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Ukraine Russia war situations

रूस ने अघोषित युद्ध आरंभ कर दिया है

by अवधेश कुमार
in ट्रेंडींग, देश-विदेश, राजनीति
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व्लादीमीर पुतिन द्वारा पूर्वी युक्रेन में रूस समर्थित अलगाववादी क्षेत्रों डोनेत्स्क और लुहान्स्क की स्वतंत्रता को मान्यता देने पर हैरत जताने का कोई कारण नहीं है। पुतिन के नेतृत्व में रूस की आक्रामकता लंबे समय से इसका संकेत दे रहा था। जब टेलीविजन के माध्यम से यूक्रेन के पृथकतावादी विद्रोही नेताओं ने राष्ट्रपति पुतिन से अनुरोध किया था कि वह अलगाववादी क्षेत्रों की जनता को मान्यता दें तथा मित्रता संधियों पर हस्ताक्षर करके उनके खिलाफ जारी यूक्रेनी सेना के हमलों से उनकी रक्षा के लिए सैन्य सहायता भेजे तभी स्पष्ट हो गया था कि रूस किस दिशा में जा रहा है।

वास्तव में उन नेताओं का बयान रूस द्वारा ही तैयार किया गया था ताकि वह खुलकर सैन्य सहायता करने के आधार के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत कर सके। इसके साथ रूस की संसद के निचले सदन ने भी राष्ट्रपति से इसी प्रकार की अपील की थी। वस्तुतः पुतिन ने रूसी सांसदों से यूक्रेन के विद्रोही क्षेत्रों के साथ संधियों पर हस्ताक्षर करने का आग्रह किया था जिससे कि उन्हें मॉस्को का सैन्य समर्थन मिल सके। तो पुतिन जो चाहते थे उन्होंने कर दिया अब विश्व समुदाय को सोचना है कि वह क्या कदम उठाए।

पुतिन ऐसे नेता नहीं, जिन्हें अपनी सोच से  डिगाया जा सके। अमेरिका सहित नाटो के देशों ने हर तरह से उनको दबाव में लाने की कोशिश की। यह साफ हो गया कि अब यूक्रेन के लिए अकेले रूस का मुकाबला करना संभव नहीं होगा। एक ओर पूर्वी यूक्रेन के विद्रोही रूसी सैन्य सहायता से लड़ेंगे तो दूसरी ओर रूस सीधे भी उससे भीड़ सकता है। यूक्रेन के राष्ट्रपति बलोडीमिर जेलेंस्की लंबे समय से विश्व से सहायता की गुहार लगा रहे थे। रूस के इस कदम के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने फोन से उनके साथ बात की और यूक्रेन की संप्रभुता के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धता को दोहराया। इसमें तो दो राय नहीं कि रूस ने अंतरराष्ट्रीय कानून और मानदंडों का अनादर किया है। लेकिन क्या उसे वापस होने को मजबूर किया जा सकता है?

पूर्वी यूक्रेन के विद्रोही क्षेत्रों के खिलाफ अमेरिका अन्य देशों द्वारा वित्तीय प्रतिबंधों की घोषणा या आगे रूस पर प्रतिबंध लगाने से बहुत ज्यादा अंतर आएगा ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। राष्ट्रपति पुतिन ने परिणामों को जानते हुए यह कदम उठाया है। उन्होंने यूक्रेन को पश्चिम की कठपुतली बताते हुए अपने टेलीविजन संबोधन में कहा कि दोनों क्षेत्रों की स्वतंत्रता को तुरंत पहचान के लिए एक लंबे समय से लंबित निर्णय लेना आवश्यक था। जहां तक सत्ता पर काबिज और कब्जा करने वालों का सवाल है हम उनके सैन्य अभियानों को तत्काल समाप्त करने की मांग करते हैं। इसके बाद यह साफ हो जाना चाहिए कि पुतिन ने यूक्रेन और जॉर्जिया को नाटो में शामिल न करने की जो शर्त रखी थी वह सोची – समझी रणनीति थी।  यह ठीक है कि नाटो का विस्तार पुतिन की घेराबंदी की दृष्टि से था लेकिन उनकी महत्वाकांक्षाओं को ध्यान रखें तो अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो संगठन के लक्ष्य की दृष्टि से यह आवश्यक लगेगा। पुतिन चेतावनी देते रहे कि अगर नाटो का विस्तार किया गया तो परिणामों की जिम्मेवारी उनकी नहीं होगी। अभी तक  नाटो का विस्तार हुआ नहीं है।

पुतिन ने जर्मन चांसलर स्कोल्ज से मुलाकात के बाद कहा था कि यूक्रेन के साथ तनाव खत्म करने के लिए कूटनीतिक रास्ता अपना सकते हैं। उनके सबके कि रूस उन तत्वों में से कुछ पर चर्चा करने के लिए तैयार है लेकिन उसके साथ यह भी कह दिया था कि वह केवल मुख्य मुद्दों के साथ संयोजन में ऐसा करेंगे जो हमारे लिए प्राथमिक महत्व कहते हैं। इसमें उन्होंने पश्चिमी यूरोप में मिसाइल तैनाती रोकने सैन्य अभ्यास पर प्रतिबंध और अन्य विश्वास बहाली उपायों की चर्चा की थी। अब मानना पड़ेगा कि उनकी सारी शर्तें केवल यूक्रेन को विखंडित करने की अपनी योजना की आधारभूमि तैयार करने की दृष्टि से रखी गई थी।पूर्व सोवियत संघ राज्यों के प्रति पुतिन के दृष्टिकोण तथा रूसी राष्ट्र के लक्ष्यों का ध्यान रखने वाले जानते हैं कि वह इससे भी आगे बढने की योजना पर काम कर चुके हैं। जब 2014 में उन्होंने क्रीमिया के बड़े भाग को हड़पा तो दुनिया इसी प्रकार छाती पीटती रही धमकी देती रही, उन पर प्रतिबंधों की घोषणा भी हुई, लेकिन आज भी वह उनके कब्जे में है।

दरअसल, वे रूस को भी विश्व की एक महाशक्ति मांगने की मानसिकता में जीते हैं जैसा सोवियत संघ था। हालांकि अमेरिका और चीन के समक्ष उनकी आर्थिक हैसियत काफी कमजोर है,पर सैन्य दृष्टि से निश्चित रूप से रूस महाशक्ति है। दूसरे, उन्होंने अपनी नीतियों में स्पष्ट दिखाया है कि पूर्व सोवियत संघ के राज्य भले स्वतंत्र हो, वे उन्हें अपने प्रभाव में  रखना चाहते हैं। अपने नेतृत्व में ही उनकी सैन्य और विदेश नीतियों का संचालन कराना चाहते हैं। वह इस बात को लेकर अडिग रहते हैं कि इन सभी राज्यों में रूस समर्थित सरकारें रहें। यूक्रेन में 2014 में रूस समर्थित सरकार के गिरने के बाद से स्थिति बदल गई। वे संपूर्ण कोशिश करते रहे।  विद्रोहियों ने उस सरकार को उखाड़ फेंका। यह सही है कि यूक्रेन की वर्तमान सरकार को, जो उस विद्रोह के बाद सत्ता में आई, उसे पश्चिमी देशों का समर्थन प्राप्त है।

तो इसमें अस्वाभाविक क्या है? अगर पुतिन अपने समर्थन की सरकार बनाकर कठपुतली की तरह किसी देश को चलाना चाहेंगे तो अमेरिका के नेतृत्व वाले देश उसके समानांतर खड़े होंगे। उसके बाद से पुतिन ने यूक्रेन को कभी चैन से बैठने नहीं दिया। बाद में यूक्रेन ने 2019 में संविधान में संशोधन कर स्वयं को यूरोपीय संघ और नाटो में शामिल होने की नीति का ऐलान कर दिया। रूस का कहना है कि सोवियत संघ से अलग होने के बाद यूक्रेन ने स्वयं को तटस्थ और किसी भी गुट में शामिल नहीं होने की घोषणा की थी। यह सही है । शे भूल जाते हैं कि रूस उस पर अपना आधिपत्य रखे यह भी समझौते में शामिल नहीं था। प्रश्न है कि अब आगे होगा क्या?

अमेरिका और पश्चिमी देशों के सामने अपना इकबाल कायम रखने की चुनौती खड़ी हो गई है। भले यूक्रेन नाटो का औपचारिक सदस्य नहीं है, नाटो के देश उसके साथ खड़े हैं। अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी के बाद हुई किरकिरी के बाद बिडेन किसी तरह की नरमी बरत कर अपनी बची – खुची छवि का सत्यानाश नहीं करना चाहेंगे। बिडेन के अलावा उनके विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री लगातार आक्रामक बयान दे रहे हैं। ब्रिटेन, फ्रांस ,ऑस्ट्रेलिया , यूरोपीय संघ सबने एक स्वर से रूस का विरोध किया है और निश्चित रूप से वे सब अमेरिका के साथ होंगे। क्या ये सारे देश रूस के साथ सैन्य मुकाबला करने की सीमा तक जाएंगे? यह ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर किसी के पास नहीं। ध्यान रखने की बात है कि शीत ओलंपिक में पुतिन की बीजिंग यात्रा के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से उनकी लंबी बातचीत हुई। उनका संयुक्त वक्तव्य 5300 शब्दों का जारी हुआ जिसकी भाषा देखने से साफ हो जाता है कि यूक्रेन को लेकर विस्तार से बातचीत हुई।

दरअसल, चीन की ताइवान नीति और पुतिन की यूक्रेन नीति में बिल्कुल समानता है। चीन ने यूक्रेन के मामले पर अमेरिका सहित पश्चिमी देशों की लगातार आलोचना की है। यद्यपि पुतिन और शि के वक्तव्य में स्पष्ट नहीं है लेकिन साफ है कि यूक्रेन के मामले पर चीन का साथ रूस को मिलेगा। किस सीमा तक मिलेगा ,कैसे मिलेगा यह परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। दोनों के साथ आने का अर्थ होगा टकराव का खतरनाक मोड़ लेना। युद्ध किसी के भी हित में नहीं होता ,पर रूस ने अघोषित युद्ध आरंभ कर दिया है। विश्व समुदाय तय करे कि इसका समाधान कैसे करना है। अत्यंत जटिल स्थिति है। कोई देश सीधे रूस से सैन्य टकराव मोल लेना नहीं चाहेगा और बगैर उसके पुतिन अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटेंगे। इस तरह स्थिति विकट है । कोई अंतिम निष्कर्ष देने की जगह आगामी घटनाओं पर नजर रखने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।

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Tags: #Chinaamericadonetskhindi vivekKievluhanskMoscoputinrussiaukraineukraine russia war

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