बीमारियों का बढ़ता खतरा

वर्तमान में मंकीपॉक्स और लम्पी नाम की बीमारियां मानवों एवं दुधारू पशुओं को अपनी चपेट में ले रही हैं। मंकीपॉक्स व्यापक तौर पर जानलेवा बीमारी नहीं है पर कमजोरों और शिुशुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। लम्पी ने कई राज्यों के पशुओं पर कहर बरसाया है, लेकिन अच्छी बात है कि भारत में इसकी वैक्सीन विकसित की जा चुकी है।

पिछले कुछ वर्षों से मानव जाति पर बीमारियों का संकट बढ़ता ही जा रहा है। कोरोना के संकट से दुनिया अभी उभरी भी नहीं है कि मंकीपॉक्स का खतरा मंडराने लगा है। अब तक 90 से अधिक देशों में मंकीपॉक्स के मामले सामने आ चुके हैं। संयुक्त अरब अमीरात से लौटे व्यक्ति की मृत्यु होने के बाद भारत में भी मंकीपॉक्स वायरस की वजह से पहली मौत की पुष्टि हुई है। कुल मिलाकर पूरी दुनिया में करीब 29,000 मामलों की पुष्टि की जा चुकी है। इंसानों में मंकीपॉक्स का पहला मामला 1970 में देखा गया था।

अब दोबारा मंकीपॉक्स का खतरा बढ़ रहा है। इसके बढ़ते प्रभाव को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गाइडलाइन जारी की है। इसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति पिछले 21 दिनों के अंदर किसी ऐसे देश में आया-गया हो, जहां पर मंकीपॉक्स का संक्रमण है, तो उसे इस बीमारी के लक्षणों पर खास तौर से ध्यान देना चाहिए। इसके तहत शरीर पर सूजे हुए लिम्फ नोड या ग्रंथियां, बुखार, सिर दर्द, शरीर दर्द, कमजोरी लगना और शरीर पर चकत्ते या रैशेज की समस्या हो सकती है। यदि ये लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत उसकी जानकारी स्वास्थ्य अधिकारियों को दी जानी चाहिए। इस गाइडलाइन में बताया गया है कि मंकीपॉक्स से बचने के लिए क्या करें और क्या नहीं करें।

मंकीपॉक्स कितना घातक है?

अभी तक के मामलों को देखा जाय तो ज्यादातर मामलों में यह बीमारी अपने आप ठीक हो जाती है। लेकिन नवजात शिशुओं, बच्चों और प्रतिरोधक क्षमता की कमी वाले लोगों को इस बीमारी से अधिक गम्भीर लक्षणों और मृत्यु का खतरा हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार चेचक को रोकने के लिए बनाई गई वैक्सीन मंकीपॉक्स के खिलाफ 85 फीसदी तक कारगर है। इसलिए जिन लोगों को पहले से चेचक की वैक्सीन लगी हुई है, उनको मंकीपॉक्स का संक्रमण होने से हल्की बीमारी का ही डर है यानी उनके लिए जोखिम कम है। हाल ही में भारत सरकार ने मंकीपॉक्स की वैक्सीन विकसित करने के लिए टेंडर जारी कर दिया है। इस बीच भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वाइरोलॉजी) ने एक मरीज के नमूने से मंकीपॉक्स वायरस को अलग करने में सफलता पाई है, जो बीमारी के खिलाफ जांच किट और टीका विकसित करने में कारगर हो सकता है।

लम्पी वायरस बीमारी का कहर

लोगों में मंकीपॉक्स का डर जरूर कुछ कम हो रहा है लेकिन अब देश के बहुत सारे राज्य लम्पी वायरस नाम की बीमारी से जूझ रहे हैं। हालांकि ये बीमारी अभी तक दुधारू पशुओं में ही फैली है, लेकिन राजस्थान, गुजरात समेत कई राज्यों से जानलेवा लम्पी वायरस फैलने की खबरें आ रही हैं। ये बीमारी जानलेवा इसलिए है क्योंकि सरकार के सर्वे के अनुसार अभी तक इस बीमारी से हजारों गायों और भैंसों की मौत हो चुकी है।

दुधारू मवेशियों में फैल रही इस बीमारी को ‘गांठदार त्वचा रोग वायरस’ अर्थात एलएसडी कहा जाता है। इस बीमारी की तीन प्रजातियां हैं। पहली ‘कैप्रिपॉक्स वायरस’, दूसरी गोटपॉक्स वायरस और तीसरी शीपपॉक्स वायरस। गाय-भैंसों की इस बीमारी के लक्षणों में बुखार रहना, वजन कम होना, लार निकलना, आंख और नाक का बहना, दूध का कम होना, शरीर पर अलग-अलग तरह के नोड्यूल दिखाई देना और शरीर पर चकत्ते जैसी गांठों का बन जाना प्रमुख हैं। लम्पी त्वचा रोग एक ऐसी बीमारी है जो मच्छरों, मक्खियों, जूं एवं ततैयों की वजह से फैल सकती है। मवेशियों के एक दूसरे के सम्पर्क में आने और दूषित भोजन एवं पानी के जरिए भी ये दूसरे जानवरों में फैल सकती है। यह वायरस खतरनाक है क्योंकि ये काफी तेजी से फैलने वाला वायरस है लेकिन जानकारों के अनुसार इंसानों पर इसका कोई खतरा नहीं है। इसके खिलाफ इंसानों में जन्मजात इम्युनिटी पाई जाती है, यानी यह उन बीमारियों में से है जो इंसानों को हो ही नहीं सकती। हालांकि भारत में दूध की कमी होने की आशंका जरूर जताई जा रही है क्योंकि गुजरात में बड़ी संख्या में मवेशियों की जान जाने से अमूल के प्लांट में दूध की कमी हो गई है।

क्या करें  

  •  मंत्रालय ने इनफेक्टेड मरीजों से दूर रहने की हिदायत दी है।
  •  किसी संक्रमित व्यक्ति के आसपास हैं तो मास्क पहनिए और ग्लब्स का इस्तेमाल करिए।
  •  साबुन या सैनिटाइजर से हाथ धोते रहिए।
  •  मंकीपॉक्स के संक्रमित मरीज के साथ यौन सम्बंध नहीं बनाएं।

क्या न करें

  •  अपना तौलिया उनके साथ साझा मत कीजिए जो किसी मंकीपॉक्स मरीज के सम्पर्क में आया हो।
  •  अपने कपड़े किसी भी संक्रमित व्यक्ति के कपड़ों के साथ नहीं धोएं।
  •  यदि आपमें मंकीपॉक्स के लक्षण हों तो किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम या मीटिंग में नहीं जाएं।
  •  ये भी जरूरी है कि लोगों को गलत सूचना के आधार पर नहीं डराएं।
  •  अपना कप और खाना मंकीपॉक्स मरीज के साथ साझा मत करिए।
  • लम्पी त्वचा रोग का इतिहास

ये बीमारी सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में पाई गई थी। पिछले कुछ सालों में ये बीमारी कई देशों के पशुओं में फैली है। एशिया में पहली बार जुलाई 2019 में इस वायरस का कहर बांग्लादेश में देखा गया। अब ये कई एशियाई देशों में फैल रहा है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक, लम्पी वायरस साल 2019 से अब तक सात एशियाई देशों में फैल चुका है। साल 2019 में भारत के अलावा चीन, जून 2020 में नेपाल, जुलाई 2020 में ताइवान और भूटान, अक्टूबर 2020 में वियतनाम और नवम्बर 2020 में हांगकांग में ये बीमारी पहली बार सामने आई थी।

भारत में ये बीमारी पहली बार 2019 में देखी गई थी। वर्ष 2021 तक, यह रोग देश के पूर्वी हिस्से तक ही सीमित था, लेकिन इसके तुरंत बाद यह लगभग सभी राज्यों में फैल गयी और पिछले कुछ महीनों में तो इसका प्रकोप खतरनाक होता गया है। 15 प्रतिशत तक की मृत्यु दर के साथ यह रोग बहुत घातक हो गया है। हालांकि एलएसडी मुख्य रूप से मवेशियों की बीमारी है लेकिन सबूत बताते हैं कि यह भैंस, ऊंट, हिरण और घोड़े में भी हल्की बीमारी का कारण बन सकता है। यही कारण है कि लम्पी त्वचा रोग वायरस अर्थात  एलएसडी को विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने अधिसूचित  बीमारी घोषित किया हुआ है।

देश में गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, ओडिशा, असम, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग जिलों में लाखों मवेशियों को लम्पी वायरस अपनी चपेट में ले चुका है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति गुजरात और राजस्थान की है। गुजरात में लम्पी वायरस से अबतक 1600 से ज्यादा मवेशियों की मौत हो चुकी है जबकि राजस्थान में मौत का आंकड़ा 4000 पार कर चुका है।

लम्पी वायरस के खिलाफ वैक्सीन की खोज

देश के किसानों और दुग्ध उत्पादन उद्योग से जुड़े लोगों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा लम्पी वायरस के खिलाफ वैक्सीन की खोज करने की खबर राहत देने वाली है। अभी हाल ही में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री, नरेंद्र सिंह तोमर और अध्यक्ष आईसीएआर ने पशुधन को लम्पी वायरस रोग (एलएसडी) से बचाने के लिए स्वदेशी वैक्सीन लुंपी-प्रो वैकइंड लॉन्च किया है। इस वैक्सीन को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के दो संस्थानों, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र (आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्विन्स) और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट), इज्जतनगर द्वारा विकसित किया गया है।

आईसीएआर ने इस टीके का उपयोग पूरी तरह से सुरक्षित बताया है क्योंकि यह एलएसडी के खिलाफ जानवरों में सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा विकसित करता है। इस वैक्सीन के साथ-साथ, भारत सरकार ने मवेशियों में एलएसडी को नियंत्रित करने के लिए बकरी के चेचक के टीके के उपयोग को भी अधिकृत किया है।

संजय चौधरी 

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