उदयपुर के कन्हैयालाल दर्जी की दिनदहाड़े गला काटकर हत्या करने की भयानक घटना से देश का बड़ा समूह उद्वेलित है। बड़ा समूह इसलिए कि हमारे देश में ऐसे लोग भी हैं जिन्हें इस हत्या के पीछे भी कन्हैयालाल तथा छोटे- बड़े स्तरों पर इस्लामी कट्टरवाद की आलोचना और हिंदुओं का समर्थन करने वालों में दोष दिखाई देगा। इसलिए वे इस घटना की आलोचना करेंगे, दोषियों को सजा देने की भी मांग करेंगे , किंतु इसके वास्तविक कारणों को स्वीकार नहीं कर दूसरे पक्ष में दोष ढूंढेंगे। न तो कन्हैयालाल को जिबह करने वाला रियास अख्तरी और गौस मोहम्मद इस सोच के दो ही है और न कन्हैयालाल उनके निशाने पर होने एकमात्र व्यक्ति। न जाने कितने रियास और गौस मजहब के नाम पर ऐसे ही अनेक कन्हैयालालों को जिबह करने के लिए तैयार बैठे हैं। कन्हैयालाल की हत्या ठीक वैसे ही है जैसे फ्रांस में 16 अक्टूबर, 2020 को सैमुअल पेटी शिक्षक का एक चेचेन मुसलमान जेहादी आतंकवादी ने सिर कलम कर दिया था। हत्यारा अब्दुलाख अबौयदोविच अंजोरोव को बताया गया था कि पेटी ने अपनी कक्षा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बोलते हुए छात्रों को शार्लो हेब्दो के 2012 के कार्टून दिखाए थे ,जिसमें पैगंबर मोहम्मद साहब की आपत्तिजनक छवि दिखाई गई थी। उसके बाद पेटी के विरुद्ध इसी तरह अभियान चलाए गए, जिस तरह इस समय भाजपा की नूपुर शर्मा, नवीन जिंदल और उनके समर्थकों को लेकर चलाया जा रहा है। बाद में पता चला कि जिस दिन पेटी द्वारा शार्लो हेब्दो का कार्टून दिखाने की बात थी उस दिन वो स्कूल गए ही नहीं थे। कन्हैयालाल को नूपुर शर्मा के पक्ष में एक फेसबुक पोस्ट लिखने के कारण जान गंवानी पड़ी। उस घटना के तुरंत बाद फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि यह विशिष्ट इस्लामी आतंकवादी हमला है और हम इसके सामने झुकेंगे नहीं। पूरे फ्रांस में लोगों ने बाहर निकलकर इसका विरोध किया और लाखों लोगों ने कहा कि हम भी सैमुअल पेटी हैं, आओ और हमारी भी हत्या करो। हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ । जांच से पता चला कि हत्या करने वाला अकेला नहीं इसके पीछे बड़ी साजिश थी और उसे सहायता की गई थी। ऐसे 10 लोगों पर साजिश में शामिल होने के खिलाफ मुकदमा चला। उस समय भी फ्रांस की मस्जिदों के अनेक इमामों, मौलानाओं ने हत्या की निंदा की और कहा कि इस्लाम में इसके लिए कोई स्थान नहीं है।
ठीक वैसा ही दृश्य भारत में है। जो लोग कल तक नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल को गुस्ताख ए रसूल घोषित कर रहे थे वो सब इस हत्या की निंदा में लग गए हैं। एक दिन पहले मोहम्मद जुबेर की गिरफ्तारी को मोदी सरकार की मुस्लिम विरोधी सोच का प्रमाण बताने वाले मुस्लिम चेहरे भी इसकी निंदा कर रहे हैं। प्रश्न है कि अगर ये सारे लोग इस तरह की हिंसा व हत्या के विरोधी हैं तो ऐसी स्थिति पैदा क्यों हुई जिसमें कन्हैयालाल की बलि चढ़ गई और न जाने कितनों की जान खतरे में हैं?
सच यह है कि सिर कलम करने का वातावरण बनाने और रियाज एवं गौस जैसों की जिहादी कट्टरता को परवान चढ़ाने के पीछे उन सारे मुस्लिम नेताओं, बुद्धिजीवियों , स्वयं को सेकुलर- लिबरल मानने वाले हिन्दू बुद्धिजीवियों ,पत्रकारों एक्टिविस्टों की भूमिका है जिन्होंने न केवल नूपुर शर्मा नवीन जिंदल प्रकरण को विकृत तरीके से पेश किया बल्कि लंबे समय से यह प्रचारित करते रहे हैं कि भारत में मुसलमानों के साथ शासन -प्रशासन दोयम दर्जे का व्यवहार कर रहा है , उनकी धार्मिक गतिविधियों तक को बाधित की जा रही है। किसी एक-दो मुस्लिम नेता, बुद्धिजीवी का नाम उल्लेख करने से कोई फायदा नहीं। क्या ऐसी संख्या हजारों लाखों में नहीं है जिन्होंने इस तरह लंबे समय से दुष्प्रचार किया मानो मुसलमान इस देश में मजहबी अल्पसंख्यक होने के कारण उत्पीड़ित हैं? क्या ज्ञानवापी पर न्यायालय के फैसले के बाद यह शोर नहीं मचाया गया कि हमारी सारी मस्जिदें छिन जाएंगी, नमाज पढ़ने पर बंदिशें लग जाएंगी? एक टीवी डिबेट की बहस में यह कहे जाने को कि आप हमारे देवी देवताओं के बारे में इस तरह बोलते हो अगर मैं आपको इस तरह कहूंगी तो कैसा लगेगा मोहम्मद साहब और इस्लाम के अपमान का इतना बड़ा मुद्दा बना दिया गया कि दुनिया भर में जिहादी सोच वालों को खाद पानी मिल गया। इस घटना की निंदा करने वाले में वे लोग भी हैं, जो उन विरोध प्रदर्शनों के नेतृत्वकर्ताओं में थे या भागीदार थे जिनमें बाजाब्ता बैनर लगे थे कि गुस्ताख ए रसूल की एक ही सजा सिर तन से जुदा सिर तन से जुदा और यही नारे भी लग रहे थे।
जब आप ऐसा माहौल बनाएंगे ,इस तरह के पोस्टर लेकर सड़कों पर निकलेंगे ,नारे लगाएंगे तो उसका हस्र यही होगा। सेकुलरवाद की विकृत सोच और वोट बैंक के कारण अनेक सरकारें ऐसी नीतियां अपनातीं हैं,जो व्यवहार में मुस्लिमपरस्त हो जाती हैं। कन्हैयालाल को धमकियां मिलती रही, पुलिस में शिकायत दी गई, पर वह इतना अरक्षित था कि जेहादी उसका सिर कलम कर चले गए। बाद में आप उसे पकड़कर सजा दे ही दीजिए इससे क्या होगा? ऐसी सोच वाले मजहब का फर्ज मना दुनिया भर में अपराध को अंजाम देते हैं और कभी ऐसे अपराधियों को अफसोस प्रकट करते नहीं देखा गया। अशोक गहलोत की सरकार अपने राज्य में बढ़ते मुस्लिम कट्टरवाद, जिहादी सोच के विस्तार की कोई शिकायत तक सुनने को तैयार नहीं। पहले हिंदू शोभा यात्राओं पर हमले हुए, करौली में दंगे हुए और उसका रवैया बदला नहीं। इसके पहले भीलवाड़ा के एक गांव में एक दलित युवक की मुस्लिम बस्ती में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की से प्यार कर बैठा था । लेकिन गहलोत आज भी मानने को तैयार नहीं कि उनके राज्य में इस्लामी कट्टरवाद जड़ जमा चुका है। उल्टे वे भाजपा – संघ को दोषी ठहराते हैं और इस मामले में तो उन्होंने स्वयं को दोषी मानने की बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से ही देश को हिंसा के विरुद्ध संबोधित करने की मांग कर दी। ऐसे लोगों से आप कट्टर जिहादी सोच के विरुद्ध संघर्ष की उम्मीद नहीं कर सकते। इससे ऐसे कट्टरपंथियों का मनोबल बढ़ता है। उत्तर प्रदेश में भी राजधानी लखनऊ में कमलेश तिवारी की ऐसी ही हत्या हुई थी। योगी आदित्यनाथ सरकार ने उसके बाद से लगातार सतर्क रहते हुए ऐसी कार्रवाई ना कर रही है जिनसे जिहादी कट्टरपंथियों का मनोबल हमेशा कमजोर रहता है। 10 जून को जुम्मे की नमाज के बाद सड़कों पर उतर कर की गई हिंसा पर आदित्यनाथ सरकार की कार्रवाई या सबके सामने है। लिबरल चेहरा लगाए इनके देश भर के समर्थकों द्वारा हाय तौबा मचाने तथा योगी आदित्यनाथ के मुस्लिम विरोधी होने के दुष्प्रचार ओं के बावजूद सरकार अपने रुख पर कायम है। गहलोत और दूसरी सरकारों के सामने भी यह एक उदाहरण है। लेकिन कोई इसका अनुसरण करने को तैयार नहीं।
दूसरी ओर पाकिस्तान के एक मुस्लिम पत्रकार ने तो यह कह दिया कि उन्हें पूरा वीडियो नहीं मिला लेकिन जितना वीडियो उन्होंने देखा उसके आधार पर सच यही है कि पहले मुसलमान डिबेटर ने हिंदू देवताओं को अपमानित कर भाजपा की प्रवक्ता को उकसाया। उसके अनुसार भाजपा की प्रवक्ता कह रही है कि मैं ऐसा कहूंगी तो आपको कैसा लगेगा और यह बताता है कि कैसे उसको उकसाया गया। लेकिन भारत के किसी मुस्लिम नेता, बुद्धिजीवी, मौलाना ने यह बात नहीं कही। उल्टे जुबेर की गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं मोदी सरकार के मुस्लिम विरोधी सोच का परिचायक बताया गया। फ्रांस में 2012 में शार्लो हाब्दे में मोहम्मद साहब पर छपे कार्टून को लेकर भी भारत में आक्रामक प्रदर्शन हुए। 7 जनवरी, 2015 को पत्रिका और उसकी जगह सुपर मार्केट में दो आतंकवादी हमलों में 17 लोगों के मारे जाने के बाद की डिबेट में भी मुस्लिम प्रवक्ताओं का पक्ष ऐसा ही था। वे हमले की जरूर निंदा कर रहे थे लेकिन कार्टून छापने के बारे में वक्तव्य ऐसे दे रहे थे जिससे भिन्न रूप में हमला न्या संगत साबित होता था। यही इस मामले में भी है।
आप झूठे और एकपक्षीय बातों से मजहबी उन्माद पैदा करने वाला वक्तव्य देंगे, सड़कों से लेकर सोशल मीडिया और मीडिया तक ऐसे बयान दिए जाएंगे तो उसका अच्छा परिणाम यही होगा। सिर कलम करने की इस घटना के बावजूद इनका व्यवहार बदला नहीं है। कैसे इनकी भूमिका से देश में मजहबी कट्टरता बढी और हमें खून व विध्वंस का शिकार होना पड़ा इसके कई उदाहरण है। उच्चतम न्यायालय ने अभी गुजरात दंगों के मामले में स्पष्ट कर दिया कि उसके पीछे तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार और उच्च स्तरीय प्रशासन का किसी प्रकार का षड्यंत्र नहीं था। म पिछले 20 वर्षों से यही प्रचारित किया गया कि गुजरात सरकार ने साजिश रचकर जानबूझकर मुसलमानों का नरसंहार कराया तथा प्रशासन को कोई कार्रवाई नहीं करने दी। इस अभियान को चलाने वालों ने पीड़ित मुसलमानों की झूठी कहानियां बनाकर ऐसे तथ्य व वीडियो दुनिया भर में भेजें। सितंबर 2002 में गांधीनगर के अक्षरधाम पर हुए आतंकवादी हमले के बाद से अनेक वर्षों तक के हमलों में पकड़े गए आतंकवादियों का बयान यही होता था कि गुजरात में मुसलमानों के कत्लेआम से उनके अंदर गुस्सा था और बदला लेने उन्होंने ऐसा किया है। क्या इनमें से कोई यह स्वीकार करेगा कि इस दौरान जितने भी आतंकवादी हमले हुए जो उनके ये भी अपराधी हैं? इसी तरह बाटला हाउस मुठभेड़ को झूठा करार देने वाले लेख, वीडियो, तकरीरें हजारों की संख्या में देश और दुनिया भर में गई। इसके प्रतिशोध में मुस्लिम युवकों के एक समूह ने इंडियन मुजाहिदीन संगठन बनाया तथा अनेक आतंकवादी हमले किए। राजधानी दिल्ली भी इनके हमलों का शिकार हुआ। वे सब लोग हमलों की आलोचना जरूर करते थे लेकिन कभी नहीं सोचा कि बाटला हाउस मुठभेड़ को गलत बताने और उसे हिंदू मुस्लिम भावना के रूप में प्रचारित किया जाना ही इन हमलों के पीछे एकमात्र कारण है।
इसलिए इनकी आलोचना या निंदा के मायने तब तक नहीं होंगे जब तक ये स्वयं को दोषी मानकर अपना व्यवहार पूरी तरह नहीं बदलते। ऐसा होना नहीं है। दुर्भाग्य से नूपुर शर्मा प्रकरण को भाजपा ने भी बिल्कुल गलत तरीके से हैंडल किया। अपने सारे प्रवक्ताओं को टीवी पर भेजना बंद कर दिया। ठीक यही व्यवहार भाजपा का कन्हैयालाल हत्या प्रकरण में भी रहा। फ्रांस हमारे सामने एक उदाहरण है जो अनेक आतंकवादी हमला झेलने के बावजूद नहीं झुका। आवश्यकता पड़ने पर फ्रांस से दूर आतंकवादियों के ठिकाने तक पर हवाई बमबारी कर दी। लेकिन यह तभी हुआ जब वहां की जनता खुलकर ऐसी जिहादी सोच और आतंकवाद के विरुद्ध सड़कों पर आई। भारत की समस्या यह है विरोध करने वाले स्वयं को सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकालने तक सीमित है। कुछ लोग गुस्से में आकर तोड़फोड़ ,आगजनी, हिंसा करने लगते हैं। तोड़फोड़, आगजनी, हिंसा से हम उन्हीं आतंकवादियों और अपने कट्टर इस्लामी सोच के ऊपर लिबरलवाद का चेहरा लगाए लोगों के कुत्सित इरादों को ही सफल करेंगे। ये तो चाहते हैं कि देश में हिंदू मुस्लिम तनाव बढ़े, सांप्रदायिक दंगा हो, हिंसा व आगजनी चारों ओर फैले ,देश अस्तव्यस्त हो और इन्हें प्रचारित करने का मौका मिले कि मोदी सरकार में मुसलमानों की दुर्दशा है ,कानून और व्यवस्था विफल है। फ्रांस के लोगों ने विरोध में हिंसा नहीं की। साहस के साथ जब भी हमले हुए सड़कों पर उतरे, अहिंसक प्रदर्शन किया। यही भारत में किये जाने की जरूरत है। अहिंसक आक्रोश प्रदर्शनों के द्वारा इनका प्रतिकार भी होगा एवं सरकारों पर कठोर कार्रवाई का दबाव बढ़ेगा तथा सेकुलर लिबरल चेहरे लगाए हिंदू मुस्लिम नेताओं, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, एक्टिविस्टों, मौलानाओं आदि के अंदर भी व्यापक जन विरोध का डर पैदा होगा। अगर उदयपुर की पुनरावृति रोकनी है तो आम जन को संगठित होकर सामने आना होगा। नूपुर शर्मा प्रकरण को भी सही तरीके से देश और दुनिया के सामने रखे जाने की जरूरत है। दुनिया को यह पता तो चले कि उसी डिबेट में बैठे दो मुसलमान किस तरह हिंदू देवता का अपमान कर रहे हैं और भारत के किसी हिंदू ने उनका सर तन से जुदा करने की मांग नहीं की। बहस का जवाब बहस और जनता का अहिंसक प्रतिरोध होता है ,सिर कलम करना आतंकवादी हमला करना नहीं।