बॉलीवुड की खुदकशी

चकाचौंध ही चकाचौंध। रंग पुते चेहरे से शुरू हुआ बॉलीवुड का सफर आज कालिख पुते चेहरे के साथ दि एंड खुद लिखवा गया। बेशुमार रुतबा, क्या राजनीति, क्या मीडिया और क्या दिवाने लोग। एक झलक के लिए मरे जाने वाले लोग, खून से लेटर लिखने वाले बावले। और कहां अमिताभ बच्चन की जिंदगी के लिए लाखों लोगों की हस्पताल के बाहर भीड़। सब कुछ मस्त चल ही रहा था की बॉलीवुड दबे पांव एजेंडे पर काम ही नहीं करने लगा बल्कि उन्हीं लोगों को गाली देने लगा जो बहुतायत में उनकी फिल्में देखते हैं।

हद तो तब हो गई जब बॉलीवुड ने इन लोगों के मुंह पर थूंकना शुरू कर दिया। उनके इमोशन्स को कुचलना शुरू किया। इस अति का भी इति होना ही था, वो जल्दी हो गया। बॉलीवुड ने अपने निजी स्वार्थ के लिए पूरे भारत की परम्पराओं, रिवाजों को बूरी तरह नुकसान भी पहुंचाया और युवा पीढ़ी को नशा, वैश्यावृत्ति और अपराध की ओर धकेल दिया, लिहाजा बरसों से एक पीढ़ी के मन में दबी हुई पीड़ा जमा होने लगी और देखते ही देखते एक के बाद फिल्में धड़ाम होती जा रही हैं।

आज बॉलीवुड हिकारत का नाम बन गया है। लोग फिल्मों के फ्लॉप होने का ज्यादा इंतजार करते नजर आते हैं। नवयुग के इस दौर में लोगों का प्यार दक्षिण भारतीय फिल्मों की तरफ मुड़ गया है। इसे समझने की बजाय अब भी अर्जुन कपूर और ऋतिक रोशन जैसे बिना फिल्मों के लोग हेकड़ी में ऊटपटांग बोलकर बॉलीवुड को ही खत्म कर रहे हैं। समय बदल गया है यह जितना जल्दी समझ जाए बेहतर है क्योंकि अब इस समाज का हीरो सेना, खेल और वैज्ञानिक होने लगे हैं, नकली नचनिए नहीं। मन, विचार और व्यवहार से भारतीय जनमानस ने बॉलीवुड को पूरी तरह नकार दिया है यह तवारिख भी लिख ले जरा। “दी एंड”

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