलनाडु के कुन्नूर इलाके में हेलीकाप्टर दुर्घटना में असमायिक निधन हो गया और पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गयी। रावत जी के निधन का समाचार आते ही पूरा देश स्तब्ध है। रावत जी का जाना एक योद्धा की असमय विदाई ही नहीं अपितु एक श्रेष्ठ सुरक्षा रणनीतिकार से हम सभी वंचित हो गये हैं। यह वेदनामयी असहाय नुकसान उस समय हुआ है जब देश की सीमाओं पर चीन -पाकिस्तान जैसे शत्रु लगातार भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं और सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियों से भी हमारे सुरक्षा बल लगातार संघर्ष कर रहे हैं और घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों को जमीन के दो गज नीचे पहुंचाने का काम कर रहे हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बाद यदि देश के सभी शत्रु किसी से डरते थे तो वे जनरल बिपिन रावत ही थे। जनरल बिपिन रावत जी ने देश के सशस़्त्र बालों और सुरक्षा प्रणाली के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। रणनीतिक मामलों में उनकी समझ और दृष्टिकोण असाधारण थी। देश की सेनाओं को मजबूत बनाने व बदलाव लाने में उन्होंने जो महती भूमिका अदा की है हमें उसके परिणाम आगामी दस वर्षों के बाद ही पता चलेंगे कि स्वर्गीय बिपिन रावत जी का योगदान देश के लिए कितना अतुलनीय व मूल्यवान था। दस वर्षों के बाद भी बिपिन जी को याद किया जायेगा।  

जनरल बिपिन रावत का जन्म 16 मार्च 1958 को देहरादून में हुआ था। जनरल की प्रारम्भिक शिक्षा देहरादून के कैंबरीन हाल स्कूल और शिमला में सेंटर एडवर्ड स्कूल में हुई। वह राष्ट्रीय रक्षा अकादमी खड़क वासला से जुडे। इसके बाद भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया। यहां उन्हें सोर्ड ऑफ आनर दिया गया। 2011 में उन्हें सैन्य मीडिया सामरिक अध्ययन पर शोध कार्य के लिए चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ की ओर से सम्मानित किया गया। वे फोर्ट लीवनवर्थ, अमेरिका में डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन और हायर कमांड कोर्स के ग्रेजुएट भी रहे। उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से डिफेंस स्टडीज में एमफिल और मैनेजमेंट तथा कंप्यूटर स्टडीज में भी डिप्लोमा किया।

जनरल रावत को दिसंबर 1978 में 11 गोरखा राइफल्स में कमीशन मिला। उनके पिता भी इसी यूनिट में अपनी सेवाएं दे चुके थे। उनके पास कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर में कामकाज का लंबा अनुभव था। 1986 में चीन से लगी सीमा पर इन्फेंट्री बटालियन के प्रमुखपद की जिम्मेदारी संभाली। चार दशकों की सेवा के दौरान ब्रिगेडियर, कमांडर, जनरल आफिसर कमांडिग इन चीफ सदर्न कमांड मिलीट्री आपरेशन डायरेक्टोरेट में जनरल स्टाफ आफिसर ग्रेड कर्नल मिलीट्री समेत कई बड़े पदों पर रहे।  संयुक्त राष्ट्र की शांति फोर्स का भी हिस्सा रहे। कांगो में बहुराष्ट्रीय सेना ब्रिगेड की कमान भी संभाली।  

जनरल बिपिन रावत ने पूर्वोत्तर में आतंकवाद को समाप्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उनकी देखरेख में मणिपुर में 18 जवानों की शहादत के बाद 2015 में म्यांमार में सीमा पार हमला कर आतंकी अड्डों का सफाया किया गया था।

जनरल बिपिन रावत एक बेहद कुशल व योग्य रणनीतिकार थे। वह बहुत ही दूरदर्शी थे तथा कदम उठाने के बाद वह पीछे मुड़कर नहीं देखते थे तथा अपने फैसलों को अंजाम तक पहुंचाते थे। यही कारण है कि वह देश के नायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हीरो बन गये थे। अटल जी के समय हुए कारगिल युद्ध के बाद से ही तीनों सेनाओं के बीच समन्वय के लिए सीडीएस का पद बनाने की मांग उठ रही थीं लेकिन अटलजी की सरकार चुनाव हार गई और 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने सीडीएस के गठन के प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जब उन्हें 2016 में सेना प्रमुख बनाने की घोषणा की थी तब कांग्रेस सहित देश के सभी विरोधी दलों ने इसकी तीखी आलोचना की थी और कुछ लोग कोर्ट भी चले गये थे। सेना प्रमुख बनने के बाद जनरल रावत ने सिद्ध कर दिया कि देश के गद्दार क्यों उनके खिलाफ थे। उन्होंने कश्मीर में आतंकवाद की कमर तोड़कर रख दी। घाटी में ऐसे आपरेशन चलाये गये कि आतंकी संगठनों को अपना नेता चुनना कठिन हो गया है। आतंकी संगठनों का जो भी कमांडर बनता व बन रहा है उसे अब 72 हूरो के पास ही दो गज जमीन के नीचे भेजा जा रहा है। रावत जी की कुशल रणनीति के कारण ही जम्मू कश्मीर धारा- 370 और अनुच्छेद 35 –ए से आजाद हो चुका है।

2019 में लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बनाने की घोषणा के बाद उन्हें एक जनवरी 2020 को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाया गया। जनरल रावत के सीडीएस का पद संभालते ही तीनों सेनाओं का कायापलट होना शुरू हो गया था। रावत जी के नेतृत्व में भारतीय सेनायें आत्मनिर्भरता व सशक्त हाने की ओर तेजी से बढ़ने लग गयी थीं। उनके नेतृत्व में कई समझौते हुए और कई हथियारों के सफल परीक्षण भी हुए। सुरक्षा के द़ृष्टिकोण से व देश के शत्रुओें में भय पैदा करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीतियों को बनाने में महती भूमिका अदा करने में रावत जी का अमूल्य योगदान रहा। आज वह देश की सेनाओं को बहुत ही मजबूत इरादों वाली व शत्रु को घर के अंदर घुसकर मारने वाली सेना बनाकर गये हैं। रावत जी ने भरतीय सेना व सुरक्षा का कायाकल्प ही कर दिया है और बड़ा बदलाव किया है, जिसे देश के अंदर व बाहर महसूस किया जा रहा है। आज भारत पूरी दूनिया के समाने एक मजबूत सैन्य शक्ति के रूप में भी उभकर कर सामने आ रहा है। जनरल रावत साहसिक और सटीक फैसलों के पर्याय थे। वर्ष 2016 में कश्मीर के उड़ी में भारतीय सेना के कैंप पर हमले के बाद कई भारतीय सैनिकों के शहीद होने के बाद रावत जी के निर्देशन में ही पाकिस्तान में घुसकर धूल चटाने की योजना बनी जो सफल रही। फिर बालाकोट एयरस्ट्राइक के समय भी वह अपने आफिस से ही कमान संभाल रहे थे। वह दुर्गम और पहाड़ी क्षेत्रों में युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध थे। यही कारण रहा कि चाहे पूर्वोत्तर का दुर्गम क्षेत्र हो या फिर कश्मीर का पहाड़ी क्षेत्र वह हर जगह अपनी छाप छोडने में सफल रहे। उनकी कार्यकुशलता ने ही उन्हें सीडीएस के महत्वपूर्ण पद तक पहुंचाया। रावत जी ने ही एकीकृत थिएटर कमान की नींव रखी। चार नई थिएटर पर काम चल रहा है। थलसेना के पास आर्मी तीन और नौसेना के पास एक कमान की जिम्मेदारी होगी। वायुसेना कमान को एयर डिफेंस कमान की जिम्मेदारी मिलेगी।  

जनरल रावत ने के नेतृत्व में भारतीय सेना ने वीरता के नये प्रतिमान स्थापित किये। जनरल रावत ने पूरे समर्पण भाव से मातृभूमि की सेवा की। उनके दुखद निधन से आज पूरा देश स्तब्ध व दुखी है। पूरा विश्व उनके निधन पर अपनी संवेदनाएं प्रकट कर रहा है। अपनी मृत्यु के एक दिन पूर्व ही उन्होंने एक कार्यक्रम में कोरोना के नए वेरिएंट के उभरने और संक्रमण के मामलों में उछाल आने की चेतावनी दी थी। उन्होंने भविष्य में जैविक युद्धों का सामना करने के लिए तैयार रहने को कहा था।

जनरल रावत के साथ काम कर चुके लोगों का कहना है कि वह हमेशा जमीन से भी जुड़े रहते थे। वह बेहद मिलनसार थे। वह डयूटी के दौरान जाते समय रास्ते में मिलने वाले बच्चों को भी हमेशा टॉफियां बांटते थे। जनरल बिपिन रावत हर धर्म की आस्था को सम्मान देते थे। कश्मीर के लोग भी आज उन्हें याद कर रहे हैं। उनका कहना है कि जनरल रावत हमेशा लोगों के बीच रहते थे वह लोगों की समस्याएं सुनने के साथ समाधान भी निकालते थे। जनरल रावत का कश्मीर के साथ एक अलग ही नाता रहा। उन्होंने १० साल कश्मीर में ही बिताये। उनकी सेवाओं और व्यवहार के लिए उत्तरी कश्मीर के लोग उन्हें याद कर रहे हैं। ऐसे महान जनरल को आज पूरा देश ही नहीं अपितु विश्व भी नमन कर रहा है, याद कर रहा है।

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Tags: cds bipin rawatforeign affairshindi vivekhindi vivek magazineindian security forcesinternational politics

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