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पर्दे में रहने दो पर्दा ना हटाओ

पर्दे में रहने दो पर्दा ना हटाओ

by आशीष अंशू
in ट्रेंडींग, मार्च -२०२२, विशेष
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आज हम समझ पा रहे हैं कि सती प्रथा की सोच कितनी अमानवीय थी। पर्दे के नाम पर तमाम बहसों के बीच हम एक अमानवीय प्रथा को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। हम सब जानते हैं कि मुस्लिम परिवारों मेंं लड़कियों की कितनी सुनी जाती है? यूं तो भारतीय समाज में ही स्त्रियों की स्थिति चिन्ताजनक है लेकिन मुस्लिम समाज स्त्रियों के लिए स्थिति भयावह हैं।

जब दैनिक भास्कर की रिपोर्टर कर्नाटक के मांडया में मुस्कान खान के घर पर उनका साक्षात्कार कर रही थी। वहां वसीउल्लाह अपनी बेटियों को लेकर मुस्कान से मिलने आए। उनकी बेटियों ने सिर से पैर तक अपने आप को ढका हुआ था। मुस्कान के घर आने की वजह बताते हुए वसीमुल्लाह कहते हैं, ‘’हम उस बच्ची के हौसले और हिम्मत को सलाम करने के लिए यहां आए हैं। मैं अपनी बेटियों को मुस्कान से मिलवाने लाया हूं ताकि उन्हें बता सकूं कि पर्दा अपनाने से बच्चियां और औरतें महफूज रहती हैंं।”

यहां गौरतलब है कि लड़कियां खुद से मिलने नहीं आई थी। उनके अभिभावक लेकर आए थे। उनके अभिभावक कह रहे हैं कि वे अपनी बेटियों को बताना चाहते हैं कि पर्दा अपनाने से बच्चियां और औरतें महफूज रहती हैं। इस संवाद से आप समझ सकते हैं कि पोपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) क्यों इस देश में हिजाब को लेकर बहस चाहता है? क्यों मुस्कान खान जैसी लड़कियों को एक खास इको सिस्टम मुसलमानों का आदर्श बनाकर पेश कर रहा है। एक समय इसी तरह सती प्रथा को महान बनाकर पेश किया गया। कहा गया कि विधवा औरतें स्वयं जल जाना चाहती हैं, अपने दिवंगत पति के साथ। तर्क वहीं दिया गया जो बुर्के के साथ दिया जा रहा है। पति के साथ जल जाने से वह महफूज रहेंगी। आज हम समझ पा रहे हैं कि सती प्रथा की सोच कितनी अमानवीय थी। पर्दे के नाम पर तमाम बहसो के बीच हम एक अमानवीय प्रथा को स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। हम सब जानते हैं कि मुस्लिम परिवारों मेंं लड़कियों की कितनी सुनी जाती है? यूं तो भारतीय समाज में ही स्त्रियों की स्थिति चिन्ताजनक है लेकिन मुस्लिम समाज स्त्रियों के लिए स्थिति भयावह हैं।

पर्दे के पक्ष में दलील देने वाले यही बात कह रहे हैं कि लड़कियों को पर्दा करने की अनुमति नहीं मिलेगी फिर उनके अभिभावक उन्हें स्कूल नहीं आने देंगे। जब पर्दा मुसलमान अभिभावकों द्वारा ही बच्चों पर थोपा जा रहा है फिर यह दलील क्यों दी जा रही है कि लड़कियों की मर्जी। वे जैसा पहनना चाहे, उन्हें पहनने दिया जाए।

यह कैसे तय होगा कि बुर्के के पक्ष में खड़ी लड़की अपनी मर्जी से बुर्के को अपना रही है या उनके पीछे कोई वसीमुल्लाह खड़ा है, जो उन्हें बार-बार बता रहा है कि ”पर्दा अपनाने से बच्चियां और औरतें महफूज रहती हैंं।”

वसीमुल्लाह जैसे वालिदों से पूछना चाहिए कि वे अपनी बच्चियों को किन से महफूज रखना चाहते हैं? और यदि खतरा बाहर से है तो ईलाज की जरूरत बाहर है। लड़कियां क्यों पर्दा करें?

अभी तक भारतीय मुसलमान तय नहीं कर पाया है कि पर्दा इसलिए जरूरी है कि वह कुरआन में लिखा है या इसलिए जरूरी है क्योंकि उनकी बेटियां जिद कर रहीं हैं कि वे हिजाब पहने बिना जिन्दा नहीं रह सकती या फिर इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे बच्चियां और औरतें महफूज रहती हैंं।

यदि बात सुरक्षा की है तो सेल्फ डिफेन्स का प्रशिक्षण दिलवाना सबसे अच्छा रास्ता होगा। सरकारों पर मुसलमान इस बात का दबाव बना सकते हैं कि वे सड़कों पर लड़कियों का चलना आसान बनाएं। शोहदो और मनचले आशिकों पर लगाम लगे। यह तो हुई बाहर की बात। लड़कियों को जो खतरा घर के अंदर है। उसका समधान तो ना पर्दे में है और ना उसका समाधान कानून से निकलेगा। घर का कांटा है, वह घर से ही निकलेगा।

अब बात करते हैं मुस्कान खान की। 8 फरवरी को मांड्या के पीईएस कॉलेज से एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में मुस्कान नाम की छात्रा ‘अल्लाह हू अकबर‘ का नारा लगा रही है। उसके पीछे सौ-डेढ़ सौ लड़के भागे चले आ रहे है। इस घटना के बाद मुस्कान को बुर्के पर चल रहे विवाद की पोस्टर गर्ल के रूप में पोपुलर फ्रंट आफ इंडिया की छात्र ईकाई कैम्पस फ्रंट आफ इंडिया ने स्थापित किया लेकिन यह वीडियो वायरल होने के साथ ही विवादों में है। इस वीडियो को बनाने वाले व्यक्ति को तलाश लेने का दावा भास्कर ने अपनी एक स्टोरी में किया है। भास्कर के अनुसार वह कन्नड़ चैनल का कैमरामैन है। वह अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहता। उसकी बातों पर विश्वास कैसे किया जाए। जबकि उसकी पूरी वीडियो पर कई तरह के गंभीर सवाल उठ रहे हैं। उसका पूरा वीडियो देखकर कोई भी कह सकता है कि यह सीएफआई के नैरेटिव को सहयोग करने के लिए तैयार किया गया है। पूरी बहस जो ’स्कूल परिसर में कैम्पस का दिशा निर्देश चलेगा या शरिया कानून’ विषय पर चल रही थी। इस वीडियों के बाद हिन्दू-मुसलमान की बहस में बदल गई। मतलब वह वीडियो पूरी बहस में बुर्का की तरफदारी करने वालों के पक्ष में समाज की सहानुभूति बटोरने में कामयाब हो गया।

मुस्कान को विभिन्न रिपोर्ट में अकेली लड़की बताया गया। उनके लिए सहानुभूति बटोरी गई लेकिन वह अकेली नहीं थी। जिसने भी वीडियो देखा होगा, उसे समझ आया होगा कि पूरे समय कैमरामैन उसके साथ था। वह स्कूटी पार्क करने से लेकर अल्लाह हू अकबर नारा लगाने तक उसके साथ था। पूरे कॉलेज में कोई दूसरी लड़की नजर नहीं आ रही थी। हिन्दू लड़की भी नहीं थी। जब बुर्के में मुस्कान खान स्कूटी पार्क कर रही थी। वहां सन्नाटा पसरा हुआ था लेकिन वीडियो वहां भी बनाया जा रहा था। वीडियो बनाने वाला अपना नाम नहीं बता रहा लेकिन वह पार्किग से ही क्यों वीडियो बना रहा था? इस सवाल का भी कोई संतोषजनक जवाब भी नहीं देता।

कैमरामैन नाम इसलिए भी नहीं बताना चाहता होगा क्योंकि उसका नाम सामने आते ही सारी कड़ियां जुड़ सकती। उसके पीएफआई से संबंध का भी खुलासा हो सकता है। अब मान भी लीजिए कि यह स्टेज मैनेज ड्रामा था। यदि आप नहीं मानते और कहते हैं कि लड़की शेरनी थी तो यह भी कहें कि भारत में 100 लोगों की भीड़ ने लड़की को कुछ नहीं किया। वैसे एक तरह से देखें तो लड़की को दोनों तरफ से फायदा है। यदि भीड़ ने कुछ नहीं किया तो लड़की शेरनी है और भीड़ ने मारा होता तो विक्टिम बन जाती।

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