भारतीय रेलवे स्टेशन पर विलायती

यह आधी तस्वीर है। इस फिरंगन के चार बच्चे हैं। सबों में दो ढाई वर्ष का अंतर रहा हो शायद। जिस समय चुपके से मैंने यह छवि उतारी, वे तीन अपने पिता के साथ कुछ खाद्य पदार्थ लेने गए थे। यह देवी प्लैटफॉर्म पर पहुंचते ही चादर बिछा कर बैठ गईं। तत्क्षण कुछ महीन कढ़ाई अथवा कलाकर्म में डूब गई। लगभग आधे घंटे तक मैं यहीं बैठा रहा। महिला ने सिर उठाया ही नहीं। पांच दस मिनट के बाद जब इसका पूरा कुनबा जुटा तब यहां से गुजरने वाला हर भारतीय इन्हें किसी अजूबे की तरह घूरने लगा। कुछ तो खड़े होकर नजरें गड़ाए ही रहे। पता नहीं–किस ग्रह से आए फिरंगी!! या यहां कोई तमाशा करतब दिखलाया जा रहा !

भारत में अंग्रेजों को महाकौतुक से देखा जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि विलायती माने सेक्स मशीन। अगर वह शॉर्ट्स में घूम रहीं तो लेनदेन के लिए तैयार होंगी!! कुछ लोग इन्हें एलियन का सहोदर भी मान लेते हैं। कुछ मानते हैं कि ये ही असली अंग्रेजी बोलने वाले साहब हैं। यही वो लोग हैं, जिन्होंने हम पर राज किया। कुछ इनकी सहायता करने को आतुर रहते हैं। जैसे कि अभी ही एक महाशय इन्हें गलत ट्रेन में धकेलने के फेर में थे‌।‌ पतिदेव अत्यंत रिजर्व और नो नौनसेंस व्यक्ति मालूम पड़ते हैं। वह फौरन भांप गए कि गड़बड़ है। मुझे लगता है कि उन्होंने ऐसे कई मददगारों को अब तक झेल लिया होगा।

मैंने इन लोगों में मानवीय सहजता देखी। चारों बच्चे नीचे बैठ गए। चादर के बाहर भी। यह गंदा है! वह गंदा है वाला भाव न था। माताजी काम में डूबी थीं। बीच बीच में अपनी बड़ी बेटी के प्रश्नों का उत्तर भी देती जातीं। ट्रेन आने से ऐन पहले चादर झाड़ कर खड़ी हो गईं। कोई भागमभाग रेलमपेल नहीं। सहायता को आतुर भारतीय जन सहायता करने को बढ़े। बस चलता तो फिरंगी महिला को गोदी में उठाकर कोच तक पहुंचा आते। लेकिन वह पुरुष चुपचाप डिजिटल पट पर सूचनाएं देखकर अपनी दिशा में बढ़ चला। पीछे पीछे बच्चे और पत्नी।

मैं उस व्यक्ति से बात करना चाहता था। चूंकि वह ग्वालियर स्टेशन से रेल पकड़ रहा था, इसलिए मेरी रुचि अधिक थी। वह भी यह जानने में कि उसने ग्वालियर में क्या देखा। क्या वह असली भारत को देख पाया या कुछ चिन्हित स्थलों को ही देख सका। किन्तु उसके रिजर्व व्यक्तित्व ने मुझे उससे दूर रखा। मैं देख सकता हूं कि भारत में अंग्रेजों को घूरने की असाध्य बीमारी है। भारतीयों की इस बीमारी से वे कितना असहज अनुभव करते होंगे। इसी कारण वे संशय से भर उठते हैं कि मददगार की मंशा क्या है। खैर..।

महत्वपूर्ण बात यह कि एक युवा ब्रिटिश दंपती को चार बच्चों के साथ देखना सुखद था। हमारे देश का मध्यवर्ग तो अब एक बच्चे में ही टें बोल जा रहा। बहुत तो बच्चा चाहते ही नहीं। ये चार को लिए इस गर्मी में ग्वालियर जैसे गर्म क्षेत्र का भ्रमण कर रहे। मस्त..मगन, अपनी दुनिया में डूबे हुए लोग। मुझे अक्सर यह लगता है कि ये अलग अलग अनुभवों के साथ स्वदेश लौटते होंगे। कुछ लोगों को भारत बहुत अच्छा लगता होगा और कुछ अत्यंत कटु अनुभवों के साथ वापस जाते होंगे। फिलहाल मेरा यह मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत के लोगों में एक सांस्कृतिक परिवर्तन आया है। निश्चय ही उस परिवर्तन ने उनमें राष्ट्र के प्रति कर्तव्यबोध को जगाया है। संभवतः उसी कर्तव्यबोध और दायित्व-धर्म के कारण निकट भविष्य में वे विदेशी अतिथियों को यहां सहज होने का अनुभव करा सकेंगे।

– देवांशु झा

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