आदरणीय जज साहब मैं पूछना चाहती हूं आपसे कि_
१_नूपुर शर्मा जी के सामने जो बंदा बैठकर डिबेट कर रहा था वो भगवान शंकर जी की प्रशंसा कर रहा था या ओम नमः शिवाय का जाप कर रहा था! उससे हमारी धार्मिक भावनाएं नहीं आहत हुई क्योंकि हम सिर बदन से जुदा नहीं करते तो हमारी भावनाएं _भावनाएं नहीं है??
२_देश में जो अशांति फैल रही है वह आज की बात नहीं है, उसकी जिम्मेदार नूपुर शर्मा नहीं हो सकती। नूपुर शर्मा के माफी मांगने के बाद उदयपुर वाली घटना हुई। अगर माफी मांग ली गई थी तो फिर यह घटना क्यों हुई ? और अगर मान भी लिया जाए कि किसी के दिए गए किसी वक्तव्य से अशांति फैल भी गई तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसको सामूहिक बलात्कार करने की धमकियां दी जाएं और कोर्ट के जज बैठकर उस धमकी के बारे में यह बोले कि यह उसकी गलती थी इसलिए यह धमकी मिली यह बात मेरी समझ से बाहर है!
३_अभी शिव सेना भी डायरेक्ट सुप्रीम कोर्ट गई थी, और यह पहला केस नहीं है कई ऐसे केस हैं जिसमें पहले सुप्रीम कोर्ट जाया गया तो इसका क्या मतलब निकाला जाए? आपकी नजरों में या जजमेंट में!
४_माफी कब मांगी यह आवश्यक है या माफी मांगी है ये आवश्यक है ? आपको यह तो दिख रहा है कि सामने वाले ने माफी तब मांगी जब माहौल खराब हुआ पर यह नहीं दिख रहा कि दूसरे पक्ष के वक्ता ने तो अभी तक माफी मांगी ही नहीं और ना ही आपने आवश्यक समझा कि आप उससे भी बोलें कि दोनों वक्ताओं को दोनों ही धर्म के अनुयायियों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए व देश के सौहार्द और शांति को बनाए रखने के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए, पर आपने यह बोलना आवश्यक नहीं समझा, क्यों ? क्योंकि दूसरे पक्ष के लोगों की भावनाएं आपके लिए मायने नहीं रखती!
५_क्या आपको नहीं लगता जज साहब, कि नूपुर शर्मा के साथ साथ उस व्यक्ति को भी जो उनके साथ डिबेट पर बैठा था उसे भी हिंदू देवी देवताओं के लिए बोली गई अभद्र टिप्पणी पर माफी मांगनी चाहिए? ये दोहरा मापदंड क्यों? क्योंकि हिंदू सर तन से जुदा बाली नीति पर नहीं चलता.. वास्तव में आपकी कही गई बातें यह सिद्ध करती हैं कि आप में न्याय देने की योग्यता है ही नहीं! वह कोई भ्रष्ट तंत्र है जिसके कारण आप वर्तमान में अपनी कुर्सी और वेतन का आनन्द ले रहे हैं।