केंद्रीय एजेंसियों की लगातार कोशिशों के बावजूद पीएफआई ने देश के ज्यादातर हिस्सों में अपनी मजबूत शैतानी पकड़ बना ली है। झारखंड में तो इसके बांग्लादेशी सदस्य आदिवासी महिलाओं से विवाह कर स्थायी नागरिक भी बन गए हैं। सरकार को इस दिशा में व्यापक स्तर पर कार्रवाई कर इन्हें नेस्तनाबूत करने की आवश्यकता है ताकि भारत के भविष्य को बेहतर बनाया जा सके।
ऐसा शायद ही कोई मौका हो जब देश में माहौल खराब करने के मामले में पीएफआइ का नाम सामने न आए। चाहे बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय की बात हो या सीएए और एनआरसी को लेकर माहौल खराब करने का मामला हो, हिजाब विवाद, करोली, मंदसौर, कानपुर, हाथरस, लखनऊ, आजाद मैदान मुंबई की घटनाएं। पीएफआइ इन सभी के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
साल 2013 में केरल की पुलिस ने कन्नूर के नारथ में एक कैम्प का पता लगाया। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने दावा किया कि इस कैम्प में पीएफआई के सदस्यों को बम बनाने और तलवार चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही थी। साल 2014 में केरल सरकार ने इस्लामिक स्टेट से सम्बद्ध एक हलफनामा दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि संगठन इस्लामिक एजेंडे पर गुप्त रूप से काम कर रहा है। सरकार ने दावा किया कि पीएफआई के सदस्य, साम्प्रदायिक वजहों से की गई 27 हत्याओं में शामिल थे। साथ ही हत्या के प्रयास के 86 ऐसे मामले थे, जिसमें राज्य के कम्युनिस्ट, हिंदू राष्ट्रवादी और इस्लामिस्ट शामिल थे।
अल जरूल खलीफा का गठन
साल 2016 में, एनआईए ने कुछ गिरफ्तारियां की। एनआईए ने दावा किया कि पीएफआई के सदस्य, इस्लामिक स्टेट की तर्ज पर अल-जरूल-खलीफा के गठन की योजना बना रहे थे। एनआईए ने कहा कि इस समूह का उद्देश्य पूरे भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देना था।
2001 से पाकिस्तान कनेक्शन
पीएफआई के इस्लामिक स्टेट से झुकाव रखने वाले सदस्य की तरह ही इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक सदस्य भी सिमी से अलग हो गए। साल 2001 के बाद से, इन समूहों के मुख्य सदस्य सैन्य प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान जाते रहे हैं।
कर्नाटक का ट्रेनिंग मॉडल?
साल 2004 में कर्नाटक के भटकल में दर्जनों नए रंगरूट, पहली बार ट्रेनिंग के लिए जुटे। साथ ही, इंडियन मुजाहिदीन के 2005-2008 तक चले अर्बन टेररिज्म कैम्पेन के लिए, सेफ हाउस का नेटवर्क और बम निर्माण स्थल बनाए गए।
पार्टनर एनजीओ का सुगठित जाल
एनडीएफ के अलावा कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी, तमिलनाडु के मनिथा नीति पासराई, गोवा के सिटिजन्स फोरम, राजस्थान के कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, आंध्र प्रदेश के एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस समेत अन्य संगठनों के साथ मिलकर पीएफआई ने कई राज्यों में अपनी पैठ बना ली है। इस संगठन की कई शाखाएं भी हैं। जिसमें महिलाओं के लिए नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया। गठन के बाद से ही इस संगठन पर कई समाज विरोधी व देश विरोधी गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं।
उप्र में गहरी जड़ें जमा चुका है पीएफआई
केंद्रीय एजेंसियों के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस की ओर से साझा किए गए एक खुफिया इनपुट और गृह मंत्रालय के मुताबिक, यूपी में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, वाराणसी, आजमगढ़ और सीतापुर क्षेत्रों में पीएफआई सक्रिय रहा है। दंगे भड़काने में भी इनकी भूमिका रही है। माहौल को खराब करने के लिए संगठन हर तरह की मदद करने में आगे रहता है। कानपुर की घटना भी इसी संगठन के इशारों पर हुई थी।
मप्र में मालवा बना केंद्र
मप्र के मालवा क्षेत्र में सिमी का सशक्त नेटवर्क और नेतृत्व काम करता रहा है। उज्जैन, शाजापुर, देवास, इंदौर, धार, मंदसौर, नीमच झाबुआ, आलीराजपुर में सिमी का नेटवर्क सफदर नागोरी के समय से ही फलफूल गया था। आज भी भोपाल, रायसेन के अलावा मप्र के उत्तरी अंचल में भी पीएफआई की गतिविधियां पर्दे के पीछे से सक्रिय हैं।
कुछ एनजीओ और संगठन सहयोगी
पीएफआई ने बहुत ही चालाकी से अपने मिशन के साथ दलित औऱ जनजाति सम्बद्ध समूहों और कुछ एनजीओ को अपने साथ जोड़ लिया है। भीम आर्मी, दलित पैंथर्स, मिशन आम्बेडकर, बिरसा ब्रिगेड, तंत्या सेना, इंकलाबी जमात, दीक्षाभूमि जैसे संगठन मप्र में भी एक्टिव हैं जिनकी फंडिंग की जांच की जाए तो पीएफआई के कनेक्शन सामने आने की सम्भावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
इन छोटे-छोटे संगठनों की तकरीरें बहुत कुछ स्पष्ट कर देती हैं कि मूल जड़ कहां पर है।
क्या है पीएफआई का 10% वाला फॉर्मूला
जो दस्तावेज हाल ही में पीएफआई के पास से बरामद हुए हैं उनमें एक फार्मूले का जिक्र है। जिनमें भारत को 2047 तक इस्लामिक शासन की ओर ले जाने का जिक्र किया गया है। इसके लिए उन्होंने दस्तावेजों में पुख्ता प्लानिंग भी बनाई। जब्त किए गए दस्तावेजों के पेज नंबर 3 में 10% वाले फॉर्मूले का जिक्र किया गया है। पीएफआई को विश्वास है कि अगर कुल मुस्लिम आबादी का केवल 10% भी इसके साथ जुड़ता है, तो भी पीएफआई ‘कायर बहुसंख्यक’ समुदाय को उसके घुटनों पर ला देगा और इस्लामी शासन की स्थापना करेगा।
अजाक्स की तरह सरकारी मुलाजिमों का संगठन
पीएफआई दस्तावेज में सरकारी विभागों में वफादार मुसलमानों की भर्ती कराने की योजना भी शामिल है। इनकी कार्यकारी और न्यायिक पदों के साथ-साथ पुलिस और सेना में वफादार मुसलमानों की भर्ती कराने की योजना है। दस्तावेज के अनुसार पीएफआई ने आरएसएस के खिलाफ भी योजना बनाई है। इसने आरएसएस को केवल उच्च जाति वाले हिंदुओं के कल्याण में रुचि रखने वाले संगठन के रूप में पेश करके आरएसएस और एससी/एसटी/ओबीसी के बीच एक विभाजन पैदा करने की योजना बनाई है।
तीन लाख बैंक खाते कुवैत और कतर से ऑपरेट
पीएफआई के फुलवारी शरीफ मॉड्यूल के खुलासे के बाद एनआईए की जांच में पीएफआई का एक और सच सामने आया। एनआईए का दावा है कि पीएफआई के तीन लाख फैमिली खाते हैं। इन खातों में फैमिली मेंटेनेस के नाम पर कतर कुवैत, बहरीन और सउदी अरब से मौटे तौर पर 500 करोड़ रुपये भेज गए। ये रकम मनी ट्रांसफर के जरिए अलग-अलग खातों में भेजी जा रही थी। इन खातों में एक लाख पीएफआई के सदस्यों के नाम पर और दो लाख रिश्तेदारों और परिचितों के नाम पर खाते हैं। एनआईए की एंटी टैरर विंग जांच कर रही है कि इन खातों में आ रहे पैसों का उपयोग किन कामों के लिए किया जा रहा है।
विदेशी धन स्लीपर सेल एनजीओ और दलित, जनजाति संगठनों की जांच में सामने आया कि पीएफआई कट्टरता फैलाने वाले संगठनों को पैसा देता है। पीएफआई सरकार की नीतियों के खिलाफ खासकर मुस्लिम विरोधी नीतियों को लेकर आंदोलन के नाम पर भी पैसा खर्च करता है। जेलों में बंद मुस्लिमों की मदद के लिए भी खर्च की बात जांच में सामने आई। लेकिन एनआईए ये जांच कर रही है कि इस धन का उपयोग आतंकी गतिविधियों में तो नहीं हो रहा है। दरअसल ईडी ने इसी साल जून में मनी लॉन्ड्रिग का केस दर्ज कर पीएफआई और उसके सहयोगी संगठव रिहैब इंडिया फाउंडेशन के 33 बैंक खाते सीज किए थे।
झारखंड भी नया गढ़ बन रहा है
झारखंड में बड़ी आबादी जनजातीय समाज की है और यहां मिशनरी संगठन भी दशकों से सक्रिय हैं। झारखंड में सत्ता परिवर्तन के साथ ही पीएफआई ने अपना नेटवर्क विदेशी सहायता प्राप्त संदिग्ध एनजीओ और ऐसे जनजातीय संगठनों के माध्यम से मजबूत करने पर काफी जोर दिया है, जिन्हें जनजातियों के नाम पर मिशनरीज से बड़ी धनराशि कल्याण और सशक्तीकरण के नाम पर प्राप्त हो रही है।
पीएफआई की सक्रियता पिछले कुछ सालों में यहां बेतहाशा बढ़ी है। यहां खनिज की चोरी से पीएफआई बड़ी कमाई कर रही है, इसके लिए संगठन ने बड़ा नेटवर्क तैयार किया है। झारखंड यूनिट को पहले केरल से फंडिंग होती थी लेकिन जांच में सामने आया है कि अब झारखंड से यूपी ही नहीं बल्कि बंगाल, बिहार और यहां तक कि केरल को भी फंड भेजा जाता है। एजेंसी को मिले इनपुट्स के मुताबिक संथाल परगना इलाके में खनिज की चोरी के पैसे में 25 प्रतिशत हिस्सा पीएफआई तक पहुंच रहा है।
झारखंड में पीएफआई प्रतिबंधित संगठन है फिर भी॥!
फरवरी 2018 में झारखंड सरकार ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन अगस्त 2018 में हाईकोर्ट ने प्रतिबंध हटा दिया था। इसके बाद दूसरी बार फरवरी 2019 में पीएफआई को राज्य में फिर से प्रतिबंधित किया गया। झारखंड में पीएफआई कैडर के खिलाफ एनआईए ने जांच और करवाई तेज कर दिया है।
बांग्लादेशी घुसपैठियों का जाल
पीएफआई ने अपने संगठन के विस्तार के लिए बांग्लादेशी घुसपैठियों को इस इलाके में वैध नागरिक बनाकर साजिश प्लानिंग के साथ बसाया है। इसके लिए वहां की आदिवासी महिलाओं को टार्गेट किया है। कैडर में शामिल हुए घुसपैठिए किसी ना किसी तरह आदिवासी महिलाओं से दूसरी शादी करते हैं और इसके बाद इन आदिवासी महिलाओं के नाम पर जमीन खरीदकर यहां के स्थायी निवासी बन जाते हैं, जिससे सुरक्षा एजेंसी की जांच में उनके पास वहां के स्थायी निवासी होने के कागज पूरे होते हैं।
10 हजार जनजाति महिलाओं से शादी औऱ नेटवर्क
एनआइए को जांच में पता चला है कि झारखंड के इन इलाकों में 10 हजार से अधिक जनजाति महिलाओं से प्लान के मुताबिक पीएफआई से जुड़े लोगों ने शादी की है। एनआइए इसका रिकार्ड तैयार कर रही है। झारखंड में पीएफआई की विशेष सोच है कि इनका संगठन मजबूत होगा तो फंड हासिल करने और आतंकियों को शरण लेने में आसानी होगी। साथ ही वोट की राजनीति के चलते घुसपैठियों को बसाने से पीएफआई की ताकत बढ़ेगी।
पीएफआई पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा रही सरकार? इस सवाल के दो बुनियादी आयाम हैं। पहला तो यह कि पीएफआई जैसे संगठन प्रतिबंध के बावजूद नए संस्करणों के साथ देश में लगातार सक्रिय रहते हैं। मौजूदा पीएफआई सिमी का बदला हुआ संस्करण है इसलिए यह कहा जाना कि पीएफआई पर केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंध नहीं लगाया जाना सरकार की विफलता है, यह एकपक्षीय विश्लेषण है। सच्चाई तो यह है कि भारत के विरुद्ध जो एक वैश्विक गिरोहबंदी पिछले कुछ समय से खड़ी हुई है उसका समाधान भारत के अंदर से ही होगा। कानूनी प्रावधानों के इतर भारत विरोधी उन तत्वों को चिन्हित और पकड़ने की आवश्यकता है जो हमारी समाज और राज व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। जाहिर है पीएफआई का नाम मात्र चुनौती नहीं है। असल चुनौती तो पीएफआई जैसी मानसिकता की है जिसके विरुद्ध केवल विधिक लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। जिस मॉडल पर पीएफआई काम कर रहा है वह असल मायनों में दीर्धकालिक जिहाद है जिसमें अंततः भारत के मुसलमानों को रणनीतिक तरीके से गजवा ए हिंद के लिए तैयार करना है। दुर्भाग्य से देश के दलित, जनजाति और वंचित वर्ग को उनके उन्नयन के नाम पर भी बरगलाकर एक ऐसा युग्म खड़ा किया जा रहा है जो अंततः जिहाद को सफल बनाने में सहायक हो।
मिशनरीज, सेक्युलर ब्रिगेड और वामपंथी लॉबी को वैश्विक इशारों पर अपने पक्ष में करने में भी यह संगठन काफी सफल रहा है। सवाल यह है कि इस खतरनाक चुनौती से भारत कैसे निबटे? बेहतर होगा कि सरकार के साथ समानांतर रूप से समाज में सक्रिय सज्जन शक्ति इस संगठन के मंसूबों को बेनकाब करने के लिए आगे आएं।