2022 भारत के लिए युग परिवर्तनकारी हो सकता है

 ईसा संवत 2022 की शुरुआत और 2021 के बीच कई समानताएं हैं। 2021 भी कोरोना के भय और प्रकोप के माहौल में शुरू हुआ था और 2022 भी उसके नए वेरिएंट ओमीक्रोन के खतरे के साए में पैदा हुआ है। 2021 के आरंभ में भी आने वाले विधानसभा चुनाव की गहन चर्चा थी, राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप आरंभ हो चुके थे और 2022 भी ठीक उसी परिदृश्य की पुनरावृत्ति कर रहा है। राज्य अलग -अलग हैं, राजनीतिक क्षितिज पर कई दल नए हैं लेकिन माहौल कमोबेश उसी तरह का है । ऐसी और भी कई समानताएं हैं। इसके समानांतर कई असमानताएं भी हैं । उदाहरण के लिए 2021 का आरंभ टीके के नहीं होने पर हाहाकार मचाए जाने से शुरू हुआ था।, जबकि 2022 आते-आते देश के बहुमत को दोनों डोज लग चुके हैं और हम बूस्टर डोज की ओर प्रयाण कर गए । इससे देश के अंदर कोरोना को लेकर आत्मविश्वास पैदा हुआ है और धारणा यही बनी है कि ओमीक्रोन या कोई भी कोरोना का वैरीअंट पहले की तरह परेशान करने में सफल नहीं होगा। दूसरे, 2021 में कृषि कानून विरोधी आंदोलन के प्रचंड रूप में आंखें खुली थी और 2022 उसके अंत के राहत के साथ शुरू हुआ है। 2021 अर्थव्यवस्था को लेकर निराशा के दौर में शुरू हुआ था क्योंकि कोरोना से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था मर्माहत थी और भारत भी उसके उससे अलग नहीं था। 2022 अर्थव्यवस्था में नई उम्मीद के साथ शुरू हुई है। विश्व की मान्य संस्थाएं रिपोर्ट दे रही हैं कि 2022 में भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर उछाल मारेंगी। इस तरह संक्षेप में कहा जाए तो 2021 और 2022 की शुरुआत में मूलभूत अंतर यही है तब सामूहिक नैराश्य का वातावरण था और आज हमने आशाओं और उम्मीदों के माहौल में 2022 के उषाकाल में कदम रखा है।

कोई भी वर्ष नए सिरे से आरंभ नहीं होता। हर वर्ष की पृष्ठभूमि पिछले वर्ष के आधार पर ही तैयार होती है। अगर 2021 का अंत आशा और उम्मीदों के साथ आत्मविश्वास तथा नए उत्साह से हुआ है तो 2022 पर इसका व्यापक प्रभाव रहेगा । आत्मविश्वासहीनता, चिंता और निराशा की स्थिति में कोई व्यक्ति, समाज या देश अपनी संभावनाओं के अनुरूप सफलता प्राप्त नहीं करता। सफल होने के लिए आशा,  उम्मीद और आत्मविश्वास की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 2020 और 2021 इस दृष्टि से भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण वर्ष रहा। 2019 का अंत आशा,उम्मीद और आत्मविश्वास के साथ हुआ था लेकिन कोरोना, चीन के षड्यंत्र और ऐसी को ऐसी कई घटनाओं ने उन पर तुषारापात कर दिया। यह राहत का विषय है कि 2022 में हम उन सबका सामना करते हुए अपनी संभावनाओं के अनुरूप सफलता की ओर बढ़ने की उम्मीद के साथ काम कर रहे हैं। 2021 के अंतिम महीने में वाराणसी की काशी विश्वनाथ के उद्धार सहित जो भव्य और ददिव्य दृश्य विश्व ने देखा उसका आम लोगों के मानस पर व्यापक असर है। ऐसी घटनाओं का दूरगामी असर होता है और यह हमेशा सकारात्मक रहता है।

जिन्हें भारत की अध्यात्मिक-सांस्कृतिक विरासत और इतिहास के गर्व करने वाले अध्यायों की अनुभूति नहीं, समझ नहीं उन्हें इसके महत्व का भी आभास नहीं हो सकता। किंतु हमारे महापुरुषों ने भारत के एक ऐसे राष्ट्र के रूप में विकसित होने का सपना देखा जो धार्मिक,  आध्यात्मिक, सांस्कृतिक रूप से भी इस तरह समुन्नत हो कि संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा का कारण बने और इसे आदर्श के रूप में मानकर विश्व के ज्यादातर देश अनुसरण करें। गांधी जी के विचारों को लेकर धीरे-धीरे भारत में सर्वानुमति की स्थिति है। उन्होंने कहा था कि धर्म ऐसा क्षेत्र है जिसमें भारत दुनिया में सबसे बड़ा हो सकता है। उनके अनुसार भारत को इसलिए आजाद होना है क्योंकि उसको विश्व को रास्ता दिखाना है।  ऐसा न करने का मतलब होगा उसकी आत्मा का मर जाना और आत्मा मर गई तो भारत जीवित नहीं रह पाएगा। वाराणसी का पुनरुद्धार भारत की उसी आत्मा को पुनर्जीवित करने के साक्षात प्रमाण के रूप में आया है और इसका व्यापक असर 2022 ही नहीं आने वाले लंबे समय तक बना रहेगा। यह एक ऐसा पहलू है जिससे भविष्य में राष्ट्र निर्माण का सूत्र विकसित होता है। 2019 में अयोध्या के श्री राम मंदिर के पक्ष में उच्चतम न्यायालय के फैसले के साथ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरुआत हुई। 2020 में कोरोना संकट के बावजूद भूमि पूजन तथा उसके निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई । 2021 में वाराणसी हमारे सामने आया। 2022, 23, 24 तक अयोध्या से लेकर विंध्याचल और प्रयागराज सहित कई नई तस्वीरें सामने आ सकती है। 2020 में अगर कोरोना संकट नहीं आता और 2021 को भी अपने आगोश में नहीं लेता तो भारत के सांस्कृतिक पुनरुद्भव की दिव्य ऊर्जा दूसरे रूप में सामने होती। यह भी हम सबके लिए आत्मसंतोष का विषय होना चाहिए कि इतनी चुनौतियों, संकटों और लॉकडाउन के बावजूद देश उस दिशा में निर्बाध रूप से प्रयास कर रहा है।

 किसी भी राष्ट्र का उत्थान उसकी मूल दिशा पर निर्भर करती है। अगर दिशा सही है तो राष्ट्र अपनी पहचान की व्यापक आभा बिखेरते हुए आगे बढ़ता है। इन व्यापक अर्थों में 2022 अगर ठीक से संभल गया ,जिसकी संभावना है तो भारत के लिए युग परिवर्तनकारी सदृश वर्ष साबित हो सकता है। भारत सच कहा जाए तो अपनी आत्मा और प्रकृति को पाने के लिए लंबे समय से जद्दोजहद कर रहा था। कई बार करवटें बदलने की कोशिश हुई लेकिन परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे। 2021 तमाम चुनौतियों और निराशाओं के बीच उसकी प्राप्ति के साकार दर्शन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में बीता है। यह संभव ही नहीं कि व्यक्ति समाज या देश कोई भी एक बार अपनी आत्मा और प्रकृति को पहचान ले तो फिर वह पूरी तरह भटकाव का शिकार हो जाए। उसमें रुकावट आ सकती है, गति धीमी हो सकती है , कई बार सरपट और उर्ध्वाकार की जगह बाएं – दाएं मुड़ना पड़ सकता है लेकिन दिशा निश्चित है तो अंत में पहुंचेगा वही । इस दृष्टि से सरकार और समाज के जागरूक वर्ग के लिए 2022 गंभीर उत्तरदायित्व के साथ आया है। इस धारा को पहचानने वाले लोगों का दायित्व है कि वे संपूर्ण देश और देश के बाहर फैले भारतवंशियों के बीच इस बात को फैलाएं और जागरूक करें ताकि सभी अपने – अपने उत्तरदायित्वों का, जो जहां हैं वहां से जितना संभव है पालन करें।

इसमें दो राय नहीं कि कुछ चिंता और निराशा के संकेत हैं। उदाहरण के लिए पंजाब में हाल की कुछ घटनाओं ने 1980 और 90 के दशक के आतंकवाद के दौर की यादें पैदा की है। लुधियाना विस्फोट तथा उसके पहले अमृतसर स्वर्ण मंदिर एवं कपूरथला के एक गुरुद्वारे में श्री गुरुग्रंथ साहिब के अपमान के आरोप में पीट-पीटकर की गई दो व्यक्तियों की हत्या डरावनी है। कपूरथला के बारे में तो साबित हो गया कि वहां के ग्रंथि ने झूठा वीडियो प्रसारित किया तथा लाउडस्पीकर से झूठी घोषणा कर लोगों को इकट्ठा कर दिया। अमृतसर के बारे में सच सामने नहीं आया है और पंजाब की स्थिति देखते हुए वहां शायद ही सच तलाशने और सच बताने का जोखिम उठाने का साहस दिखाया जाए। ये घटनाएं बताती हैं कि किस तरह पंजाब में फिर से दंगा फैलाने तथा हिंसा पैदा करने के षड्यंत्र हो रहे हैं। सिखों को हिंदुओं के विरुद्ध भड़काने कोमा उनको हिंसक विरोध के लिए उकसाने काश आप षड्यंत्र इसमें दिख रहा है।  हिंदुओं और सिक्खों को लड़ाने की साजिश का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है? आखिर कपूरथला के उस ग्रंथि को इस ढंग से झूठ फैला कर किसी व्यक्ति की हत्या करवाने का विचार कहां से और क्यों आया होगा? धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों की वापसी के फैसले के पीछे खालिस्तानी तत्वों के इसे हथियार बनाकर भारत-पाकिस्तान और इसके अलावा दुनिया भर में सक्रिय होना एक बड़ा कारण था। इसी तरह पूर्वोत्तर में उग्रवादी तत्वों द्वारा सेना के काफिले पर हमला उस क्षेत्र के लिए भी चिंता पैदा करती है। परंतु इन दोनों क्षेत्रों के बारे में राहत का पहलू यही है कि समाज का सचेतन वर्ग जागरूक रहा, कार्रवाई हुई। पंजाब की राजनीति में एक नई धारा पैदा हो रही है जिसकी भारतीय राष्ट्र के प्रति निष्ठा और प्रतिबद्धता अटूट है।

 पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखते हुए भी कई प्रकार के खतरे दिखने लगे हैं । पंजाब के परे उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक – जातीय तनाव या इन दोनों स्तरों पर वोटकेंद्रित गोलबंदी की कोशिश भी साफ दृष्टिगत हो रही है। इस संदर्भ में सभी राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकारों को दृढ़ता के साथ खड़ा रहना होगा ताकि इसका गलत इस्तेमाल कर किसी तरह का तनाव न पैदा किया जाए। ऐसा हुआ तो फिर हम सबके लिए समस्याएं और चुनौतियां बढ़ जाएंगी ।उत्तर प्रदेश चुनाव को सभी समूह 2024 के लोकसभा चुनाव यानी भविष्य की राजनीति के संकेतक के रूप में मान रहे हैं। केंद्र में भाजपा के सरकार की एक बड़ी ताकत उत्तर प्रदेश से प्राप्त लोकसभा की सीट है । उसकी कोशिश हर हाल में चुनावी सफलता प्राप्त कर यह धारणा बनाए रखने की है कि भविष्य के चुनाव के संदर्भ में उसके लिए निराशा या चिंता का कारण नहीं है। दूसरी ओर स्वाभाविक ही राजनीतिक विपक्ष और गैर राजनीतिक स्तर पर सक्रिय वे सारे समूह, जो विचारधारा के अलावा भी अलग-अलग कारणों से भाजपा संघ ही नहीं नरेंद्र मोदी आदित्यनाथ और अमित शाह के घोर विरोधी हैं उन सबने उत्तर प्रदेश को अपने प्रचार का केंद्र बनाया है। तो 2022 में एक घनघोर राजनीतिक संघर्ष हमारे सामने है। हालांकि उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की कोई तुलना नहीं है। लेकिन विरोधी स्वाभाविक ही अपनी पूरी शक्ति लगाएंगे ताकि वे पश्चिम बंगाल की पुनरावृति कर सकें। दूसरी ओर भाजपा भी संपूर्ण ताकत के साथ वहां उतर चुकी है क्योंकि उत्तर पश्चिम बंगाल के परिणामों को वह दोहराना नहीं चाहती। विधानसभा चुनावों में कहां-कहां कौन पार्टी जीतेगी कौन हारेगी इसका महत्व लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में अवश्य है। लेकिन राष्ट्र के व्यापक फलक का यह एक छोटा अंश है। राष्ट्र के व्यापक फलक और लक्ष्य का ध्यान रखते हुए सारे विवेकशील और सचेत लोगों को जागरूक और सतर्क रहना होगा ताकि जो धारा 2021 से निकली है वह कमजोर न पड़े और भारत राष्ट्र के सही पहचान के रूप में उत्तरोत्तर प्रगति करते हुए वाकई विश्व के लिए प्रेरणा बन सके। कोई व्यक्ति समूह या संगठन किसी पार्टी नेता का समर्थक हो विरोधी हो, सबका दायित्व है कि सही दिशा और लक्ष्य की ओर प्रयाण करते भारत के रास्ते को बाधा ना पहुंचाएं। तो ईशा संवत 2022 इस मायने में सबके लिए परीक्षा का वर्ष साबित है।

Leave a Reply