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समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले

समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले

by हिंदी विवेक
in विशेष, व्यक्तित्व, शिक्षा, सामाजिक
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महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को पुणे (महाराष्ट्र) में हुआ था। इनके पिता श्री गोविन्दराव फूलों की खेती से जीवनयापन करते थे। इस कारण इनका परिवार फुले कहलाता था। महाराष्ट्र में उन दिनों छुआछूत की बीमारी चरम पर थी। अछूत जाति के लोगों को अपने चलने से अपवित्र हुई सड़क की सफाई के लिए कमर में पीछे की ओर लम्बा झाड़ू बाँधकर तथा थूकने के लिए गले में एक लोटा लटकाकर चलना होता था।

ज्योतिबा का जन्म भी ऐसी ही जाति में हुआ था। एक वर्ष की अवस्था में उनकी माँ का देहान्त हो गया। अछूत बच्चे उन दिनों विद्यालय नहीं जाते थे; पर समाज के विरोध के बावजूद गोविन्दराव ने ज्योति को शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय भेजा। खेत में फूलों की देखभाल करते हुए भी वे पढ़ने का समय निकाल लेते थे। इस प्रकार वे सातवीं तक पढ़े।

14 वर्ष की अवस्था में ज्योति का विवाह आठ वर्षीय सावित्रीबाई से हो गया। पढ़ाई में रुचि देखकर उनके पड़ोसी मुंशी गफ्फार तथा पादरी लेजिट ने उन्हें मिशनरी विद्यालय में भर्ती करा दिया। वहाँ सभी जातियों के छात्रों से उनकी मित्रता हुई। एक बार ज्योति के एक ब्राह्मण मित्र ने उन्हें अपने विवाह में बुलाया। वहाँ कुछ कट्टरपन्थी पंडितों ने उन्हें बुरी तरह अपमानित किया। इससे नवयुवक ज्योति के मन को बहुत चोट लगी और उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता तथा कुरीतियों को समाप्त करने का संकल्प ले लिया।

एक बार ज्योति अपने मित्र सदाशिव गोविन्दे से मिलने अहमदनगर गये। वहाँ ईसाइयों द्वारा संचालित स्त्री पाठशालाओं से वे बहुत प्रभावित हुए। पुणे आकर ज्योति ने अपने मित्र भिड़े के घर में स्त्री पाठशाला खोल दी। बड़ी संख्या में निर्धन लड़कियाँ वहाँ आने लगीं। कट्टरपन्थियों ने इसका विरोध किया।

जब सावित्रीबाई पढ़ने जाती, तो वे उस पर कूड़ा और पत्थर फेंकते। उन्होंने गोविन्दराव को मजबूर किया कि वे ज्योति को घर से अलग कर दें। इस पर गोविन्दे ने उन्हें अहमदनगर बुला लिया। वहाँ उनकी पत्नी ने सावित्री को घर पर पढ़ाया। पुणे आकर गोविन्दे व अण्णा साहब आदि समाजसेवियों के सहयोग से उन्होंने कई विद्यालय खोले। सावित्रीबाई ने यह सारा काम सँभाल लिया।

ज्योतिबा फुले ने समाज जागरण और छुआछूत निवारण के लिए 23 सितम्बर, 1873 को पुणे में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की। इनके कार्यकर्ता सिर पर साफा, गले में ढोल तथा कन्धे पर कम्बल रखते थे। ढोल बजाकर वे जनजागरण करते थे। उनका मत था कि पुनर्जन्म, मूर्तिपूजा, खर्चीले विवाह और अन्धविश्वास छोड़ने से ही उनका उद्धार होगा। ज्योतिबा ने 1860 में विधवाओं तथा उनके बच्चों के लिए एक आश्रम भी खोला।

1876 में वे पुणे नगरपालिका के सदस्य मनोनीत हुए। उन्होंने गरीब बस्तियों में शराबखानों के बदले पानी, पुस्तकालय, विद्यालय आदि खुलवाये तथा गरीबों को सस्ते में दुकानें दिलवायीं। नगरपालिका द्वारा ब्राह्मणों व भिखारियों को दी जाने वाली सरकारी सहायता रोककर उससे साहित्यकारों को पुरस्कृत करवाया। पुणे नगर के आसपास उन्होंने अनेक सुन्दर बाग लगवाये।

उन्होंने मराठी में ब्राह्मणांचे कसब, शिवाजी चा पोवाड़ा, शेतकऱ्याचा आसूड, इशारा, कैफियत.. आदि अनेक पुस्तकें लिखीं तथा ‘सतसार’ नामक पत्रिका निकाली। साठ वर्ष का होने पर मुम्बई में उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया गया और उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी गयी। 21 नवम्बर, 1890 को इस महान समाज सुधारक का देहान्त हो गया।

संकलन – विजय कुमार 

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Tags: first girls schoolhindi vivekmahatma jyotiba phulepioneer of girl educationsocial reformer

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