मोदी विरोधियों के घटियापन की पराकाष्ठा

घटियापन की पराकाष्ठा। समस्या गम्भीर है, सभी चिंतित हैं कि यूक्रेन से हमारे बच्चे कैसे वापस आयेंगे ? भारत में चूंकि चुनाव चल रहे हैं तो मोदी विरोधियों को भरपूर मौका मिला हुआ है कोसने का । खूब कोसो …..  लेकिन कुछ तो सच्चाई भी लिख दो । पहले कुछ उन बातों को बता दूँ जो इन रुदालियों को बतानी चाहिये थी , नहीं बतायी ।

भारतीय एंबेसी की गाइडलाइंस 14 फरवरी को आई थी पहली बार , जब उसने 16,17,18 फरवरी को कीव से भारत की सीधी फ्लाइट की व्यवस्था की थी । बता भी दूँ कि सामान्य दिनों में यूक्रेन से भारत की कोई सीधी फ्लाइट नही है । यह फ्लाइट भारतीय छात्रों की निकासी के लिये चलायी गयी थीं । किंतु अधिकांश छात्रों ने यह कहते हुये मना कर दिया कि उनके इम्तिहान चल रहे हैं और वो नहीं जायेंगे । जितने छात्र जा सकते थे वो चले गये ।

22, 24, 26 फरवरी को एयर इंडिया की फ्लाइट फिर शेड्यूल की गयी । 22 ता. को करीब 219 छात्र इस फ्लाइट से   23 ता. की सुबह 11.30 बजे दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर गये । तब तक यूक्रेन ने अपना एयर स्पेस बंद करने की घोषणा कर दी ।

एयर इंडिया का किराया 65,000/- लिये जाने की बात उठायी जा रही है । कुछ रुदाली इसे 80 हजार भी बता दे रहे हैं , जो झूठ है । यह  ज्यादा था वो इस वजह से कि यह एयर इंडिया का ऑफ रुट था । 15-16 तक तो कतर, एमिरेट्स, मलेशिया, लुफतांसा सभी की फ्लाइट दुबई तक का सामान्य किराया ले रही थीं , बाद में उन्होंने भी बढ़ा दिया । इस रूट से भारत क्यों नहीं आये छात्र ? हमेशा तो ऐसे ही आते हैं , एयर इंडिया तो इस रूट पर आती भी नहीं थी ।

भारत सरकार को तो चलो नकारा मान लिया हमने । 8,000 से ज्यादा अमेरिकी नागरिक भी वहाँ फँसे हुये हैं । अमेरिका ने कितनों को इवेक्यूलेट करा लिया ? कल की एडवायजरी में उसने कहा कि पोलैंड बॉर्डर मत जाना , रूमानिया , हंगरी या स्लोवेनिया बॉर्डर तक आ जाओ ।  वो तो विश्वदादा है । यूक्रेन उसके भरोसे ही युद्ध लड़ रहा है , उसको तो अमेरिकी नागरिकों के लिये वाहनों की भीड़ लगा देनी थी या अमेरिका खुद भी वाहनों की कतार लगा सकता था लेकिन उसको किसने रोक लिया था ? एडवायजरी में आगे लिखा है कि बॉर्डर पर 30 घण्टे का समय लगेगा और अब यह वेटिंग पीरियड बढ़ता ही चला जायेगा । अमेरिका को तो बॉर्डर्स पर हवाई जहाजों की लाइन लगा देनी थी कि बस नागरिक खड़ा हो औऱ उसे तुरंत बैठा दिया जाये । खासकर तब जब वहाँ का राष्ट्रपति मोदी का दोस्त राष्ट्रपति नहीं है ।

पाकिस्तान की वाहवाही कर रहे हैं कि उसने 3000 हजार छात्रों को इवेक्यूलेट करा लिया । नवभारत टाइम्स का लिंक भी दिखा रहे हैं । पाकिस्तानी एंबेसी लिख रही है कि 27फरवरी की रात तक कुल 411 छात्रों को वापस लाये हैं । वो भी किराये सहित ।

16000 अफ्रीकी छात्रों सहित लगभग 55,000 और देशों के नागरिक और छात्र जो यूक्रेन में हैं उनकी एम्बेसीज़ ने तीनों बॉर्डर्स पर इकट्ठा तो कर लिया , जिनमें महान चीन भी शामिल है लेकिन उनके इवेक्यूलेशन के लिये कोई व्यवस्था ही नहीं की है । क्या यह सच रुदालियों को नहीं बताना चाहिये या वो सिर्फ मातमी काम के लिये ही पैदा हुई हैं ।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत का रुख अप्रत्याशित नहीं था । अमेरिका का रुख उसके साथ एकपक्षीय रहा है जबकि रूस के साथ उसके बहुत अच्छे सम्बंध हैं । फिर भी उसने निष्पक्षता दिखायी ।

यूक्रेन में वहाँ की पुलिस द्वारा छात्रों से झड़प , अभद्रता क्या इस वज़ह से हो रही है कि मोदी ने यूक्रेन का रिक्वेस्ट के बावजूद समर्थन नहीं किया ?

सभी रुदालियाँ लिख रही हैं कि छात्रों से अभद्रता और परेशानी के लिये मोदी और उसकी विदेश एवं कूटनीति जिम्मेदार है । क्या मोदी को अमेरिकी इशारे पर रूस के विरुद्ध जाना चाहिये था ? अगर मोदी की जगह कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी की सरकार होती तो क्या वो रूस के खिलाफ वोट करती ??

अमेरिका सहित यूक्रेन का हर सहयोगी देश क्या अपने नागरिकों को बड़े आराम या सुविधा से इवेक्यूलेट करा रहा है ? सिर्फ भारतीय तंत्र में कमियां है  जो सिर्फ वो ही इवेक्यूलेट नहीं  करा पा रहा और बाकी सारे देश चारों बॉर्डर से अपने नागरिक और छात्र आराम से वापस लेकर आ रहे हैं ?

भारत के अलावा और कौन कौन से देश हैं जो अपने नागरिकों और छात्रों को बिना किसी शुल्क या किराये के इवेक्यूलेट करा रहे हैं ।

आज तक विश्व का अपने नागरिकों के लिये चलाया गया सबसे बड़ा और वृहद इवेक्यूलेशन/ रेस्क्यू ऑपरेशन कौन सा है ? यह किस देश ने कब चलाया था ? कितने नागरिकों को इसमें उनके देश में वापस लाया गया था ? क्या उस समय विश्व में सभी एयर रूट्स नॉर्मली ऑपरेट हो रहे थे ?

जितने भी ज्ञानी , विद्वान बैठे हुये है सभी से सीधे और स्पष्ट उत्तर की अपेक्षा है, बिना ज्ञान बिखेरे हुये । असल में भारत सरकार के इस रेस्क्यू ऑपरेशन पर ज्यादातर विपक्षी नेता चुप्पी साधे हुये हैं क्योंकि वो जानते हैं कि अगर इसपर ज्ञान बिखेरा तो फँस जायेंगे और अमेरिकी रुख की पैरवी करते दिख जायेंगे सो उन्होंने अपनी आईटी सेलों के श्वान छोड़ दिये हैं हैं और उन श्वानों की मानस संताने फेसबुक पर भौंकती घूम रही हैं । जबाब किसी के भी पास नहीं है ।

ईश्वर से  अपने देश के हर छात्र / नागरिक की सकुशल वापसी की प्रार्थना करते हुये , अपने देश की सरकार में यह विश्वास प्रकट करता हूँ कि वो पूर्ण संवेदना और निष्ठा से सभी को सुरक्षित लेकर आयेगी ।

 – ज्ञानेंद्र कुमार 

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