संगीत की साधक विद्याधरी देवी

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भगवान भोले शंकर के त्रिशूल पर बसी काशी का नाम अनेक कारणों से भारत में ही नहीं, तो विश्व भर में प्रसिद्ध है। जहां एक ओर यह धर्मनगरी है, तो दूसरी ओर शिक्षा और तंत्र-मंत्र साधना के लिए भी यह महत्वपूर्ण स्थान है। इसी के साथ काशी ने अनेक कलाकारों…

बहुमुखी कलाकार इंदिराबाई राजाराम केलकर

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हरिकीर्तन से शास्त्रीय गायिका तक की यात्रा करने वाली संगीत की साधिका इंदिराबाई राजाराम केलकर का जन्म एक संगीतकार परिवार में पांच मई, 1919 को दक्षिण महाराष्ट्र के कुरूंदवाण में हुआ था। पांच वर्ष की अवस्था में ही इनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद इनकी मां ने कीर्तन…

तबला वादन को नई उंचाई देने वाले किशन महाराज

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विद्यार्थी जीवन से ही मेरा संकटमोचन मंदिर जाने का क्रम रहा है। आज भी गांव जाने पर कोशिश रहती है कि हर शनिवार को अपने दर्शन कर सकूं। 1995 से लेकर 1999 तक मैं साइकिल से जाता रहा था।  इसी दौरान पिपलानी कटरा में साइकिल की बड़ी दुकान के सामने…

नादनटी बाँसुरी

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 दुनिया के सबसे लोकप्रिय एवं सर्वपरिचित वाद्यों में से एक है बाँसुरी। बाँसुरी बाँस से बनी हुई फूँक कर बजाया जाने वाला वाद्य है और रोज सुने जाने वाले अनगिनत शब्दों में से भावनाओं के कितने-कैसे रूप धारण कर बाँसुरी हमारे सामने हाजिर होती है, तभी तो मोरोपंत पंडित कवि ने (मराठी) उसके लिए ‘नादनटी’ जैसे बड़े ही लोकप्रिय शब्द का प्रयोग किया। भारतीय संगीत के समूचे वाद्यों में से यह आद्य वाद्य माना जाता है।

‘कोलावरी डी’ फयूजन या कंफयूजन?

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बेहद अमीर हो या सिग्नल पर भीख मांगने वाला गरीब हो, बालक हो या युवा हो, महिला हो या पुरुष हो सभी ‘कोलावरी डी’ गाने पर ठुमका लगाते हुए दिखाई देते हैं। पिछले तीन माह में इस गाने ने सब को मानो पागल कर दिया है।

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