मनहूस दिन नहीं है अमावस

 

धर्म को तोड़ मरोड़ कर पेश किये जाने की हम हमेशा बात करते हैं | अब जैसे एक वाक्य की कल्पना कीजिये “अमावस्या की काली रात थी !” इसकी कल्पना मात्र से ही किसी खतरे की घंटी दिमाग में बजने लगती है | अचानक मनहूस कुत्तों के रोने जैसी आवाज सुनाई देने लगेगी, कोई सफ़ेद साड़ी में गुजरती हुई भी महसूस हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं है |

ऐसा इसलिए है क्योंकि फिल्मों के जरिये बार बार आपको अमावस की रात में भूतों का आना दिखाया गया है | अक्सर जघन्य अपराध भी ऐसी ही रात में दिखाए गए हैं | बरसों ध्यान न देने के कारण अनजाने में ही करीब दो पीढ़ियों के असर में आप इसे मनहूस मानने लगे |

अब अमावस या अमावस्या शब्द को देखते हैं जरा | ये दो शब्दों को जोड़ने से बना है “अमा” यानि साथ साथ और “वास” यानि रहना या निवास करना | इस तिथि में चंद्रमा भी सूर्य के नक्षत्र में आ जाते हैं इसलिए एक ही नक्षत्र में दोनों के साथ साथ निवास करने के कारण नाम “अमावस्या” या अपभ्रंश “अमावास” है |

अगर कहीं ये सोच रहे हैं आप की हिन्दुओं के अनुसार ये बड़ी मनहूस तारिख होती होगी तो ऐसा भी नहीं है | दीपावली अमावस्या की रात में ही होती है | इस तिथि को कई व्यापारी अपना नए साल का बही खाता शुरू करते हैं | अगर मनहूस तारिख होती तो हिन्दुओं में कोई काम कैसे शुरू होता इस दिन ?

अब आप सोच रहे होंगे की इसे फिर मनहूस मानता कौन है ? इसको समझने के लिए अब सोशल मीडिया पर आइये | दिन में हर रोज़, एक आदमी जो श्वेत दाढ़ी रखता है वो अक्सर एक वर्ग विशेष को किस्म किस्म की सेल्फी डाल के दुखी किये रहता है ! नेताओं के साथ वाली से मन नहीं भरा तो #SelfieWithDaughter ट्रेंड करवा रहा है | रात होते ही एक श्यामल आभा वाला अपने आपत्तिजनक ट्वीट लेकर जुट जाता है !

एक ही नाम धारी इन दो जीवों ने कई आयातित DNA धारकों को दुखी किया है | कई फिरंगी अमावस को मनहूसियत से जोड़ रहे होंगे | अंधविश्वासों में श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए |

– आनन्द कुमार

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