अयोध्या को आध्यात्मिक नगरी का स्वरूप इसलिए भी मिला कि यहां के अधिसंख्य मंदिरों में राम नाम संकीर्तन की परम्परा अनवरत 24 घंटे चलती रही है। इस कीर्तन की परम्परा से अयोध्या में आने वाले ऐसे लोगों के लिए आवास और खाने पीने की व्यवस्था की जाती थी तथा कुछ राशि उनकी निजी आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति के लिए दी जाती थी। अयोध्या में यह कभी नहीं पूछा जाता था कि कीर्तन करने वाले लोगों की क्या जाति है।
भगवान श्रीराम जन्मोत्सव को मनाने की परम्परा तो हमारी आध्यात्मिक पुरी अयोध्या में सहस्रों वर्षों से चली आ रही है। चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में अवतरित होने वाले हमारे आराध्य श्री राम की बलइयां लेने के लिए अयोध्या पुरी के जन तो पहले भी प्रतीक्षा करते ही थे और आज भी करते हैं। माताओं का स्नेह देखते ही बनता है। यह हम इसलिए कह रहे हैं कि आज भी किसी के घर में जब भी कोई बच्चा जन्म लेता है, तो माताएं ही उसे आशीर्वाद देने के लिए पहुंचती हैं और बार-बार नवजात शिशु की बलाइयां भी लेती हैं। सोहर गाने की परम्परा का पालन आज भी देखा जा सकता है। हमारी अयोध्या में मंदिरों में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन से ही सोहर ’हमरे अंगने में बधैया बाजे…’ की सुमधुर संगीत की धारा बहती देखी जा सकती है।
हमारी अयोध्या तो भगवान श्री राम की जन्मभूमि है, तो फिर यहां की माताओं का स्नेह और दोनों हाथों से बलाइयां लेकर नजर उतारने की परम्परा न दिखाई पड़े तो यह अचंभित करने का क्षण ही होगा लेकिन हमें अचंभित होने का अवसर ही नहीं मिलता। राजनीतिक रूप से आजादी के बाद जिस तरह से यहां के आध्यात्मिक स्वरूप को बदलने का प्रयत्न किया गया, उसका आंशिक प्रभाव ही पड़ा परन्तु, साल 2017 के बाद मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के पद संभालने के बाद अयोध्या में सनातनता की पारम्परिकता को समेटे हुए प्रत्येक धार्मिक त्योहारों को मनाने में समूची अयोध्या ही नहीं आस-पास के जिलों के लोगों में जो उत्साह देखा गया है, उसे कम से कम इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों के रहते हुए एक अचंभित करने वाला तो कहा ही जा सकता है।
अयोध्या में भी यद्यपि मन्दिरों को जातियों में बांटे जाने का बहुत प्रयत्न किया गया। इसका दर्शन उस समय स्पष्ट दिखाई दिया जब छोटी अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक में सुनवाई के दौरान मंदिरों के महंत जातीयता को लेकर सामने आए। हिन्दू समाज को खंडित करने की जो योजना तथाकथित सेकुलरों ने बनाई थी उसमें धर्म की आड़ में जातीय राजनीति करने वालों तथा भगवान श्रीराम की पूजा का स्वांग करने वालों ने आहुति देने का ही कार्य किया। परन्तु हमने देखा कि साल 2017 के पूर्व पिछली सरकारों के दौरान समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में अयोध्या में मंदिरों में होने वाले संकीर्तनों, रामायण पाठ और अन्य कार्यक्रमों के दौरान ध्वनि विस्तारक यंत्र को लगाने की अनुमति ही नहीं दी जाती थी।
यह कैसी विडम्बना है कि जिस अयोध्या की पहचान भगवान श्री राम की जन्मस्थली कर्मस्थली से की जाती हो, वहां के धार्मिक उत्सवों में सरकार के अनुमति की जरूरत पड़ी हो। यह वही अयोध्या है, जहां अब आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक बदलाव को सहज ही देखा जा सकता है। अयोध्या को आध्यात्मिक नगरी का स्वरूप इसलिए भी मिला कि यहां के अधिसंख्य मंदिरों में राम नाम संकीर्तन की परम्परा अनवरत 24 घंटे चलती रही है। अखंड कीर्तन की परम्परा का पालन हो रहा था। इस कीर्तन की परम्परा से अयोध्या में आने वाले ऐसे लोगों के लिए आवास और खाने पीने की व्यवस्था की जाती थी। साथ ही कुछ राशि उनके निजी आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति के लिए दी जाती थी। हमारी इस आध्यात्मिक अयोध्या में यह नहीं पूछा जाता था कि कीर्तन करने वाले लोगों की क्या जाति है। हमारी इस आध्यात्मिक अयोध्या में ब्रह्म मुहूर्त से ही लोगों की दिनचर्या आरंभ हो जाती थी। प्रातः काल पवित्र सरयू में स्नान और उसके बाद मंदिरों में पूजा अर्चना के प्रारंभ के साथ ही घंटी घड़ियालों की लयबद्ध आवाज से यह पता चल जाता था कि अयोध्या में श्री सियाराम जी की सेवा आरंभ की जा चुकी है।
प्रत्येक मंदिरों में अपनी-अपनी सुविधानुसार पूजा अर्चना की जाती थी। समय का कोई प्रतिबंध नहीं, जब भक्त जगे तब भगवान भी जगे। ब्रह्म मुहूर्त से ही सरयू की ओर जाने वाले श्रद्धालुओं के श्री सीताराम नाम संकीर्तन को सुनकर ही हमारी सुबह होती थी। वर्ष के बारहों माह, कहने का तात्पर्य यह कि घनघोर सर्दी, बरसात और गर्मी में भी यह परम्परा चलती ही रहती थी। सर्दियों में जब हम रजाइयों में दुबके गर्म होने का आनन्द ले रहे होते थे, उस समय भगवान श्री राम के भक्त कहें या उनके आराधक सरयू में स्नान करने के लिए नाम जप करते हुए गुजरते थे। हमें इस बात का अहसास करा देते थे कि ‘उठो लाल अब आंखें खोलो…।’
आध्यात्मिक अयोध्या की पहचान भगवान श्री राम की जन्मस्थली से ही की जाती है। यह एक ऐसी आध्यात्मिक नगरी है, जहां विरक्तों के मठ, छावनियां और गृहस्थों के आराध्य भगवान श्री सियाराम ही हैं, गोस्वामी तुलसी दास जी ने तो कहा ही था, ‘सीयराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोर जुग पानी…।’
विधानसभा चुनाव के पूर्व अयोध्या के लोगों की भक्ति में शंका और समाधान दोनों विचार अपना-अपना जड़ जमाने में लगे हुए थे। विश्वास डगमगाने लगा था परन्तु परिणाम आने के बाद जिस उत्साह और उल्लास को यहां के लोगों में देखा गया, उसकी शब्दों में व्याख्या करना कठिन है। सारे राजनीतिक अंधविश्वासों को तोड़ते हुए हमारे सियाराम ने योगी को पुनः सत्ता सौंपी है। उससे अयोध्या में कई गुने उत्साह और भक्ति से श्री राम नवमी को श्री राम प्राकट्य उत्सव मनाने की परम्परा श्री राम भक्तों के लिए एक अप्रतिम और अविस्मरणीय अवसर ही बनकर ही रहेगा।