काँग्रेस, वामपंथी, क्षेत्रियदल और आम आदमी पार्टी…

आजकल की पीढ़ी शायद नहीं जानती कि कांग्रेस जब सत्ता में रही थी तब इन्होने विदेशी NGO पोषित एक्टिविस्टों की एक टीम NAC बना कर संसद के ऊपर बैठा दी थी..उस NAC में हर्ष मंदर, अरुणा रॉय टाइप लोग थे..उन्ही अरुणा रॉय का चेला था केजरीवाल.. बड़े लोग आने वाले वक़्त को पहले ही पहचान लेते हैं..और सत्ता में बैठे लोग तो खासकर..वैसे ही कांग्रेस ने कामनवेल्थ घोटाले के समय ही अंदाजा लगा लिया था कि अब वो सत्ता से जाने वाले हैं….उसके बाद शुरू हुआ था IAC यानि इंडिया अगेंस्ट करप्शन वाला खेल…जिसमें मोहरा थे देश के लिए भला सोचने वाले जज्बाती लोग..और नेता थे इसी NAC टीम के नाक के बाल रहे लोग..

योगेंद्र यादव से लेके केजरीवाल..भूषण से लेके मेधा पाटकर..सब वही लोग थे..उनका आईडिया था कि सोशल मीडिया/मेनस्ट्रीम मीडिया के दम पर एक ऐसा नेता खड़ा कर दो जो 2014 तक इतना पॉपुलर हो जाए कि कैसे भी 2014 में हर पार्टी मेजोरिटी से पहले रुक जाए..और फिर वही गठबंधन वाली उठापटक चलती रहे….यही वजह थी कि केजरीवाल दिल्ली की कुर्सी छोड़ के सीधे बनारस भाग बैठा था चुनाव लड़ने..और देश की लगभग हर बड़ी शहरी आबादी वाली सीट पर इसने स्पेशल फोकस कर अपने उम्मीदवार खड़े किये थे…कांग्रेस ने हर कदम पर इसका साथ दिया..
2010 से 2013 कांग्रेस ने पहले अपने राज में केजरीवाल को एक एक्टिविस्ट के रूप में स्थापित होने दिया..

2013 : फिर पहली बार उसको सरकार में लाने में समर्थन दिया..
2015 , 2020 दिल्ली में टेक्टिकली पूरा वोट ट्रांसफर करवाया.
2022 : कैप्टेन को निकाल कर यही काम पंजाब में किया.

अब यही काम गुजरात में कर रही है..गुजरात चुनाव में कांग्रेस एक दम से गायब हो गयी है…
ये सब संयोग नहीं है..कांग्रेस को चलाने वाले NAC गैंग का ही प्रयोग है..
योगेंद्र यादव वापस अपने असली गैंग के पास जा चुके हैं..भूषण आज भी कूद कूद कर उन्ही के लिए माहौल बनाता है..

मेरा अनुमान है कि कांग्रेस-केजरी में आपसी अंडरस्टैंडिंग इसी बात पर है कि जिन जिन राज्यों में छत्रप हैं…जैसे यूपी में अखिलेश, बिहार में तेजस्वी-तेज प्रताप, तमिलनाडु में DMK , हरियाणा में हुड्डा वहाँ तो कांग्रेस छत्रपों के साथ ही रहेगी…बाकी साउथ राज्यों में राहुल खुद मेहनत करेंगे…और बाकी राज्यों में रायता फैलाने का काम केजरीवाल को सौंपा जाएगा…यही वजह है कि राहुल की यात्रा 18 दिन केरल में रहेगी..जबकि यूपी में सिर्फ २ दिन..और गुजरात जैसी जगह जहां चुनाव है वहाँ जायेगी ही नहीं…

तो बेसिकली बात ये है कि 2011 12 वाला खेल 10 साल की प्रतीक्षा के बाद वापस रिज्यूम हो गया है..इन संभावनाओं के बारे में हम तबसे ही लगातार बताते आये हैं…बाकी जो आ रहा है सामने..वो धीरे धीरे सबको ही दिखेगा…और पूरे भारत के लिए एक लर्निंग देके जाएगा.

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