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पीएफआई की कलंक कथा

पीएफआई की कलंक कथा

by रामेन्द्र सिन्हा
in मई-२०२२, विशेष, सामाजिक
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पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश में हुई दंगाई घटनाओं के पीछे इस्लामी संगठन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का हाथ होना चिंता का विषय है। इसकी जड़ें सिमी की तरह ही पांव पसारती जा रही हैं। केरल सरकार का छद्म सहयोग भाव भी इसके बढ़ाव के पीछे एक बड़ा कारण है। कई अन्य राज्य भी इसकी चपेट में हैं। इसका प्रभाव राष्ट्रव्यापी हो, उसके पहले ही इसकी जड़ें काटने की आवश्यकता है।

मध्य प्रदेश, राजस्थान, गोवा, गुजरात, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में रामनवमी शोभायात्रा के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा के बाद हनुमान जन्मोत्सव के जुलूसों में भी दिल्ली सहित अनेक राज्यों में हुई भीषण हिंसा में विवादास्पद इस्लामी संगठन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का सुनियोजित हाथ होने की आशंका जतायी गई है। इन सभी हमलों में छतों पर जमा करके रखे गए पत्थरों और बोतलों का जमकर इस्तेमाल किया गया। दंगाइयों ने कई जगह फायरिंग भी की।

देश के दिल दिल्ली में जहांगीरपुरी की हिंसा के सबसे चश्मदीद और हनुमान जन्मोत्सव शोभायात्रा की सुरक्षा की कमान संभालने वाले इंस्पेक्टर राजीव रंजन ने दर्ज कराए एफआईआर में उपद्रव के एक-एक सीन का जिक्र किया है। शोभायात्रा शांतिपूर्वक चल रही थी। लेकिन जब शोभायात्रा करीब 6 बजे सी ब्लॉक मस्जिद के पास पहुंची तो एक शख्स अंसार अपने 4-5 साथियों के साथ आया और शोभायात्रा में शामिल लोगों से बहस करने लग गया। मामला गाली गलौज से मारपीट तक पहुंच गया। तब तक मुस्लिम चरमपंथियों की तरफ से पुलिस पार्टी पर फायरिंग और ज्यादातर छतों से पथराव शुरू कर दिया गया। जिसमें एसआई मेदालाल के बाएं हाथ में गोली लगी। दूसरी ओर, दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने मीनार पर झंडा लगाने की कोशिश के आरोपों का खंडन किया।

करौली की बात करें तो पीएफआई ने राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार को मुस्लिम इलाके से गुजरने वाली हिंदू नववर्ष शोभायात्रा के दौरान हिंसा की सम्भावना के बारे में दो दिन पहले ही चेतावनी दी थी। माना जाता है कि करौली और खरगोन (एमपी) में कट्टरपंथी संगठन ने रामनवमी के जुलूस के दौरान हिंसा भड़काने के लिए एक पूर्व-नियोजित साजिश रची थी। हिंसा से पहले खरगोन में तलवार लहराते पीएफआई के लोगों के वीडियो ने इस बात को बल दिया।

इसके पहले पीएफआई का हाथ 2018 के सीएए विरोधी आंदोलन, 2020 के दिल्ली दंगों, 2021 में मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में अशांति, साथ ही कर्नाटक के हिजाब विवाद में होने का दावा किया गया था। 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में हिंसक गतिविधियों और विरोध प्रदर्शनों के लिए पीएफआई को दोषी ठहराया था। 2020 में ही पीएफआई पर हाथरस में एक दलित महिला के साथ कथित सामूहिक बलात्कार और हमले के बाद उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने की साजिश करने का आरोप लगाया गया।

केरल सरकार ने 2014 में एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें पीएफआई के हत्या और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का दावा किया गया था। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने पहले भी पीएफआई और पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आईएसआई के बीच संबंध पाया था। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड पहले ही गृह मंत्रालय से पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर चुके हैं। पिछले साल, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आरोप लगाया था कि पीएफआई ने केरल में आतंकी शिविर चलाने के लिए हवाला चैनलों के माध्यम से धन जुटाया था। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा केरल में विवादास्पद ’लव जिहाद’ मामलों में शामिल होने का आरोप लगाया गया। दिल्ली दंगों में संगठन की भूमिका स्पष्ट रूप से स्थापित हो गई थी क्योंकि पीएफआई के लोगों द्वारा अपराधियों को नकद सौंपने का वीडियो वायरल हो गया था।

यह वही पीएफआई है जिसने पिछले साल केरल के मलप्पुरम जिले के तेनहीपलम शहर में एक विवादास्पद रैली निकाली थी। कहा जाता है कि ये रैली ’1921 मालाबार हिंदू नरसंहार’ या मोपला नरसंहार की शताब्दी का जश्न मनाने के लिए थी। जुलूस में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परिधान में जंजीरों और रस्सियों से बंधे हुए लोगों के पीछे लाठियां लिए लुंगी पहने लोगों का एक बड़ा समूह था और ‘अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह’ जैसे नारे लग रहे थे। ऐसा माना जाता है कि मोपला नरसंहार में हुई जातीय हिंसा में लगभग 10,000 हिंदू मारे गए थे और दंगों के चलते एक लाख हिंदुओं को केरल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। सौ से अधिक मंदिर नष्ट कर दिए गए थे। लेकिन, भारतीय इतिहास में दर्ज सबसे खराब साम्प्रदायिक दंगों में से एक के शिकार लोगों पर ही दोष थोपने का निंदनीय कार्य तथाकथित इतिहासकारों ने किया। यही नहीं, मोपला दंगों के शताब्दी वर्ष में सिनेमा और अन्य माध्यमों से इसे मुख्यधारा में लाने की मुहिम चलाई गई।

ब्रिटिश समाजवादी, एक समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष डॉ. एनी बेसेंट ने अपनी पुस्तक ’द फ्यूचर ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स’ में घटनाओं का वर्णन इस प्रकार किया- ‘उन्होंने हत्या की और बहुतायत में लूटपाट की और उन सभी हिंदुओं को मार डाला या भगा दिया जिन्होंने धर्मत्याग नहीं किया। कहीं न कहीं लगभग एक लाख लोगों को उनके घरों से खदेड़ दिया गया, उनका सब कुछ छीन लिया।‘ बाबासाहेब अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक, ‘पाकिस्तान, ऑर दि पार्टीशन ऑफ इंडिया‘ में मोपला नरसंहार के संदर्भ में लिखा, ‘गांधीजी हिंसा की प्रत्येक घटना की निंदा करने से चूकते नहीं थे किन्तु गांधीजी ने ऐसी हत्याओं का कभी विरोध नहीं किया। उन्होंने चुप्पी साधे रखी।‘

पिछले दिनों, केरल के पलक्कड़ जिले में पीएफआई कार्यकर्ता सुबैर की एक स्थानीय मस्जिद में नमाज अदा करने के बाद घर लौटते समय एक कार की चपेट में आने से मौत हो गई। इस घटना के मात्र 24 घंटे के भीतर ही पीएफआई/एसडीपीआईआर गिरोह ने कथित रूप से संघ कार्यकर्ता श्रीनिवासन की हत्या कर दी। पांच महीने पहले कथित तौर पर एसडीपीआई कार्यकर्ताओं द्वारा एक स्थानीय संघ नेता संजीत की उसी इलाके में हत्या कर दी गई थी, जहां सुबैर मारा गया था।

ऐसा माना जाता है कि पीएफआई 2006 के मुंबई और 2008 के अहमदाबाद विस्फोटों के मास्टरमाइंड स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की एक शाखा है। आतंकी संगठन सिमी ने शरिया की स्थापना और कुरान के आधार पर देश पर शासन करने, इस्लाम के प्रचार और इस्लाम के कारण जिहाद करने के विचारों पर काम किया। हालांकि, जब सरकार ने इसके अस्तित्व के लगभग चार दशकों के बाद आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया, तो वह टूट गया और इंडियन मुजाहिदीन नामक एक और आतंकवादी संगठन को जन्म दिया। अब, ऐसा प्रतीत होता है कि सिमी की अन्य शाखाएं पीएफआई के नेतृत्व में अस्तित्व में आ गई हैं।

पीएफआई कई मोर्चों पर अपना आधार बढ़ा रही है। सबसे अधिक वृद्धि कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) में देखी गई है, जो भारत के विश्वविद्यालय परिसरों में अपने आधार का विस्तार कर रही है। सरकार के खिलाफ आंदोलन में युवा मुसलमानों को प्रेरित करने के लिए पीएफआई जिम्मेदार था। पीएफआई का संगठनात्मक ढांचा और कामकाज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से काफी नकल किया गया है। हालांकि संघ शुद्ध राष्ट्रवादी संगठन है। यह मुस्लिम विरोधी नहीं है बल्कि राष्ट्र विरोधी मुस्लिमों के खिलाफ है। चिंता की बात ये है कि अनेक मामलों में पीएफआई के अनेक एक्टिविस्ट्स पर देशद्रोह और आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी के बावजूद मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति में केरल सरकार इसे खुल्लमखुल्ला संरक्षण दे रही है। हाल ही में केरल फायर एंड रेस्क्यू सर्विसेज के अधिकारियों द्वारा पीएफआई कैडर को प्रशिक्षण दिया जाना सवालों के घेरे में है। कुछ अन्य राज्य भी इसी कतार में माने जाते हैं।

चर्चा है कि सांप्रदायिक हिंसा भड़काने और देशद्रोह के आरोप में पीएफआई पर जल्द ही प्रतिबंध लगाया जा सकता है। पीएफआई पर पहले से ही कई राज्यों में प्रतिबंध है। यदि सरकार एक केंद्रीय अधिसूचना लाती है, तो इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और इसके कार्यालय बंद हो जाएंगे।

 

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