स्मार्टफोन बना रहा बच्चों को हिंसक

आजकल स्मार्टफोन जीवन की आवश्यकता से आगे बढ़कर लोगों को सामाजिक जीवन से काटकर रख देने वाली चीज बन गए हैं। वैसे तो इसका प्रभाव हर वर्ग पर पड़ रहा है लेकिन बच्चों पर पड़ने वाला प्रभाव बहुत खतरनाक साबित हो रहा है क्योंकि बच्चे देश का भविष्य होते हैं और यह उनके मस्तिष्क को कुंद कर दे रहा है।

स्मार्टफोन बना रहा बच्चों को हिंसक

खिलखिलाता बचपन…. कहकहे लगाते बुजुर्ग…. आपस में मिल-बैठ कर बातें करते पति-पत्नी…. बच्चों के साथ वक्त बिताते चाचा, मामा, बुआ या मौसी… नानी-दादी की कहानियां…. गली-मुहल्ले में धमा-चौकड़ी मचाते बच्चे… ये सारे नजारे बीते जमाने की बात हो गयी। आज तो आप जिस भी घर, गली, मुहल्ले या चौक-चौराहे पर चले जाइए, वहां आपको कई जोड़ी आंखें मोबाइल फोन में आंख गड़ाये या फिर कानों में इयरफोन ठूंस कर अपनी ही दुनिया में गुम नजर आयेंगी।

पहले गांव की चौपाल हो या फिर शहर के चौक-चौराहे, लोग हर रोज सुबह या शाम वहां एक-दूसरे से मिलते थे। बैठकर गप्पे लड़ाते थे। देश-दुनिया के विभिन्न मुद्दों पर बात-विचार व्यक्त किया करते थे। एक-दूसरे के सामाजिक-आर्थिक दुख-सुख बांटा करते थ,े लेकिन अब न तो किसी के पास यह सब करने की फुर्सत है और न ही रुचि। हर कोई अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त हो चुका है। हर किसी के पास उसकी अपनी एक दुनिया है- उसके मोबाइल फोन की दुनिया, जिसके छोटे-से स्वरूप में हर वो फीचर मौजूद है, जिसकी जरूरत आमतौर पर एक इंसान को होती है या हो सकती है। इसी वजह से इंसान उसके चक्रव्यूह से चाह कर भी खुद को अलग नहीं कर पा रहा है।

मोबाइल फोन के उपयोग से होनेवाली हानियां

  1. दिमागी क्षमता- मोबाइल फोन के सम्पर्क में आने से बच्चों का मानसिक विकास ठीक से नहीं हो पाता और उनका दिमाग कमजोर हो जाता है।

  2. आंखों पर दबाव- इसका असर सबसे पहले बच्चों की आंखों पर देखने को मिलता है।

  3. शारीरिक विकास- फोन के ज्यादा इस्तेमाल के कारण बच्चे आउटडोर गेम्स नहीं खेलते।

 

एकाकी दुनिया की भीड़ में गुम होता बचपन

मोबाइल फोन का बढ़ता उपयोग लोगों के जीवन में एकाकीपन, अवसाद और कुंठा का जहर घोलता जा रहा है। इसकी वजह से ज्यादातर लोगों की जिंदगी अपने मुहल्ले, चौक-चौराहे, यहां तक कि अपने घर के आंगन से दूर एक कमरे के बेड तक सिमटती चली जा रही है। ऐसी परिस्थिति का अगर सबसे ज्यादा  किसी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, तो वो हैं- घर में रहने वाले बच्चे और बुजुर्ग।

आजकल के बच्चे मां के गर्भ से ही मोबाइल फोन ऑपरेट करने की बुद्धि लेकर पैदा होते हैं। एकल परिवार का बढ़ता चलन, सिमटता सामाजिक दायरा और वर्किंग पैरेंट्स… इन सबने बच्चों को मोबाइल फोन से दोस्ती करवाने में अहम भूमिका निभायी है। उस पर से कोरोना काल ने इस दोस्ती की आग में घी डालने का काम किया है। बीते तीन वर्षों में ज्यादातर बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में कम्प्यूटर, लैपटॉप तथा मोबाइल फोन उनके जीवन का अभिन्न अंग बन चुके हैं। इसकी वजह से बच्चों में ऑनलाइन गेम खेलने की लत अब एक व्यापक समस्या बनती जा रही है। आजकल के ज्यादातर बच्चों को खेलने, मिलने-जुलने एवं परिचितों के यहां जाने-आने में रुचि न के बराबर है। उन्हें बस एक ही चीज चाहिए और वह है- मोबाइल फोन। इसके अब कई घातक परिणाम भी सामने आ रहे हैं और लोगों के बीच इसे लेकर चिंता बढ़ रही है। बच्चे इंटरनेट गेम के आदी हो रहे हैं। धीरे-धीरे अपनी पढ़ाई और सामाजिक हकीकत से दूर होकर आभासी दुनिया के तिलिस्मी संसार में रमते जा रहे हैं। इस खौफनाक संसार ने बच्चों को आत्महत्या करने या हत्या करने की विवशता दी है, जो नये बनते समाज के लिये बहुत ही चिंतनीय विषय है।

बच्चे के जीवन में हर रिश्ते को समझनी होगी अपनी अहमियत

इस धरती पर जन्म लेने के साथ ही बच्चे को कई सारे रिश्ते उपहार स्वरूप मिलते हैं। इनमें से हर रिश्ते की उसके जीवन में खास भूमिका होती है, जैसे कि- दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ-फूफा, मौसा-मौसी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, मामा-मामी, दीदी, भइया आदि। इनमें से कुछ रिश्ते बच्चों को हंसाते हैं, तो कुछ सिखाते हैं। कुछ उनके सीक्रेट पार्टनर होते हैं, तो कुछ हिटलर टाइप होते हैं। कुछ रिश्ते बच्चों के लिए फुल एंटरटेनमेंट चैनल माफिक होते हैं, जो उनकी मनपसंद कहानियों, घटनाओं आदि के जरिये उनका दिल बहलाते हैं, तो कुछ अन्य साइलेंट टीचर जैसे होते हैं, जो कहते तो कुछ नहीं हैं, लेकिन उनके हाव-भाव, बातों एवं विचारों का बच्चों पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है।

ऐसे में अगर किसी भी रिश्ते की भूमिका बच्चे के जीवन में जरा सी भी कम या ज्यादा होती है या फिर वे उससे दूर हो जाते हैं, तो बच्चे के व्यक्तित्त्व विकास पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें अवसाद, विषाद, मानसिक अस्थिरता, कुंठा, तनाव, गुस्सा आदि के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। उनकी शैक्षणि उपलब्धि पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है। नतीजा, वह जो करना चाहता है या फिर जो पाना या बनना चाहता है, उन सबमें पिछड़ सकता है। अत:  परिवार के हर सदस्य को बच्चे के जीवन में अपनी भूमिका समझते हुए उसे सही तरह से निभाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि उनके लाड़ले तथा लाड़लियां एक खुशहाल एवं सम्पूर्ण व्यक्तित्व के रूप में विकसित हो सकें।

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