जिस दिन केन्द्र सरकार और सभी प्रदेश सरकारे अपने कर्मचारियों और सरकार में शामिल नेताओं पर यह शर्त लागू कर देगी कि उन्हें और उनके परिवार को ‘सरकारी सेवाओं’ का इस्तेमाल अनिवार्य रूप से करना है। देश का कायाकल्प उसी दिन हो जाएगा।
मतलब प्रदेश के किसी भी नेता या अधिकारी का परिवार सरकारी अस्पताल से ही चिकित्सा सेवा लेगा। सरकारी स्कूल का इस्तेमाल बच्चों के लिए करेगा, सरकारी सार्वजनिक बसों से ही जाना आना करेगा।
इस देश में कभी यह नियम लागू होगा, यह कल्पना मात्र है। आम आदमी के नाम पर दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी सरकार अपने शिक्षा मॉडल पर करोड़ों रुपए खर्च किए लेकिन इस स्कूल में ना मुख्यमंत्री ने अपने बच्चे का दाखिला कराया और ना ही उप मुख्यमंत्री ने। मतलब वे इस मॉडल पर चाहें करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हों लेकिन उन्हें इस पर विश्वास नहीं है।
कोविड के समय में बड़े—बड़े नेता निजी अस्पतालों में भर्ती हुए। ऐसा उन्हें इसलिए करना पड़ा क्योंकि अपनी सरकार में एक ढंग का अस्पताल वे प्रदेश में नहीं बना पाए, जहां अपना इलाज करा पाएं।
जो स्कूल और अस्पताल सरकार की देख रेख में चल रहा है, यदि सरकार के अधिकारी और नेता ही उस व्यवस्था पर विश्वास नहीं करेंगे फिर जनता का उस पर विश्वास कैसे जमेगा?