हालांकि मोमिन को सर्वाधिकार है कि वह जब चाहे तब काफिरों के खिलाफ दंगा कर दे। लेकिन आमतौर पर मोमिनी दंगे और उपद्रव जुमे की नमाज के बाद ही शुरू होते हैं। आइये समझते हैं, ऐसा क्यों होता है?
असल में उसी दिन सामूहिक नमाज होती है। जुमे की नमाज कहते हैं वो इसे। और कोई इस्लाम का जानकार नमाज की उठक बैठक के बाद उनका माइंड वाश करता है। इसे वो खुतबा या तकरीर कहते हैं। अब ये पूरी तरह से खुतबा करनेवाले पर निर्भर होता है कि मुसलमानों के दिमाग में क्या फीड करता है।
अगर तकरीर करनेवाले ने कुछ उल्टा सीधा बोल दिया तो उस समय उठक बैठक करके तरोताजा हुए मोमिनीन तकरीर या फिर खुतबा सुनते ही इतना उबाल खाते हैं कि दंगा कर देते हैं। जैसे कानपुर में हुआ।सरकारें बहुत प्रयास करती हैं दंगा रोकने का लेकिन कभी जुमे वाले खुतबे पर ध्यान नहीं देती। अगर सिर्फ उस दिन मस्जिदों की निगरानी की जाए और किसी सक्षम अधिकारी द्वारा मुफ्ती या मौलाना द्वारा की गयी तकरीर को रिकॉर्ड किया जाए, तो कम से कम जुमे के दिन कभी दंगे नहीं होंगे।
सरकार चाहे तो सभी धर्मों के धर्माचार्यों पर ये नियम लागू कर सकती है। जिसका भी भाषण भड़काऊ पाया जाए उसको सही सलामत जेल के पीछे पहुंचाया जाए।