पेशे से डॉक्टर, थल सेना में मेजर रैंक, पैराट्रूपर, म. राष्ट्रपति के सुरक्षाकर्मी, अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण विजेता खिलाड़ी, प्रसिद्ध वक्ता तथा सोशल मीडिया पर सदा चर्चा में रहनेवाले मेजर सुरेन्द्र पूनिया आज समाज का जानामाना नाम है। भारतीय सुरक्षा व्यवस्था को उन्होंने अत्यंत करीब से देखा है। उनके अनुभवों तथा वर्तमान व भविष्य की सुरक्षा व्यवस्था पर उनकी बेबाक राय है। प्रस्तुत है उनसे हुई चर्चा के कुछ महत्वपूर्ण अंश-
क्या कभी आपने यह कल्पना की थी कि आप सेना के विविध अंगों का हिस्सा बनेंगे?
मैं एक किसान का बेटा हूं और फौजी हूं। यह दोनों ही जो काम करते हैं वह पूरी लगन के साथ में करते हैं अन्यथा नहीं करते हैं। सेना में अधिकारी भी यही कहते हैं कि जो भी काम करो दिल लगाकर ही करो। मुझे सेना में डॉक्टर, पैराट्रूपर्स, स्पेशल फोर्स, म. राष्ट्रपति की सुरक्षा और देश के लिए खेलने का अवसर मिला। महादेव की कृपा से सब काम हो रहा है और मैंने यह पहले कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे ऐसा करने मिलेगा। मुझे ऐसा लगता है कि मैं जो भी करता हूं वह सब हनुमान जी की कृपा से ही होता जा रहा है।
आपने करियर के रुप में सेना को ही क्यों चुना?
करियर के लिए मैंने फौज को चुना था लेकिन डॉक्टर बनना घर वालों का सपना था क्योंकि उनके लिए डॉक्टर और इंजिनियर एक बड़ा पद था। मैं जहां का रहने वाला हूं (सीकर, राजस्थान) वहां फौजी लोगों की संख्या बहुत है। हमें बचपन से ही फौजी लोगों की कहानियां सुनाई जाती थीं। मुझे सेना की वर्दी के साथ एक अलग सा ही प्रेम था इसलिए मैंने पहले ही निश्चित कर लिया था कि मुझे सेना में जाना है लेकिन बाद में डॉक्टर के लिए पुणे के एएफएमसी (ईाशव षेीलशी ाशवळलरश्र लेश्रश्रशसश) से डॉक्टरी की भी शिक्षा ग्रहण कर ली।
आप सेना के पैराट्रूपर कैसे बने?
मेरे कॉलेज में जो प्रोफेसर थे उनमें से कुछ लोग पैराट्रूपर भी थे। उनका बात करने का तरीका, उनके सीने पर लगे मेडल और उनका हावभाव सभी से अलग था, जो कहीं ना कहीं लोगों को आकर्षित करता था। ऐसा मन में विचार आता था कि क्या हम भी कभी उनके जैसे बन सकते हैं? क्या हमें भी उनके जैसी मैरून -कैप पहनने को मिलेगी। मैंने एक एकेडमी जॉइन की जहां मुझे किसी बात पर सजा मिली, लेकिन वह सजा मेरे लिए एक अवसर लेकर आई और मेरे अधिकारी ने मुझे पैरा मिलिट्री जॉइन करने का अवसर दिया। पैरा मिलिट्री में शामिल होना आसान नहीं होता है। उसके लिए तमाम मेंटल और फिजिकल टेस्ट देने होते हैं हालांकि मैं एक के बाद एक पास करता गया और अंत में महादेव की कृपा से मुझे चुन लिया गया।
पैराट्रूपर के रुप में चुन जाने के उपरांत आपका पहला रोमांचक अनुभव क्या था?
पैरा में चुने जाने के बाद मेरा पहला जंप हो रहा था। वहां यह नियम होता है कि जो सीनियर होगा वह सबसे पहले जंप करेगा, लेकिन यह बात मुझे पता नहीं थी और मैं जंप के समय सबसे पीछे जाकर खड़ा हो तभी उस्ताद ने आवाज लगाई और कहा कि आगे आ जाओ। मुझे थोड़ी झिझक हुई और मैने बाद में जंप करने की बात कही। लेकिन उस्ताद ने कहा ‘यहां नहीं तो कहीं और ही सही’ लेकिन कभी ना कभी आगे तो आना ही होगा। जहाज का पीछे का दरवाजा खुला था और मैं जंप के लिए तैयार था। हमारा जहाज आगरा के ऊपर था और नीचे एक ट्रेन जा रही थी, जो मुझे दिखाई दे रही थी। घड़ी अपना काउंटडाउन दे रही थी और जंप से पहले मुझे बीते जीवन की सभी बातें आखों के सामने घूम रही थी। मन में ऐसा विचार आ रहा था कि जंप के बाद पता नहीं जिंदा रहूंगा या नहीं?
आप इतनी सारी उपलब्धियां कैसे प्राप्त कर सके?
मेरा मानना है कि, ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।’ आप जब किसी काम को पूरी शिद्दत से करते हैं तो वह जरूर पूरा होता है। सफलता कभी-कभी देर से मिलती है लेकिन मिलती जरुर है, बस आप का प्रयास सही दिशा में होना चाहिए। अगर आप को चांद पर जाना है तो अब वह भी असंभव नहीं है लेकिन उसके लिए आपको प्रयास करना होगा और वैज्ञानिक बनना होगा। सिर्फ सोचने या चाहने भर से आप चांद पर नहीं जा सकोगे। देश में करीब 140 करोड़ की जनसंख्या है जिसकी बहुत आकांक्षाएं है उसमें से कुछ पूरी नहीं होती है इसलिए वह आलोचना भी करते हैं लेकिन आलोचना हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए। आप की आलोचना से अगर देश या समाज का नुकसान हो रहा है या फिर हमारी संस्कृति को ठेस पहुंच रही है तो वह गलत होता है।
भारतीय सेना और चीन की सेना में क्या अंतर है?
मैं सभी को यह कहना चाहूंगा कि आप विश्व के सबसे खूबसूरत, सुरक्षित, स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश भारत में रह रहे हैं। देश के लोगों को इस बात का गर्व होना चाहिए कि भारत की सेना इतनी मजबूत और ईमानदार है कि वह देश पर कभी खतरा महसून नहीं होने देगी। देश की सेना की जांबाजी ऐसी है कि दुश्मन कभी हमले का सोच भी नहीं सकता है और अगर ऐसा होता है तो भारत की सेना मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है। 1962 में हालात अगल थे, इसलिए हमें हार का सामना करना पड़ा लेकिन आज ऐसी स्थिति है कि अमेरिका भी अब भारत से भिड़ने में सोचेगा। पड़ोसी देश पाकिस्तान की तो कोई औकात ही नहीं है कि वह भारत पर हमला करे, चीन भी अब भारत से डरता है क्योंकि हम चीन के बराबर हो चुके है। चीन को इस बात की जानकारी है कि भारत उसे कड़ी टक्कर देगा इसलिए वह रुका है, वरना वह कब का हमला कर देता। भारत और चीन में एक फर्क यह भी है कि भारत की जनता सेना के साथ खड़ी रहती है जबकि चीन की सेना खुद के लोगों पर अत्याचार करती है। कुछ समय पुर्व चीन की सेना ने अपने ही करीब 4 हजार बच्चों पर टैंक चढ़ा दिया था जिसमें सभी की मृत्यु हो गई थी।
क्या भारत सैन्यशक्ति के रुप में दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति बन चुका है?
किसी भी देश में कितनी संख्या में जवान व हथियार है उसके आधार पर उनका नंबर दिया जाता है जबकि मेरे हिसाब से भारत सैन्य शक्ति में नंबर एक पर है। बाकी सभी देशों की तुलना में भारत में लड़ने वाले सैनिकों की संख्या सबसे अधिक है जबकि इतनी संख्या बाकी किसी देश के पास नहीं है। अमेरिका दूसरे देशों पर हमला करता है और आतंकियों से लड़ाई भी करता है लेकिन जीत के बाद भी अमेरिका का बड़ा नुकसान होता है। भारत और इजराइल दो ही ऐसे देश हैं जो सबसे अधिक जमीनी स्तर पर लड़ाई कर रहे हैं। भारत हर साल पाकिस्तानी आतंकियों को मारता है और देश की सीमा की सुरक्षा करता है। किसी भी देश की सेना को हथियारों के साथ-साथ मॉरल सपोर्ट की भी आवश्यकता होती है जो भारत में बहुत है। देश का एक-एक व्यक्ति सेना के साथ खड़ा होता है और यही वजह है कि सेना का जवान कभी भी जान देने से नहीं चूकता है।
मोदी सरकार के नेतृत्व में भारतीय सेना कितनी आत्मनिर्भर हुई है?
भारतीय सेना करीब 10 साल पहले तक हथियारों की कमी से जूझ रही थी। उस समय जनरल वीके सिंह ने सरकार से इसके लिए बात भी की थी, जिस पर विवाद भी हुआ था। इसके बाद मोदी सरकार ने जैसे ही सत्ता संभाली उन्होंने सेना की जरूरतों को पूरा किया और सबसे खास यह रहा कि मेक इन इंडिया के तहत कुछ हथियारों को देश के अंदर ही तैयार किया जाने लगा, जिससे किसी दूसरे पर आश्रित ना रहना पड़े। सेना के उच्च अधिकारियों का पॉवर बढ़ा दिया गया जिससे उन्हें कुछ काम के लिए ऊपर से आदेश नहीं लेना होता है। जिससे काम कम रुकने लगे और सेना की प्रगति तेजी से होने लगी है। इसके लिए मैं मोदी सरकार को धन्यवाद करना चाहूंगा। गलवान में चीन के साथ जब विवाद हुआ तो हमने पूरी मजबूती से चीन का मुकाबला किया क्योंकि उस समय हमारे पास हथियारों की कमी नहीं थी और अंत में चीन को इलाका खाली कर के पीछे जाना पड़ा।
देश के युवाओं को गुमराह होने से कैसे रोका जा सकता है?
मैं भारतीय युवाओं का दिवाना हूं क्योंकि उनके अंदर जो जुनून और हार्ड वर्किंग है वह किसी और देश के युवाओं में नहीं देखने को मिलता है हालांकि देश के कुछ प्रतिशत युवा गलत विचारधारा में चले गए है परंतु फिर भी युवा तेजी से देश के विकास में योगदान दे रहा है। अगर देश का युवा चाहे तो भारत फिर से विश्व गुरु बन सकता है। मुझे जितना भरोसा खुद पर है उतना ही देश के युवाओं पर भी है।
अलग-अलग विचारधाराओं के टकराव से कैसे बचा जा सकता है?
भारत बाहरी और आंतरिक दोनों ही स्तर पर युद्ध लड़ रहा है लेकिन विचार की लड़ाई कई दशकों से चली आ रही है और यह आगे भी जारी रहेगी। मुगलों ने जब भारत पर आक्रमण किया तो उन्होंने ना सिर्फ देश के खजाने को लूटा बल्कि अपनी विचारधारा और धर्म को भी विकसित किया। जबरन धर्म परिवर्तन, महिलाओं की इज्जत को लूट कर उन्हें समाज से बाहर कर दिया। मंदिरों सहित तमाम धार्मिक स्थलों व ग्रंथ को ध्वस्त किया क्योंकि उन्हें पता था कि अगर यह वेद व पुराण खत्म हो जाएंगे तो यह विचारधारा आगे नहीं बढ़ पाएगी। अंग्रेजो ने भी भारत पर राज किया और जाते-जाते अपनी विचारधारा को भारत में जमा कर चले गए। भारत एकमात्र विश्व का एक ऐसा देश है जहां शांति है और दुनिया भी यह महसूस कर रही है। इसलिए तमाम लोग भारत में आकर बसना चाहते हैं। हिन्दू धर्म की एक बड़ी बात यह है कि हम कभी किसी को जबरन अपना धर्म अपनाने के लिए नहीं कहते हैं जबकि इस्लाम और क्रिश्चियन में कन्वर्जन का काम तेजी से चल रहा है। सर्वधर्म समभाव की बात कहने वाले विवेकानंद जी भी सनातन धर्म से आते हैं और ऐसा किसी और धर्म में नहीं कहा जाता है।
आप सोशल मीडिया पर भी बहुत सक्रिय है। क्या यह सभी एक प्रकार का युद्ध है?
डिजिटल वार बहुत ही तेजी से फैल रहा है और अगर उस पर रोक नहीं लगाई गई तो तमाम गलत विचारों को लोगों तक पहुंचा दिया जाएगा। देश व सरकार को लेकर नकारात्मक बातें फैलाने वालों पर रोक लगनी चाहिए। भारत में सभी धर्मों को सम्मान दिया जाता है लेकिन पिछले कुछ समय से हालात ठीक नहीं चल रहे है और धर्म को लेकर आरोप-प्रत्यारोप की शुरुआत हो गई है। हिन्दू धर्म यही सिखाता है कि सभी धर्मों का सम्मान किया जाए लेकिन बाकी धर्म के लोगों को भी यह बात समझनी चाहिए और दूसरे धर्मों का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। शायद भारत पहला ऐसा देश है जहां अल्पसंख्यक समुदाय बहुसंख्यक को कन्वर्ट कर रहा है। अल्पसंख्यक लोग बहुसंख्यकों को धमकी देते हैं और जान से मारने की बात कहते हैं। अगर कोई देश, धर्म और महिलाओं के खिलाफ पोस्ट करता है, तो मै उसका विरोध करता हूं और सभी को करना चाहिए।
क्या बुरका व हिजाब विवाद मामले में विदेशी शक्तियों का भी हाथ है?
देश में महिलाओं का दर्जा पुरुष के बराबर है या फिर पुरुष से अधिक भी कह सकते हैं, लेकिन अगर महिलाओं को पुरुष से ऊपर का दर्जा नहीं मिल सकता है तो कम से कम बराबरी तो दे ही सकते हैं। समय के साथ लोगों को बदलना चाहिए जैसे समय के साथ सती प्रथा और घूंघट खत्म हो गया वैसे ही अब समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना होगा। धार्मिक तौर पर कुछ प्रथाएं है जिन्हें घरों तक ही सीमित रखना चाहिए उसे काम करने वाली जगहों या फिर स्कूलों तक नहीं लाना चाहिए। देश के तमाम बुद्धिजीवी, अभिनेता और बड़े लोगों ने बुर्को को गलत बताया है और इसे बंद करने की बात कही है। इस्लामिक देश अफगानिस्तान में भी महिलाएं इसका विरोध कर रही हैं। बुर्का विवाद सिर्फ राजनीति का हिस्सा है जिसे जानबूझ कर बढ़ाया जा रहा है क्योंकि इसके दम पर कुछ लोग सरकार को घेरना चाहते हैं। कुछ विदेशी शक्तियां भी हैं जो यह चाहती हैं कि भारत को आंतरिक मामलों में उलझाया जाए जिससे उसका विकास रुक जाए अन्यथा वह उनके लिए नुकसानदायक होगा।