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आत्मबलिदानी सती रामरखी देवी

आत्मबलिदानी सती रामरखी देवी

by हिंदी विवेक
in विशेष, व्यक्तित्व
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दिल्ली में मुगल शासक औरंगजेब के बन्दीगृह में जब गुरु तेगबहादुर जी ने देश और हिन्दू धर्म की रक्षार्थ अपना शीश कटाया, तो उससे पूर्व उनके तीन अनुयायियों ने भी प्रसन्नतापूर्वक यह हौतात्मय व्रत स्वीकार किया था। वे थे भाई मतिदास, भाई सतीदास और भाई दयाला। इस कारण इतिहास में उन्हें और उनके वंशजों को नाम से पूर्व ‘भाई’ लगाकर सम्मानित किया जाता है। 

भाई मतिदास के वंशज थे भाई बालमुकुंद, जिन्होंने 23 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में वायसराय लार्ड हार्डिंग की शोभायात्रा पर बम फेंका था। इस कांड में चार युवा क्रांतिवीरों (भाई बालमुकुंद, अवधबिहारी, वसंत कुमार विश्वास तथा मास्टर अमीरचंद) को फांसी दी गयी थी। इनमें से एक भाई बालमुकुंद की पत्नी रामरखी के आत्मबलिदान का प्रसंग भी अत्यन्त प्रेरक है।

भाई बालमुकुंद का विवाह किशोरावस्था में ही लाहौर की रामरखी से हो गया था; पर अभी गौना होना बाकी था। अर्थात रामरखी अभी ससुराल नहीं आई थी। इधर बालमुकुंद जी क्रांतिकार्य करते हुए दिल्ली की जेल में पहुंच गये। जब रामरखी को यह पता लगा, तो वह उनसे मिलने अपने परिजनों के साथ दिल्ली आयी। रामरखी ने उनसे पूछा कि वे क्या खाते हैं और कहां सोते हैं ?

बालमुकुंद जी ने बताया कि उन्हें एक समय भोजन मिलता है। रामरखी के आग्रह पर उन्होंने अपनी रोटी लाकर दिखाई। मोटे अन्न से बनी उस रोटी में कुछ घासफूस भी मिली थी। रामरखी ने उसका एक टुकड़ा अपने पल्लू में बांध लिया। फिर बालमुकुंद जी ने बताया कि उन्हें दो कंबल मिले हैं। गरमी होने पर भी उसमें से एक को वे ओढ़ते और दूसरे को बिछाकर सोते हैं।

लाहौर वापस आकर रामरखी वैसी ही मोटी और कंकड़ मिली रोटी बनाकर एक समय खाने लगी। रात में सब लोग छत पर सोते थे; पर वह घर की नीचे वाली कोठरी में कंबल बिछाकर और ओढ़कर सोने लगी। कुछ ही समय में उसकी हड्डियां निकल आयीं। मच्छरों के काटने से शरीर सूज गया; पर उसने उफ तक नहीं की। वह दिन भर पूजा-पाठ में लगी रहती थी। इस कठोर तपस्या से मानो वह अपने पति के कष्ट बांट रही थी।

इस तरह कई महीने बीत गयी। अंततः फांसी की सजा घोषित हो गयी। रामरखी धैर्यपूर्वक पति से अंतिम बार मिलने फिर दिल्ली आई। आठ मई, 1915 को भाई बालमुकुंद और साथियों को फांसी दे दी गयी। फांसी वाले दिन से ही रामरखी ने अन्न-जल त्याग दिया। वह दिन भर पूजा में ही बैठी रहती। इस प्रकार 17 दिन बीत गये। 26 मई को 18 वां दिन था। उस दिन उसने स्वयं पानी लाकर स्नान किया, साफ वस्त्र पहने और अपने स्थान पर आकर लेट गयी। इसके बाद उसने अपनी सांस ऊपर खींच ली। कुछ समय बाद घर वालों ने देखा कि वहां उसका निर्जीव शरीर ही शेष है।

इस प्रकार रामरखी ने महान सती नारियों की परम्परा में अपना नाम लिखा लिया। यद्यपि गौना न होने के कारण वह अभी कुमारी अवस्था में ही थी; पर उसने जो किया, उससे भारत की समस्त नारी जगत गौरवान्वित है।

संकलन – विजय कुमार 

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Tags: bhai baalmukundfreedom fighterhindi viveklord hardingsati ramrakhi devi

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