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दुनिया का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास ‘रिम्पैक’

दुनिया का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास ‘रिम्पैक’

by प्रमोद जोशी
in जुलाई -२०२२, ट्रेंडींग, विशेष, सामाजिक
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वैसे तो प्रशांत महासागर क्षेत्र में होने वाला रिम्पैक युद्धाभ्यास 1971 से हो रहा है लेकिन इस वर्ष उसका सामरिक महत्त्व बढ़ गया है।  26 देशों का यह संयुक्त नौसेना अभ्यास चीन के आक्रामक रुख के खिलाफ एक घेराव साबित होगा।

यूक्रेन पर रूसी हमले के इस दौर में दुनिया का ध्यान यूरोप पर है, पर अंदेशा इस बात का भी है कि हिंद-प्रशांत में भी किसी भी समय टकराव की स्थितियां पैदा हो सकती हैं। हाल में चीन और रूस के विमानों ने जापान के आसपास के आकाश पर उड़ानें भरकर अपने इरादे जाहिर किए हैं। यूक्रेन में रूसी कार्रवाई की देखादेखी चीन भी ताइवान के खिलाफ कार्रवाई करने के संकेत दे रहा है। ताइवान से लेकर पूर्वी लद्दाख तक अपने पड़ोसी देशों को आंखें दिखा रहे चीन को उसके घर में ही घेरने की तैयारी शुरू हो गई है।

29 जून से 4 अगस्त के दौरान प्रशांत महासागर क्षेत्र में होने वाला रिम्पैक नौसैनिक युद्धाभ्यास चीन के लिए गम्भीर चुनौती का काम करेगा। भारतीय नौसेना और स्क्वाड के अन्य देशों के अलावा हमारे पड़ोस और दक्षिण चीन सागर से जुड़े, जो देश इसमें भाग ले रहे हैं उनमें फिलीपींस, ब्रूनेई, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और श्रीलंका के नाम उल्लेखनीय हैं। दुनिया का यह सबसे बड़ा युद्धाभ्यास चीन को घेरने और उसे कठोर संदेश देने की कोशिश है। यह युद्धाभ्यास सन 1971 से हो रहा है। इस साल इसका 28वां संस्करण होगा, पर वैश्विक स्थितियों को देखते हुए इस साल अभ्यास का विशेष महत्व है।

रिम्पैक युद्धाभ्यास

रिम ऑफ द पैसिफिक एक्सरसाइज़ को संक्षेप में रिम्पैक कहते हैं। दो साल में एकबार होने वाला यह युद्धाभ्यास अमेरिका के पश्चिमी तट पर प्रशांत महासागर में होनोलुलु, हवाई के पास जून-जुलाई में होता है। इसका संचालन अमेरिकी नौसेना का प्रशांत बेड़ा करता है, जिसका मुख्यालय पर्ल हार्बर में है। इसका साथ देते हैं मैरीन कोर, कोस्ट गार्ड और हवाई नेशनल गार्ड फोर्स। हवाई के गवर्नर इसके प्रभारी होते हैं।

हालांकि यह युद्धाभ्यास अमेरिकी नौसेना का है, पर वे दूसरे देशों की नौसेनाओं को भी इसमें शामिल होने का निमंत्रण देते हैं। इसमें प्रशांत महासागर से जुड़े इलाके के देशों के अलावा दूर के देशों को भी बुलाया जाता है। पहला रिम्पैक अभ्यास सन 1971 में हुआ था, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, युनाइटेड किंगडम, और अमेरिका की नौसेनाओं ने भाग लिया। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका ने तबसे अबतक हरेक अभ्यास में हिस्सा लिया है। इसमें शामिल होने वाले अन्य नियमित भागीदार देश हैं, चिली, कोलम्बिया, फ्रांस, इंडोनेशिया, जापान, मलेशिया, नीदरलैंड्स, पेरू, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, और थाईलैंड। न्यूजीलैंड की नौसेना 1985 तक नियमित रूप से इसमें शामिल होती रही। एक विवाद के कारण कुछ साल तक वह अलग रही, फिर 2012 के बाद से उसकी वापसी हो गई। पिछले कई वर्षों से भारतीय नौसेना भी इसमें शामिल होती है। चीन की नौसेना ने भी 2014 में रिम्पैक अभ्यास में पहली बार हिस्सा लिया था, लेकिन 2018 में अमेरिका ने चीनी नौसेना को इसमें शामिल होने का निमंत्रण नहीं दिया। अमेरिका ने कहा कि चीन दक्षिण चीन सागर में विवादित द्वीपों पर तेजी से फौजी तैयारी कर रहा है।

25,000 सैनिक

अमेरिका के हवाई द्वीप समूह और दक्षिण कैलिफोर्निया क्षेत्र में होने वाले इस युद्धाभ्यास में भारत सहित 26 देशों की नौसेनाएं भाग लेंगी। इसबार के युद्धाभ्यास में 38 युद्धपोत, चार पनडुब्बियां और 170 से ज्यादा विमान शामिल होंगे। इनके अलावा नौ देशों की थलसेनाएं भी इसमें शिरकत करेंगी। कुल मिलाकर इसमें 25,000 से ज्यादा सैनिक हिस्सा लेंगे। इस युद्धाभ्यास में जो 26 देश भाग ले रहे हैं, उनके नाम हैं अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूके, जर्मनी, नीदरलैंड्स, कनाडा, फ्रांस, भारत, चिली, इक्वेडोर, इंडोनेशिया, डेनमार्क, टोंगा, इजराइल, कोलम्बिया, जापान, ब्रूनेई, मलेशिया, मैक्सिको, कोरिया गणराज्य, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, पेरू, फिलीपींस, श्रीलंका और थाईलैंड।

युद्धाभ्यास के मेजबान अमेरिकी प्रशांत-फ्लीट के कमांडर होंगे और नेतृत्व अमेरिका के तीसरे बेड़े के कमांडर के हाथों में होगा। ये दोनों इस अभ्यास के कम्बाइंड टास्क फोर्स कमांडर होंगे। इस अभ्यास का उद्देश्य समुद्र मार्गों की सुरक्षा बनाए रखने के लिए तमाम सेनाओं के बीच परस्पर सम्पर्क, समन्वय स्थापित करने के लिए प्रशिक्षण देना है। इस दौरान आपदा राहत, समुद्री-नियंत्रण, समुद्री-सुरक्षा ऑपरेशंस तथा दूसरे किस्म के युद्धों का अभ्यास किया जाएगा। इसमें माइंस क्लियरेंस, एम्फीबियस ऑपरेशंस, तोपों का संचालन, एंटी-सबमरीन, एयर-डिफेंस, एंटी-पायरेसी ऑपरेशंस, डाइविंग तथा गोला-बारूद के रख-रखाव से जुड़े अभ्यास शामिल होंगे।

आक्रामक चीन

ताजा खबर है कि चीन ने कंबोडिया में नौसैनिक अड्डा बनाना शुरू कर दिया है। हालांकि कंबोडिया और चीन दोनों ने ही नौसैनिक अड्डे के आरोप को खारिज किया है, पर खबरें हैं कि गत 8 जून को वहां निर्माण कार्य शुरू हो गया है। इस निर्माण कार्य के शुरू होने के दौरान कंबोडिया के रक्षा मंत्री टीआ बान्ह और चीन के राजदूत वांग वेनतियान मौजूद थे। इस नौसैनिक बेस पर युद्धपोतों की मरम्मत, ड्राई डॉक, बालू को समुद्र से हटाने के उपकरण तैनात होंगे। चीन ने इसके लिए बड़ी-बड़ी मशीनों को नेवल बेस पर तैनात किया है। कंबोडिया में बन रहा यह नौसैनिक अड्डा भारत के लिए भी बड़ा खतरा बनेगा। इस अड्डे से भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह की दूरी मात्र 1200 किमी है। अंडमान में ही भारत की तीनों सेनाओं की संयुक्त कमान स्थित है। अफ्रीका के जिबूती के बाद चीन का विदेश में यह दूसरा नौसैनिक अड्डा होगा। इस दौरान प्रशांत महासागर के सोलोमन द्वीप में भी वह अड्डा बनाने का प्रयास कर रहा है।

हाल में ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस में नए शासनाध्यक्ष चुनाव जीतकर आए हैं। दोनों ने ही चीन के आक्रामक रुख की आलोचना की है। कुछ समय पहले ही चीन ने दक्षिण चीन सागर में ऑस्ट्रेलिया के पी-8 विमान के टोही मिशन में अवरोध डालने का प्रयास किया था। इसपर ऑस्ट्रेलिया के नए प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानेस ने अपनी नाराजगी प्रकट की है। वहीं फिलीपींस के नए राष्ट्रपति फर्दिनांद मार्कोस जूनियर ने राष्ट्र के नाम अपने पहले संदेश में इस बात को रेखांकित किया है कि सन 2016 में संरा न्यायाधिकरण द्वारा दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस के पक्ष में किए गए फैसले के मामले में हम किसी प्रकार का समझौता नहीं करेंगे।

इधर अमेरिका के हिंद-प्रशांत क्षेत्र के कमांडर एडमिरल जॉन सी एक्विनो ने कहा है कि चीन ने दक्षिण चीन सागर क्षेत्र के अनेक द्वीपों का सैन्यीकरण किया है। उसने तमाम विवादास्पद द्वीपों पर लेजर और जैमिंग उपकरण लगाए हैं, लड़ाकू विमान तैनात किए हैं और एंटी-शिप और एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल तैनात किए हैं। इसके अलावा चीन अपने सैनिक अड्डों का विस्तार कर रहा है। हाल में एक वीडियो जारी हुआ है, जिसमें दिखाया गया है कि कैथी पैसिफिक एयरलाइंस का एक यात्री विमान किस तरह से एक मिसाइल की मार में आने से बचा। यह मिसाइल चीनी नौसेना के युद्धाभ्यास के दौरान छोड़ा गया था। विशेषज्ञों के मुताबिक यह अभ्यास ऐसे समय पर होने जा रहा है जब अमेरिका चीन के साथ मोर्चा लेने के लिए अपने गठबंधन को मजबूत बनाने में लगा हुआ है। अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने नया सैनिक-समझौता ऑकस किया है ताकि चीन के प्रभाव को कम किया जा सके। उधर, क्वॉड से जुड़े देशों ने भी कहा है कि वे चीन के जहाजों पर सैटेलाइट से नजर रखेंगे।

भारत की भूमिका

अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने सिंगापुर में हुए शांग्रीला डायलॉग में चीन पर निशाना साधा। उन्होंने इस सिलसिले में खासतौर से भारत का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि, ‘भारत की बढ़ती सैन्य क्षमता और तकनीकी कौशल हिंद प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता के लिए जरूरी है।’ भारत की बढ़ती ताकत हिंद प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता लाएगी। लॉयड ऑस्टिन ने कहा कि चीन लगातार एशिया के अन्य देशों के खिलाफ आक्रामक रुख अपना रहा है। इससे सिर्फ तनाव बढ़ेगा। ताइवान और दक्षिण चीन सागर के क्षेत्र में चीन की नौसेना का बढ़ता प्रभाव एक चिंता का विषय है। ऑस्टिन ने कहा कि अमेरिका ताइवान समेत अपने मित्र राष्ट्रों के साथ हमेशा खड़ा है। जबकि चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। वह चेतावनी दे चुका है कि अगर जरूरत पड़ी तो वह जबरन उसे अपने में मिला लेगा।

लॉयड ऑस्टिन ने कहा कि हम नई क्षमताओं को विकसित करने के लिए मेहनत कर रहे हैं। इनमें मानव रहित विमान, लांग-रेंज मिसाइल शामिल हैं। ये आक्रामकता को रोकने में मदद करेंगे। उन्होंने कहा कि हम उच्च ऊर्जा वाले लेजर हथियारों का प्रोटोटाइप बनाने की ओर बढ़ रहे हैं जो मिसाइलों को तबाह कर सकते हैं।

इस युद्धाभ्यास में जो 26 देश भाग ले रहे हैं, उनके नाम हैं अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूके, जर्मनी, नीदरलैंड्स, कनाडा, फ्रांस, भारत, चिली, इक्वेडोर, इंडोनेशिया, डेनमार्क, टोंगा, इजराइल, कोलम्बिया, जापान, ब्रूनेई, मलेशिया, मैक्सिको, कोरिया गणराज्य, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, पेरू, फिलीपींस, श्रीलंका और थाईलैंड।

 

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