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जागरण सनातनी हिन्दू समाज का

जागरण सनातनी हिन्दू समाज का

by हिंदी विवेक
in अप्रैल -२०२२, विशेष, सामाजिक
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अपनी धर्म-संस्कृति पर लंबे कालखण्डों से हो रहे आक्रमणों, छल-छद्मों के प्रहारों को अपनी नियति और कमजोरी मानकर पीड़ा का दंश झेल रहा हिन्दू समाज अब ठीक उस तरह से जागृत हुआ प्रतीत होता है, जैसा रामायण काल में जामवंत द्वारा हनुमान जी को उनकी अपार शक्ति की याद दिलाने के बाद उनके द्वारा विशाल समुद्र को पार करने के द्वारा प्रदर्शित किया गया था।

भारत सनातन धर्म का उद्गम स्थल रहा है और अपनी वैदिक संस्कृति के आधार पर ज्ञान-विज्ञान की परंपरा का निर्वहन करते हुए विश्व का मार्गदर्शन करता रहा है। भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान की धारा के लंबे अनुसंधान के द्वारा विकसित मूल्यों के समुच्चय को जीवन में धारण करने को ही ‘धर्म’ की संज्ञा दी गयी। ईश्वर तत्व को जानने-पाने की इच्छा और उसके द्वारा निर्मित इस संसार और प्रकृति को उसका ही रूप मानकर जिस ‘जीवन-शैली’ का विकास किया गया उसका वर्तमान स्वरूप ही सनातन हिन्दू धर्म के रूप में प्रचलित है। देश, काल, भाषा-शैली और भौगोलिक भिन्नताओं के अनुरूप सनातन संस्कृति में अनेक पद्धति और संप्रदायों के रूप में ज्ञान और भक्ति की अनेक धाराएं विकसित होती गईं।

अनेक मार्गों से जीवन जीने के बावजूद अंतिम लक्ष्य के एक होने के कारण विविधताओं का समावेश करने वाला सनातन हिन्दू समाज अनेक मूल्यों को विकसित करता रहा जिसमें सत्य, अहिंसा, करुणा, प्रेम, प्रकृतिनुराग, सहिष्णुता, आत्मवत सर्वभूतेषु, वसुधैव कुटुंबकम जैसे मूल्य सम्मिलित हैं। पूर्ण जीवन हेतु चार पुरुषार्थों अर्थात लक्ष्यों की प्राप्ति प्रत्येक सनातनी का उद्देश्य होता है जो हैं- धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष। इन्हें जीवन के उत्तरोत्तर क्रम से पूर्ण करते हुए अगली पीढ़ी तक कार्यों को हस्तगत करते हुए यह समाज आगे बढ़ता रहा। इसी कारण सनातन हिन्दू धर्म एक संतुलित जीवन जीने का मार्ग हैं। भौतिक सुख-सुविधाओं के भोग से ऊपर परोपकार एवं त्याग की भावना को रखने के कारण सनातन धर्म के अनुयायियों के जीवन का मूल लक्ष्य अभी भी उच्च मूल्यों को जीवन में वरण करना रहता है और मूल्य युक्त जीवन ही सम्मान प्राप्ति की पात्रता सुनिश्चित करता है। इसीलिए आज भी सत्यनिष्ठा पर चलता हुआ हिन्दू समाज अपनी समदृष्टि के कारण सबको सम्मान देते हुए ‘एकं सत्यं विप्रा बहुधा वदन्ति’ को मानते हुए सबको आदर प्रदान करता है।

भारत के उच्च स्तरीय चिंतन एवं ज्ञान को देखकर पूरा विश्व सदैव भारत से जुडने के लिए लालायित रहा और समय-समय पर अनेक विदेशी विद्वान अपनी ज्ञान-पिपासा को शांत करने हेतु भारत की यात्रा पर आते रहे। उस दौर में दुनिया के लोग इसे ‘विश्वगुरु’ के रूप में जानने लगे। उच्च मूल्यों की शिक्षा के प्रभाव से विकसित हुई व्यवस्थाओं के आधार पर भारतीय शासन तंत्र ने परम वैभवशाली राष्ट्र के रूप में इस देश को विश्व के सम्मुख प्रतिष्ठित किया। भारत की समृद्धि को देखकर दुनिया में कहा जाने लगा कि भारत की डाल-डाल पर सोने की चिड़िया निवास करती हैं। यहां की त्वरित व नि:शुल्क न्याय व्यवस्था और विकेंद्रित अर्थ व्यवस्था से सम्पन्न समाज के किसी भी वर्ग को घरों पर ताले लगाने की अवश्यकता नहीं पड़ती थी।

भारत की यश, कीर्ति और समृद्धि की खबर पाकर अनेक विदेशी राजाओं ने समय-समय पर आक्रमण करके इस पर कब्जा करने की कोशिशें की किन्तु यहां के यशस्वी योद्धाओं ने उन सभी को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया और वापस खदेड़ दिया। इसके पश्चात अनेक असंस्कृत एवं कबीलाई लुटेरों ने गिरोह बनाकर इस देश को लूटने के प्रयास किए किन्तु सफल न हो पाये। धर्मनिष्ठ प्रजा और कर्तव्यनिष्ठ शासकों से युद्ध के मैदान में सफलता न  प्राप्त होते देख इन बाहरी ताकतों ने छल-छद्म के सहारे भारत को लूटने की योजना बनाई और युद्ध में जीतने पर लूट किन्तु हारने पर शरणागति का नाटक करके हिन्दू समाज को प्रताड़ित करना शुरू किया। ऐसे ही धीरे-धीरे कुछ इलाकों को कब्जाकर युद्ध के प्रचलित नियमों को न मानते हुए आम जनता पर अत्याचार करके उन्हें लूटकर तलवार के दम पर जबरन धर्म-परिवर्तन हेतु मजबूर किया गया। इसमें भी आशातीत सफलता न मिलने पर धीरे-धीरे जनता पर अत्यधिक कर लगाकर लूटना जारी रख अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के बाद असहाय समाज को प्रलोभनों के द्वारा मतांतरित करने का प्रयास किया गया।

तुर्क, मंगोल और अरबों के बाद अंग्रेजों समेत अनेक यूरोपीय देशों द्वारा भी भारत की सम्पदा को लूटने और लंबे समय तक अपना शासन बनाए रखने हेतु योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया गया। अंग्रेजों द्वारा भारतीय शिक्षा, न्याय एवं सामाजिक व्यवस्था को ध्वस्त करने हेतु सुनियोजित तरीके से कार्य किया गया जिसका वर्णन मैकाले के अपने पिता को लिखे पत्र में भी किया गया है। इन षडयंत्रों से जूझते भारतीय समाज को अंग्रेजों द्वारा स्थापित और प्रचारित मिशनरी फंडेड सोसायटियों एवं कथित समाज सुधारकों द्वारा दिग्भ्रमित कर अंग्रेजों का एजेंडा आगे बढ़ाने का कार्य किया गया। इसके तहत हिन्दू समाज को अन्य पंथों की तुलना में पिछड़ा और रूढ़िवादी घोषित करने का कार्य किया गया और साथ ही अनेक काल्पनिक कथाएं गढ़कर समाज को तोड़ने का कार्य किया ताकि हिन्दू समाज आपस में लड़कर एक दूसरे के प्रति अविश्वास में बंटकर अंग्रेजों को ही अपना वास्तविक हितचिंतक मान ले। ऐसा करने में वे काफी हद तक सफल भी रहे और इस कारण आजादी प्राप्ति के कई अवसर देश के हाथ से निकलते रहे। ‘फूट डालो और राज करो’ की अंग्रेज़ों की नीति के कारण आजादी मिली भी तो मातृभूमि के विभाजन और लाखों हिंदुओं के नरसंहार की कीमत पर। धार्मिक आधार पर हुए विभाजन में एक वर्ग को तो इस्लामिक राष्ट्र मिला, वहीं हिंदुओं के साथ वही पुरानी नीति के तहत मूल्यों और सहिष्णुता की बात करते हुए शेष खंडित भारत के रूप में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र। इसके अलावा अंग्रेजों द्वारा पूरे योजनाबद्ध तरीके से भारत को लूटने के बाद इस सरल समाज को इसके अधिकारों से वंचित करके अपने ढर्रे पर चलने वाली राजनीतिक व्यवस्था के हवाले कर दिया गया। यही कारण रहा कि आजादी के वर्षों बाद भी वही विभाजनकारी नीति भारतीय राजनीति के मूल में रही और हिन्दू समाज को विभाजित करने की अंग्रेजी मानसिकता को ही आगे बढ़ाते हुए अधिकांश नेताओं द्वारा राजनीतिक रोटियां सेकीं गईं और तुष्टीकरण की राजनीति का यह मार्ग सनातनी समाज को तोड़कर सत्ता पर काबिज होने का वो अस्त्र बन गया, जिससे लोगों को सुख-सुविधाएं पाने के अधिकार से वंचित कर केवल वोट बैंक बनाकर रख दिया गया। हिन्दू समाज की बर्बादी में अपना भविष्य देख अनेक लोगों ने जातीय, क्षेत्रीय और भाषाई आधार पर पार्टियां बनाकर गगनचुंबी महल और अकूत संपत्ति तो अर्जित कर ली लेकिन उन समूहों का भला नहीं किया।

इतने वर्षों की उपेक्षा और अपने ही देश में स्वयं को दीन-हीन एवं उपेक्षणीय स्थिति में पाकर धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से प्रबल हिन्दू समाज अब धीरे-धीरे राजनीतिक रूप से भी जागृत होने लगा और यही कारण रहा कि देश की राजनीतिक दशा में बदलाव आने लगा। राजनीति से दूर रहने की अपनी धारणा को त्याग कर अब सत्ता के महत्व को समझने लगा है। अपनी धर्म-संस्कृति पर लंबे कालखण्डों से हो रहे आक्रमणों, छल-छद्मों के प्रहारों को अपनी नियति और कमजोरी मानकर पीड़ा का दंश झेल रहा हिन्दू समाज अब ठीक उस तरह से जागृत हुआ प्रतीत होता है, जैसा रामायण काल में जामवंत द्वारा हनुमान जी को उनकी अपार शक्ति की याद दिलाने के बाद उनके द्वारा विशाल समुद्र को पार करने के द्वारा प्रदर्शित किया गया था। सत्य, अहिंसा और सहिष्णुता के मूल तत्वों को खुद में समेटे हिन्दू समाज पर सदियों से विदेशी आक्रमण होते रहे, प्रहार होते रहे लेकिन अनेक शूरवीरों ने अपने पराक्रम से इसे लंबे समय तक सफल न होने दिया लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बेहद शातिर तरीके और छल-बल के आधार पर होने वाले दमन के खेल को समझ चुका हिन्दू समाज अब अपने खिलाफ होने वाले किसी षड्यंत्र को अब सफल न होने देगा। यह उसने अपने धार्मिक-सांस्कृतिक अस्मिता के प्रतीकों को पुनः प्रतिष्ठित करने के संकल्प से सिद्ध किया भी है। उसी का परिणाम अयोध्या धाम में रामलला की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है। काशी, मथुरा, प्रयाग, वृन्दावन जैसी धर्मनगरियों में सुविधाओं के विस्तार और कुम्भ जैसे बड़े आयोजनों पर भी सरकारें ध्यान देने लगी हैं और जनता ने अपने प्रचंड मतदान द्वारा इन कार्यों पर सहमति की जो मुहर लगाई है, वो यही संकेत करती है कि अपनी-अपनी विविध परंपराओं का निर्वहन करते हुए भी सनातनी समाज के प्रत्येक अंग सनातन हिन्दू धर्म के प्रत्येक विषय पर जागरूक और एकजुट हैं और अब इस समाज की अनदेखी कर सत्ता प्राप्ति का सपना देखने के दिन जा चुके हैं। हनुमान जी से प्रेरणा लेकर जागृत हुआ सनातनी समाज अपने विरुद्ध होने वाले षडयंत्रों का न सिर्फ सामना करेगा बल्कि ऐसी शक्तियों को अपनी एकजुटता से उनको करारा जवाब भी देगा।

                                                                                                              हिमांशु थपलियाल 

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