बंगाल में बढ़ती हिंसा इस बात की द्योतक है कि देश का यह राज्य बहुत तेजी से बांग्लादेश बनने की दिशा में बढ़ रहा है। केंद्र सरकार को ममता बनर्जी सरकार के इस ‘खेला’ के प्रति सावधान होने तथा तत्काल बल प्रयोग करने की आवश्यकता है। यदि अभी नहीं चेता गया तो बंगाल की आग अन्य राज्यों को भी अपनी चपेट में ले सकती है।
पश्चिम बंगाल में आए दिन हिंसक वारदातों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। बंगाल में हो रही बर्बरता मीडिया की सुर्ख़ियां बनी हुई हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के शासनकाल में बंगाल, बांग्लादेश बनने की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। जिस किसी ने कश्मीर फाइल्स फिल्म, डायरेक्ट एक्शन डे, मोपला नरसंहार आदि घटनाएं नहीं देखी-सुनी हैं, उन्हें जलते हुए बंगाल का सीधा प्रसारण अवश्य देखना चाहिए। वहां खुलेआम कश्मीर की तर्ज पर कत्लेआम, दंगे-फसाद आदि जैसे हिंसक वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है, जिसमें मुख्य मंत्री ममता बनर्जी की मौन सहमति मानी जा रही है। क्या इसे ममता बनर्जी के ‘खेला होबे’ का नंगा नाच कहा जाए?
देश में बंगाल सबसे असुरक्षित राज्य
बीरभूम में हुए जघन्य अग्निकांड का मामला लोग भूले भी नहीं थे कि इसी बीच श्रीरामनवमी के अवसर पर फिर से बवाल मच गया। रामभक्तों की शंतिपूर्ण शोभायात्रा को रोकने के लिए पथराव और हिंसा का सहारा लिया गया, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों, विश्व हिन्दू परिषद एवं बजरंग दल के कार्यकर्ताओं सहित स्थानीय लोगों को गंभीर रूप से चोटें आईं और वे जख्मी हो गए। इसके अलावा नादिया जिले के हांसखाली में नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसकी निर्ममता से हत्या ने यह साबित कर दिया कि बंगाल अब बांग्लादेश बनता जा रहा है। बंगाल राज्य में हिंसा, आगजनी, हत्या, रेप, दंगा-फसाद, वसूली, माफिया, गुंडागर्दी जैसी अनेकानेक प्रकार की आपराधिक एवं राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की सूची बहुत लम्बी है। देश में बंगाल सबसे असुरक्षित राज्य की श्रेणी में आ गया है। इसलिए लगातार राज्य से लोगों का पलायन हो रहा है और दूसरी ओर बांग्लादेशी एवं रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसा लगता है मानो लोकतंत्र, कानून व्यवस्था, मीडिया, न्यायालय आदि सारी व्यवस्थाएं केवल कहने-सुनने मात्र के लिए ही बची हैं। असल में, बंगाल में इनका कोई अस्तित्व दिखाई नहीं देता है।
ममता बनी बंगाल की ‘जयचंद’ और ‘लेडी जिन्ना’
‘जयचंदों’ (गद्दार) से भारत का इतिहास भरा पड़ा है और यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी भी है। क्षणिक स्वार्थ और धन, बल, सत्ता के लालच में ममता रूपी अनेकों जयचंद कभी पीछे नहीं रहे हैं। इसीलिए भारत को बारम्बार गुलाम बनने और विदेशियों का अत्याचार सहने पर विवश होना पड़ा है। हम शत्रुओं से नहीं हारे है बल्कि अपनों से हारे हैं इसलिए अपने अतीत से सीख लेते हुए आस्तीन के सांपों का फन कुचलना आवश्यक हो गया है। कहने के लिए तो ममता बनर्जी हिन्दू हैं लेकिन उनकी हरकतें जयचंद जैसी ही संदिग्ध हैं। मुंबई के भाजपा के वरिष्ठ नेता मंगल प्रभात लोढ़ा ने तो ममता को ‘लेडी जिन्ना’ का नाम देकर उनके कुकृत्यों की भर्त्सना की है।
…तो इसलिए कर रही हैं ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टीकरण
मुस्लिम तुष्टीकरण का रहस्य संख्याबल और वोट बैंक में छुपा हुआ है। मुस्लिम वर्ग का भाजपा विरोध किसी से छुपा हुआ नहीं है इसलिए भाजपा के विरुद्ध जो भी पार्टी मजबूत स्थिति में होती है उनका एकतरफा वोट उन्हीं को जाता है। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम समाज चुनाव में संख्याबल के आधार पर निर्णायक स्थिति में है। कुल 46 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता 50 प्रतिशत से अधिक, 16 सीटों पर 40 प्रतिशत से अधिक और 33 सीटों पर 30 प्रतिशत से अधिक हैं (स्त्रोत: दैनिक जागरण)। लगभग 100 सीटें ऐसी हैं जिनमें मुस्लिम वर्ग जिसे चाहे उसे जिता सकता है और आधे पर भी वे निर्णायक भूमिका में है। इसी आंकड़ों के खेल को जीतने और भाजपा को परास्त करने हेतु ममता बनर्जी बंगाल में खूनी ‘खेला’ खेल रही हैं।
यदि मोदी सरकार ने ‘राजदंड’ का प्रयोग नहीं किया तो बंगाल हाथ से निकल जाएगा। बंगाल में आगे भी इसी तरह से हिंसा, बलात्कार और दंगे फसाद के बहाने स्थानीय लोगों को पलायन करने पर मजबूर किया जाएगा और बांग्लादेशी-रोहिंग्या मुसलमानों को बसाकर भविष्य में जनसंख्या असंतुलन और जन-सांख्यिकी (डेमोग्राफी) परिवर्तित करने का प्रयास तेज गति से होने लगेगा, जिससे ममता बनर्जी की सत्ता आगे भी बरक़रार रहे। हिन्दुओं के पलायन और डेमोग्राफी चेंज को तत्काल प्रभाव से रोकना होगा अन्यथा बंगाल को कश्मीर व बांग्लादेश बनने से कोई नहीं रोक सकता।
प्रधान मंत्री और गृह मंत्री करें ‘राजदंड’ का प्रयोग
ममता बनर्जी के क्रूरतम गुंडाराज का सबसे अधिक शिकार भाजपा कार्यकर्ताओं को ही होना पड़ा है। बावजूद इसके मोदी सरकार और भाजपा नेतृत्व स्थानीय नागरिकों सहित अपने कार्यकर्ताओं की रक्षा करने में असफल साबित हो रही है। सरकार की सबसे प्रबल शक्ति होती है ‘राजदंड’। यदि उसका उचित प्रयोग नहीं किया गया तो राष्ट्र विरोधी शक्तियां खुलेआम अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने लगती हैं और कुछ ऐसा ही हो रहा है बंगाल में, जिस पर तत्काल प्रभाव से अंकुश लगाना अनिवार्य है। यदि समय रहते बंगाल के जंगल राज को समाप्त नहीं किया गया तो विदेशी शक्तियों की कठपुतली बन अन्य राज्य भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। वर्तमान समय में हमें बाहरी नहीं अपितु आंतरिक खतरा सबसे अधिक है। इसलिए आंतरिक सुरक्षा एवं सामाजिक सौहार्द्र के साथ ही कानून व्यवस्था, लोकतंत्र, संविधान को बचाने के लिए केंद्र सरकार का हस्तक्षेप करना अतिआवश्यक है। देश के नागरिकों की सुरक्षा राज्य का आंतरिक मामला है, ये कहकर नागरिकों को राम भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।
भयानक हिंसा और आगजनी की घटना से संकेत मिलता है कि राज्य हिंसा की संस्कृति और जंगलराज के हवाले है।
– जगदीप धनखड़ राज्यपाल – प. बंगाल
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और आंतरिक सुरक्षा का दायित्व संभाल रहे देश के गृह मंत्री अमित शाह से ही बंगालवासियों को अपनी बहन-बेटियों के सतीत्व और रक्षा-सुरक्षा की आखिरी उम्मीद है। कश्मीर की तर्ज पर बंगाल में सुनियोजित चरणबद्ध तरीके से एक के बाद एक दिल दहला देनेवाली घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। महिलाओं सहित नाबालिग बच्चियों के भी सामूहिक बलात्कार होने की खबरें आती रहती हैं। परिणामत: स्थानीय लोगों का बड़ी संख्या में पलायन हो रहा है। सत्ता के लिए पक्ष-विपक्ष की राजनीति तो आगे भी चलती रहेगी लेकिन नागरिकों की जान-माल की सुरक्षा करना शासन का प्राथमिक एवं सर्वोच्च कर्तव्य है। आज देश की जनता मोदी सरकार से यह पूछ रही है कि भारतीय सेना के एक सैनिक के लिए भारत सरकार पाकिस्तान से युद्ध करने हेतु भी तैयार हो गई थी परन्तु जब अपने ही नागरिक बड़ी संख्या में एक षड्यंत्र के तहत मारे जा रहे है तो उन्हें बचाने के लिए भारत सरकार आगे क्यों नहीं आ रही है? क्या बंगाली हिन्दुओं के नरसंहार और पलायन पर सरकार चुप्पी साधे रहेगी? बहरहाल नागरिकों को ममता बनर्जी से तो अपनी सुरक्षा की उम्मीद नहीं है, लेकिन मोदी सरकार से तो है।
समाज को संगठित रूप से खुद लड़ना होगा
सत्ता का संघर्ष तो चलता रहेगा। सरकारें अपने तरीके से काम करती रहेंगी, लेकिन एक जागरूक समाज के रूप में हमें अपनी और अपने परिवार की रक्षा तो स्वयं करनी पड़ेगी। आखिर कब तक हम सरकार, सेना और पुलिस के भरोसे बैठे रहेंगे? आत्मरक्षा का अधिकार हम सभी को है। अब हमें यह तय करना है, पलायन या पराक्रम।
‘संघ शक्ति कलियुगे’ अर्थात कलयुग में संगठन में ही शक्ति है। जब तक हमारा समाज संगठित नहीं होगा तब तक अत्याचार झेलना ही पड़ेगा परन्तु जिस दिन समाज संगठित हो जाएगा और संघर्ष का सामना पराक्रम से करने लगेगा, उसी दिन से भय का साम्राज्य ध्वस्त होना शुरू हो जाएगा। बंगाल क्रांतिकारियों की भूमि है। वहां के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए थे। आज फिर से बंगाल को एक नई क्रांति की आवश्यकता है। स्मरण रहे! अत्याचार और अन्याय को सहन करना भी पाप है, इसलिए उसका दंड तो भोगना ही पड़ता है। यदि बंगाल की जनता और समाज यह ठान ले कि अब अत्याचार नहीं सहेंगे और उसका कड़ा प्रतिकार करने लगें तो मुट्ठीभर गुंडों को मैदान छोड़ कर भागना ही पड़ेगा।