मर्द का दर्द

महिलाएं लम्बे समय तक हाशिए पर रही थीं इसलिए उनके विकास के लिए तमाम कानून और आयोग बनाए गए लेकिन अब बहुत सारी महिलाएं उनका दुरुपयोग कर पुरुषों को प्रताड़ित कर रही हैं। आवश्यकता है कि एक बार फिर उन नियमों की समीक्षा की जाए तथा कुछ ऐसे भी नए कानून बनें कि पुरुषों के साथ न्याय हो सके।

पुरुष यानी मर्द आत्महत्या क्यों करते हैं? ऐसी क्या मज़बूरी, पीड़ा उन्हें होती हैं जिसके कारण उन्हें अपनी जीवनलीला समाप्त करना ही अंतिम एवं बेहतर विकल्प लगने लगता हैं। कौन कहता हैं कि मर्द को दर्द नहीं होता, कभी उनसे बात करके तो देखिये तब पता चलेगा कि कितने दर्द को दिल में दबाए वह जी रहे हैं। लोक लाज, समाज के डर से वे अपने दिल का हाल आसानी से किसी को सुना भी नहीं सकते। यदि वह आत्महत्या नहीं भी करते तो भी वे हार्ट अटैक की जद में हमेशा रहते हैं। यदि अब भी पुरुष की व्यथा नहीं सुनी गई और उनकी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं दी गई तो एक स्वस्थ परिवार एवं समाज के लिए यह खतरे की घंटी हैं।

पुरुष हो रहे घर और बाहर हिंसा के शिकार

पुरुष अपने परिवार के लिए जीते और मरते हैं। दूसरा परिवार होता हैं उनका कार्यालय, जहां वे अपने घर से भी अधिक समय देते हैं। पुरुष जिनके साथ रहते हैं और जिन्हें अपना मानते हैं, वहीं अगर अचानक किसी बात से नाराज होकर उन पर झूठे, आधारहीन आरोप लगा दे, फर्जी मामला दर्ज करा दे फिर चाहे वह घर में हो, ऑफिस में हो या बाहर तो ऐसे में उन पुरुषों पर क्या बीतती होगी। क्या इसकी कल्पना कर सकते हैं? वह किस तरह तनाव भरा जीवन जीते होंगे? उनके मन में किस तरह निराशा, हताशा और नकारात्मकता की लहरें उफान मारती होंगी? जरा सोचिये, जिस पर आप विश्वास करते हैं वही आपके साथ अचानक विश्वासघात कर दे, तब आपको कैसा लगेगा?

सबला नारी बजा रही पुरुषों का तबला

तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में आमूलचूल परिवर्तन हो रहे हैं। घरेलू हिंसा के मामले में पहले पति अपनी पत्नी पर रौब झाड़ा करते थे अब पत्नी भी उससे आगे बढ़ कर केवल पति ही नहीं बल्की पूरे परिवार को परेशान कर रही है। पति एवं उसके परिजनों को ताने देना, बुजुर्ग सास-ससुर से बदतमीजी करना, पति के सामने बच्चों को गाली-गलौज और मारना पीटना, घरेलू सामान से हमला करना, अभद्र व्यवहार, दांतों से काटना, बाल नोंचना, बात-बात में बहस करना या बिना बात में भी झगड़ा करना आदि से महिला सशक्तिकरण का परिचय देते हुते पत्नियां सिद्ध कर रही हैं कि अब वे आत्मनिर्भर हो चुकी हैं। अब वे अबला नहीं सबला हैं और इससे आगे बढ़ कर पुरुषों का ही तबला बजा रही हैं।

• घरेलू हिंसा मामले में पुरुषों के उत्पीड़न को लेकर मद्रास हाईकोर्ट की एक टिप्पणी  के बाद बहस शुरू हो गई है। जिसके बाद से ही यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या पुरुष भी महिलाओं द्वारा घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं? आइए इस सम्बन्ध में कुछ मामलों पर नजर डालते हैं।

• हरियाणा के हिसार में रहने वाले एक व्यक्ति का वजन विवाह के उपरान्त कथित तौर पर पत्नी के अत्याचार के कारण 21 किलो घट गया। इसी के आधार पर उसे हाईकोर्ट से तलाक की मंजूरी मिल गई।

• वर्ष 2018 में कानपुर के पुलिस अधीक्षक (पूर्वी) के पद पर तैनात रहे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी सुरेन्द्र कुमार दास की जहरीला पदार्थ खाने से मृत्यु हो गई। जांच में घरेलू कलह के कारण आत्महत्या की बात सामने आई।

• वर्ष 2017 में बिहार के आइएएस अधिकारी मुकेश कुमार ने पत्नी से विवाद के कारण गाजियाबाद रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन से कटकर अपनी जान दे दी थी। सुसाइड नोट में लिखा था कि वह अपनी पत्नी और अपने मां-बाप के बीच हो रहे झगड़े से बेहद परेशान थे।

• मेरठ में एक महिला ने सरकारी अस्पताल में डॉक्टर से जांच कराकर सर्टिफिकेट बनवाया और थाने जाकर पति के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी। पुलिस ने उसके पति को उठा कर जेल में डाल दिया। बाद में जांच में सामने आया कि पत्नी के गैरमर्द से अवैध सम्बंध थे। पति को जब मालुम चला और उसने इसका विरोध किया तब उसने झूठा मामला दर्ज करवा दिया।

• उत्तराखंड के खटीमा में पत्नी और सास-ससुर पर उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए सचिन रस्तोगी नामक युवक ने पुलिस से शिकायत की थी लेकिन पुलिस ने कार्रवाई नहीं की, जिससे निराश होकर उसने आत्मदाह कर लिया। इस मामले में पुलिसकर्मियों के खिलाफ धारा 306 के तहत मुकदमा दर्ज करने की मांग शासन से की गई है।

महिलाओं द्वारा पुरुष उत्पीड़न 

परामर्श केन्द्रों के आंकड़े की माने तो पुरुष भी महिलाओं द्वारा उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं। घरेलू हिंसा से सम्बंधित शिकायतों में लगभग 40 प्रतिशत शिकायतें पुरुषों ने की हैं। रिसर्च में यह साबित हुआ हैं कि वायलेंट रिलेशनशिप में महिलाओं के एग्रेसिव होने की आशंका पुरुषों जितनी ही हैं। वर्ष 2018 में व्हेन वाइफ बीट्स देयर हसबैंड, नो वन वांट्स टू बिलीव इट नामक शीर्षक से प्रकाशित लेख में कैंथी यंग ने इससे सम्बंधित कई रिसर्च का जिक्र किया है।

घरेलु हिंसा कानून से पुरुषों को सुरक्षा क्यों नहीं दी जाती?

कई संस्थाओं के सर्वे के अनुसार अधिकतर पुरुष आत्म सम्मान के चलते अपनी पत्नी की शिकायत नहीं कर पाते। अगर कोई मामला गंभीर होने पर हिम्मत करके पुलिस को शिकायत करता भी हैं तो अक्सर पुलिस ही उसका मजाक उड़ाकर और उसे डरा धमाका कर वापस भेज देती हैं। इस संदर्भ में तथ्य और आंकड़े इतने अधिक हैं कि यहां लेख का विस्तार अधिक होगा। घरेलु हिंसा से सुरक्षा का लाभ केवल महिलाओं को ही मिलता है, उसका पुरुषों को कोई लाभ नहीं मिलता।

महिलाओं की तुलना में पुरुष करते हैं अधिक आत्महत्या

जब संविधान लिंग, जाति, भाषा और धर्म के आधार पर किसी तरह का भेदभाव स्वीकार नहीं करता तो घरेलू हिंसा सुरक्षा अधिनियम से पुरुषों को सुरक्षा क्यों नहीं दी जाती? जबकि विकसित देशों में जेंडरलेस कानून वहां के पुरुषों को न केवल महिलाओं की तरह घरेलु हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता हैं बल्कि इस बात को भी स्वीकार करता हैं कि पुरुष भी प्रताड़ित होते हैं। नेशनल क्राईम रिकोर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट की माने तो महिलाओं की तुलना में पुरुष अत्यधिक आत्महत्या करते हैं। इसका एक मुख्य कारण परिवार में चल रही कलह और रिश्तों से उपजा डिप्रेशन भी हैं।

पुरुष आयोग की मांग को लेकर ढाई हजार किलोमीटर पैदल यात्रा पर निकला पीड़ित पति

कर्नाटक के एक छोटे से गांव तेलसंग के रहने वाले प्रोफेसर डॉ. संतोष कुमार पोतदार पुरुष आयोग बनवाने की मांग को लेकर ढाई हजार किलोमीटर यात्रा पर निकल पड़े। वर्ष 2005 में उनकी शादी हुई थी लेकिन पत्नी का चालचलन ठीक नहीं होने से उन्होंने तलाक का केस दायर कर दिया, जिसके खिलाफ पत्नी ने इन पर दहेज मांगने का केस कर दिया। लगभग 7 वर्षों तक कोर्ट में केस लड़ने के बाद वह जीत गए और 498 – ए का मुकदमा झूठा निकला लेकिन इस दौरान उनकी जिंदगी बर्बाद हो गई। इसलिए उन्होंने देश के अन्य पीड़ित पुरुषों को झूठे मामलों से बचाने के लिए पैदल यात्रा की मुहिम पर निकलने का संकल्प लिया।

संतोष कुमार का कहना है कि जिस तरह से महिलाओं के पीड़ित होने पर कानूनी अधिकार मिलते है उसी तरह पुरुषों को भी मिलना चाहिए ताकि समाज में महिलाओं द्वारा पुरुषों को प्रताड़ित ना किया जा सके और झूठा केस साबित होने पर शिकायती महिला पक्ष को उतनी ही सजा मिलनी चाहिए जितना कि दोष साबित होने पर पुरुष को दी जाती।

पुरुष भी अब खुद को लाचार और असुरक्षित समझने लगे हैं

जिस तरह घरेलू हिंसा अधिनियम पुरुषों की अनदेखी करता हैं उसी तरह कार्यालयीन नियम भी निष्पक्ष नहीं होते हैं। पुरुषों का भविष्य केवल मैनेजमेंट के दया, करुणा और न्यायसंगत निर्णय पर ही निर्भर होता हैं। इसलिए पुरुष भी अब खुद को लाचार और असुरक्षित समझने लगे हैं। स्मरण रहे महिलाओं की सुरक्षा के लिए पुरुषों ने पहल भी की है और उनका समर्थन भी किया है, लेकिन अब पुरुष सुरक्षा के लिए महिलाओं को भी आगे आकर पहल करनी चाहिए।  महिलाओं द्वारा प्रताड़ित होने पर समाज इसे नजरअंदाज कर देता हैं। पुरुष यदि किसी लड़की या महिला की शिकायत करना भी चाहे तो वह किससे करे? कहना भी चाहे तो किसे कहें? महिलाएं तो अपनी शिकायत कह सकती हैं लेकिन पुरुष अपनी तकलीफ किसे सुनाए? हालांकि इस तरह की हरकतों में पुरुष भी पीछे नहीं हैं। कमोबेश यह स्थिति पुरुष-महिला दोनों में सामान्य रूप से देखी जा रही हैं। खासकर शहरों, नगरों में खुला वातावरण, स्वतंत्रता, स्वछंदता मिलने से यह बदलाव देखे जा रहे हैं। फिर भी इनका प्रमाण बहुत कम हैं। पहले लडकियां छेडे जाने पर कहती थीं ‘क्या तेरे घर मां-बहन नहीं हैं’। अब लड़कियों द्वारा छेड़ने पर लड़के कहते हैं ‘क्या तेरे घर बाप-भाई नहीं हैं’। जब महिलाओं में इतना परिवर्तन आ चुका है तो क्या कानून में समय के साथ परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए?

महिलाएं कर रही हैं नियम-कानून का दुरूपयोग

बॉयफ्रेंड बनाना, लिव इन रिलेशनशिप में रहना और छोड़ना आए दिन की बात हो चली हैं। जब तक मजे करना हैं तब तक साथ में रहो और जब बात बिगड़ जाये तो यौन शोषण, बलात्कार, छेड़छाड़, अपहरण आदि अनेकों मामलों में फंसा दो। कुछ ऐसा ही घरेलु मामलों में भी होता आया हैं। दहेज जैसे कानूनों के दुरूपयोग के मामले किसी से छुपे हुए नहीं हैं।

न्यायालय में अधिकतर मामले हुए फर्जी साबित

घरेलु झगड़ो को बढ़ाचढ़ाकर अपराध बना दिया जाता हैं। अधिकतर महिलाएं छोटी-छोटी बात पर खुद मरने-मारने या झूठे केस में पति व् परिवार को फंसाने, तलाक देने की धमकी देती रहती हैं। कई बार पड़ोसी के साथ झगड़ा बच्चों को लेकर शुरू होता हैं और आगे जाकर छेड़छाड़, मारपीट, चोरी, बलात्कार जैसे मामलों में परिवर्तित हो जाता हैं। इसके अलावा आर्थिक व्यवहार, जमीन, जायदाद, रंजिश निकालने और तरह-तरह से परेशान करने के लिए झूठे मुकदमें दर्ज किये और कराये जाते हैं। ऐसे मामलों की कोर्ट कचहरी में भरमार हैं। न्यायालय में अधिकतर मामले फर्जी साबित हुए हैं। इससे यह स्पष्ट हो गया हैं कि महिलाओं के सुरक्षा हेतु बनाये गए कानून का महिलाये बड़ी मात्रा में दुरूपयोग कर रही हैं।

पुरुष आयोग एवं पुरुष मंत्रालय बनाने की मांग

यदि महिलाओं के साथ अन्याय, अत्याचार होता हैं तो दुनिया भर के महिला आयोग, मानव अधिकार, नारीवाद के पैरोकार आदि अनेकानेक महिला झंडाबरदार संगठन, संस्था खड़े हो जाते हैं लेकिन यदि पुरुषों के साथ अत्याचार- अन्याय हो तो उनके साथ खड़े होने वाले तो छोड़ो सुनने वाला भी कोई नहीं हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए तो अनेक नियम-कानून बने हुए हैं, जिनका वह अपनी सुरक्षा के लिए नहीं अपितु पुरुषों को प्रताड़ित करने के लिए दुरूपयोग कर रही हैं।

भारत में बाल, महिला, बुजुर्ग और यहां तक की जीव-जंतु, जानवर, जल, जंगल, जमीन, वृक्ष, पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भी कानून, आयोग, मंत्रालय बने हुए हैं परन्तु पुरुषों की सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं। क्या उनकी सुरक्षा कोई मायने नहीं रखती। हाल के कुछ वर्षों में महिलाओं द्वारा पुरुषों पर अत्याचार, क्रूरता के मामले तेजी से लगातार बढ़ते जा रहे हैं जिससे त्रस्त होकर पीड़ित पुरुषों ने भी लामबंद होकर अपना दर्द बयां किया है और पुरुष आयोग एवं पुरुष मंत्रालय बनाने की मांग कर रहे हैं। वैसे स्त्री-पुरुष समानता की बात की जाती हैं, लिंग भेद को समाप्त करने की बात कही जाती हैं, तो फिर पुरुषों को न्याय देने में भेदभाव क्यों ?

बदलनी होगी समाज की पुरुष विरोधी सोच

पुरुषों के साथ होने वाले उत्पीड़न, उन पर लगनेवाले झूठे आरोपों के निदान और पुरुष आयोग की मांग लम्बे अरसे से की जाती रही हैं ताकि वह भी अपनी बात किसी के सामने कह सके, अपनी शिकायत दर्ज करा सके। महिला सुरक्षा से किसी को आपत्ति नहीं हैं लेकिन कानून का जिस तरह से दुपयोग हो रहा हैं, जिनमें एकतरफा केवल महिलाओं की बात को ही सत्य मानकर उसे महत्व दिया जा रहा हैं, यह बिलकुल न्यायसंगत नहीं हैं। महिला हो या पुरुष समान न्याय सभी को मिलना ही चाहिए। पुरुष विरोधी सोच बदलने के लिए कई संस्थाएं मिलकर काम कर रही हैं। हर बार दोष पुरुषों का ही नहीं होता बल्कि महिलाएं भी अपराध जगत में तेजी से आगे बढ़ रही हैं।

 

This Post Has 2 Comments

  1. Anonymous

    इस लेख में लिखी गई बात बिलकुल सही है परंतु इतना सब होने के बाद भी कानून महिलाओं की तरफ ही जाता है । जब की हकीकत यह है की महिलाओं के द्वारा झूठे आरोपों के कारण अनेक पुरुष रोजाना आत्महत्या कर रहे है उनकी खबर तक भी न्यूज पर नही आती 🙏🙏

  2. Rukmani Singhal

    Purush utpidan per bhi Kanoon Banna chahie main iska samarthan Karti hun hamesha purush hi galat nahin hota hai purushon ko bhi apni Suraksha ka Adhikar Diya jaaye

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