भगवान विश्वनाथ के आराधक भारतरत्न बिस्मिल्ला खां

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भगवान विश्वनाथ के त्रिशूल पर बसी तीन लोक से न्यारी काशी में गंगा के घाट पर सुबह-सवेरे शहनाई के सुर बिखरने वाले उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म 21 मार्च, 1916 को ग्राम डुमराँव, जिला भोजपुर, बिहार में हुआ था। बचपन में इनका नाम कमरुद्दीन था। इनके पिता पैगम्बर बख्श भी संगीत…

हर्षोल्लास का महापर्व होली

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होलिकादहन में अग्नि की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि अग्नि को परमात्मा का स्वरूप माना गया है। इनकी वन्दना से हमें दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिलती है। यदि हम लोग होलिका दहन के सही अर्थ को समझें तो सम्पूर्ण विश्व में आतंकवाद जैसी समस्या ही न रहे क्योंकि यह समस्या मुख्य रूप से दुर्भावना की ही देन है।

वाराणस्यां तु विश्वेशं

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  आनन्द कानन या आनन्द वन के नाम से संबोधित किए जानेवाले मानव सभ्यता के प्राचीनतम नगर काशी के सबसे महत्वपूर्ण धर्म स्थलों में से एक काशी विश्वनाथ धाम आज सम्पूर्ण विश्व के सनातन हिंदुओं के लिए परमानन्द का कारण बन गया है।

काशी विश्वनाथ : राष्ट्र पुनर्जागरण की दृष्टि

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करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्र बाबा विश्वनाथ के मंदिर का विहंगम दृश्य मात्र एक भवन का नवीनीकरण नहीं है। यह हमारी मान्यताओं, प्रतीकों और संस्कृति के संरक्षण का ऐतिहासिक उत्सव है।

2022 भारत के लिए युग परिवर्तनकारी हो सकता है

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ईसा संवत 2022 की शुरुआत और 2021 के बीच कई समानताएं हैं। 2021 भी कोरोना के भय और प्रकोप के माहौल में शुरू हुआ था और 2022 भी उसके नए वेरिएंट ओमीक्रोन के खतरे के साए में पैदा हुआ है।

काशी बना भारतीय संस्कृति के गौरव का प्रतीक

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण के साथ इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय का निर्माण हुआ। प्रमुख संप्रदायों के संतों की मौजूदगी में महादेव का अनुष्ठान हुआ। गंगा घाटों के साथ शहर की प्रमुख भागों को सजाया गया था। काशी विश्वनाथ मंदिर के सात संपूर्ण कॉरिडोर के…

काशी नगरी के अनोखे कोतवाल जब औरंगजेब पर पड़े थे भारी

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काशी नगरी की महिमा अद्भुत और अपार है कहा जाता है कि काशी नगरी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी हुई है। इसे मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है। हिन्दू धर्मग्रंथों से यह पता चलता है कि लोग अपनी अंतिम सांस काशी में लेना चाहते थे क्योंकि यहां प्राण त्यागने…

दान से बनी विद्या की राजधानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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‘नवाब साहब क्षमा करें। मैं काशी से चलकर आपके पास आया हूूं। आपकी रियासत का पूरी दुनिया में नाम है। मैं अगर यहां से खाली हाथ गया तो आप की तौहीन होगी। इसीलिए सोचा की आप के जूतों को नीलाम करके कुछ धन एकत्र करलूं और उसके बाद काशी जाऊं, जिससे मैं काशी की प्रजा को बता सकूं कि हैदराबाद से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए दान मिला है।’- महामना मालवीय

भारतेंदू हरिश्चंद्र: आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह

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बरषा सिर पर आ गई हरी हुई सब भूमि बागों में झूले पड़े, रहे भ्रमण-गण झूमि करके याद कुटुंब की फिरे विदेशी लोग बिछड़े प्रीतमवालियों के सिर पर छाया सोग खोल-खोल छाता चले लोग सड़क के बीच कीचड़ में जूते फँसे जैसे अघ में नीच भारतेंदु हरिश्चंद्र को उनके साहित्य…

जयंती: धनपत राय से बने मुंशी प्रेमचंद्र

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मुंशी प्रेमचंद एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही मन में हजारों कहानियां मन में घूमने लगती है, सैकड़ों किताबें याद आने लगती है। एक सफल लेखक, शिक्षक, कुशल वक्ता, संपादक और उपन्यास सम्राट जैसे कई गुणों से भरपूर थे अपने मुंशी जी। उनके लेखन का दौर करीब 1880 से लेकर 1936…

वाराणसी के रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर की एक झलक

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वाराणसी के रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर की एक झलक
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भारत और जापान की दोस्ती की मिसाल वाराणसी का रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर अब आम जनता के लिए खोल दिया गया है। वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को इसका उद्घाटन किया और राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में इस रुद्राक्ष भवन को वाराणसी…

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