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असहाय पशुओं को चाहिए सहारा

असहाय पशुओं को चाहिए सहारा

by गिरीश शाह
in मई-२०२२, विशेष, संस्था परिचय, सामाजिक
1

भारत में पशुओं की संख्या में निरंतर बढ़ोत्तरी होती जा रही है पर उस अनुपात में पशुचिकित्सकों की संख्या काफी कम है। लोगों का जीवन स्तर विकसित होने के साथ ही विगत दो दशकों से देश में कुत्ते, बिल्लियों समेत अन्य जानवर पालने का भी शौक बढ़ा है। इसलिए देशभर में पशु चिकित्सकों की नई पीढ़ी तैयार किए जाने की आवश्यकता है। 

केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा जनवरी 2020 में जारी 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, भारत में 50 लाख से अधिक लावारिस मवेशी हैं। इसका मतलब है कि 70 प्रतिशत से अधिक मवेशी आबादी संकर और अवर्गीकृत संयुक्त है। ऐसे पशुओं को आज के आपाधापी के युग में महत्व नहीं दिया जा रहा है और सड़कों पर छोड़ दिया जाता है। इस चलन को रोकने की जरूरत है। इसके लिए सर्वप्रथम देशी और विदेशी किस्मों की क्रॉस ब्रीडिंग रोकनी चाहिए। अनुसंधान संस्थानों को स्वदेशी नस्लों के विकास कार्यों को प्रोत्साहन देना चाहिए। इस तरह छुट्टा पशुओं की समस्या नियंत्रित की जा सकती है। दरअसल छुट्टा पशुओं की देखभाल में सबसे बड़ी समस्या उनके स्वास्थ्य की देखभाल और चिकित्सा का प्रबंधन है। वर्तमान में उनकी स्वास्थ्य जैसी समस्या को निपटाने की अत्यंत आवश्यकता है।

एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 6.2 करोड़ आवारा कुत्ते और 91 लाख स्ट्रीट बिल्लियां हैं, देश की 77 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्हें सप्ताह में कम से कम एक बार लावारिस कुत्ते सड़क पर घूमते दिखाई देते हैं। ऐसी स्थिति में आबादी के मुद्दे पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। आंकड़ों के अनुसार चीन में 7.5 करोड़ अनुमानित बेघर बिल्लियां और कुत्ते, अमेरिका में 4.8 करोड़, जर्मनी में 20. 6 लाख, ग्रीस में 20 लाख, मैक्सिको में 74 लाख, रूस और दक्षिण अफ्रीका में 41 लाख और यूके में 11 लाख हैं।

भारत में 350 लाख लावारिस पशुओं की स्थिति बहुत ही खराब है। देशभर के पशु प्रेमी और पशु कल्याण कार्यकर्ता लावारिस पशुओं की मदद करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जो कोई और नहीं करेगा। भारत की सड़कों पर 350 लाख से अधिक आवारा कुत्ते भोजन, चिकित्सा, देखभाल या शरण के बिना अक्सर भटकते रहते हैं। अक्सर पशु प्रेमी उनके अधिकार के लिए संघर्ष करते रहते हैं। भारत की पशु कल्याण प्रणाली पीड़ित लावारिस पशुओं की सहायता के लिए बुनियादी ढांचे को तैयार करने के लिए हर क्षण तमाम चुनौतियों से जूझते रहते हैं जिसमें पूंजी की कमी सबसे बड़ा संघर्ष है। लावारिस जानवरों के बचाव, पशु चिकित्सकों और पशु प्रेमियों का एक नेटवर्क बनाने में सरकार के साथ-साथ आम आदमी की जरुरत है ताकि देश के हर लावारिस और पालतू पशु के ऊपर होने वाले अत्याचार को रोकने, पशु-चिकित्सा तथा देखभाल की सुविधा प्रदान करने और पशु पक्षियों को आवश्यक सुविधा मुहैया कराई जा सके। वर्ष 2019 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार पूरे भारत में 12 हजार से अधिक पशु चिकित्सालय और पॉलीक्लिनिक सक्रिय पाए गए। जबकि लगभग 65 हजार पशु चिकित्सा संस्थान निष्क्रिय अवस्था में थे।

पशु चिकित्सा सार्वजनिक स्वास्थ्य (वीपीएच) मानव, पशु और पर्यावरण क्षेत्रों के बीच संवाद को बढ़ावा देने के लिए आदर्श रूप से उपयुक्त माध्यम है। हाल ही में जेनेटिक और उभरती संक्रामक बीमारी की घटनाओं ने वैश्विक वीपीएच क्षमताओं के निर्माण के प्रयासों को शिथिल कर दिया है। हालांकि, इस तरह की घटनाओं के प्रति उनका अधिक स्पष्ट रूप नहीं दिखा लेकिन उसके आर्थिक और आजीविका पर पड़ने वाले प्रभावों के भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों की प्रतिक्रिया पूरी तरह से नहीं रही है जिससे वैश्विक स्वास्थ्य सम्बंधी चिंता एवं जोखिम बढ़ती जा रही है। इन देशों में मानव-पशु इंटरफेस के जोखिमों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए एक स्पष्ट दृष्टि, सुसंगत नीति, रणनीतिक दृष्टिकोण और मौजूदा वीपीएच क्षमता के निर्माण के प्रयासों को सुधारने और परिष्कृत करने के लिए निरंतर राजनीतिक प्रतिबद्धता जरूरी है। तभी यह अनुशासन व्यवस्था मानव और पशु स्वास्थ्य में सुधार के माध्यम से बीमारी की रोकथाम, गरीबी उन्मूलन और स्थायी आजीविका के समर्थन के अपने लक्ष्य की पूर्ति कर सकेगा। भारत जैसे विकासशील देशों में सार्वजनिक पशु चिकित्सा (वीपीएच) का बहुत महत्व है। हालांकि, पूरे देश में वीपीएच सेवाओं का कार्यान्वयन अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। वर्ष 1970 के बाद से कई संस्थानों, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों, पेशेवर समाजों, नीतियों और व्यक्तित्वों ने भारत में वीपीएच के विकास में योगदान दिया है। इस सिलसिले में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ‘वन हेल्थ’ अवधारणा ने भारत में वीपीएच के विकास की नई आशाओं को जन्म दिया है। वर्तमान में इस सिद्धांत को प्रबल करने के लिए सरकारी क्षेत्र में 1.9 लाख स्वास्थ्य सेवा संस्थाओं का एक नेटवर्क चल रहा है लेकिन पूरे भारत में केवल 65, 000 पशु चिकित्सा संस्थाएं क्रियाशील हैं। ‘वन हेल्थ’ अवधारणा को रेखाकित करने के लिए इसे तेजी से सुधारने की जरूरत है। इस कार्य में पशु चिकित्सकों का बहुत बड़ा योगदान है। आंकड़ों के अनुसार पशु चिकित्सा विज्ञान में कुल छात्र 55% लड़कियां हैं। इसके अलावा, लगभग 60% ने पशु चिकित्सा विज्ञान को पहली पसंद के रूप में चुना जिसमें पिछले दो दशकों की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।

केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति ने 5 अगस्त 2021 को एक नई रिपोर्ट में कहा कि भारत में पशु रोगों के लिए परीक्षण और उपचार सुविधाओं की कमी पाई गई। देखा जाए तो यह एक बेहद चिंताजनक स्थिति है। खास करके उस हालात में जब बीमारियां बढ़ती जा रही हों और मानवता के लिए घातक होती जा रही नई-नई बीमारियां अपना प्रकोप बढ़ाती जा रही हों। इस समय भारत में 55 पशु चिकित्सा महाविद्यालय हैं, जिनमें से प्रत्येक में 60 छात्रों की औसत प्रवेश क्षमता है जहां से हर साल तकरीबन 3000-4000 पशु चिकित्सक निकलते हैं। वेटरनरी काउंसिल ऑफ इंडिया (वीसीआई) के मुताबिक इस दर से कभी भी मांग पूरी नहीं हो सकती। आज 63, 000 पंजीकृत पशु चिकित्सक हैं जबकि देश में 1.1-1.2 लाख की आवश्यकता है। यूरोपीय पशु चिकित्सक संघ के सर्वेक्षण के अनुसार यूरोप में 2015 में पशु चिकित्सा व्यवसाय के अंतर्गत अकेले यूरोप में 2,43,000 पशु चिकित्सक पाए गए। इन पशु चिकित्सकों में से कोई 60%, निजी प्रैक्टिस करने वाले पशु प्रेमी हैं।

सामान्य नियम नियमावली के अनुसार प्रत्येक 5,000 पशुओं पर कम से कम एक पशु चिकित्सक होना चाहिए। 2012 की पशुधन गणना के अनुसार भारत की कुल मवेशी और भैंस की आबादी 30 करोड़ थी जिसका अर्थ है कि अकेले गोवंश की देखभाल के लिए 60,000 पशु चिकित्सकों की आवश्यकता होती है। अगर मुर्गी, भेड़, बकरी, सुअर और अन्य जानवरों को जोड़ा जाए तो यह संख्या और बढ़ जाएगी। वर्ष 2015 में यूएसए में विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन को कुल 87, 009 पशु चिकित्सक ही मिले जिनमें से 75, 593 (86. 9%) निजी पशु चिकित्सक शामिल थे। इसके विपरीत उसी वर्ष के दौरान भारत ने 70767 पशु चिकित्सकों का पंजीकरण किया गया जिनमें से केवल 3116 (4. 4%) निजी पशु चिकित्सक पाए गए।

हाल के वर्षों में गैर-सरकारी एजेंसियों से पशु चिकित्सकों की मांग काफी बढ़ रही है क्योंकि, पशु चिकित्सक अच्छे पशु कल्याण कार्यक्रमों, विकास कार्यक्रमों और उनके तकनीकी ज्ञान गैर सरकारी संगठनों के लिए पशु कल्याण और पशुधन सम्बंधी विकास हस्तक्षेप को लागू करने के लिए एक अतिरिक्त लाभ है। भारत में पालतू जानवरों की आबादी 2006 में 7 मिलियन से बढ़कर 2011 में 10 मिलियन हो गई है। औसतन 600, 000 पालतू जानवरों को हर साल अपनाया जाता है और भारत में कुत्तों का मालिकाना हक बढ़ता जा रहा है।

इस प्रकार अगर देखा जाए तो भारतीय पशु स्वास्थ्य उद्योग ने राष्ट्र के पशु देखभाल हितों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय पक्ष स्वास्थ्य देखभाल संबंधी बाजार और विपणन 2020 तक लगभग रु. 5,500 करोड़ और 2021 तक 6000 करोड़ के स्तर पर जा पहुंचा। पशुपालन के बाजार में पशुओं की विभिन्न प्रजातियों की हिस्सेदारी 51% पशुधन और 49% अन्य शेष जानवरों की है। हालांकि कोई प्रकाशित डेटा नहीं है, खछऋअक ने 39% पोषण, 20% परजीवी, 17% जीवाणुरोधी, 13% जैविक और अन्य श्रेणियों से 11% के रूप में पशु स्वास्थ्य उत्पादों की विभिन्न श्रेणियों के योगदान का अनुमान लगाया है।

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Comments 1

  1. Suman Gopal Chopdekar says:
    2 years ago

    Yah achha kam hai lekin ham yaha bhatkate kutte ko khana khilate hai tho samne Nilkanth nager soct,me karpe admi hamare kutte to jeher,jalti cigarette fekta hai khude uske pas 1 kutti hai uske bacche every years bechta hai,aap meri help karonge.

    Reply

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