महिलाओं के लिए असुरक्षित वातावरण

कुछ साल पहले शाहरुख खान की दो फिल्में डर और अंजाम आई थी। ये दोनों ही फिल्में एकतरफा प्यार की कहानी पर आधारित थी। दर्शकों ने इन फिल्मों को खूब सराहा था। ये फिल्में महज़ मनोरंजन के लिए बनाई गई थी। तब इन फिल्मों को बनाते समय शायद ही डायरेक्टर ने यह सोचा होगा कि आने वाले समय में इन फिल्मों की कहानी समाज में दोहराई जाएगी। लेकिन हाल ही में झारखंड के दुमका जिले के जरुवाडीह की घटना को देखकर ऐसा लगा मानो इतिहास खुद को दोहरा रहा है। यहां एक 16 साल की नाबालिग लड़की को सिरफ़िरे आशिक़ ने एकतरफा प्यार के चक्कर में आग लगाकर जिंदा जला दिया और आश्चर्य की बात यह है कि इस घटना को अंजाम देने के बाद आरोपी पुलिस कस्टड़ी में हंसता हुआ दिखाई दिया। जिसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। सिर्फ इतना ही नहीं झारखंड के मुख्यमंत्री इस घटना के बाद आरोपी का बचाव करते दिखे। यही वजह है कि अभी अंकित का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि दुमका में एक और आदिवासी नाबालिग लड़की का बलात्कर करके पेड़ से लटकाकर मार डाला। एक धर्म विशेष के लड़को के द्वारा हिन्दू लड़कियों पर बढ़ते बलात्कार कहीं न कहीं गहरी साजिश की और इशारा कर रहे है। ऐसे में सवाल कई हैं, लेकिन समाज के साथ ही व्यवस्था भी मूकदर्शक बनी हुई है। पहला सवाल तो यही है कि आख़िर आरोपियों के मन मे कोई डर क्यों नहीं बचा है? आखिर इसके पीछे की क्या मानसिकता है? इसके अलावा भी सवाल और भी हैं पर इनके जवाब मिलना मुश्किल है!
12वीं क्लास में पढ़ने वाली अंकिता के प्रति शाहरुख नाम के लड़के को एक तरफा प्यार हो गया। उसका प्यार दीवानेपन की सारी हद्दे पार कर गया और जब अंकिता ने उसकी दोस्ती अस्वीकार की तो शाहरुख ने पेट्रोल डालकर अंकिता को आग के हवाले कर दिया। इस घटना से एक नहीं दो नौजवान जिंदगियां बर्बाद हो गई। पहली अंकिता जिसके माता पिता ने उसे कितने नाजों से पाला होगा और जिसने अपनी पढ़ाई को प्राथमिकता दी। दूसरा शाहरुख जिसे प्यार और दीवानगी में फर्क ही समझ नहीं आया। वहीं यह मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि देश का दिल कहे जाने वाले दिल्ली में भी इसी तरह की घटना को अंजाम दिया गया। यहां भी एक मजनूं ने मासूम लड़की को एकतरफा प्यार के चलते गोली मार दी। इन दोनों ही घटनाओं में आरोपी एक धर्म विशेष का है। जिस पर तमाम राजनेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते नहीं थकते, लेकिन सवाल यही है कि आख़िर देश की आधी आबादी कब तक खुद को समाज में असुरक्षित पाएगी? उन पर होने वाले अत्याचार आखिर कब बन्द होंगे? वैसे देखा जाए तो एक तरफ़ा प्यार का सबसे बड़ा दुश्मन उम्मीद ही होता है। कई बार प्यार में रिजेक्शन का अपमान इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा देता है। इस घटना से किसका भला हुआ? मासूम लड़की जिसे कितने अरमानों से उसके माता पिता ने पाल-पोषकर बड़ा किया वह समय से पहले ही प्यार में बलि चढ़ा दी गयी। वही लड़के ने भी इस तरह की घटना को अंजाम देकर क्या हासिल कर लिया, क्योंकि कहीं न कहीं इस घटना के बाद आरोपी को ताउम्र अपराधी का तमगा झेलना पड़ेगा।
इस तरह की घटनाओं के बाद ओछी राजनीति भी अपराधियो को बढ़ावा देने का ही काम करती है। तभी तो इतनी बड़ी घटना घटित हो जाने के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री पिकनिक मनाने में व्यस्त रहे और जब उनसे इस घटना का जवाब मांगा गया तो यह कहने से भी बाज नहीं आये की देश मे इससे भी बड़ी घटनाएं घट चुकी है। सोचिए हमारे राजनेताओं की सोच कितने गर्त में जा रही है। उनके इसी रवैये के चलते देश में अपराधियों को कानून का भय नहीं रहता और तभी आये दिन देश में अपराध बढ़ते जा रहे है और हमारे राजनेता दूसरे के कुर्तों के दाग दिखाकर खुद को पाक साफ बता रहे है।
वर्तमान दौर में हमारे देश की राजनीति भी काफ़ी सिलेक्टिव होती जा रही है। तभी तो ऐसी वारदात के घट जाने के बाद हमारे राजनेता बड़े गर्व से इन घटनाओं का महिमा मण्डन करते नहीं थकते है। यही वजह है कि ऐसी घटनाएं आये दिन समाज में बढ़ती जा रही है। देखा जाए तो अब अपराधियों को कानून का कोई डर नहीं रह गया। इसकी सबसे बड़ी वजह हमारे राजनेता है जो अपराधियों के बचाव करने से भी बाज नहीं आते है। क्या इतने गम्भीर मुद्दे पर भी हमारे देश के राजनेताओं की महिलाओं के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती। क्या राजनीति से ऊपर उठकर देश में महिला सुरक्षा के मामलों को गम्भीरता से नहीं लिया जा सकता। जब तक अपराधियों को सज़ा नहीं मिल जाती इस तरह की घटनाओं पर लगाम नहीं लग सकती। अब झारखंड को ही लीजिए, पहले अंकिता और अब एक और आदिवासी लड़की का पहले रेप और फिर हत्या करके पेड़ पर लटका देना। कहीं न कहीं यह दिखाता है कि महिला सुरक्षा के नाम पर केवल देश में बोल-बच्चन की रवायत चल रही, बाकी महिलाओं की स्थिति समाज में उपभोग की वस्तु जैसी ही है।
इतना ही नहीं हमारे देश के कानून के सम्बंध में यह बात बहुत प्रचलित है कि कानून के हाथ बहुत लम्बे होते है। जिसका सीधा सा अर्थ है कि कानून से कोई नहीं बच सकता। लेकिन वर्तमान दौर में देखे तो अब अपराधियों के हौसले बहुत बुलंद हो गए है। उन्हें कानून का तो मानो कोई डर ही नहीं रह गया है। एनसीआरबी की रिपोर्ट की माने तो साल 2020 की तुलना में साल 2021 में महिला अपराध में 15 फ़ीसदी का इज़ाफा हुआ है। देश की राजधानी दिल्ली महिला असुरक्षा के मामले में अव्वल दर्जे पर है। सोचने वाली बात यह है कि जब हमारे देश की राजधानी में ही माहिलाएं सुरक्षित नहीं है तो फिर बाकी राज्यों का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। राजस्थान और मध्यप्रदेश में बढ़ते बलात्कार के आंकड़े बता रहे है कि हमारे देश की आधी आबादी किस दर्द से गुजर रही है। हमारे देश में न्याय प्रक्रिया की धीमी रफ़्तार भी महिला अपराध को बढ़ावा देने का ही काम कर रही है। जो कहीं न कहीं आधी आबादी के लिहाज से दुःखद  और पीड़ादायक है।
-सोनम लववंशी

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