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सामाजिक बहिष्कार का प्रभाव

सामाजिक बहिष्कार का प्रभाव

by हिंदी विवेक
in विशेष, सामाजिक
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मैं आजादी के लिए लड़ी गयी 1857 की लड़ाई से वाकिफ था, 1942 के भारत छोड़ो, 1921 के असहयोग आंदोलन, 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन से वाकिफ था। लेकिन देश मे समय समय पर हुए किसान आंदोलन और मजदूर हड़तालों से कतई बेखबर था जिनहोने आगे चलकर अंग्रेज़ो के खिलाफ संघर्ष मे महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई।
ऐसा ही एक आंदोलन अवध मे 1920 मे शुरू हुआ था। इस आंदोलन की शुरुआत तालुकदारों या जमींदारों के खिलाफ वंचित वर्ग के भूमिहीन खेतिहर मंजदूरों से शुरू की थी। सामान्य लगान की दर भी उस समय 60 से 80 प्रतिशत थी। उस पर से जब भी किसी तालुकदार को कार, हाथी, बच्चे की शादी, या बच्चे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजना हो, सरकारी अधिकारियों के लिए पार्टी करनी हो, गिफ्ट भिजवाने हो तो उनके लिए स्पेशल टैक्स लगा दिये जाते थे। इन सबसे त्रस्त भूमिहीम किसानो ने एक साधु रामचन्द्र जी के नेतृत्व मे संघर्ष की शुरुआत की।
रामचन्द्र जी के बारे मे कहा जाता है की वो एक गिरमिटिया मजदूर थे जो फ़िजी मे मजदूर के तौर पर गए थे, और वहाँ से वापस आकर अयोध्या आ गए थे और साधू बन गए थे। उन्होने ही प्रतापगढ़ के एक गाँव मे पहली किसान सभा आरंभ की। ये आंदोलन अवध के रायबरेली , सुल्तानपुर और प्रतापगढ़ मे फैला था।
हालांकि अहिंसात्मक आंदोलन का सारा श्रेय गांधी जी को जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है की सत्याग्रह की शुरुआत गांधी जी ने ही की थी। अवध के किसान आंदोलन पूरी तरह सत्याग्रह पर आधारित था। रामचन्द्र जी ने वंचित वर्ग से तालुकदारों के सामाजिक बहिष्कार का आव्हान किया। नतीजा ये हुआ की कोई तालुकदारों के घरो मे पानी पहुंचाने वाला न रहा, कोई उनके दाढ़ी बाल काटने वाला न रहा, कोई उन्हें नदी पार न करा रहा था। इस सामाजिक बहिष्कार का जवाब तालुकदारों ने आर्थिक बहिष्कार से दिया। उन्होने इन मजदूरों को कर्जा देना बंद कर दिया। गरीबी से त्रस्त जनता और बेहाल होती गयी। और अंत मे उनके सब्र का बांध टूट गया।
किसानो ने बाजार लूटे, जमींदारो के घर मे पड़ा अनाज लूट लिया। इस अराजकता से निपटने के लिए पुलिस ने किसानो की भीड़ पर गोली चलायी जिसमे 200 के करीब किसान मारे गए। तालुकदारों और अंग्रेज़ो के सामूहिक दमन के सामने किसान ज्यादा समय टिक न सके और ये आन्दोलन तितर बितर हो गया।
इस गोलीकांड की भी एक कहानी है। जब पहली बार रामचन्द्र जी को पुलिस पकड़ कर अदालत मे लायी थी तो इतने किसान अदालत पहुँच गए थे की जज ने घबरा कर रामचन्द्र जी को रिहा कर दिया था। दूसरी बार ऐसा न हो इसके लिए पुलिस ने रायबरेली की सई नदी के पुल को बंद कर दिया था और इकट्ठे हुए किसानो पर पहले लाठीचार्ज और फिर गोली चलाई।
इस गोलीबारी के एक मूक दर्शक पंडित जवाहर लाल नेहरू भी थे जो पुल के दूसरी ओर खड़े इस गोलीबारी के मूक गवाह थे। रामचन्द्र जी कांग्रेस नेताओ से सहयोग मांगने इलाहाबाद गए थे अपने साथ 5000 किसानो को लेकर। उनही के अनुरोध पर नेहरू रायबरेली आए थे, किसानो के हालात अपनी आंखो से देखने। नेहरू के लिए ये पहला मौका था जब उन्होने एक धनी आदमी के बेटे ने अपनी आँखों से भारत की बदहाली देखि थी। नेहरू जी ने तमाम गाँव का ट्रेन, कार और यहाँ तक की एक गाँव से दूसरे गाँव तक दौड़ लगाकर दौरा किया था। किसानों को अहिंसक रहने की अपीले की।
इस विद्रोह के 6 महीने बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया और अवध के किसानो को संबोधित करते हुए उनसे एक साल मे स्वराज दिलाने का वादा किया। इस आंदोलन के लिए उन्होने 16-17 शर्ते रखी थीं, उनमे से एक शर्त थी मजदूर जमींदार एकता और जब तक कांग्रेस लगान की अदायगी देने पर रोक न लगाए किसान लगान देते रहें।
इस देश ने बहुत बदहाली देखी है, बहुत बुरे दिन देखे हैं। आजादी यूं नहीं मिली हैं। लाखो अनाम लोगों ने अपना योगदान दिया है। किसी ने जान देकर किसी ने जेल काटकर।
संदर्भ : –
बिपन चंद्र : इंडिया स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस
अखिलेश : निर्वासन
नेहरू : सिलेक्टेड वर्क्स
 – शरद श्रीवास्तव

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Tags: #satyagrah #bahishkar #samajik #ramchandra #gandhi #kisanandolan

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