महाराष्ट्र आजकल लाउडस्पीकर को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है। सत्ता और विपक्ष के बीच लाउडस्पीकर की आवाज को लेकर हर दिन खबरें आ रही है। मनसे ने तो शिवसेना सरकार को अल्टीमेटम भी दे दिया है जबकि महाराष्ट्र सरकार बैलेंस बनाकर निकलने का प्रयास कर रही है। दरअसल शिवसेना किसी भी वोटर को नाराज नहीं करना चाहती है इसलिए खुद को गदाधारी हिंदू बता रही है जबकि महाराष्ट्र के एक उच्च पुलिस अधिकारी ने यह आदेश जारी किया है कि नमाज के समय पर कोई भी हनुमान चालीसा नहीं बचा सकता है। इतना ही नहीं महाराष्ट्र में हनुमान चालीसा पर गिरफ्तारी और राजद्रोह तक का केस बन जा रहा है।
लाउडस्पीकर का मुद्दा सिर्फ महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी चल रहा है लेकिन उत्तर प्रदेश से किसी भी अप्रिय घटना की खबर नहीं आ रही है जबकि इन सभी राज्यों में सबसे अधिक जनसंख्या उत्तर प्रदेश की ही है। जनसंख्या की दृष्टि से राजस्थान में 7 करोड़, मध्य प्रदेश में 8 करोड़, महाराष्ट्र में करीब 12 करोड़ और उत्तर प्रदेश में 22 करोड़ की जनसंख्या है लेकिन उत्तर प्रदेश फिलहाल में सबसे शांति से काम कर रहा है ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में मस्जिद और मंदिर से लाउडस्पीकर नहीं उतारे जा रहा है बल्कि वहां पर सबसे अधिक लाउडस्पीकर को उतारा जा चुका है और करीब 18 हजार की संख्या में मस्जिद लाउडस्पीकर की आवाज भी कम की जा चुकी है लेकिन वहां पर धार्मिक तौर पर कोई भी विवाद नहीं देखने को मिल रहा है।
अब यह सवाल भी सोचने को मजबूर करता है कि उत्तर प्रदेश में मंदिर और मस्जिद से लाउडस्पीकर उतारे जा रहे हैं और कहीं पर कोई विवाद नहीं हो रहा है इसे प्रशासन का डर कहें या फिर होमवर्क के बाद किया गया सरकार का काम। सबसे पहले गोरखनाथ मंदिर के लाउडस्पीकर की आवाज कम कर एक उदाहरण दिया गया जिससे किसी विशेष समुदाय को यह कहने का मौका ना मिले कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। मस्जिद पर लगे सभी गैरकानूनी लाउडस्पीकर को हटाया जा रहा है जिससे किसी को भी परेशानी ना हो। योगी मॉडल के तहत लाउड वाले स्पीकर और व्यक्ति सभी को बंद कर दिया जा रहा है यानी उत्तर प्रदेश में मनमानी वाले दिन गये अब सभी को नियम और कायदे में रहना होगा। अगर बिना परमिशन के आप धार्मिक स्थल पर लाउडस्पीकर लगाते हो तो पुलिस आप को भी रास्ते पर लगा देगी। हालांकि उत्तर प्रदेश के हालात जिस तरह से बिगड़े थे उसके लिए कठोर कानून का होना जरूरी है।
लाउडस्पीकर के बाद शादी व बारात घर के डीजे को लेकर भी नियम लागू कर दिया गया और बिना परमिशन व तय समय तक ही बजाने की बात कही गयी है। जुलूस व शोभा यात्रा भी बिना प्रशासन के अनुमति के नहीं निकाली जा सकती और इसे संचालक को एक शपथ पत्र के माध्यम से यह जिम्मेदारी भी लेनी होगी कि किसी भी घटना के लिए वह खुद जिम्मेदार होंगे। वहीं प्रशासन को भी पूरी तरह से दुरूस्त कर दिया गया है और सभी उच्च अधिकारी अपने कार्यक्षेत्र में होने वाली किसी भी घटना के लिए खुद जिम्मेदार होंगे। मुख्यमंत्री योगी का डर ही कहा जायेगा कि अब एसी में बैठने वाले अधिकारी सड़कों पर दौड़ते नजर आ रहे हैं और सरकार को समय पर रिपोर्ट सौंप रहे हैं।
देश में लाउडस्पीकर विवाद तेज हुआ तो कुछ गैर बीजेपी राज्यों ने इसके लिए भी केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि केंद्र को इस पर कानून बनाना चाहिए जबकि यह भी सभी को पता है कि केंद्र के कानून का विरोध भी गैर बीजेपी सरकार करेंगी लेकिन मौके से जान बचाने के लिए गेंद को केंद्र के पाले में डालकर छोड़ दिया। अब सवाल यह है कि राज्य की जनता मुख्यमंत्री का चुनाव इसलिए ही करती है कि वह उसे हर मुसीबत से निकाले और जनता के हित में फैसले ले।