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भ्रम न पालें जन अपेक्षाओं को समझें

भ्रम न पालें जन अपेक्षाओं को समझें

by रमेश पतंगे
in अगस्त २०२२, राजनीति, विशेष, सामाजिक
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शिवसेना के हिंदुत्ववादी धड़े का एक हिंदुत्ववादी दल के साथ मिलकर महाराष्ट्र की सत्ता को व्यवस्थित करना अच्छा संकेत है लेकिन हिंदुत्व का सही अर्थ है, हाशिए पर खड़े अंतिम व्यक्ति तक विकास कार्यों को पहुंचाना। एकनाथ और देवेंद्र के पास ढाई वर्षों का भरपूर समय है इसलिए इसका उपयोग समाज के प्रत्येक वर्ग के समग्र विकास हेतु होना चाहिए।

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का शासन समाप्त हुआ और महाराष्ट्र में शिवसेना के ही एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने। शिवसेना किसकी? उद्धव ठाकरे की या एकनाथ शिंदे की? यह नया विवाद छिड़ गया है। इस विवाद से हमें कोई लेना देना नहीं है। महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन हुआ, यह अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है। नई सरकार से लोगों की क्या अपेक्षाएं हैं, इसका थोड़ा विचार करें। ठाकरे के शासन की समाप्ति का दुख उनके परिवार को छोड़कर अन्य किसी को हुआ है, ऐसा नजर नहीं आता। शिवसेना का यदि इतिहास देखें तो हम पाएंगे कि पूर्व में जब कभी कोई शिवसेना छोड़कर जाता था तो शिवसैनिक उनके विरुद्ध भयंकर आक्रोश व्यक्त करते थे। ‘गद्दारों को माफी नहीं’, शिवसेना का प्रिय वाक्य था। वर्तमान में इतने विधायक शिवसेना से टूट कर बाहर हो गए हैं, परंतु शिवसैनिक घर के बाहर नहीं निकले। वे शांत ही रहे। इसका अर्थ यह हुआ कि उन्हें भी शायद लग रहा हो कि यह सरकार गिरनी चाहिए। कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ की गई अभद्र युति समाप्त होनी चाहिए। उसकी यह इच्छा पूरी होने के कारण वे घर पर शांति से आराम करते रहे। शिवसेना के प्रवक्ता दहाड़ मारते रहे। अधिकतर लोगों को वह बिल्ली की म्याऊं-म्याऊं लगी।

अब नई सरकार ने कार्यभार सम्भाल लिया है। जनता की इस सरकार से बहुत अपेक्षाएं हैं। विद्रोह करते समय एकनाथ शिंदे ने हिंदुत्व की भूमिका ली। हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा के साथ समझौता हो सकता है इसलिए उन्होंने भाजपा को साथ लिया। विचारधारा का विचार करते समय एकनाथ शिंदे की भूमिका का स्वागत होना चाहिए और अपनी भूमिका पर दीर्घ काल तक टिके रहेंगे, ऐसा विश्वास रखना चाहिए। परंतु जनता के स्तर पर जाकर विचार किया जाए तो विचारधारा की अपेक्षा काम करने वाला दल जनता को अधिक पास लगता है। मैंने भाजपा के अनेक पार्षदों से प्रश्न किया था कि, आपके दल की भूमिका हिंदुत्व की है, और जब आप वोट मांगने जाते हैं तो हिंदुत्व के लिए वोट मांगते हैं या कुछ और कहते हैं? ऐसा पूछने पर वे हंसे और कहा, हम जो काम करते हैं, उसी पूंजी पर वोट मांगना पड़ता है। सर्वसामान्य वोटर को आप हिंदुत्ववादी हो या कुछ और, कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरी व्यक्तिगत समस्याएं हैं, बस्ती की समस्याएं हैं। उन्हें हल करने के लिए आप क्या कर रहे हैं या क्या किया है, चुनावी राजनीति में यह प्रश्न महत्वपूर्ण है। दल को मजबूत बनाने के लिए विचारधारा आवश्यक होती है और वोट के लिए कार्य करना।

ढाई वर्ष बाद एकनाथ शिंदे की शिवसेना तथा भाजपा को एक साथ मतदाताओं का सामना करना है। हम हिंदुत्व के लिए एक साथ आए, अयोध्या में राम मंदिर के लिए हमने संघर्ष किया, औरंगाबाद, उस्मानाबाद का नाम बदलने का काम किया। इतना बताकर ही जीतने के लिए आवश्यक वोट मिलेंगे, इस भ्रम में ना रहें। जीत प्राप्त करने के बाद हमने क्या काम किया, लोगों को दिखाना पड़ेगा। उद्धव ठाकरे ने मेट्रो का काम आरे और कांजूरमार्ग विवाद में लटका कर रखा। प्रतिदिन यात्रा करने वाले मुंबईकर को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, विधायकों को देखना चाहिए। मुंबई जीतनी है तो एक मार्ग मुंबई मेट्रो का हो सकता है। युद्ध स्तर पर काम कर उसे पूरा करना चाहिए। जगह-जगह लगने वाली विधायकों की झूठी हंसी के पोस्टर लगातार देखने पर उनके विषय में केवल घृणा का भाव ही निर्मित होता है। उसके स्थान पर कर्तृत्त्व के प्रतीक के तौर पर मेट्रो स्टेशन बनें। बरसात शुरू होते ही रास्तों पर बड़े-बड़े गड्ढे बन जाने से बहुत अधिक दुर्घटनाएं होती हैं। उसमें कुछ लोगों की मृत्यु भी हो जाती है। इन गड्ढोें को युद्ध स्तर पर भरने का काम सतत चलते रहना चाहिए। वाहन चलाते समय थोड़ा भी झटका नहीं लगना चाहिए। वाहन चालक और यात्री इन सब का श्रेय शासन को देगा। उसे हिंदुत्व के प्रवचन की कोई आवश्यकता नहीं है।

पिछले ढाई वर्षो में अलग-अलग प्रकार के दैविक तथा भौतिक संकटों का सामना करना पड़ा। चिपलुन तथा महाड के लोगों ने प्रलयंकारी वर्षा का सामना किया। कोंकण का भी यही हाल था। पूरा महाराष्ट्र कोरोनावायरस से पीड़ित रहा। इस आपत्ति में लाखों परिवार फंसे थे। आपत्ति आई नहीं कि समाचार माध्यम चेहरे खोजते लगते हैं। नुकसान के फोटो खोजते रहते हैं और फिर अगले समाचार के लिए अगली आपत्ति की बाट जोहते हैं। शासन का काम जनता को संरक्षण देना, उनके आंसू पोंछना, सम्मान के साथ उन्हें भोजन मिले, यह देखने का है। ढाई वर्षों से फेसबुक लाइव पर महाराष्ट्र चलाया गया। अब शेष ढाई वर्षोेंं में लाइव महाराष्ट्र चलाते रहना चाहिए। अर्थात् गांव, बस्ती, चौपालों पर उनके साथ बैठकर, उनके घर का अचार-रोटी खाकर, उनके साथ समरस होना चाहिए। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने 80 वर्ष का होने के बावजूद सम्पूर्ण महाराष्ट्र का दौरा किया है। पिछले 15 से 20 वर्षों में राज्यपालों ने जितने कार्यक्रम किए होंगे उतने कार्यक्रम कोश्यारी 3-4 वर्षों में कर चुके हैं। संविधान के अनुसार वे कार्यकारी अधिकारी नहीं है, राज्य के निर्णय भी नहीं ले सकते। हमारे विधायकों, सांसदों तथा मंत्रियों को विचार करना चाहिए कि जब वे इतना घूम सकते हैं, तो हम क्यों नहीं? किसानों की आत्महत्या का महाराष्ट्र के साथ गहरा सम्बंध है। शेष ढाई वर्षों के काल में आत्महत्या विहीन महाराष्ट्र का चित्र देश के सामने प्रस्तुत करने में सरकार को सफल होना चाहिए। उसके लिए योजनाएं तैयार करनी चाहिए। किसानों की आत्महत्याओं के जो प्रतिवेदन सरकार के पास हैं उनका अध्ययन कर ठोस उपाय बनने चाहिए। हमें यह कहने में गर्व होना चाहिए कि जो महाराष्ट्र एक समय आत्महत्या वाला प्रदेश कहलाता था उसी महाराष्ट्र में किसान अब सम्मान के साथ जीवनयापन कर रहा है।

हम जनता किसे कहें? इस जनता में फेरीवाले, सब्जी बेचने वाले, सिग्नल पर गाड़ी रुकते ही छोटी-मोटी चीजें बेचने वाले, गांव की सीमा के बाहर रहने वाले, बेघर घुमंतू लोग शामिल हैं। स्वतंत्रता के मीठे फल उन तक अभी पहुंचे ही नहीं हैं। उनके लिए कुछ योजनाएं बनाएं। प्रधानमंत्री मोदी की योजनाओं का सूत्र है, अंतिम पंक्ति का अंतिम व्यक्ति। यह महाराष्ट्र में भी लागू होना चाहिए। ये दीन, दुखी, पददलित, जंगलों-खाइयों में रहने वाले घुमंतू समाज हमारे देश की बहुत बड़ी शक्ति हैं। उनमें क्षमता तो बहुत है परंतु उसके विकास का अवसर ना मिलने वाले लाखों लोग हैं। उनका विकास यानी महाराष्ट्र का विकास। सिल्वर ओक, बारामती, मातोश्री, लवासा सिटी, अलीबाग के बंगले का तात्पर्य विकास नहीं होता। ये सर्वसामान्य के विकास को चट कर जाने वाले दीमक हैं।

जिसके पास घर नहीं है उसे घर दे सकते हैं क्या? जिसके पास काम करने की क्षमता है परंतु काम नहीं है उसे काम दे सकते हैं क्या? जिसे शिक्षा की चाहत है परंतु परिस्थिति वश उसे नहीं मिल सकी उसे शिक्षा दे सकते हैं क्या? यह सब करना यानी हिंदुत्व। यह सब प्रकट रूप में दिखाना अर्थात हिंदुत्व। जनता को इस हिंदुत्व की अपेक्षा है। इस अपेक्षा को एकनाथ शिंदे तथा देवेंद्र फडणवीस अपने सहयोगियों के साथ मिलकर पूर्ण करें।

 

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