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पाकिस्तान का भविष्य कई परिस्थितियों पर निर्भर करेगा

पाकिस्तान का भविष्य कई परिस्थितियों पर निर्भर करेगा

by अवधेश कुमार
in देश-विदेश, राजनीति, विशेष
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शाहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के पूर्व से ही पाकिस्तान की स्थिति पर अनेक विश्लेषक टिप्पणी कर रहे हैं कि  कि वहाँ का लोकतंत्र परिपक्वता की ओर बढ़ रहा है। इसमें दो राय नहीं कि पाकिस्तान सर्वोच्च न्यायालय का फैसला ऐतिहासिक था जिसके कारण इतनी आसानी से सत्ता परिवर्तन हो सका। शायद ही किसी ने उम्मीद की थी कि न्यायालय नेशनल असेंबली अर्थात संसद के उपाध्यक्ष कासिम सूरी और राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के फैसलों को एक साथ असंवैधानिक करार दे देगा।

पाकिस्तान के अंदर और बाहर वहां के सत्ता प्रतिष्ठान की गहरी जानकारी रखने वालों को नेशनल असेंबली को बहाल करने तथा अविश्वास प्रस्ताव को कायम रखने के फैसले ने अचंभे में डाल दिया। यह साफ था कि कासिम सूरी ने अविश्वास प्रस्ताव को इमरान खान के इशारे पर ही खारिज किया था। सबसे शर्मनाक भूमिका राष्ट्रपति की रही जिन्होंने अपने कर्तव्य के निर्वहन के बजाय प्रधानमंत्री इमरान खान की सलाह मानी और नेशनल असेंबली को भंग कर दिया।

इन घटनाओं से धारणा यही बनी थी कि लोकतंत्र के रूप में शर्मनाक रिकॉर्ड बनाने वाला पाकिस्तान फिर उसी दिशा में जा रहा है। इसमें उच्चतम न्यायालय का फैसला यकीनन उम्मीद जगाने वाला लगता है।

पाकिस्तान में सैनिक प्रतिष्ठान और राजनीतिक प्रतिष्ठान के साथ मजहबी सत्ता का भी न्यायालय पर दबाव पड़ता रहा है। पाकिस्तानी न्यायालय के फैसलों में इनकी गूंज हमेशा सुनाई पड़ी है। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विरूद्ध आये फैसले के बारे में ही एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने साफ कर दिया कि किस तरह दबाव में न्यायालय काम कर रहा था। न्यायालय का यह फैसला बताता है कि इस बार संभवतः उस पर दबाव नहीं पड़ा है। फैसले के पहले न्यायालय की सुरक्षा का पूरा प्रबंध था। फैसले के बाद इमरान की पार्टी तहरीक ए इंसाफ द्वारा किसी भी तरह का प्रदर्शन न करना भी सकारात्मक माना जा रहा है। इसमें कोई अगर यह निष्कर्ष निकलता है यह फैसला पाकिस्तान की राजनीति और शासन संस्थाओं के अंदर पैदा संवैधानिक दायित्वबोध तथा परिपक्वता का द्योतक है तो उसे एक बार भी खारिज नहीं किया जा सकता।

पाकिस्तान के अतीत और वर्तमान दोनों को देखते हुए इस तरह का कोई निष्कर्ष जल्दबाजी साबित हो सकता है। हमें ऐसा कोई अंतिम निष्कर्ष निकाल लेने के पहले आगे के घटनाक्रमों पर नजर रखना होगा। इमरान खान ने अविश्वास प्रस्ताव रोकने के लिए विदेशी साजिश से लेकर  काफी कुछ कहा और करने की भी कोशिश की। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद राष्ट्र के संबोधन में भी उन्होंने यही कहा कि मैदान से हटने का मतलब होगा विदेशी साजिश को सफल होने देना।  इमरान को कहीं से भी समर्थन नहीं मिला। अगर इमरान खान विपक्ष के नेता की भूमिका निभाते हैं तो यह पाकिस्तान के इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय होगा। पहले किसी पूर्व प्रधानमंत्री ने विपक्ष के नेता की भूमिका नहीं निभाई।  पाकिस्तान का कोई पूर्व प्रधानमंत्री अपने देश में नहीं है। या तो वे विदेशों में निर्वासित जीवन जी रहे हैं या मार दिए गए। इमरान खान का पाकिस्तान में बने रहना और वह भी राजनीति करते हुए वाकई महत्वपूर्ण परिवर्तन माना जाएगा ।

2018 के चुनाव में इमरान खान की पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। सेना के सहयोग से एमक्यूएम और पीएमएल क्यू जैसी पार्टियों ने उन्हें समर्थन दिया। साथ ही कट्टरपंथी और जिहादियों का भी समर्थन इमरान को प्राप्त था। सेना का समर्थन उन्हें पहले के अनुसार नहीं है। सेना अध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा के साथ उनकी अनबन पिछले वर्ष से आरंभ हो गई थी जब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के नए महानिदेशक के नाम पर मतभेद उभर गए। इमरान लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को आईएसआई का महानिदेशक बनाना चाहते थे जबकि जनरल बाजवा लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम को। जनरल नदीम अंजुम की फाइल इमरान के पास पड़ी रही।

हालांकि अंत में उन्होंने इसे मंजूरी दी लेकिन यह साफ हो गया कि इमरान जनरल बाजवा से अलग चल रहे हैं। इमरान ने जनरल बाजवा का कार्यकाल बढ़ाने में भी विलंब कर दी। उन्होंने यहां तक कह दिया कि भाजपा का कार्यकाल बढ़ाने पर उन्होंने कुछ सोचा नहीं है। जाहिर है , बाजवा चौकन्ना हो गए और उन्होंने भी अपने प्रभाव का इस्तेमाल आरंभ कर दिया। एमक्यूएम और पीएमएल क्यू जैसी पार्टियां सेना के प्रभाव में हैं। उन्होंने इमरान के प्रति असंतोष जाहिर करना शुरू कर दिया और विपक्ष को भी कुछ न कुछ फीडबैक सेना की ओर से मिला। आखिर एक दूसरे की दुश्मन बनी पार्टियां पीपीपी और पीएमएल- एन दोनों इकट्ठे यूं ही नहीं हुए होंगे। यही नहीं पीपीपी पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ को अगला प्रधानमंत्री बनाने से सहमत हो गई।

इस स्थिति को ध्यान रखें तो केवल उच्चतम न्यायालय के फैसले के आधार पर हम पाकिस्तानी लोकतंत्र और वहां की संस्थाओं की परिपक्वता और दायित्व बोध का प्रमाण नहीं मान सकते। इमरान खान ने स्वयं को अन्य प्रधानमंत्रियों से अलग स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करने वाला भी साबित करना शुरू कर दिया। उन्होंने अमेरिका को नाराज कर दिया। अमेरिका के खिलाफ उन्होंने इतना कुछ बोला जो इसके पूर्व किसी प्रधानमंत्री ने नहीं बोला था। उच्चतम न्यायालय के फैसले के पहले राष्ट्र के नाम संबोधन में उन्होंने एक कागज लहराते हुए कहा था कि यह अमेरिका का अधिकृत पत्र है जिसमें उनको सत्ता से हटाने की बात है। जाहिर है, अमेरिका से दूरियां काफी बढ़ चुकी थीं। हालांकि अमेरिका ने इसका खंडन कर दिया और सच भी यही है।

पाकिस्तान के बारे में कहावत है कि वहां सत्ता आर्मी ,अमेरिका और अल्लाह चलाती है। इमरान ने आर्मी और अमेरिका दोनों से मतभेद पैदा कर लिया। दूसरी ओर पाकिस्तान की आंतरिक हालत किसी से छिपी नहीं है। इमरान भ्रष्टाचार को खत्म करने तथा भ्रष्टाचारियों का अंत कर पाकिस्तान को एक खुशहाल इस्लामी देश बनाने के वायदे से शासन में आए थे। उन्होंने यह भी कहा था कि हमारे देश के नेताओं और बड़े-बड़े नौकरशाहों आदि ने विदेशों में भारी मात्रा में काला धन जमा कर रखा है जिसे वह हर हाल में वापस लाएंगे। ऐसा वे कुछ कर न सके। इधर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार बर्बाद होती गई। एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 190 पाकिस्तानी रुपया हो चुका है। पाकिस्तान के बैंकों की ब्याज दर रिकॉर्ड 12.25 प्रतिशत पर है तथा महंगाई 12 से 13 प्रतिशत के बीच है।

आईएमएफ उनकी नीतियों से नाखुश होकर घोषित पैकेज भी रोक चुका है। दरअसल,  लोकप्रियता हासिल करने के लिए उन्होंने पेट्रोल और डीजल से जैसे ही ड्यूटी घटाई आईएमएफ असंतोष प्रकट कर दिया। पाकिस्तान इतने अधिक विदेशी कर्ज के बोझ से दबा है कि अगर आईएमएफ धन न दे तो वह किश्त तक अदा नहीं कर पाएगा। इमरान के शासनकाल में कोई एक पक्ष ऐसा नहीं जिसे संतोषजनक माना जा सके। हालांकि उनके पूर्व के प्रधानमंत्रियों का कार्यकाल भी ऐसा नहीं रहा जिसे सुखद स्मृतियों से जोड़ा जाए। जो सत्ता में होता है उस समय की परिस्थितियों का परिणाम उसे ही भुगतना पड़ता है। इमरान ने इसे भुगता।

वैसे इमरान खान विपक्ष के विरोध के पीछे विदेशी साजिश बताते रहे लेकिन पाकिस्तान की मीडिया में चर्चा है कि उनकी सरकार बचाने के लिए भी कोई विदेशी शक्ति खड़ी हुई। विपक्ष के नेताओं को खरीदने की कोशिशों की भी खबरें वहां आ रही है। यह अमेरिका नहीं हो सकता और न ही सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे इस्लामी देश। चीन की मीडिया पर नजर दौड़ायें तो उसमें इमरान के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव को अमेरिकी साजिश कह कर प्रचारित किया जा रहा था। इसमें पहला निष्कर्ष यही निकलेगा कि चीन इमरान को बचाने की कोशिश कर रहा था। ऐसा तो हो नहीं सकता कि पाकिस्तान के घटनाक्रम में अमेरिका की बिल्कुल रुचि नहीं हो। तो क्या चीन और अमेरिका के बीच वहां भी प्रतिस्पर्धा चल रही है? ऐसा है तो चीन इमरान के साथ रहा होगा तो अमेरिका किसी न किसी तरह विपक्ष के साथ या होने की कोशिश कर रहा था।

वास्तव में शहबाज शरीफ गठबंधन सरकार के बाद भी पाकिस्तान केंद्रित कई भविष्य की तस्वीरें सामने आ रही है।  आंतरिक राजनीति में पीपीपी और पीएमएल के बीच गठबंधन कायम रहता है तो भविष्य के चुनाव में ये बड़ी राजनीतिक शक्ति बन सकते हैं। हालांकि  इनके बीच स्वयं इतने मतभेद हैं कि लंबे समय तक साथ रहने को लेकर आशंकायें स्वाभाविक ही बनी रहेंगी। इसलिए भविष्य की राजनीति को लेकर कोई भी भविष्यवाणी जोखिम भरी होगी।  सब कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। परिस्थितियां ही भविष्य में सेना व न्यायपालिका के साथ विदेशी शक्तियों यानी चीन और अमेरिका की भूमिका भी निर्धारित करें। प्रमुख इस्लामी देश होने के कारण सऊदी अरब की भी वहां भूमिका रही है। इमरान खान के तुर्की के साथ मिलकर इस्लामी देशों का अगुआ बनने की कोशिशों के कारण सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश उनसे नाराज हैं। वे अपने संपर्क के अनुसार नई परिस्थिति में वहां क्या भूमिका निभाते हैं यह भी देखना होगा।

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Tags: hindi viveknew pm of pakistanpakistanpolitical future of pakistanshahbaj sharif

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