जब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की शुरुआत की तो व्यतिगत रूप से एवं एक पत्रकार के नाते मुझे अच्छा लगा। बेशक यह यात्रा कांग्रेस की खिसकती जमीन को लेकर अघोषित रूप से की जा रही हो, पर राहुल गांधी भारत के साथ स्वयं को खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं तो यह स्वागत योग्य है, ऐसा मुझे लगा, पर राहुल गांधी ने मुझे गलत साबित किया। यात्रा को अभी 144 दिन और चलना है, पर इसकी प्रारंभिक दिशा ही इतनी खतरनाक षड्यंत्र के साथ है, यह श्री गांधी ने बतला दिया।
उन्होंने देश को दक्षिण से यह संदेश दे दिया कि कांग्रेस देश की संस्कृति को तहस नहस करने के अपने पुराने एजेंडे पर कायम है। सर्वप्रथम चेन्नई में उस फादर से मिलना, जिसे भारत माता ही गंदी लगती है और हिंदू देवी-देवता उपहास के पात्र और कांग्रेस के अधिकारिक ट्विटर हैंडल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व के गणवेश को जलाने का चित्र यह स्पष्ट करता है कि आने वाले चार माह में देश का माहौल बिगाडऩे में श्री गांधी कोई कोर कसर छोडऩे वाले नहीं हैं। 19 मई लंदन के अखबार गार्डियन में एक सपादकीय प्रकाशित होता है, श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद। लिखने की आवश्यकता नहीं है कि गार्डियन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख पत्र नहीं है।
गार्डियन लिखता है “Today, 18 May 2014, may well go down in history as the day Britain may finally left India.” अब बात करते हैं 2005 की। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉटर मनमोहन सिंह का ऑसफोर्ड यूनिवर्सिटी में समान होता है। डॉटर सिंह इस अवसर पर कहते हैं “Today, with the balance and perspective offered by the passage of time and the benefit of hindsight, it is possible for an Indian Prime minister to assert that India’s experience with Britain had a beneficial consequences too”.
डॉक्टर सिंह यहीं नहीं रुके, उन्होंने अंग्रेजों को भारत को शिक्षा, स्वतंत्र प्रेस, कानून आदि के लिए धन्यवाद दिया। तब भी लंदन के अखबारों में सपादकीय प्रकाशित हुए। उसमें विंस्टन चर्चिल के कथन को उद्धृत कर लिखा गया कि मनमोहन सिंह का ब्रिटेन के प्रति प्रेम यह दर्शाता है कि भारत स्वतंत्र देश होने के लायक ही नहीं है। यह दोनों प्रसंग राहुल गांधी की यात्रा की आधार भूमि बताते हैं।
भारत अपने स्व को पहचान रहा है। भारत, भारत बनने की दिशा में अग्रसर है। संघ तो तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहे न रहे,का हामी है। वह रोज सुबह ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृ भूमे’ का जयघोष करता है। उसका लक्ष्य ‘परमवैभमं नेतु मेतत् स्वराष्ट्रम्’ का है। वह जानता है कि उसका मार्ग श्रुतं चैव यत् कंटकाकीर्ण मार्गम् है। 1925 से वह देख रहा है, समझ रहा है आसुरी, राष्ट्रघाती शति उसके खिलाफ षड्यंत्र रचती रहीं हैं, रचती रहेंगी, पर वह अपने लक्ष्य के लिए ठीक वैसे ही समर्पित है, जैसे वीर हनुमान लंका जाते समय कह रहे थे ‘राम काज कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम’। अब एक बार फिर वामपंथ की आखिरी लंका में नापाक द्रोहियों के साथ राहुल गांधी ने (मैं राहुल गांधी को रावण भी कहना नहीं चाह रहा, कारण वह भले ही असुर प्रवृाि का था, उसके पास तप था, ज्ञान था, राहुल और उनकी गैंग के पास या है, लिखने की आवश्यकता नहीं) संघ के गणवेश में आग लगा कर अपनी बची खुची लंका में आग लगाने की तैयारी कर ली है।
यह राहुल गांधी का वैसा ही रावणी अहम है, जब वह हनुमान की पूंछ में आग लगाकर कहता है ‘देखेउँ मैं तिन्ह कै प्रभुताई’। रावण के उद्गार सुन जो भाव उस समय हनुमान के मन मे थे, आज वही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मन में है। वह सोच रहे हैं… बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना। कारण राहुल गांधी संघ को 145 दिन या आने वाले 145 वर्ष में उनकी पीढिय़ां भी समाप्त कर पाएंगी, यह चर्चा भी बेमानी है। संघ को तीन बार प्रतिबंध से दबाने का प्रयास और भी कई हथकंडों से कांग्रेस करती आई है। पहले नेहरू जी ने किया, फिर इंदिरा जी ने। फिर राजीव जी ने और बाद में सोनिया जी ने। सबके प्रयास का परिणाम या रहा, किसी से छिपा नहीं है। अब यह जिमा राहुल गांधी ने लिया है।
वह केरल में वामपंथ के आतंक पर खामोश हैं। वह सेना के पराक्रम सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाते हैं। वह ठीक डोकलाम विवाद के समय चीन से गुपचुप मुलाकात करते हैं। वह लंदन में ही युवाओं के बीच भारत की निंदा करने से बाज नहीं आते। वह राम मंदिर से राष्ट्र मंदिर के खिलाफ आवाज उठाते हैं। पर जो संघ अखंड भारत का पुजारी है। उसके गणवेश को जला कर अपना परिचय दे रहे हैं। वह बता रहे हैं कि वह कह भले ही यह रहे हैं कि वह भारत जोड़ो यात्रा पर हैं, पर उनके साथ भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह का नारा लगाने वाले कन्हैया कुमार और उनकी पूरी गैंग है। राहुल गांधी के नाना जवाहर लाल नेहरू ने एक किताब लिखी थी। डिस्कवरी ऑफ इंडिया। वह कितना भारत खोज पाए, यह उनके तिबत के रवैये से साबित हो गया। जब एक बड़ा भू-भाग उन्होंने यह कह कर दे दिया कि उधर घास का तिनका भी नहीं उगता। यह नेहरू का विकृत सोच था। राहुल उन्हीं की विष बेल हैं। उनसे यही अपेक्षा थी। समय कांग्रेस को इतिहास बनाने का तय कर चुका है। राहुल ने एक ओर कदम आगे बढ़ा दिया है।
– अतुल तारे