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नए शीर्ष पर दूरसंचार

नए शीर्ष पर दूरसंचार

by अभिषेक कुमार सिंह
in तकनीक, विशेष, सामाजिक, सितंबर- २०२२
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मानव सभ्यता जिस प्रकार तरक्की कर रही है, 5जी तकनीक का होना भविष्य के लिए अति आवश्यक है। भविष्य की कई बड़ी योजनाएं इसके आधार पर अपनी बुनियाद को जमीनी आकार दे सकती हैं। हालांकि इसके विकिरण से होने वाले नुकसानों को लेकर लोगों के मन में चिंता होना जायज है। अतः यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मानव सहित पशु-पक्षियों पर रेडिएशन का दुष्प्रभाव न हों।

मानव सभ्यता को आज हम तरक्की के जिस शीर्ष पर देखते हैं, उसमें बोलचाल और भाषाई आदान-प्रदान की सबसे बड़ी भूमिका है। कोरोना काल में जब दुनिया एक प्रकार से थमी हुई थी, इंटरनेट के जरिए हुए संचार ने तमाम वे कामकाज जारी रखे जिससे आम से लेकर खास लोगों की जिंदगी में कोई बड़ी रुकावट नहीं आई। यह जिस इंटरनेट नेटवर्क की बदौलत सम्भव है, उसकी अगली पीढ़ी के नेटवर्क यानी 5जी की शुरुआत को लेकर हमारे देश में पिछले दिनों एक बड़ी नीलामी सम्पन्न हुई।

इस वर्ष 26 जुलाई, 2022 को 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी आयोजित कराई गई जो 1 अगस्त को खत्म हुई। नीलामी के आखिरी दिन 5जी स्पेक्ट्रम की बिक्री से सरकार को 1,50,173 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। दावा है कि यह भारत में हुई अभी तक की सबसे बड़ी नीलामी भी है। इस नीलामी में मुकेश अम्बानी, सुनील भारती मित्तल और गौतम अडाणी की कम्पनियों ने 5 जी स्पेक्ट्रम के रेडियो वेव के लिए बोली लगाई। सरकार ने बताया कि नीलामी के लिए रखे गए कुल स्पेक्ट्रम का 71 फीसदी बेचा जा चुका है। नीलामी में रिलांयस जियो की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा रही। रिलांयस जियो इन्फॉम और एक अन्य कम्पनी भारती एयरटेल ने दावा किया है कि वे जल्द ही दिल्ली समेत कई प्रमुख शहरों में 5जी इंटरनेट की पेशकश करेंगी। उल्लेखनीय है कि भारत में 5जी डिवाइसेज की संख्या जून 2022 में 5 करोड़ को पार कर गई, जो कुल 60 करोड़ स्मार्टफोन का लगभग 12 फीसदी था। मोटे तौर पर 5जी नेटवर्क में इंटरनेट की स्पीड 4 जी नेटवर्क के मुकाबले 10 गुना तक ज्यादा होगी। इसे सरल भाषा में इस तरह समझ सकते हैं कि 5जी नेटवर्क के जरिए मोबाइल पर किसी फिल्म को बस कुछ ही सेकेंड में डाउनलोड किया जा सकता है।

वैसे तो दुनिया में हर तरह की तकनीक में वक्त के साथ बहुत सुधार हुआ है, लेकिन पिछले चार दशकों में जो तेजी सूचना तकनीक के मामले में आई है- उसने तो कमाल ही कर दिया है। ऑनलाइन खरीदारी, पढ़ाई, अदालती सुनवाई से लेकर कोविड टीकाकरण तक के काम में इंटरनेट और मोबाइल (स्मार्टफोन) हमारे मददगार साबित हुए। इस दौरान जहां तक सम्भव था, लगभग प्रत्येक निजी और सरकारी कम्पनी ने अपने कर्मचारियों को इंटरनेट के जरिए वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) की सुविधा प्रदान की। लेकिन अभी तक देश में इंटरनेट जिस नेटवर्क पर चलता रहा है, वह दूरसंचार की चौथी पीढ़ी का है। यूं तो चौथी पीढ़ी का नेटवर्क खराब नहीं है, लेकिन कई तरह के कार्यों में जो तेजी अपेक्षित है-वह इसमें आना सम्भव नहीं है।

दसियों गुना ज्यादा तेजः

भारतीय दूरसंचार विभाग के अनुसार 5जी तकनीक 4जी के मुकाबले में दस गुना बेहतर डाउनलोड स्पीड देने और स्पेक्ट्रम क्षमता में तीन गुना तक बेहतर नतीजे देने में सक्षम है। 2जी और 3जी वाले नेटवर्क को इस्तेमाल कर चुके उपभोक्ताओं को इसका अहसास होगा कि कैसे कोई संदेश भेजने या फोटो अपलोड-डाउनलोड करने में कितना वक्त लगता है। पुरानी पीढ़ी के इन नेटवर्क में कोई फिल्म डाउनलोड करना या कोई सजीव प्रसारण (लाइव टेलीकास्ट) इंटरनेट के जरिए देखना मुमकिन नहीं होता था। 1-जी वायरलेस तकनीक में कोई बातचीत खरखराहट भरी या बीच में कई बार टूटती वार्ता के साथ सम्भव हो पाती थी। इसके बाद थोड़ी बेहतर आवाज और संदेशों की आवाजाही की सुविधा 2जी में बेसिक डेटा ट्रांसफर सर्विस के रूप में मिली। असल में 2जी को पहली बार स्पष्ट आवाज के साथ एसएमएस भेजने की सुविधा देने और मोबाइल इंटरनेट के मामले में एक बेहतर शुरूआत माना जा सकता है। जहां तक 3जी की बात है तो इस नेटवर्क के जरिए इंटरनेट पर आधुनिक किस्म का कम्युनिकेशन जैसे कि वेबसाइट्स को एक्सेस करना, वीडियो देखना, म्यूजिक सुनना और स्मार्टफोन से तेजी से ईमेल भेजना मुमकिन हुआ। 4-जी-एलटीई ने इसे और तेज गति प्रदान की। कह सकते हैं कि 2जी और 3जी नेटवर्क हमारे समय की बर्बादी ही साबित होता था। लेकिन चौथी पीढ़ी के यानी 4जी नेटवर्क के आने के बाद इंटरनेट जगत में एक नई क्रांति आ गई। इससे मोबाइल गेमिंग, ऑनलाइन फिल्म देखना जैसे कई काम आसान हो गए और उनमें तेजी आ गई। सोशल मीडिया जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और यूट्यूब या नेटफ्लिक्स पर वीडियो देखना और फोटो व वीडियो वाले संदेशों का आदान-प्रदान आसान हो गया। कोरोना काल में वीडियो कॉल के जरिए मित्रों-परिजनों को परस्पर जोड़े रखने में 4जी तकनीक ने काफी मदद की। यूं तो 4जी नेटवर्क से हमारी कई मुश्किलें हल हुई हैं, लेकिन अभी भी कई काम ऐसे हैं, जहां 4जी नेटवर्क भी अटक जाता है। जैसे वर्चुअल रियलिटी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी नई तकनीकों के इस्तेमाल में जिस गति के इंटरनेट कनेक्शन की आवश्यकता होती है, वहां 4जी से हमें कोई ज्यादा सहायता नहीं मिल पाती है। खुद चलने वाली (स्वचालित) कारों का मामला हो या फैक्ट्री में रोबोट से काम करवाना या फिर स्मार्ट होम की अवधारणा को साकार करना है- इन सभी जगहों पर काफी तेज काम करने वाले इंटरनेट या नेटवर्क की जरूरत होती है। यही वजह है कि इन सभी कार्यों के लिए अगली पीढ़ी के 5जी नेटवर्क के बारे में सोचा गया।

5जी के बिना पिछड़ जाएंगे

आसान शब्दों में 5जी का मतलब हाई स्पीड इंटरनेट होता है। इंटरनेट से संचालित होने वाली अगली पीढ़ी की जो तकनीकें तैयार हो चुकी हैं, उन्हें चलाने के लिए अब 5जी की जरूरत है जहां अपेक्षित स्पीड मिल सकती है। मोटे तौर पर 5जी या फिफ्थ जेनरेशन टेक्नीक को हम ब्रॉडबैंड सेल्युलर नेटवर्क की वह तकनीक कह सकते हैं जो मौजूदा सबसे तेज सेल्युलर इंटरनेट कनेक्टिविटी यानी 4-जी (असलियत में 4जी-एलटीई यानी फोर्थ जेनरेशन लॉन्ग टर्म इवॉल्यूशन) की जगह लेगी। यानी 5जी तकनीक के साथ एक नए तरह की वायरलेस कनेक्टिविटी का समय शुरू होने जा रहा है जिसकी स्पीड इतनी होगी कि घटनाओं के घटने और उनकी सूचना पहुंचने के बीच लगने वाला समय ना के बराबर होगा। इसका बड़ा लाभ यह होगा कि 5जी के जरिए न सिर्फ अभी की तरह लोग आपस में जुड़े होंगे बल्कि डिवाइसेज और मशीनें भी आपस में कनेक्ट होंगी और आपस में लगभग रियल टाइम में संवाद कर सकेंगी। इस तरह जल्द ही घर (स्मार्ट होम), कार (ड्राइवरलेस कारें), मोबाइल और घरेलू उपकरणों जैसी तमाम चीजों के आपस में कनेक्ट होने वाले जिस स्मार्ट युग की अभी हम बातें ही करते हैं, उन सभी को 5जी तकनीक से नए पंख मिल सकते हैं।

5जी तकनीक का आधार क्या है?

5जी तकनीक एक तरह की वायरलेस कनेक्टिविटी है, जिसमें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम यानी रेडियो वेव्स (रेडियो तरंगों) का इस्तेमाल होता है। जाहिर है, 5जी तकनीक को जानने के लिए हमें रेडियो स्पेक्ट्रम के बारे में समझना पड़ेगा। सामान्य वैज्ञानिक परिभाषा के मुताबिक एक निश्चित समय अंतराल में कोई रेडियो तरंग जितनी बार खुद को दोहराती है, वह वेव फ्रीक्वेंसी कहलाती है। यह फ्रीक्वेंस हर्ट्ज में नापी जाती है। कोई रेडियो तरंग खुद को एक बार दोहराने में जितना समय लेती है, उसे उसकी वेवलेंथ कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि जब तरंगों की फ्रीक्वेंसी को बढ़ाया जाता है तो उनकी वेवलेंथ कम होने लगती है। ऐसे में फ्रीक्वेंसी अधिक होने (या वेवलेंथ कम होने) पर तरंगें तेजी से एक से दूसरी जगह पर तो पहुंचती हैं लेकिन ज्यादा दूरी तक नहीं जा पाती हैं। इसकी वजह यह है कि वेवलेंथ कम होने की वजह से रेडियो तरंगें विभिन्न सतहों को भेद नहीं पाती हैं। इसके विपरीत फ्रीक्वेंसी कम और वेवलेंथ ज्यादा होने पर रेडियो तरंगे कम गति होने पर भी ज्यादा दूरी तय कर सकती हैं। इस परिभाषा को मोबाइल नेटवर्क के संदर्भ में देखें, तो कह सकते हैं कि 1जी, 2जी, 3जी सेवाओं में 4जी की तुलना में लोअर फ्रीक्वेंसी बैंड पर इंटरनेट उपलब्ध होता है। इसलिए 1जी, 2जी, 3जी की स्पीड कम लेकिन कवरेज ज्यादा होता है। यही वजह है कि दूर-दराज के इलाकों में धीमी रफ्तार की 2जी या 3जी इंटरनेट कनेक्टिविटी आसानी से मिल पाती है। लेकिन 4जी सेवाओं में अपेक्षाकृत हायर फ्रीक्वेंसी बैंड पर इंटरनेट उपलब्ध होता है जिससे तेज कनेक्टिविटी तो मिलती है लेकिन सुदूर इलाकों या बंद कमरों में कई बार 4जी कवरेज नहीं मिल पाता है। इस कारण कई बार ऐसा होता है जब बंद कमरों या बेसमेंट में मौजूद होने पर 4जी तकनीक वाले मोबाइल फोन पर बात नहीं हो पाती है। लेकिन 5जी तकनीक में इन सारी दिक्कतों का हल है।

विकिरण को अनदेखा न करें

जब से दुनिया में मोबाइल इंटरनेट का जमाना आया है, उसके विकिरण से इंसानी सेहत पर दुष्प्रभाव के दावे किए जा रहे हैं। कोरोना काल में तो 5जी तकनीक को सीधे-सीधे कोरोना वायरस के प्रसार से भी जोड़ा गया था। दावा किया गया था कि 5जी तकनीक का जगह-जगह परीक्षण होने की वजह से ही कोरोना तेजी से फैल रहा है। असल में, बात अकेले 5जी की नहीं हैं। दुनिया में ऐसे दर्जनों शोध हैं जो मोबाइल फोन और इनके नेटवर्क के लिए आम तौर पर रिहाशयी इलाकों में इमारतों के ऊपर मौजूद मोबाइल टॉवरों से हानिकारक विकिरण फैलने का दावा करते रहे हैं। हमारे देश में ही 2011 में संचार तथा सूचना तकनीक मंत्रालय की एक हाई लेवल कमिटी ने शोध कर निष्कर्ष दिया था कि मोबाइल फोन और उसके टॉवर, दोनों ही जीवधारियों के लिए समस्या हैं। इस कमिटी ने मोबाइल फोन और उनके टॉवरों से रेडियो फ्रीक्वेंसी (आरएफ) एनर्जी के रूप में निकलने वाले विकिरण को तितलियों, मधुमक्खियों और गौरैया (चिड़िया) के विलुप्त होने के लिए भी जिम्मेदार माना था। उसी दौरान ऐसा ही नतीजा जेएनयू में एक सरकारी प्रोजेक्ट के तहत चल रही रिसर्च में निकाला गया था। वहां चूहों पर हुए अध्ययन का नतीजा था कि मोबाइल फोन का विकिरण प्रजनन क्षमता पर असर डालने के अलावा मानव शरीर की कोशिकाओं के डिफेंस मैकेनिज्म को नुकसान पहुंचाता है। इन शोधों का साझा निष्कर्ष यह निकला था कि सेलुलर फोन और टॉवरों से पैदा होने वाला रेडियो-फ्रीक्वेंसी (आरएफ) फील्ड शरीर के उत्तकों (टिश्यूज) पर असर डालता है। कुछ शोध यह भी कहते हैं कि यह ऊर्जा ब्रेन ट्यूमर, कैंसर, आर्थराइटिस, अल्झाइमर और हार्ट डिजीज जैसे रोगों का कारक हो सकती है। जिस तरह माइक्रोवेव में पकाए जाने वाले भोजन में मौजूद पानी इसके विकिरण के असर से सूख जाता है, उसी तरह मोबाइल रेडिएशन खून की गुणवत्ता और दिमाग की कोशिकाओं को प्रभावित करता है। गौर करें कि अमूमन प्रत्येक मोबाइल टॉवर के दो-ढाई मील के दायरे तक में यह रेडिएशन फैला रहता है। शायद यही वजह है कि एक बार डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकम्युनिकेशंस (डॉट) ने इस विकिरण में 10 फीसदी कमी करने का सुझाव दिया था।

वैज्ञानिकों का मानना है कि एक्स-रे या गामा-रे जैसी हाई-फ्रीक्वेंसी तरंगें इंसान और बाकी जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक होती हैं, लेकिन 5जी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा स्पेक्ट्रम इन तरंगों के स्पेक्ट्रम से काफी नीचे है। इसके अलावा, वैज्ञानिक 5जी तरंगों को खतरा बताने वाले शोधों पर टिप्पणी करते हुए यह भी बताते हैं कि इन शोधों में यह तो देखा गया है कि तरंगें मस्तिष्क की कोशिकाओं पर असर डालती हैं, लेकिन इस पक्ष की अनदेखी की गई है कि ये मनुष्य की त्वचा को पार ही नहीं कर पाती हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि बीते कुछ वर्षों में पूरी दुनिया में मोबाइल फोन का इस्तेमाल कई गुना बढ़ चुका है। ऐसे में यदि मोबाइल रेडिएशन किसी भी तरह से कैंसर की वजह होता तो अब तक इसके मामलों में उल्लेखनीय बढ़त देखने को मिल चुकी होती। यही नहीं, खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी इस बारे में कह चुका है कि बीते दो दशकों में हुए कई शोध यह कहते हैं कि मोबाइल फोन आने वाले समय में कई स्वास्थ्य समस्याओं की वजह बन सकता है। लेकिन सैद्धांतिक रूप से इनके सही साबित होने के बावजूद अभी तक व्यावहारिक तौर पर मोबाइल फोन के इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने के कोई सबूत नहीं मिल पाए हैं। दूसरे यह मान्यता फिजूल है कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों (वेव्स) के जरिए कोई जैविक (बायोलॉजिकल) वायरस एक से दूसरी जगह पर पहुंच सकता है। 5जी तंरगों से सिर्फ कम्प्यूटर वायरस ही एक से दूसरे कम्प्यूटर तक पहुंच सकते हैं।

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