बड़े ही गाजे-बाजे के साथ सांसद संजय राउत ने 15 फरवरी को एक पत्रकार परिषद बुलाई। संजय राऊत के बोलने पर बहुत गंभीरता दिखाने की आवश्यकता नहीं है, इतनी अकल मुझे भी है फिर भी मैंने यह परिषद देखी एवं सुनी। संजय राउत का बोलना गंभीरता से क्यों नहीं लेना, क्योंकि वह तो तोता है। उसको बुलवानेवाले शरद पवार हैं। इसलिए तोते के बोल सुनने की अपेक्षा उनके मालिक के बोल सुनना ज्यादा अच्छा। इसलिए शरद राव पवार क्या बोलते हैं यह मैं गंभीरता से सुनता भी हूं और देखता भी हूं।
सांसद संजय राउत की पत्रकार परिषद, पत्रकार परिषद कैसी नहीं होना चाहिए, इसका एक उदाहरण थी। उन्होंने बहुत चिढ़कर भाषण दिया। पत्रकारों (बिचारे पत्रकारों)को प्रश्न पूछने की पाबंदी थी। प्रश्नों के बिना पत्रकार परिषद कैसी? यह कारनामा केवल संजय राउत ही कर सकते हैं। उनकी परिषद से ऐसा लग रहा था कि वह बहुत घबराए हुए हैं। वीर व्यक्ति अपनी वीरता की डींगे नहीं हांकता। रेल के डिब्बे में या सड़क पर झगड़ा होता है उसमे दोनों व्यक्ति एक दूसरे से कहते हैं ‘हिम्मत हो तो हाथ लगाओ, मैंने मरी मां का दूध नहीं पिया है’; दूसरा कहता है ‘हिम्मत हो तो तुम हाथ लगाओ मैं भी कच्चे गुरु का चेला नहीं।’ ऐसे बोल बच्चन का झगड़ा दो बकरों के युद्ध जैसा होता है। इन दोनों में यदि कोई एक ताकतवर हो तू मुंह से बोलता नहीं, वह सामने वाले के गाल पर चांटा मारता है या एक घूंसा मारता है। संजय राउत की यह बोल बच्चनगिरी है।
संयोग से उसी रात मैंने जातक कथाओं की पुस्तक पढ़ रहा था, मैंने लगातार तीन कथाएं पढ़ी। यह तीनों कथाएं संजय राउत पर एकदम फिट बैठने वाली लगी। इसी को कहते हैं संयोग। धर्मानंद कोसंबी की पुस्तक में ये जातक कथाएं हैं। संजय राऊत अच्छे पत्रकार हैं। सामना के कार्यकारी संपादक हैं। सेना प्रमुख बाला साहब के संपर्क में रहे हैं। वीर व्यक्ति का साथ उन्हें प्राप्त हुआ।परंतु बाद में उनका सहवास शरद पवार के साथ अधिक होने लगा। शरद पवार को किसी भी तरह शिवसेना भाजपा गठबंधन तोड़ना था, वह काम उन्होंने संजय राउत से करवा लिया और आज भी वह जारी है।
‘सहवास का फल’ यह जातक कथा का शीर्षक है। जातक कथाएं बहुत लंबी होती हैं, इसलिए संक्षेप में बताता हूं । दधिवाहन वाराणसी का राजा था। उसके बाग में आम का एक वृक्ष था। इस वृक्ष को अनेक मीठे आम लगते थे। ये आम वह अन्य राजाओं को भेंट में भेजता था। परंतु भेजने से पहले बारीक सुई से आम की गुठली में जहर डाल देता था जिससे गुठली में से झाड़ न निकले। इसके पीछे का उद्देश्य था की आम अपने पास ही होना चाहिए। एक राजा को राजा दधिवाहन की यह युक्ति समझ में आ गई। राजा के झाड़ का मीठा आम कड़वा करने के लिए उसने अपने विश्वासपात्र माली को राजा दधिवाहन के पास भेजा। इस माली ने राजा का विश्वास संपादन किया। अपनी कुशलता से उसने मौसम में न उगने वाले फल फूल उगाकर दिखाए। राजा ने उसको आमनके बाग का प्रमुख बना दिय उसने मीठा आम देने वाले झाड़ के चारों ओर कड़वी नीम और दूसरी अन्य कड़वी जाति के बहुत से झाड़ लगाए। उनकी जड़ें आम के झाड़ की जड़ों में मिल गई। आम के झाड़ की जड़ों को कड़वे रस की आपूर्ति हो गई। एक दिन राजा बाग में आया। उसने एक पका आम तोड़कर खाना शुरू किया। वह उसे अत्यंत कड़वा लगा। इतना मीठा आम कड़वा कैसे हो गया, इसका कारण उसने बोधिसत्व से पूछा। बोधिसत्व ने बाग का निरीक्षण कर बताया की इस आम के झाड़ के चारों ओर सब प्रकार के कड़वे रस के झाड़ लगाए हैं। उसका कड़वा रस इस आम के झाड़ में मिल गया है इसलिए आम का फल कड़वा हो गया है। गठबंधन का फल भी आम के समान मीठा था। उसे संजय नामक माली ने गलत संगत में डालकर अत्यधिक कड़वा बना दिया। झाड़ को अब जल्दी ही मीठे फल लगने की संभावना नहीं है।
यह कथा पढ़ने के बाद अब हम दूसरी कथा की ओर बढ़ते हैं। कथा का शीर्षक है ‘मूर्ख व्यक्ति को मौन शोभा देता है।’ एक फेरी वाला एक गधे पर सामान लादकर घर-घर जाता था एवं अपने सामान की बिक्री करता था। काम समाप्त होने के बाद वह गधे को शेर की खाल ओढा कर खेत में छोड़ देता था। लोगों को लगता कि शेर आया और वे भी घबराकर भाग जाते। गधा पेट भर घास चरता था। एक दिन गधा ऐसे ही बाघ की खाल ओढ़कर खेत में चर रहा था। किसान ने देखा और वह घबराकर भाग गया। उसने बोधिसत्व को जाकर बताया। बोधिसत्व अनेक तगड़े लोगों को लेकर खेत में आया। शेर को भगाने के लिए उसने बाजे बजाना शुरू किया। बाजे की आवाज सुनकर गधा घबरा गया और चिल्लाने लगा। सब लोगों के ध्यान में आया की, अरे, यह तो बाघ की खाल में गधा है। सब ने मिलकर उसे पीटा। वह बेहोश होकर नीचे गिर पड़ा। उसे देखने के लिए उसका मालिक आया। उसकी यह अवस्था देखकर मालिक गधे से बोला, “अरे गधे शेर की खाल ओढ़ने के कारण तुम्हें बहुत दिनों तक चर सकते थे परंतु तुम्हारे एक चिल्लाने से तुमने अपनी मौत बुला ली।” ईडी के डंडे से संजय राऊत घायल हो गए हैं। शेर की खाल तो ओढ ली, परंतु राजनीति में जनाधार आवश्यक है, विधायकों को सांसदों का समर्थन आवश्यक है, शीर्षस्थ राजनीतिक नेतृत्व साथ में होना चाहिए। इस बार की पत्रकार परिषद में कोई भी नहीं था। संजय राउत ने जी भर कर चिल्लाने का काम किया। अब देखें की ईडी की अगली मार कब बैठती है।
तीसरी कथा का शीर्षक है ‘साधु के सहवास का फल।’ संगत अच्छी हो तो उसका फल अच्छा मिलता है। एक उपासक काम के निमित्त जहाज से विदेश के लिए निकला। उस जहाज से एक नाई भी जा रहा था उस नाई की पत्नी ने कहा,’ महाराज मेरे पति का ध्यान रखिए।’ उपासक ने कहा, ” ठीक है।” आगे जाकर जहाज रेत में धंस जाता है और डूब जाता है। वह उपासक और नाई एक द्वीप पर पहुंचते हैं। उस निर्मनुष्य द्वीप पर उपासक कंदमूल और फल खाकर रहने लगता है। नाई पक्षी एवं छोटे प्राणी मारकर खाने लगता है। उपासक ने शाकाहार का व्रत नहीं छोड़ा। यह देख कर एक नाग देवता को प्रसन्नता हुई। वह उपासक के सामने आया और बोला, “मैं अपने शरीर की नाव बनाता हूं और आपको आपके देश छोड़ कर आता हूं।” तदनुसार उसने अपने शरीर की नाव बनाई और उपासक से नाव में बैठने को कहा। तब उपासक बोला, ” मैं अकेले नहीं जाऊंगा, साथ में इस नाई को भी ले जाऊंगा।” नाग ने कहा, ” इस नाई ने हिंसा कर पाप किया है। उसे मैं नहीं ले जा सकता।” तब उपासक ने कहा, ” मैं अपना आधा पुण्य इसे देता हूं जिससे वह पुण्यवान हो जाएगा और मेरे साथ जा सकेगा।” इस प्रकार उन दोनों में गठबंधन होता है और नाव से वे दोनों किनारे पर पहुंचते हैं।
शिवसेना से गठबंधन कर भाजपा ने सेना को अपने पुण्य में सहभागी बनाया। इसके कारण गठबंधन का जहाज पत्थरों से न टकराते हुए किनारे लगा। मोदी के प्रभाव के कारण कई विधायक चुनकर आए। परंतु कुछ दुष्ट बुद्धि के लोगों से यह देखा नहीं गया। उन्होंने गठबंधन में खटास पैदा की और आगे का सारा इतिहास हमें पता ही है। पिछले चुनाव में भाजपा ने सेना को पुण्य का भागीदार ना बनाया होता तो इसके लिए ईश्वर के शब्द इस प्रकार हैं, ” इस नाई ने यदि उपासक का साथ छोड़ दिया होता तो समुद्र में ही उसका नाश हो जाता।” यह बुद्धिमान सांसद पत्रकार श्री संजय राउत को क्यों नहीं सूझती? यह समझ से परे है।
ऐसी ये तीन कथाएं पढ़ें, आनंद लें और भूल जाएं।