संसद हमले के वो 45 मिनट…

13 दिसंबर 2001 को संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था सत्ता और विपक्ष अपनी बहस में पूरी तरह से व्यस्त थे। सदन के स्थगित होने के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने आवास के लिए निकल चुके थे जबकि लालकृष्ण आडवाणी सहित करीब 100 से अधिक नेता संसद भवन में मौजूद थे तभी करीब 11.29 बजे एक सफेद रंग की एम्बेसडर कार संसद भवन के मुख्य द्वार को तोड़ते हुए अंदर आती है। एक आतंकी खुद को गेट के पास ही उड़ा लेता है जिससे गेट टूट गया और आतंकी संसद भवन में दाखिल हो जाते है। कार पर गृह मंत्रालय का स्टीकर भी लगा हुआ था। कार में सवार सभी 5 आतंकियों ने संसद पर हमला बोल दिया। आतंकियों ने अपनी AK-47 से अंधाधुंध फायरिंग शुरु कर दी और सभी को अपनी गोलियों का निशाना बनाने लगे। आतंकी संसद भवन परिसर में काफी अंदर तक दाखिल होने में कामयाब रहे। गोलियों की आवाज से सभी सांसद डरे हुए थे क्योंकि उन्हें इस बात का आभास हो चुका था कि अगर सुरक्षाकर्मी उन्हें रोक पाने में नाकाम हुए तो वह किसी भी समय सदन में प्रवेश कर सकते हैं।  

इधर हमले के तुरंत बाद सुरक्षाबलों ने अपना मोर्चा संभाला और आतंकियों पर जवाबी कार्रवाई करने लगे। उस समय शायद हमारे सुरक्षाबल इतने बड़े हमले के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि ऐसा आतंकी हमला किसी ने न ही देखा था और ना ही सुना था। दिल्ली के मध्य में स्थित संसद भवन तक आतंकियों का पहुंचना एक बड़ा ही गंभीर विषय था। फिलहाल सुरक्षाबलों ने अपनी बहादुरी का परिचय दिया और करीब 1 घंटे से कम समय में सभी आतंकियों को मार गिराया। इस हमले में मारे गये आतंकियों के नाम हैदर उर्फ तुफैल, मोहम्मद राना, रणविजय, हमजा थे। इस हमले में कुल 9 लोग शहीद हुए थे जिसमें सबसे पहले कमलेश कुमारी यादव को गोली लगी थी उसके बाद संसद के माली, संसद भवन के सुरक्षा सेवा के दो कर्मचारी और दिल्ली पुलिस के 6 जवान शहीद हुए थे। आतंकी इस हमले के द्वारा शायद यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि वह कहीं पर भी हमला कर सकते हैं लेकिन यहां उनकी चाल नाकाम रही और बहुत ही कम समय में सुरक्षाबलों ने उन्हें मार गिराया। 

संसद पर हमले का मकसद देश के बड़े नेताओं और सांसदों को निशाना बनाना था। आतंकी किसी भी हाल में संसद भवन में प्रवेश करना चाहते थे लेकिन सुरक्षाबलों की बहादुरी ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया और सदन के बाहर ही सभी आतंकियों को मार गिराया। संसद पर हुए इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा ने ली थी। पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई भी इस हमले में शामिल थी। लश्कर के आतंकियों ने ही इस हमले को अंजाम दिया था। इस हमले का मुख्य आरोपी अफजल गुरु को बनाया गया था उसने पाकिस्तान से आतंकी ट्रेनिंग लेने के बाद संसद के हमले का प्लान तैयार किया था। अफजल को दिल्ली हाईकोर्ट ने 2002 में फांसी की सजा सुनाई जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में उसकी फांसी की सजा को सही ठहराया। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आखिरी फैसले के बाद आतंकी अफजल गुरु को 12 साल बाद 9 फरवरी 2013 को फांसी दे दी गयी।  

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