केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर आज विकास की नई ऊंचाइयां छू रहा है। तीन वर्षों के अल्पकाल में ही प्रदेश देश के विकसित राज्यों से होड़ लेने लगा है। इसका सारा श्रेय प्रदेश के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा को जाता है। उन्होंने विकास कार्यों के साथ ही साथ आम लोगों तक सीधी पहुंच बनानी शुरू की है। इससे आम लोगों का उनमें अत्यधिक विश्वास प्रबल हुआ है।
चलिए, आज हम आप को एक ऐसी जगह ले जाते हैं जिसके भूतकाल से तो आप भली भांति परिचित होंगे। और शायद इसी भूतकाल को आप में से कई, इस प्रदेश का वर्तमान भी मानकर चल रहें होंगे। किंतु सकारात्मक परिवर्तन की लहरें जब बहने लगती हैं, तब मार्ग में आनेवाली कोई भी चीज उसके विकासात्मक स्पर्श से चूक नहीं सकती। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण जम्मू प्रदेश और कश्मीर की वादियों में भी कुछ ऐसी ही लहरें दो-तीन सालों से बह रही हैं जिनकी वजह से आज वहां की हवा से परिवर्तन की सोंधी खुशबू आ रही है।
राज्य के पर्यटन स्थलों की यात्रा करते समय मार्ग में गांव-गांव में बच्चे और युवा खेल के मैदानों पर देखने मिलते हैं। प्रशासन ने मैदान पर अपने प्रदर्शन के माध्यम से गौरव अर्जित करने के लिए युवाओं के उच्च उत्साही सपनों और आकांक्षाओं को साकार करने की दिशा में बक्षी स्टेडियम के नूतनीकरण द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं आज उपलब्ध करवाकर उन्हें विकास का एक नया मार्ग दिखाया है। वर्तमान प्रशासन ने जमीनी स्तर पर युवाओं के बीच फलती-फूलती खेल संस्कृति को पोषित करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। जम्मू-कश्मीर में खेल के बुनियादी ढांचे का व्यापक विस्तार हो रहा है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कोर्स, स्टेट मेंटरिंग प्रोजेक्ट, तलाश ऐप, प्री-प्राइमरी क्लासेस और अटल टिंकरिंग लैब्स जैसे अनेक उपक्रमों का प्रारम्भ, शिक्षा एवं परिपूर्ण विकास और स्किलिंग इकोसिस्टम को मजबूत करने के प्रयास, स्कूल की पढ़ाई से छूटे बच्चों की पहचान कर उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए किये गए लाखों सर्वेक्षण, युवा छात्रों को प्रयोगात्मक कौशल विकसित करने और उन्हें रोमांचक नवाचारों से अवगत कराने के लिए सशक्त बनाने के उपक्रम, खादी ग्रामीण उद्योगों, हथकरघा, हस्तशिल्प को पुनर्जीवित करने के ठोस प्रयास ने जम्मू-कश्मीर में विकास और रोजगार के मामले में एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। पीएमईजीपी के तहत अन्य बड़े राज्यों की तुलना में 21,640 विनिर्माण और सेवा इकाइयों की स्थापना, वर्तमान वित्तीय वर्ष में जम्मू-कश्मीर में 1.73 लाख नए रोजगार का सृजन, 7 उत्पादों के लिए जीआई प्रमाणीकरण, 1.55 लाख कारीगरों को 432 प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से स्थानीय कला और स्वयं सहायता समूहों के कारीगरों ने सभी 20 जिलों के उत्पादों का प्रदर्शन किया। यह सब केवल यहां निर्मित किये जाने अवसरों की एक छोटी सी झलक है।
अब राज्य का कोई भी नागरिक ई-उन्नत, ई-किताब, ई-कार्यालय के माध्यम से सरकारी प्रणालियों तक आसानी से पहुंच सकता है। ‘सुपर 75’ के तहत लड़कियों की शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता, तेजस्विनी योजना जैसी नई सम्भावनाओं से उद्यमिता को बढ़ावा, मुमकिन योजना के तहत युवाओं को आजीविका का साधन प्रदान कराया जा रहा है। युवा उद्योजकों के लिए ‘उम्मीद’ जैसी योजनाएं उपलब्ध हैं। ’अपनी जमीन अपनी सतर्कता’, मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं, अधिकारिता पोर्टल प्रमाण हैं कि आज जम्मू-कश्मीर में प्रगति एवं प्रेरणा के नए मानदंड स्थापित किये जा रहे हैं। देश के किसी भी राज्य अथवा केंद्र शासित प्रदेश में आपने भ्रष्टाचार मुक्ति दिवस के विषय में नहीं सुना होगा लेकिन जम्मू-कश्मीर में ऑनलाइन लोक सेवाएं अब लोक सेवा गारंटी अधिनियम के तहत निर्धारित समय-सीमा से जुड़ी हैं। डिफॉल्ट करने वाले अधिकारियों को स्वचालित ऑनलाइन मोड में विफलता के लिए नोटिस दी जाएगी, और दंडात्मक प्रावधानों से जोड़ा जायेगा। इस वर्ष से 5 अगस्त को ’जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। ‘गुनहगार को छोड़ो मत और बेगुनाह को छेड़ो मत’ की नीति के तहत यहां काम चल रहा है। इसके साथ ही उधमपुर-श्रीनगर बारामूला रेल लिंक परियोजना, फिल्म नीति, जल विद्युत परियोजना, जल जीवन मिशन, जेके टूरिस्ट विलेज नेटवर्क योजना, जम्मू-श्रीनगर-लद्दाख राजमार्ग और कई अन्य योजनाएं परिवर्तन की शुरुआत की गवाही देती हैं।
26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस पर कारगिल विजय यात्रा के लिए लगातार जलती मशाल कारगिल पहुंची, जिससे हर गांव में राष्ट्रीयता की भावना जगी। पाठ्य पुस्तकों में कवि कल्हण, कश्यप और आद्य शंकराचार्य का इतिहास भी प्रस्तुत किया गया है। श्रीनगर के लाल चौक पर, जहां भारत का तिरंगा झंडा फहराना मना था, हजारों कश्मीरी युवक तिरंगे के आगे झुककर वंदे मातरम का नारा लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं। आज पुलवामा, बारामूला, अनंतनाग, बांदीपोरा इत्यादि सभी जिले के विद्यार्थियों के माध्यम से ‘हर घर तिरंगा’ के स्वर गूंज रहे हैं।
इस अद्भुत और अतुलनीय परिवर्तन के शिल्पकार केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा हैं जो एक अनुभवी, प्रगतिशील और ईमानदार राजनेता, एक बुद्धिमान टेक्नोक्रेट और दयालु इंसान हैं। ‘वे आए, उन्होंने देखा और जीत लिया’ ये शब्द यदि आज के जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में कहे जाएं, तो जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के विषय में यथार्थ ही होंगे। आज से ठीक 2 साल पहले की बात है जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया। वे वहां इस पद पर नियुक्त होने वाले पहले नेता थे।
महज 2 साल की अवधि में इतना सर्व स्तरीय विकास कैसे सम्भव हो सकता है? यह जानने के लिए उनकी कार्यप्रणाली को समझना होगा। वे कहते हैं, “मैं छोटे लक्ष्य के साथ बड़ा लक्ष्य चुनता हूं। दो माह में क्या कर सकता हूं? छह माह में क्या हो सकता है और साल-दो साल में क्या हो सकता है? फिर इसी अनुरूप कार्ययोजना बनाकर काम करता हूं।” उनकी टीम उन लक्ष्यों को जमीन पर उतारकर साध्य कर लेती हैं। उनकी मान्यता है कि, जनभागीदारी पर अधिक जोर देते हुए नागरिकों को विकास प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग बनाना जरूरी है।
प्राकृतिक रूप से सुंदर स्थान को सुंदर, प्रगतिशील और विकासोन्मुख क्षेत्र में बदलने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ऐसा करते हुए उन्होंने विभिन्न स्तरों पर इस क्षेत्र के प्रेम भरे आतिथ्यशील लोगों के साथ जुड़ाव शुरू किया है। इस संवाद, विचारों और भावनाओं के आदान-प्रदान को जारी रखने के लिए हर सप्ताह ’ब्लॉक दिवस’, ’आवाम की आवाज’, ‘एल जी मुलाकात’ जैसी गतिविधियां आयोजित की जा रही हैं। आम लोगों से इसकी शानदार प्रतिक्रियाएं भी आ रही हैं। उनका विश्वास है कि, “एक बार विकास कार्यों के परिणाम दिखने शुरू हो जाते हैं, समरसता शुरू हो जाती है, स्वीकृति बढ़ जाती है, तो लोगों के मन अपने आप जुड़ जायंगे।” उनके पास बहुत स्पष्ट सोच और इसके पीछे की आत्मीयता तथा व्यवस्था से परे जाने और व्यक्तिगत स्तर पर नागरिकों से जुड़ने का रवैया है। उन्होंने केंद्र शासित प्रदेश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए सभी परियोजनाओं को शांति, समृद्धि और विकास की विशाल तिपाई पर रखा है। लोग द्वारा प्रदर्शित किया जा रहा आभार उनके सकारात्मक प्रयासों को लेकर बहुत कुछ बोलता है। धीरे-धीरे यह जम्मू और कश्मीर की संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इतनी जल्दी इतना बड़ा बदलाव होगा। लेकिन यही परिवर्तन है। जब सफलता का क्षण आता है, तो उसका प्रभाव हर जगह देखा जाता है और लम्बे समय तक बना रहता है।
हर दिन कुछ न कुछ नए सुधार किए जा रहे हैं और उन्हें मजबूत बनाने के लिए नए ढांचे और तंत्र बनाए जा रहे हैं। ई-शासन सभी स्तरों पर लोगों को गुप्त साधनों से पारदर्शी व्यवस्था की ओर ले जाने में सहायक साबित हो रहा है। स्थानीय लोगों का मानना है कि उनका व्यक्तित्व सहायक और प्रेरक है। वे पहुंच योग्य, जनोन्मुखी हैं और उसके पास जम्मू-कश्मीर में विकास के लिए ठोस विचार और उन्हें लागू करने की शक्ति है।
अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 के उन्मूलन से राज्य को मुख्यधारा में लाने में मदद मिली। लगभग 180 कानून जो यहां लागू नहीं थे, सीधे लागू हो गए। इसके लिए अलग से कोई प्रक्रिया नहीं करनी पड़ी। इस बदलाव के बाद अब यहां भी बाल विवाह रोकथाम कानून, शिक्षा का अधिकार और भूमि सुधार कानून लागू हो गया है। दशकों से राज्य में रहने वाले वाल्मीकि, दलित और गोरखा तथा राज्य के अन्य लोगों को भी निवासियों के समान अधिकार मिले। इन धाराओं के निरस्त होने के एक साल बाद, यहां गांवों के साथ-साथ जिला पंचायत चुनाव सफलतापूर्वक हुए। कई सालों के बाद 2018 में पंचायत चुनाव हुए और 74.1 फीसदी मतदान हुआ। 2019 में पहली बार ब्लॉक वोटिंग हुई थी। विकास परिषद चुनाव में 98.3 प्रतिशत मतदान हुआ। हाल ही में जिला स्तरीय चुनावों में भी रिकॉर्ड भागीदारी दर्ज की गई थी।
अब कश्मीरी युवकों एवं जन सामान्य के मुख से स्वाभाविक रूप से सुनाने को मिल जाता है कि, रात के बारह बजे गाड़ी निकली और किसी ने नहीं रोका! अब इतने सारे राजमार्ग हैं। सड़कें अच्छी हैं। मुझे लगता है कि मुझे बाहर जाना चाहिए क्योंकि कोई मुझे नहीं रोकेगा। कोई मुझसे सवाल नहीं करेगा। यह मेरा ही नहीं, हर कश्मीरी का सपना है। भारत के अन्य शहरों और राज्यों में जिस प्रकार लोगों को नहीं रोका जाता, उसी प्रकार। अन्य राज्यों और कश्मीर के बीच के अंतर को वे महसूस करते हैं। वे वहां अन्य राज्यों जैसा ही माहौल चाहते हैं। उन्हें कश्मीर में ऐसे बदलाव की उम्मीद है, जहां कोई भी खुलकर घूम सके। कितनी सरल और बुनियादी अपेक्षा है। और आज ये अपेक्षा पूरी भी हो रही है। नए कानून के तहत आज पुलिस इन्हें रोक नहीं सकती। केवल वेग और नियमों का पालन न होने की बाधा हो तो ही रोकना उचित होगा।
लेकिन जब एक राज्य से केंद्र शासित प्रदेश होने की बात आती है, जिसका एक समृद्ध प्राचीन अतीत है और एक अतीत है जिसने आतंकवाद जैसे क्रूर अत्याचार देखे गए हैं, तो बड़ा होना दर्दनाक लग सकता है। विकास से विश्वास तक के इस प्रवास में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा सच में एक आधार स्तम्भ हैं, जो आनेवाले दिनों में जम्मू-कश्मीर को शांति समृद्धि एवं विकास का सर्वोच्चतम शिखर पर ले जाकर भारत के मुकुट मणि के रूप में प्रस्थापित करेंगे।
रुचिता राणे