आज फिजी गिरमिटि स्मृति दिवस है।इसी दिन सन् 1879 को प्रथम जहाज फिजी तट पर उतरा था। यह भारतवंशियों के गुलाम से गवर्मेंट बनने की भी कहानी है।
इन गिरमिट हृदयों में भारत और रगों मे भारतीय खून है।हजारों किलोमीटर दूर रहते है फिर भी एक लघु भारत बसा बना रखा है।बस जरूरत कुछ बदलाव और एक नयी सोच की है।भारतीयों के लिए यहाँ उपेक्षा नही अपितु अवसर हो।क्योंकि जब भी कोई भारतीय अपने गाँव से परदेस जाता है तो वो अपनों को भुलाता नही मौका देख उन्हें भी बुला अवसर और प्रतिष्ठा दिलाता है।अगर कोई अपने गाँव जवार का परदेस मे संघर्ष करता मिल जाए तो उसके बेहतरी के लिए भी एक भारतीय मन सदैव सोचता है।
गाँव से निकल परदेशी बना हर सफल इन्सान अपने पुरखों की धरती और गाँव के लिए कुछ न कुछ जरूर करता है।यही भारतीय मन है।मुझे लगता है ऐसा इन सफल भारतवंशियों को भारत के अपने गाँव जवार और परिवार के लिए सोचना चाहिए।वही जिस धरती पर ये बसे है वहाँ के बारे में भी कुछ विचार करना चाहिए।आखिर इन्ही के पुरखों के सामने तो अंग्रेज,फ्रेंच और डचों ने इन द्वीप देशों के संसाधन और भारतीयों श्रम के बल अपने पितृ भूमि की समृद्धि बढ़ाई थी।
वही इन्होंने पूरे स्थानीय समुदाय को ईसाई मत संस्कृति मे ढ़ाला भी था।तब समय के साथ कई जगहो पर पूरी की पूरी भारतीय आबादी को ईसाई भी बनाया गया।अब जब भारतीय धर्म संस्कृति अपने उदारता के नाते वैश्विक तौर पर स्वीकारी और अपनायी जा रही है।ऐसे में इन भारतवंशियों के थोड़े से सोच और स्थानीय स्तर पर प्रयासों के नाते ये भारतीय संस्कार विचार हर समूह समुदाय तक पहुँच सकता है।वही यहाँ भी एक सनातनी सुसंस्कृत भारतप्रेमी सुंदर सुभूमि वाला समाज सदैव के लिए मूर्त रूप ले सकता है।