हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
तमाम बंदिशों के बावजूद निजाम के विरुद्ध जनप्रतिरोध

तमाम बंदिशों के बावजूद निजाम के विरुद्ध जनप्रतिरोध

by हिंदी विवेक
in मीडिया, राजनीति, विशेष, संघ, सामाजिक
0

हैदराबाद राज्य के 88% हिंदुओं पर निजाम और उनकी खाकसार पार्टीका दमन आरंभहो चुका था। उस दमन चक्र मेंनिजाम सेना,इत्तेहादुल मुस्लिमीन,रोहिले, पठान और अरब के लोग शामिल थे।यह उत्पीड़न वर्ष1920 के बाद शुरू हुआ और लगातार बढ़ता ही गया।सन्1938 मेंस्थिति औरभी भयावह हो गई। हिंदुओं के लिए शिकायतें दर्ज कराने के मार्ग भी बंद कर दिए गए। अन्यायी निजाम राजशाही के विरुद्ध नि:शस्त्र प्रतिरोध करने के अतिरिक्त हिंदुओं के समक्ष कोई अन्य विकल्पनहीं बचा था।

राजनीतिक चेतना जागरण के प्रयास

हैदराबाद राज्य में हिंदुओं के लिए उस समय दो संस्थाएं काम कर रहीं थीं। पहली थीआर्य समाज और दूसरी थी‘हैदराबाद हिंदू सब्जेक्ट्स लीग’अथवा‘हिंदू सिविल लिबर्टीज यूनियन’। इनमें आर्य समाज की स्थापना धारूर गांव (जिला-बीड, महाराष्ट्र)में 1880में और हैदराबाद के सुल्तान बाजार में 1892 में हुई थी। सन्1911तक राज्य में आर्य समाज की 40 शाखाएं खुल चुकी थीं।वर्ष1940 तकइनकी संख्या बढ़कर 250हो गई और सदस्य संख्या लगभग चालीस हजार। भाई श्यामलाल, भाई बंशीलाल, पं.नरेंद्र, पं दत्तात्रय प्रसाद, केशवराव कोरटकर, श्री चंदूलाल, बैरिस्टर विनायकराव विद्यालंकार,वेदमूर्ति पं. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर आदि आर्य समाज के नेताओं ने उस कठिन कालखंड में भी समाज सुधार के लिए काम किया। साथ हीशुद्धिऔर हिंदुत्व की रक्षा के लिएभी कार्यकिया गया(चंद्रशेखर लोखंडे,हैदराबाद मुक्ति संग्राम का इतिहास, श्री घूड़मल प्रह्लाद कुमार आर्य धर्मार्थ ट्रस्ट, हिंडोन, राजस्थान, 2004, पृ.35,49,55)।

दिनांक 11-12 जून,1921को हैदराबाद के विजयवर्धिनी थिएटर में ‘दक्षिण हैदराबाद राजनैतिक परिषद’ का आयोजन किया गया।अन्य स्थानों पर ऐसे अधिवेशनों के आयोजन पर प्रतिबंध लगाया गया।हैदराबाद राज्य में अधिवेशनों पर पाबंदी होने से नवंबर 1926 और मई 1928 में राज्य की जनता की राजनीतिक माँगे रखने के लिए मुंबई और पुणे में अधिवेशन आयोजित किये गए।27 अगस्त,1931 को ‘हैदराबाद राज्य राजनैतिक परिषद’ का अकोला, विदर्भ, मेंअधिवेशन हुआ। परिषद में निजाम की प्रतिगामी नीतियों औरउनमें सुधारके संबंध में प्रस्ताव पारित हुए। इस विषय पर‘केसरी’ने लिखा:“राज्य के बाहर कितनी परिषदें भविष्य में आयोजित की जाएँगी? राज्य की जनता स्वयं जबतक राज्य में आंदोलनरत नहीं होगी,तबतक अन्याय से उनको छुटकारा नहीं मिलेगा। यह पक्का समझकर रियासत में ही विधायक आंदोलन शुरू किया जाए”(केसरी 1 सितंबर,1931)। वर्ष1920 से 1938 तक के कालखंड में राजनैतिक चेतना जाग्रत करने का कार्य धीमी गति से ही सही,किंतु निरंतर चलता रहा।

जब परिस्थितियों ने विकराल रूप धारण किया

परिस्थितियों ने उस समय विकराल रूप धारण कर लिया जब 6अप्रैल,1938 को हैदराबाद में हिंदुओं को लक्ष्य बनाते हुए मुस्लिम गुंडों ने बड़ा दंगा किया।परन्तु उस दर्दनाक घटना पर भी निजाम और उसकी पुलिस मूकदर्शक बनी रही।निजाम सरकार ने उलटे 24 हिंदुओं पर हत्या का आरोप मढ़ते हुए अभियोग चलाया। हिंदू आरोपियों पर अभियोग चलाने के लिए हिंदुओं ने वीर नरीमन एवं अधिवक्ता भूलाबाई देसाई को बुलाया। उनमें से वीर नरीमन को निजाम ने अपने राज्य में प्रवेश ही नहींकरने दिया और दूसरे भूलाबाई आ तो गए, पर उनके लिए ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी गई कि उन्हें अपना बोरिया बिस्तर समेटकर स्वयं वापस जाना पड़ा।16 जून को अखिल भारतीय प्रजा परिषद के अध्यक्ष और कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य डॉ.पट्टाभि सीतारमैय्या का भी हैदराबाद राज्य में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया।

2 जून,1938 को बैरिस्टर श्रीनिवासराव शर्मा की अध्यक्षता में ‘हैदराबाद राज्य महाराष्ट्र परिषद’ लातूर में प्रारंभ हुई। नागरिक स्वतंत्रता और हैदराबाद के दंगों को लेकर प्रस्ताव रखने का प्रयास हुआ। प्रस्ताव की प्रति पहले से प्रस्तुत किए जाने के बाद भीतहसीलदार द्वारा परिषद प्रतिबंधित कर दी गई और बैठक नहीं हो पाई(केसरी, 7जून,1938)।बाहर के पंद्रह समाचार पत्रों के राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंधित लगाने संबंधी आदेश 22 अगस्त,1938 को जारी किए गए।सितंबर 1938 में और भी पांच-छह समाचार पत्रप्रतिबंधित किए गए।दूसरे राज्यों के जो निवासी निजाम को पसंद नहीं थे उन्हें बंदी बनाकर सीमापार करना और साथ ही उन्हें आश्रय देनेवालों को अपराधी मानकर सजा सुनानाजैसे अधिकार पुलिस कमिश्नर एवं तहसीलदार को दे दिए गए। इसी प्रकार हैदराबाद राज्य की जोसंस्थाएं सरकारके विरुद्ध क्रिया कलाप करेंगी, उन्हें अवैध घोषित करउनके सभासदों पर अभियोग चलाना और उनकी संपत्ति को जब्त करने जैसेआदेश भी जारी किए गए। अपराधी यदि अल्पवयस्क,अर्थात् सोलह वर्ष से कम आयु का,है तो उसके द्वारा घटित अपराध के लिए उसके अभिभावकों को भी बंदी बनाने जैसे अत्याचारइन आदेशों में शामिल किये गए(केसरी,9 सितंबर,1938)।

हैदराबाद राज्य में हिंदुओं की कोई राजनैतिक संस्था नहीं थी।देश का प्रमुख राजनैतिक दल होने के बाद भी कांग्रेस निजामशाही के मामले में पूरी तरह उदासीन थी। 19-21फरवरी,1938 को हुए हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में अफ्रीका और सिलोन के भारतीयों को लेकर तथा चीन औरफिलिस्तीनके साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन से संबंधित प्रस्ताव पारित हुए। परन्तु निजाम के राज्य में हिंदुओं पर होनेवाले अत्याचारों पर कांग्रेस पूरी तरह मौन रही।हिन्दुस्थान के रजवाड़ों के संबंध में कांग्रेस ने सर्वसम्मत प्रस्ताव पास किया,परन्तु हिन्दुस्थान के रजवाड़ों में उत्तरदायी शासन प्रणाली और नागरिक स्वतंत्रता का समर्थन करने में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी।प्रस्ताव में यह वाक्य शामिल कर दिया गया कि राज्य में जनांदोलन कांग्रेस के नाम से करने में मनाही होने पर भी कांग्रेसी सभासद नैतिक समर्थन और सहानुभूति से अधिक मदद करने के लिए स्वतंत्र हैं(हरिपुरा के 51वें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की रिपोर्ट, अ.भा.कांग्रेस कार्यकारिणी,1938)।

अन्य राज्यों में चलने वाले आंदोलनों के समाचार पढ़करनिजामशाही के नेताओं ने ‘स्टेट कांग्रेस’ नाम से एक संस्था के गठन पर विचार किया।स्टेट कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि ‘सत्य और अहिंसा हमारा मूल आधार है और हम जातिवाद विरोधी हैं’। वे यह बात भी उच्च स्वर में कहते थे कि ‘हम राष्ट्रवादी हैं पर जातिवादी नहीं और हिंदू महासभा से हमारा संबंध नहीं है’। फिर भी निजाम,उसके मातहत और हैदराबाद के मुसलमानों पर इनका रत्तीभर असर नहीं हुआ।यह संस्था सभी जाति, धर्म के लोगों के लिए खुली होने के बाद भी उसे सिराज-उल-हसन तिरमिझी को छोड़कर एक भी प्रमुख मुसलमान नहीं मिला।संस्था के सभासदों पर अन्य जाति विशिष्ट संस्थाओं के सभासद होने का आरोप सरकारी पत्रक में लगाया गया।इस पर स्टेट कांग्रेस नेताओं ने स्पष्टीकरण दिया कि उनका एक भी सदस्य जातिविशेष संस्था में भाग नहीं लेने वाला है और यह उनकी स्पष्ट नीति है। फिर भी निजाम सरकार ने उक्त संस्था को हिंदुओं की जातिविशिष्ट संस्था करार देते हुए इसके जन्म से पूर्व ही ‘पब्लिक सेफ्टी रेजोल्यूशन’ के तहत7 सितंबर,1938 को इसकी गर्दन मरोड़ दी(स्वामी रामानंद तीर्थ,मेमॉयर्स ऑफ हैदराबाद फ्रीडम स्ट्रगल,पॉपुलर प्रकाशन,मुंबई,1961, पृ.86- 95;केसरी,13सितंबर1938)।

नि:शस्त्र प्रतिरोध की पदचाप

निजाम राज्य की स्थिति को प्रत्यक्ष देखने के लिए महाराष्ट्र प्रांतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष लक्ष्मण बलवंत उपाख्य अण्णा साहब भोपटकर की सूचनानुसार महाराष्ट्र प्रांतीय हिंदू महासभा के कार्यवाह शंकर रामचंद्र उपाख्य मामाराव दाते,सतारा हिंदूसभा के नेता और सतारा जिला संघचालक शिवराम विष्णु उपाख्य भाऊराव मोड़क और बार्शी (जिला सोलापुर) हिंदूसभा के नेता गोविंद रघुनाथ उपाख्य बाबाराव काले ने मार्च-अप्रैल1938में मराठवाड़ा का गोपनीय दौरा किया।आर्य समाज ने प्रस्तावित संघर्ष में सहभागी होने का आश्वासन दिया। जुलाई 1938 को दिल्ली में ‘अंतरराष्ट्रीय आर्यन लीग’ के कार्यकारी मंडल की बैठक में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर चौदह मांगें रखीं गईं।हैदराबाद के प्रश्न पर विचार करने के लिए राज्य की सीमा पर महाराष्ट्र में या फिर मध्य प्रांत में अखिल भारतीय आर्यन कांग्रेस पांच माह के भीतर आयोजित करने का निश्चय किया गया।साथ ही यह प्रस्ताव भी पारित किया गया कि यदि हैदराबाद राज्य के अधिकारी आर्य समाज के प्रति अपनी धारणा में बदलाव न लाने वाले हों तो भी सत्याग्रह तक सभी वैध और शांतिपूर्ण मार्ग अनुसरण करने हेतु सभी आर्य समाजियों से विनती की जाए(केसरी,5 जुलाई,1938)।आर्य समाज डिफेंस कमेटी के सचिव एस. चंद्रा और आर्य समाज के अध्यक्ष घनश्याम दास गुप्ता ने हैदराबाद राज्य का दौरा कर अखिल भारतीय हिंदूमहासभा के अध्यक्ष स्वातंत्र्यवीर सावरकर से नासिक में भेंटकर उन्हें वहां की परिस्थिति से अवगत कराया(केसरी,9 अगस्त,1938)।

23 सितंबर,1938 को पूर्व क्रांतिकारीसेनापति पांडुरंग महादेव बापट पुणे से हैदराबाद में शांतिपूर्ण विरोध के लिए निकल पड़े। बापट ने निजाम राज्य के प्रतिबंधों और वहां पर भाषण करने पर लगे प्रतिबंधों की चिंता नहीं की। लेकिन हैदराबाद पहुंचते ही निजाम पुलिसने उन्हें बंदी बनाकर वापसपुणे भेज दिया।वापस आकर उन्होंने कहा कि ब्रिटिश भारत में प्रचार कर वे 1नवंबर को पुनः नि:शस्त्र प्रतिरोध हेतु जाएंगे(केसरी,27 सितंबर,1938)।दिनांक 11 अक्टूबर,1938 को वीर सावरकर और सेनापति बापटकेबीच हैदराबाद में प्रस्तावित आंदोलन को लेकर पुणे में लगभग एक घंटे तक विचार-विनिमय हुआ। इसके बाद उसी दिन शनिवारवाडा पर हुई विशाल सभा में सावरकर ने आंदोलन की सैद्धांतिक भूमिका स्पष्ट की।उन्होंने कहा,“प्रतिरोध करने के दो मार्ग होते हैं। जिसमें एक सशस्त्र प्रतिरोध और दूसरा नि:शस्त्र प्रतिरोधहोता है। इसमें से पहला, यानि सशस्त्र प्रतिरोध, फिलहाल उचित प्रतीत नहीं होता।सशस्त्र मार्ग का अनुसरण पाप है, ऐसा मानने वालों में मैं नहींहूँ और पाप के भय से मैं उसे एक तरफ रख रहा हूँ ऐसा भी नहीं है। फिर भी उस मार्ग का अनुसरण अभी हम झेल पाएंगे या नहीं, इस पर विचार करना होगा। इस परिप्रेक्ष्य में हैदराबाद में नि:शस्त्र प्रतिरोध करना आज के लिए उचित है”।

संघ स्वयंसेवकों की सत्याग्रह में सहभागिता

इसी सभा में लोकमान्य तिलक के पोते और ‘मराठा’के संपादक गजानन विश्वनाथ केतकर की अध्यक्षता में ‘हिंदुत्वनिष्ठ नागरिक सत्याग्रह सहायक मंडल’ (संक्षिप्त में भागानगर हिंदू सत्याग्रह मंडल) की स्थापना की गई(केसरी,14 अक्टूबर 1938)।निजाम के राज्य में लोगों को भाषण,मुद्रण,लेखन,संघ,सभा और धर्म सहित सात मुद्दों पर मौलिक स्वतंत्रता दिलाना इस संघर्ष का उद्देश्य निश्चित किया गया। इस मंडल का केंद्र पुणे और उसकी शाखाएं महाराष्ट्र, मध्य प्रांत तथा बरार में सभी जगहों परआरंभ की गई।इस मंडल द्वारा किए गए नि:शस्त्र प्रतिरोध में प्रमुख रूप से वर्णाश्रम स्वराज्य संघ, हिंदू महासभा,लोकशाही स्वराज्य दलऔर हिंदू युवा संघ शामिल हुए(केसरी,1नवंबर, 1938)।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने भी इसी मंडल के माध्यम से सत्याग्रह किया।दंगों में मारे गए मृतकों के अनाथ परिवारों को सहायता देने और अभियुक्तों को प्रतिबंधात्मक व्यय के लिए ‘भागानगर हिंदू सहायता निधि’ प्रारंभ की गई। नि:शस्त्र प्रतिरोध संघर्ष हेतु ‘भागानगर हिंदू सत्याग्रह निधि’नाम से अलग निधि शुरू करने का निवेदन सावरकर ने घोषित किया(केसरी,8 नवंबर1938)।

दूसरे सत्याग्रह हेतु 31अक्टूबर को पुणे से निकलने से पूर्व 30 अक्टूबरको सायंकाल कुछ कांग्रेस के लोगों ने सेनापति बापट की अध्यक्षता में एक सभा आयोजित की और’स्टेट कांग्रेस सहायक कांग्रेसनिष्ठ सत्याग्रह मंडल’ की स्थापना की। वास्तव में सेनापति बापट ने जो सत्याग्रह आरंभ किया था वह स्वतंत्र और स्वयंभू था।सत्याग्रह हेतु जाने का निश्चय उन्होंने पहले से ही किया हुआ था।पर पुणे में कांग्रेस के लोगों ने बहती गंगा में हाथ धोते हुए सेनापति बापट और उनके विश्वस्त सहयोगियों को नए मंडल का पहला सत्याग्रही बना दिया।हैदराबाद स्टेट कांग्रेस पर जातीयता के साथ-साथ ‘बाहर वाला’ होने का आरोप भी लगायाजा रहा था। पुणे के कांग्रेसियों की यह करतूत स्टेट कांग्रेस के लिए भी असुविधाजनक सिद्ध हुई। यहां तक की स्टेट कांग्रेस के चौथे अधिनायक (डिक्टेटर) बलवंत राव को बंदी बनाए जाने पर यह संदेश देना पड़ा कि ‘बाहर की किसी भी संस्था से हमारा संबंध नहीं है“(केसरी,8 नवंबर,1938)।

ये घटनाएं जब महाराष्ट्र में घटित हो रही थीं, तब वीर यशवंत दिगंबर जोशी, दत्तात्रय लक्ष्मीकांत जुक्कलकर प्रभृति हैदराबाद हिंदू सभा के नेता पुणे हिंदूसभा के नेताओं और स्वातंत्र्यवीर सावरकर के संपर्क में थे। परिणामस्वरूप वीर यशवंतराव जोशी ने ‘नागरिक हिंदू स्वातंत्र्य संघ’ की ओर से हैदराबाद के दिवंगत हिंदू नेता वामनराव नाईक की स्मृति में 21अक्टूबर,1938को लगभग तीन हजार लोगों का जुलूस निकालकर प्रतिबंध तोड़ा।उन्हें21माह का सश्रम कारावास और दो सौ रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई गई।

नि:शस्त्र प्रतिरोध आंदोलन आरंभ हो चुका था।प्रतिबंधित हैदराबाद स्टेट कांग्रेस ने इस घटना के पश्चात 24 अक्टूबर,1938 कोऔर आर्य समाज ने27 अक्टूबर, 1938 कोसंघर्ष शुरू किया।25दिसंबर,1938 को लोकनायक बापूजी अणे की अध्यक्षता मेंभाई परमानंद, स्वातंत्र्यवीर सावरकर जैसे प्रबुद्ध नेताओं की उपस्थिति में अखिल भारतीय आर्य परिषद का खुला अधिवेशन सोलापुर में हुआ,जिसमें निजाम विरोधी संघर्ष में शामिल लोगों की संख्या 22,000बताई गई (केसरी,30 दिसंबर1938)।इसके बाद 28 दिसंबर,1938 को स्वातंत्र्यवीर सावरकर की अध्यक्षता में नागपुर में अखिल भारतीय हिंदू महासभा का अधिवेशन हुआ, जिसमें निजाम विरोधी संघर्ष जारी रखने संबंधी प्रस्ताव पारित हुआ।सावरकर के आशीर्वाद से हिंदू सत्याग्रह मंडल की प्रथम टुकड़ी 7 नवंबर,1938 को पुणे से निकली। हैदराबाद राज्य में नागरिक स्वतंत्रता का संघर्ष सितंबर1938में आरंभ होकर अगस्त 1939 तक चला,जिसमें हिंदू महासभा,आर्य समाज और स्टेट कांग्रेस ने भाग लिया।आर्य समाज का संघर्ष धार्मिक स्वतंत्रता तक सीमित था। हिंदू महासभा ने विषय को व्यापक और विस्तारित करते हुए अन्य नागरिक स्वतंत्रता के मुद्दे भी उसमेंसमाविष्ट किए,जबकि स्टेट कांग्रेस का जोर उत्तरदायी शासन प्रणाली पर था।

(क्रमशः)

हैदराबाद नि:शस्त्र प्रतिरोध—2

– डॉ. श्रीरंग गोडबोले

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

हिंदी विवेक

Next Post
तमिल काव्य में राष्ट्रवादी स्वर: सुब्रह्मण्य भारती

तमिल काव्य में राष्ट्रवादी स्वर: सुब्रह्मण्य भारती

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0