वर्चस्व और अस्तित्व की लड़ाई

महाराष्ट्र की सियासत में आज जो कुछ भी हो रहा है, वो अनायास नहीं हो रहा है. यह ठाणे के ‘ठाकरे’ और मुंबई के ‘ठाकरे’ के बीच की लड़ाई है, जो पहले भी कई बार सामने आ चुकी है ।अभी हाल ही में पूर्व सीएम नारायण राणे ने कहा था कि अगर एकनाथ शिंदे अगर यह कदम नहीं उठाते तो उनका हाल उनके गुरुआनंद दिघे जैसा हो जाता ।

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि एक समय शिवसेना में 2 पावर सेंटर हुआ करते थे. एक मुंबई का ‘मातोश्री’ था तो दूसरा ठाणे जिले में धर्मवीर आनंद दिघे का ‘आनंद आश्रम’ हालांकि आधिकारिक रूप से बाला साहब ठाकरे और

आनंद दिघे के बीच किसी रंजिश का जिक्र नहीं मिलता. हर कोई जानता है कि आनंद दिघे बालासाहब ठाकरे को अपना गुरु और भगवान मानते थे और शिवसेना के प्रति इतना समर्पित थे कि शिवसेना के ही एक विधायक श्रीधर खोपकर ने शिवसेना से गद्दारी कर कॉंग्रेस को समर्थन दिया तो उसकी तलवार से काट कर हत्या करवा देने का इल्जाम है उनपर , TADA के आरोप में जेल भी गए हैं ।

लेकिन 1951 में जन्मे दिघे साहब बचपन से ही लोगो मे सहयोग की भावना लिए हुए थे ,आदिवासियों, महिलाओं बुजुर्गों की मदत करने को सदा तैयार और बाद में वो शिव सेना को समर्पित हो गए ,ठाणे क्षेत्र में वो देवतुल्य पूजे जाते थे, इतना कि उस क्षेत्र के लोग ज्यादा उनकी अनुमति के बिना कुछ भी नही करते थे, लोगों ने उनको धर्म वीर की उपाधि तक दे दी थी, उन्होंने कभी चुनाब नही लड़ा था फिर भी उनकी प्रसिद्धि और दबदबा इतना था कि उस क्षेत्र के लोगो के लिए वो धर्म का अवतार थे और उन्हें धर्मवीर की उपाधि मिली जो उपाधि ठाकरे परिवार के लोगो तक को नशीब नही हुई ,

उनके तेम्भी नाका स्थित आवास

‘आनन्द आश्रम’ में एक दैनिक दरबार लगता था ,जिसमे वो लोगो की समस्याएं सुनते थे । उधर उनके खुद के शिवसैनिकों को भी बाल ठाकरे की जगह उनके सामने हाथ बांधे शिकायत करते देखा जाना आम बात थी।

ऐसा माना जाता है कि उनका बड़ता कद ठाकरे परिवार को परवरा नही और खतरे की घण्टी लगा और फिर एक दिन रहस्यमयी रूप से उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया और उनके पांव में फ्रेक्चर हो गया और 26 अगस्त 2001 को उनको देखने अस्पताल में बाल ठाकरे और राज ठाकरे गए और फिर अचानक उनके जाने के बाद रहस्यमयी ढंग से उनकी मृत्यु हो जाती है ,

डॉक्टरों ने कारण बताया कि उनको दो बार हार्ट अटैक आया था, ये जवाब प्रशंसकों को जमा नही और उनहोने ठाणे स्थित पूरा सुनीता देवी सिंघानिया अस्पताल फूंक दिया ,लोगो मे शोक और मातम का माहौल कई महीनों तक चला, बहुत से लोग आज भी मानते हैं बाल ठाकरे ने उनकी राजनैतिक हत्या की थी ,अपने कद को बचाने के लिएl

एकनाथ शिंदे उसी क्षेत्र के हैं उन्ही आनन्द दीघे की छत्रछाया और उंगुली पकड़ कर आगे बढ़े हैं ।एकनाथ श‍िंदे ने राजनीत‍ि के दांवपेच आनंद दिघे से सीखा है, दिघे के शाग‍िर्द के तौर पर शिंदे ने खुद को स्थापित किया. शिंदे ने दिघे को अपना रोलमॉडल बना लिया पहनावे और बोलचाल में भी वह उनकी तरह दिखने की कोशिश करने लगे ।

दिघे ने शिंदे को उनकी वफादारी का ईनाम भी दिया, शिंदे को 1997 में ठाणे म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन की सीट जिताने में दिघे ने पूरी मदद की. कहा जाता है कि दिघे ने शिंदे को ठाणे नगर निगम में सदन का नेता बना दिया था, साल 2000 में हुए हादसे में जब एकनाथ शिंदे के दोनों बच्चों की मौत हो गई थी तब आनंद दिघे ने ही शिंदे को सहारा दिया था और शिवसेना की राजनीति में स्थापित किया,

दिघे साहब की मृत्यु के बाद उन्ही के पदचिन्हों पर चलते हुए,ठाणे क्षेत्र में जन जन में शिंदे के लिए वही प्रेम है

जो दिघे साहब के लिए था,

आज उनकी प्रसिद्धि को देखकर,

उनके साथ भी वही सलूक हो रहा था , बस खिलाड़ी बदल गए हैं । इस बार भी मुम्बई का ठाकरे और ठाणे का ठाकरे हैं आमने सामने है , वर्चस्व और अस्तित्व की लड़ाई फिर से दोहराई जाएगी, या कर्मो का हिसाब बरोबर होगा

अभी देखना बाकी है ।

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