विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर जब हम अपने देश भारत की स्वास्थ्य से जुड़ी विरासत का चिंतन करते हैं तो हमें स्वास्थ्य की एक समृद्ध चेतना का अतीत का संज्ञान होता है। आरोग्य से संबंधित हमारी प्राचीन विरासत सर्वजन हिताय और सार्वजनिक स्वास्थ्य से अभिप्रेरित है।
स्वास्थ्य हम सबके जीवन में अहम स्थान रखता है। सामान्य जीवन की बीमारियों का उचित इलाज हो जाने पर उनसे छुटकारा मिल जाता है और पीड़ित व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। हां, मौजूदा समय में आधुनिक जीवनशैली ने असंख्य लोगों को प्रभावित किया है और वे इस जीवनशैली से जुड़े रोगों जैसे मधुमेह, रक्तचाप, हृदयरोग की चपेट में आ रहे हैं। ये बीमारियां लोगों को लम्बे समय तक कष्ट देती हैं। लेकिन महामारियां मानव जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करती हैं। हम सभी दुनियावासियों ने विगत 2 वर्षों से कोविड-19 महामारी का प्रकोप झेला है। भारत सहित पूरी दुनिया में लाखों लोगों की असमय मौत हुई। इस अप्रत्याशित महामारी की तीसरी लहर अपने समापन के चरण में है लेकिन इसकी परछाई में विश्व स्वास्थ्य दिवस हर साल की तरह इस साल भी 7 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस विशेष दिवस के अवसर पर दुनिया भर में स्वास्थ्य से संबंधित विशेष कार्यक्रम और स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए जाते हैं। इस दिन स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने वाले कार्यक्रम और गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।
विश्व स्वास्थ्य दिवस पर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों और गतिविधियों का उद्देश्य आमजन को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है। इस दिवस की शुरुआत लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को लेकर सचेत करने के लिए स्विट्जरलैंड के जेनेवा में 7 अप्रैल 1948 को की गई थी। हालांकि 1950 में पूरी दुनिया में औपचारिक तौर पर विश्व स्वास्थ्य दिवस को मनाया गया था।
विश्व स्वास्थ्य दिवस के आयोजन में प्रति वर्ष स्वास्थ्य से जुड़े किसी एक मुद्दे को लेकर पूरे वर्ष उस पर जागरूकता बढ़ाने सहित उस स्वास्थ्य समस्या के समाधान की दिशा में प्रयास किए जाते हैं। इन प्रयासों के अंतर्गत स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों का समाधान प्रस्तुत करने में स्वास्थ्य से संबंधित अधिकारी, स्वास्थ्यकर्मी और चिकित्सक सहयोग प्रदान करते हैं। इसमें मुख्य प्रयोजन आमजन को स्वास्थ्य और सेहतमंद जीवनशैली अपनाने को लेकर प्रोत्साहित किया जाता है।
आरोग्य से जुड़ी भारतीय विरासत
विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर जब हम अपने देश भारत की स्वास्थ्य से जुड़ी विरासत का चिंतन करते हैं तो हमें स्वास्थ्य की एक समृद्ध चेतना के अतीत का संज्ञान होता है। आरोग्य से संबंधित हमारी प्राचीन विरासत सर्वजन हिताय और सार्वजनिक स्वास्थ्य से अभिप्रेरित है।
प्राचीन भारतीय स्वास्थ्य से संबंधित ज्ञान की विरासत का विज्ञान ‘आयुर्वेद’ में निहित है। आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ होता है जीवन-अवधि का परम ज्ञान। इस प्रकार
आयुर्वेद मुख्यतः स्वस्थ जीवन में वृद्धि, रोगों से बचाव और रोग-निदान से सरोकार रखता है। दूसरे शब्दों में आयुर्वेद को ‘जीवन का विज्ञान’ कह सकते हैं। आयुर्वेद की मूलभूत संकल्पना हमें सभी के स्वस्थ रहने, दीर्घायु होने, प्रसन्नचित रहने तथा आध्यात्मिक उत्थान की प्रेरणा देती है।
स्वास्थ्य और चिकित्सा के विशिष्ट ग्रंथ आयुर्वेद की उत्पत्ति वैदिक युग में हुई थी। भारतीय उपमहाद्वीप की परंपरागत चिकित्सा पद्धति को ही आयुर्वेद कहा गया है। आयुर्वेद और इसकी विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों का विस्तृत उल्लेख संस्कृत भाषा में चरक संहिता और सुश्रुत संहिता नामक दो प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है। भारतीय चिकित्सा विज्ञान के मौजूदा ज्ञान का अधिकांश हिस्सा इन्हीं दोनों संहिताओं से ग्रहण किया गया है। इन दोनों साहित्य रचनाओं की सर्वाधिक स्वीकृत तिथियां क्रमशः 100 ईस्वी और तीसरी से लेकर चौथी ईस्वी तक मानी जाती है। इस विषय पर उपलब्ध समस्त आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए भारत के नेशनल इंस्टिट्यूट आफ साइंसेज की कालक्रम विज्ञान समिति इस नतीजे पर पहुंची थी।
चरक और सुश्रुत संहिताओं में चिकित्सा संबंधी ज्ञान 8 अलग-अलग शाखाओं के अंतर्गत वर्णन किया गया है। चरक संहिता की पहली शाखा में केवल चिकित्सीय दवाओं का तथा शेष 7 शाखाओं में मुख्य रूप से शारीरिकी, दर्शन, हेतुकी या निदानशास्त्र, रोगविज्ञान, उपचार, हमारे स्वास्थ्य पर पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव, विभिन्न औषधियों और यंत्रों के प्रयोग, चिकित्सा विधियों आदि के विवरण दिए गए हैं।
वहीं दूसरे महत्वपूर्ण भारतीय चिकित्सा ग्रंथ सुश्रुत संहिता में भी कमोबेश चरक संहिता जैसे ही पैटर्न का अनुसरण किया गया है, परन्तु इसमें सर्जरी (शल्यचिकित्सा) पर विशेष बल दिया गया है। सुश्रुत संहिता वास्तव में धन्वंतरी चिकित्सा विचारधारा से संबंधित साहित्य है। इसमें स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान से संबंधित मूलभूत संकल्पनाओं, रोगविज्ञान, भ्रूणविज्ञान, शारीरिकी, शल्यचिकित्सा और विषविज्ञान से जुड़े विवरण कुल 184 अध्यायों के अंतर्गत दिए गए हैं। चरक संहिता की अपेक्षा सुश्रुत संहिता की भाषा तुलनात्मक रूप से अधिक सटीक है और इसमें अधिक तथ्यपूर्ण सूचनाएं दर्ज हैं। मानव मृतदेहों के विच्छेदन की क्रियाविधियों का भी इसमें वर्णन मिलता है।
आयुर्वेद में वर्णन मिलता है कि मानव शरीर 5 तत्वों (संस्कृत शब्द पंचमहाभूत) से मिलकर बना है। ये 5 तत्व हैं पानी, अग्नि, वायु, मिट्टी और आकाश। यह निर्विवाद तथ्य है कि भारत में विज्ञान की समझ प्राचीन काल से थी और इसका एक जीवंत प्रमाण आयुर्वेद है। बच्चे के लिंग को निर्धारित करने वाले कारकों के बारे में चरक संहिता में उल्लेख है। आज इस तथ्य की वैज्ञानिक तौर पर पुष्टि हो चुकी है।
निस्संदेह, चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे चिकित्सा संबंधी प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में निहित ज्ञान ने पूरी दुनिया में प्लास्टिक सर्जरी, नेत्र विज्ञान, मानव शारीरिकी तथा भ्रूणविज्ञान की आधारभूत जानकारी उपलब्ध कराई है। इसमें कोई दो राय नहीं कि चिकित्सा विज्ञान के वर्तमान सिद्धान्तों को मूर्त रूप देने में आयुर्वेद से भारत सहित पूरी दुनिया को अपार प्रेरणा मिली है।
कोविड महामारी के नेपथ्य में विश्व स्वास्थ्य दिवस हम सभी देशवासियों और दुनियावासियों को स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए स्वस्थ तन और मन के साथ सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय की प्रेरणा प्रदान करता है। कोविड संक्रमण के दौरान वृद्धजनों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की सर्वाधिक अनदेखी हुई। यह अप्रत्याशित समय था, हमारी स्वास्थ्य प्रणाली इस महामारी के लिए तैयार और प्रशिक्षित नहीं थी। लेकिन आगामी किसी अज्ञात महामारी के प्रति हम सबको आज से सजग रहते हुए अपने स्वास्थ्य को सुदृढ़ रखने का निश्चय करना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य दिवस की इसमें ही प्रासंगिकता है।