मुख्यधारा से क्यों पृथक है मुस्लिम बस्तियां

मुसलमानों को हमेशा देश की मुख्य धारा से कांग्रेस ने पृथक करके रखा। यह मुसलमान की बस्ती। यह हिन्दू की बस्ती। मरहूम शायर राहत इंदौरी ने लिखा — ”किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़े है।”

फिर हिन्दू बस्ती और मुसलमान बस्ती की रट पूरा सेकुलर इको सिस्टम क्यों लगा रहा है? यह अच्छा है कि जो बस्तियां समाज से हमेशा कटी हुई थी। जहां से हिन्दू समाज गुजरना भूल चुका था। उस रास्ते पर आवाजाही बढ़ रही है। शहर का मुसलमान मोहल्ला मुख्य धारा से जुड़ रहा है।

रामनवमी की यात्रा पर इक्का दुक्का घटनाओं को छोड़ दें तो इस यात्रा ने हिन्दू और मुसलमानों को करीब लाने का काम किया है। लहेरियासराय (बिहार) में रामनवमी यात्रा पुरस्कार वितरण कार्यक्रम में कल लगभग दो घंटे खड़ा रहा। इसका आयोजक संघ परिवार व्यायामशाला था।

सुरक्षा की व्यवस्था बिहार पुलिस के साथ व्यायाशाला के स्वयंसेवकों देख रहे थे। हिंदू मुसलमान सभी उस रास्ते से गुजर रहे थे। डिजे पर लोग मद मस्त होकर नाच रहे थे। बार बार माइक से कहा जा रहा था कि नाचते हुए इंजॉय कीजिए लेकिन आपके एन्जॉय से किसी को बाधा ना पहुंचे, इस बात की चिंता भी आपको करनी है। मैने देखा कि डीजे पर सिर्फ हिन्दू नही कई मुसलमान भी झुमते हुए चलती सड़क से जा रहे थे। कोई अपनी कार के अंदर नाच रहा है और कोई बाइक पर झूमता हुआ गुजर गया।

एक मुसलमान युवक समाज की तमाम कट्टरता के बीच अबीर और तिलक लगाकर वहां से गया। जब लहेरियासराय के चौक पर व्यायामशाला के स्वयंसेवक नाच रहे थे। सड़क पर और छत से मुस्लिम परिवार के महिला पुरुष भी उन्हें देख रहे थे। कुल मिलाकर वहां सब चंगा था लेकिन सेकुलर सम्प्रदाय के लोग देश के इक्के दुक्के मामलों को अपने नैरेटिव के अनुसार इस तरह परोसते हैं, जैसे पूरे देश में मस्जिदों के ऊपर तिरंगा फहरा दिया गया। तिरंगा भी लगाए जाने में ऐसी क्या बात है, जिसका इतना प्रतिकार हो रहा है?

पूरे देश में रामनवमी के दिन कई लाख यात्राए निकली होंगी। हजारों यात्राएं मुस्लिम मोहल्लों से गुजरी होंगी। कितने मस्जिदों पर तिरंगा या भगवा ध्वज लहराया गया। सूचि है तो साझा कीजिए। देश एक बड़े परिवर्तन की तरफ बढ़ रहा है। एक दो घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो इन यात्राओं से देश भर में सकारात्मक संदेश गया है।

मुस्लिम मोहल्ला आम तौर पर शहर के बीच एक घेटो होता है। एक पृथक मोहल्ला जो शहर में होकर भी शहर से अलग जी रहा होता है। यदि रामनवमी ने उस घेटो को देश की मुख्यधारा में जोड़ने की पहल की है। मुसलमान परिवारों की तरफ प्रेम का हाथ बढ़ाया है। उन्हें अवसर दिया है अपने साथ नाचने और झुमने का तो उसका इस मुल्क के मुसलमानों को स्वागत करना चाहिए।

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