छत्रपति श्रीशिवाजी महाराज ने 26 अप्रैल, 1645 को सह्याद्री के शिखर पर स्थित भोर तालुका में श्री स्वयंभू रायरेश्वर के शिवालय में “हिंदवी स्वराज्य” की स्थापना की शपथ ली। मोदी जी के गंगा स्नान पर विपक्ष की सियासी चालबाजी की बयानबाजी को अगर हम आज भी मान लें तो भारत के विश्व प्रसिद्ध प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी आज काशी विश्वेश्वर के शिवालय में; यदि हिंदवी स्वराज्य की रक्षा के लिए शपथ ले रहे हैं, तो दुनिया भर के हिंदुओं को – हिंदू समर्थक कार्यकर्ताओं और हिंदुत्व रक्षकों को इस घटना पर बहुत गर्व होना चाहिए; मोदी जी ने आज इस देश को ऐसा नेतृत्व दिया है।
हिन्दुत्व का अर्थ है आध्यात्मिक और इमानदार
हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति श्रीशिवाजी महाराज ने श्री रायरेश्वर-शिव शंभू शिवालय में स्वराज्य की स्थापना का जो संकल्प लिया है, वह हिन्दुओं और हिंदुत्व के आचरण और विचार में सदैव सजग रहेगा! यह जितना सच है उतना ही सच है; ‘छत्रपति द्वारा स्थापित हिंदवी स्वराज्य की रक्षा के लिए; हमारा धर्मकरण – राजनीति और समाजशास्त्र निर्विवाद रूप से आज भी एक समान हैं और हमेशा के लिए रहेंगे’।
हां; इस परंपरा को जिंदा रखा है प्रधानमंत्री मोदी ने! ये है हिंदवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की पवित्रता, वीरता, साहस और हिंदुत्व के गौरव की परंपरा!
हिंदवी स्वराज्य की स्थापना से पहले से ही भारत में धार्मिक-राजनीतिक और सामाजिक परंपराएं आपस में जुड़ी हुई हैं! भारत की राजनीति में धर्म और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता है, क्योंकि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जिसकी संस्कृति बहुत प्राचीन और स्थायी है। इस देश के लोग हिंदू धर्म से जुड़े हुए हैं। हालाँकि, प्राचीन संस्कृति का पालन करते हुए, भारतीय लोग आज तक अपना जीवन जीते हैं। हमारी मान्यताएँ, हमारी भावनाएँ, हमारी प्रेरणाएँ और हमारी मान्यताएँ सभी हिंदू धर्म के साथ समान हैं। हिंदुत्व शाश्वत है! सनातन का अर्थ है शाश्वत!
भारत अर्थात हिंदुस्तान एक ऐसा शाश्वत संस्कृती प्रधान देश हैं विश्व पटल पर जहा प्राचीन परंपरा रितीरिवाज को हर पीढ़ी दर पीढ़ी संभल कर तो रखा जाता है ; पर उसी के साथ उसका पालन पोषण अधिक से अधिक आधुनिक विचारों की प्रणाली को स्वीकार करते हुए सदा ही व किया जाता है ! बल्कि यही इस संस्कृति की विशेषता है ! सिर्फ और सिर्फ मानवीयता को समर्पित यह संस्कृति है ! इसी कारण हजारों सालों से आज भी “चिरस्थाई संस्कृति का प्रधान देश” यही पहचान भारत देश की कायम है ! हिंदू संस्कृति के सम्मान का यह परचम विश्व में आज भी आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में लहराता है; तो इस बात का हिंदू होने के नाते, समस्त देशवासियों को गर्व है!
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता की परंपरा
आ: नो: भद्रा: क्रतवो: यंतु विश्वत: | (ऋग्वेद)
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता की परंपरा को कभी नहीं तोड़ा गया है। वह परंपरा इस बोध से उत्पन्न हुई है कि ‘सत्य किसी संप्रदाय या संप्रदाय की विरासत नहीं हो सकता’ और इसीलिए; – ऋग्वेद कि यह प्रार्थना विश्व मैं इसलिए प्रसिद्ध है की यह प्रार्थना बताती है कि भारत की संस्कृति “वसुधैव कुटुंबकम”, संदेश देती आ रही है ! यह प्रार्थना करती है -;
“आइए हम हर दिशा से महान विचार करें’।” इसलिए कुछ दिन पहले जब हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी, काशी गए थे, तो उन्हें गंगा के जल में उतरते और गंगाजल से सूर्यदेव को अर्ध्य देते और प्रार्थना करतेहुए देखा गया था। उस समयभी हम अपने देश की अमूल्य धरोहर से वाकिफ थे। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पिछले पांच हजार वर्षों से आदिकाल भारत में जिन मूल्यों को कायम रखा गया है, उनका पालन करने और अभ्यास करने की आवश्यकता आज भी हिंदुओं को महसूस होती है! कारण; ‘मनुष्य की सच्ची प्रगति उसके नैतिक और आध्यात्मिक विकास पर निर्भर करती है; यह भौतिक या सांसारिक मानकों पर निर्भर नहीं करता है!’ यह हमारे ऋषियों का शाश्वत संदेश था। इस संदेश में उन्होंने सफलता से अधिक बलिदान पर ध्यान दिया और इसे प्राचीन भारत में ; ‘अस्तित्व के आदर्श वाक्य’ के रूप में स्वीकार किया गया। वास्तव में, यह भारत के आंतरिक कोर की कट्टरपंथी छवि है ; जो विश्व मानचित्र पर आज भी कायम है।
ऐसे प्राचीन सांस्कृतिक भारत में नागरिकों का स्थान धन या शक्ति से निर्धारित नहीं होता था। उस समय के नागरिकों की श्रेष्ठता / हीनता आस्था-जुनून-आध्यात्मिकता और वफादारी के सर्वोत्तम जीवन-रूपों के मानदंडों पर आधारित थी।
इस महान भारतीय नीति का एक सुंदर उदाहरण भगवान बुद्ध के सबसे बड़े अनुयायी ‘सम्राट अशोक’ हैं! वह सम्राट होते हुए भी साधुओं को नमन करते थे। देश में सम्राट अशोक राजा और मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की विशाल सांस्कृतिक विरासत है। इसी आधार पर प्राचीन भारतीय संस्कृति सोने के घड़े के समान है। सुनहरा भार है; हमें प्राचीन काल से कला-साहित्य-आध्यात्मिक संस्कृति-आयुर्वेद की कालातीत धरोहर विरासत में मिली है।
इस बारे में बात करते हुए आदि शंकराचार्य ने इसका वर्णन करते हुए लिखा है कि; “भारतीय संस्कृति ऋषियों द्वारा खोजे गए आध्यात्मिक सत्य का एक बड़ा खजाना है।”
इसका समर्थन करते हुए रवींद्रनाथ टैगोर कहते हैं, “भारत में पूरी दुनिया का मार्गदर्शक बनने की क्षमता है!”
हिन्दू भाइयों को प्रधानमंत्री के गंगास्नान से इतना स्पष्ट संकेत मिल गया तो इसमें गलत क्या हुआ ?? इसके विरोध में जितने भी विचारवंत लेखक या मीडिया बोलता है; वे सभी लोग , आज ही इसका एहसास करें! जिस तरह आज देश के प्रधानमंत्री अपने हर कर्म से इस गहन जागरुकता को दे रहे हैं, वही महान कार्य पहले भी असंख्य ऋषि-मुनियों द्वारा निर्बाध रूप से किया गया है। वही संदेश आज प्रधानमंत्री मोदी जी अपनी जनता को अपने देशवासियों को दे रहे हैं !
इसमें कौन सा आपत्तिजनक संदेश है??
इसमें कौन सी अपत्तिजनक कृति उन्होंने की है ??
प्रधानमंत्री का गंगास्नान ऋषि मुनियों का प्राचीन संदेश दे रहा है कि ; ” मेरे भाइयों ; –
“प्राचीन भारत की यह स्वर्ण संस्कृति आज के युग में विशेष है ; क्योंकि यह मुख्य रूप से आध्यात्मिक विकास से संबंधित है!”
अध्यात्मवादी निष्ठा को भौतिकवादी प्रगति से संलग्न
इसी वजह से प्रधानमंत्री मोदी जी का गंगा स्नान एक तरह से मानवीय सृजनता का प्रतीक है ! ; भौतिक प्रगति को आध्यात्मिकता – शुचिता – श्रद्धा और भक्ति से जोड़कर, “वसुधैव कुटुम्बकम।” इस मानवीय सिद्धांत के करीब वास्तव्य करने वाला हिंदवी समाज है ! इसी संस्कार से प्रेरित होकर आज के अपने प्रधानमंत्री जी काशी विश्वेश्वर मंगलकामना करते हैं! इस गंगा स्नान के दौरान जब वह स्नान करके प्रार्थना करनेके लिए उठे , तो ऐसा लगा, जैसे वे विश्व को हिला रहे हैं, लेकिन विनम्रतापूर्वक कह रहे हैं; – ‘भारत एक शाश्वत देश है। हालांकि यहां की कई प्राचीन संस्कृतियां इतिहास के धुंधले प्रकाश में फीकी पड़ गई हैं, लेकिन इस भूमि में अमरता का उपहार है। इस भारत की संस्कृति कालातीत है; यह 21वीं सदी तक जीवित रहा है।’ प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी हमसे ऐसे ही मिलते आ रहे हैं!
वही जोश और आत्मविश्वास श्री अरविंद जी ने बहुत पहले कहा था, “प्राचीन भारत अभी भी जीवित है! इसने अभी तक अपने अंतिम रचनात्मक शब्द का उच्चारण नहीं किया है। प्राचीन भारत अभी भी जीवित है।”
हां; भारत दुनिया पर शासन या प्रभुत्व नहीं करना चाहता, लेकिन भारत में दुनिया का मार्गदर्शन करने की क्षमता है। अभिमानी आक्रमणकारियों ने अक्सर भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश की। कई सदियां पीछे ! ; लेकिन भारत की विरासत में जरा भी कमी नहीं आई है। यह विशाल संस्कृति अभेद्य बनी हुई है। इस बिंदु पर, सी राजगोपालाचारी के विचारों का उल्लेख करना बहुत महत्वपूर्ण है। वे लिखते हैं; “भारत में आज भी अगर थोड़ी सी भी ईमानदारी, सत्कार, शुचिता, भाईचारा, करुणा, पाप-पुण्य शेष है, तो सारा श्रेय हमारी प्राचीन संस्कृति को ही देना होगा।” ये एक बहुत ही गौरवान्वित और प्रमाणित विधान राजगोपालाचारी के शब्दों में प्राप्त हैं।
इस बिंदु पर यह उल्लेखनीय है कि; भारत की प्राचीन संस्कृति की यह विरासत हिंदुओं अर्थात भारतीयों तक ही सीमित नहीं है, यह सार्वभौमिक है। इसलिए काशी विश्वेश्वर की उपस्थिति में प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा किया गया गंगा स्नान देश की आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह युवाओं को भारतीय संस्कृति के साथ रहना सिखाती है। इसके साथ ही होता है प्रकृति पूजन का विधान! और और यही विधान के साथ प्रधानमंत्री जी ने काशी विश्वेश्वर में जाहिर आवाहन किया है !! इतना स्वच्छ-इतना व्यापक- और इतना गहरा ; “मानवी संदेश”, दुनिया के किसी राष्ट्र प्रमुख ने; या फिर राष्ट्रीय नेता ने – शायद ही कहीं दिया होगा …!
हिन्दुत्व की शिक्षाएं – “वसुधैव कुटुंबकम!”
हिंदू धर्म में, प्रकृति की पूजा को प्रकृति संरक्षण के रूप में जाना जाता है। पेड़-पौधे, नदियाँ-पहाड़, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि-वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों से मानवीय सम्बन्धों को जोड़ा गया है। वृक्ष की तुलना बालक से करने से नदी को माता माना गया है।
ग्रह, नक्षत्र, पर्वत और वायु को देवता माना गया है। प्राचीन काल से ही भारत के वैज्ञानिक संतों को प्रकृति संरक्षण और मानव प्रकृति का गहरा ज्ञान था। वह उस रूप में जानता था कि मनुष्य अपने दम पर गंभीर गलतियाँ कर सकता है। इस लापरवाही से मनुष्य अपना बहुत बड़ा नुकसान कर सकता है। इसलिए उन्होंने प्रकृति के साथ मनुष्य का संबंध बनाया। ताकि मनुष्य द्वारा प्रकृति को होने वाले गंभीर नुकसान को रोका जा सके। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही भारत में प्रकृति के साथ संतुलन बनाने की महत्वपूर्ण परंपरा रही है।
यही स्मरण, दुनिया के समस्त हिंदुओं को देना चाहते हैं प्रधानमंत्री मोदी जी अपने गंगा स्नान से ! इतने गहरे विचारों के साथ ही प्रधानमंत्री मोदीजी ने – गंगा स्नान में सूर्यदेवता को अर्घ्य देने का विधि करने का निश्चय किया होगा, यह संदेश साफ नजर आता है ; अगर सोचो तो….. !!
हिन्दुत्व मानवीय समरसता की अद्भुत दृष्टि है!
तो प्रधानमंत्री का यह गंगा स्नान पूरी दुनिया में प्रकृति और मनुष्य के बीच “नादमय-एकरूपता” की स्थापना कर रहा है। पूरे काशी विश्वेश्वर मंदिर से, घाटों तक प्रधानमंत्री का यात्रा जनता की चिंता और सद्भाव की अद्भुत अभिव्यक्ति कहा जाये तो इस मे गलत क्या है।
नदी घाट पूजा में प्रधानमंत्री द्वारा उपयोग की जाने वाली सामग्री प्रकृति के अनुकूल और सामाजिक रूप से जुड़ी हुई है। जब प्रधानमंत्री गंगा स्नान के समय वनभास्कर को अर्ध्य दे रहे थे, तो ऐसा लगता है; काशी विश्वेश्वर में जैसे की, मनाया जा रहा है ; भगवान भास्कर और लोक आस्था का महापर्व !
यह सब काशी विश्वेश्वर कॉरिडोर लोकर्पण की रस्म नहीं है; तो पूरे विश्व को स्वच्छ पर्यावरण का संदेश है!
प्रधानमंत्री मोदी जी देश की युवा पीढ़ी से आग्रह कर रहे होंगे कि ; “आज इस भव्य गंगा पूजन और गंगा स्नान को करें; अपने आस-पास क्या हो रहा है, इसके बारे में ध्यान से सोचें और अपने देश के भविष्य को उज्ज्वल करने के लिए जो कुछ भी करना पड़े, वह करें! हमारे आत्मनिरीक्षण से ही शक्ति और विश्वास, आशा और विश्वास पैदा होता है…. !” क्या प्रधानमंत्री मोदीजी इतना आशावाद देना चाहते हैंअपने युवा पिढीयोको ? ; काशीविश्वेश्वर मे उनका स्वरूप तो इतनाही स्पष्ट और साफ दिखाई दे रहा था।
काशी विश्वेश्वर की पावन भूमि पर…. ;
भारतीय परंपरा की पूजा करते हैं मोदीजी!
प्रकृति की पूजा करते है मोदीजी!
संस्कृति की पूजा करते है मोदीजी!
मनुष्य और प्रकृति के रिश्ते की पूजा करते है मोदीजी!;
और इसे ‘दुनिया भर में मानव मित्रता के आवाहन’ की पूजा मानते है मोदीजी !
दुनिया भर में “मानव मित्रता” की अपील –
“भव्य काशी दिव्य काशी”
इस प्रकार; “भव्य काशी दिव्य काशी” के आवाहनसे; परिणाम स्वरूप विशेषरूपसे – विश्व प्रसिद्ध छठ पूजा को याद किया !
छठ पूजा पर्व में छठे और सातवें दिन सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठे दिन संध्या के समय अस्त होते सूर्य की पूजा की जाती है। वेदों और पुराणों में छठ पूजा को संध्या का महत्व दिया गया है, ताकि दुनिया को यह पता चले; जब तक हम “ढलते सूरज” का सम्मान नहीं करेंगे, यानी बड़ों आदर और पालन-पोषण नही करेंगे, तो परिणाम स्वरूप उगते सूरज की तरह – नई पीढ़ी उन्नत और सुखी – संपन्न नहीं हो पाएगी !
– डॉ. अर्चना लक्ष्मण आंबेकर