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बहुमुखी कलाकार इंदिराबाई राजाराम केलकर

बहुमुखी कलाकार इंदिराबाई राजाराम केलकर

by हिंदी विवेक
in विशेष, व्यक्तित्व
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हरिकीर्तन से शास्त्रीय गायिका तक की यात्रा करने वाली संगीत की साधिका इंदिराबाई राजाराम केलकर का जन्म एक संगीतकार परिवार में पांच मई, 1919 को दक्षिण महाराष्ट्र के कुरूंदवाण में हुआ था। पांच वर्ष की अवस्था में ही इनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद इनकी मां ने कीर्तन को अपनी आजीविका का साधन बनाया। वे विभिन्न गांव एवं नगरों में कीर्तन के लिए जाती थीं। बालिका इंदु को भी उनके साथ जाना पड़ता था। इस प्रकार इंदु पर गायन और कीर्तन के संस्कार बालपन से ही पड़ गये।

इंदु ने संगीत की शिक्षा हारमोनियम बजाने से प्रारम्भ की। कुछ ही दिन में वह इसमें इतनी पारंगत हो गयी कि मां के साथ संगत करने लगी। जब मां  बीच में कुछ देर विश्राम लेतीं, तो इंदु कीर्तन करने लगती। इससे छह-सात वर्ष की होते तक बाल कीर्तनकार के रूप में उनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी और उसके कार्यक्रम स्वतन्त्र रूप से होने लगे।

1927 में इन्दु ने मुंबई में जाकर पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर की शिष्यता ग्रहण की। इसके साथ ही वे अपने घर के आसपास की लड़कियों और महिलाओं को हारमोनियम, नाट्य संगीत तथा भक्ति गायन की शिक्षा भी देती थीं। इससे उन्हें जो आय होती थी, उससे उनके घर का खर्च चलता था।

धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि एक संगीत गुरु के रूप में हो गयी। उन्होंने ‘शारदा संगीत विद्यालय’ की स्थापना कर इस कार्य का और विस्तार किया। सिखाने के साथ उनका सीखने का क्रम भी चलता रहता था। उन्होंने मास्टर कृष्णराव फुलंबरीकर और श्रीपाद नावरेकर से गायन तथा उस्ताद अब्दुल हलीम जाफर खां से सितार की शिक्षा ली। इसके बाद उन्होंने अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय से संगीत में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

इंदिराबाई बहुमुखी प्रतिभा की कलाकार थीं। युवावस्था में उनका रुझान गीत और संगीत के साथ अभिनय की ओर भी हुआ। अनेक नाटकों में उन्होंने पुरुष और महिला पात्रों की भूमिकाएं कीं, जिन्हें लोगों ने बहुत सराहा। 1966 में रंगमंच से विदा लेकर वे अपना पूरा समय शारदा विद्यालय को ही देने लगीं। यद्यपि 1986 में विद्यालय की आर्थिक दशा सुधारने के लिए हुए समारोह में उन्होंने 67 वर्ष की परिपक्व अवस्था में भी अभिनय किया।

गीत, संगीत और अभिनय के साथ इंदिराबाई ने कई कहानियां, नाटक और कविताएं भी लिखीं। 1937 में अपने पहले नाटक ‘आकाची हुकूमत’ का मंचन उन्होंने अपनी शिष्याओं के साथ किया था। 1940 में उनका विवाह श्री राजाराम केलकर से हुआ। उनके पति ने उन्हें हर कदम पर सहयोग दिया।

कला के साथ वे सामाजिक कार्यों में भी अग्रणी रहती थीं। अंतरराष्ट्रीय बाल वर्ष, अंतरराष्ट्रीय विकलांग वर्ष, अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष, शिवजयंती, गुरु नानक जयंती, मकर संक्रांति, गुरु पूर्णिमा आदि पर वे संगीत समारोह का आयोजन करती थीं। उनकी समाज सेवा के लिए महाराष्ट्र शासन तथा सामाजिक संस्थाओं ने उन्हें अनेक पुरस्कार और सम्मान प्रदान किये।

जीवन के संध्याकाल में भीड़ और कोलाहल से दूर रहकर वे अपना पूरा समय स्वरचित और स्वरबद्ध गीत रामायण और गीत सावित्री जैसी भक्ति रचनाओं के गायन में लगाने लगीं। 26 फरवरी, 1990 को उनका देहांत हुआ। 1996 में उनके पुत्र ने नाद ब्रह्म मंदिर का निर्माण कर उसे अपनी मां के गुरु श्री पलुस्कर की स्मृति को समर्पित कर दिया। इसका उद्घाटन करने विख्यात शास्त्रीय गायक श्री भीमसेन जोशी आये थे।

 –  विजय कुमार

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Tags: hindi vivekindian classical musicindirabai rajaram kelkarshastriya sangeetsinger

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