एक सीमोल्लंघन ऐसा भी …….

प्रति वर्ष विजयादशमी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक का भाषण, नागपूर के रेशीम बाग संघस्थान पर होता है।यह परंपरा पिछले 97 वर्षों से चल रही है ।साधारणतः पहले पचास वर्ष तक संचार माध्यम ,सरसंघचालक के भाषण को विशेष महत्व नही देते थे ।स्वयंसेवकों को समाचार पत्र में ढूंढना पडता था।क्या कोई समाचार छपा है? वह समय अब गया। पिछले कुछ वर्षों  में अनेक समाचार वाहिनियां, सरसंघचालक के विजयादशमी भाषण का, सीधा प्रसारण करती हैं ।और करोड़ों  भाग्यशाली लोग घर पर बैठकर सुनते हैं। कहा जाये तो यह एक अतुलनीय ऐसा “सीमोल्लंघन” है। कल तक जो संघठन और संघठन के  सरसंघचालक जिनकी और किसी का भी ध्यान नही था ।वो इतने महत्त्वपूर्ण कैसे हो गये?

इस प्रश्न का उत्तर एक शब्द में दिया जा सकता है ।वह शब्द है संघ सामर्थ्य। पहले संघ के बाहर के लोगो ने ,संघ को हाफ पॅन्ट पहनकर खेल और व्यायाम करने वाले संघठन के रूप मे ही देखा है ।और अब लोग देखते हैं कि, देश का प्रधानमंत्री संघ स्वयंसेवक है। अनेक राज्य के मुख्यमंत्री स्वयंसेवक है। राज्यपाल स्वयंसेवक है। दुनियां मे जहाँ जहाँ हिंदू हैं ,वहाँ वहाँ संघ पहुंचा है ।विद्यार्थी, श्रमिक, वनवासी, महिला ,उद्योग ,शिक्षा, आरोग्य  दो लाख के आसपास सेवा कार्य , ऐसी संघ कीअफ़ाट शक्ती है ।जहाँ शक्ति, वहाँ आकर्षण होता है ।शक्ती की और सब लोगों का ध्यान जाता है।

विजयादशमी को सरसंघचालक क्या कहने वाले हैं ? इस ओर केवल देश  का ही नहीं, सारी दुनिया का ध्यान होता है ।इस भाषण को लेकर लोगों के अलग अलग दृष्टिकोन होते हैं। एक बहुत बडा वर्ग ऐसा है ,जो बस यही ढूंढता रहता है ,कि इस भाषण से कौन सा विवाद उत्पन्न किया जा सकता है ।दुसरा वर्ग ऐसा होता है जिसे, उग्र या तीखा भाषण चाहिए होता है। और तिसरा वर्ग ऐसा होता है जो सरसंघचालक ने ,किन विषयों पर काम किया है इस बात की जाँच या पूछताछ करता रहता है । इन सबसे अलग संघ स्वयंसेवक और कार्यकर्ताओं का एक वर्ग होता है ,जो सरसंघचालक ने कौनसी दिशा दिखाई है ,इसका मनन चिंतन करता है।

सरसंघचालक के भाषण की ओर देखने का दृष्टिकोन कैसा होता है।इसे एक कहानी के आधार पर समझते हैं।रास्ते के किनारे एक पेड़ के नीचे एक साधू बाबा समाधी लगाकर बैठे होते है ।उसी रास्ते पर एक पति अपनी पत्नी से झगड़ा होने के कारण, परेशान सा जा रहा होता है ।साधू को देखकर वह कहता है कि,”इसका भी अपनी पत्नी से जोरदार झगड़ा हुआ है। इसलिये यह आँखे बंद करके बैठा है” ।थोडी देर के बाद एक शराबी वहाँ से झूमता हुआ गुजरता है ।साधू को देखकर कहता है “लगता है इसे शराब बहुत चढ गई है इसीलिए, यह इतना शांत बैठा है”। थोडी देर के बाद उस रास्ते से एक साधक गुजरता है ।साधू को देखकर व समझ जाता है कि ,यह कोई बहुत बड़े योगी हैं। वह उनके सामने जा कर प्रणाम करता है। अपने पास के फल उसके सामने रखता है। मनुष्य एक ही है पर साधू और देखने का दृष्टिकोन अलग अलग है।

उद्धव ठाकरे ने दशहरासभा में सर संघचालक के भाषण का उल्लेख किया ।और अपनी आदत अनुसार उपहास किया। उनकी भाषण समझने की पात्रता उतनी ही है ।असदुद्दीन ओवेसी ने ट्वीट किया और “द्वेष फैलाने वाला भाषण “ऐसा उल्लेख किया ।उनकी अकल भी उतनी ही है ।बाद में समाचार वाहिनी पर चर्चा सुरू हुई।सामान्यतः मैं सुनता नही  परंतु इस बार सुना ।ये बात सही है ,जिसका जितना बर्तन उसमे उतना पानी रहता है।

सर संघचालक मोहन भागवतजी का ,इस वर्ष का विजयादशमी उत्सव का, भाषण अति महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विचारों को स्पष्ट करने वाला था। उन्होने अपने भाषण मे जो  विषय रखे। वे क्रमशः इस प्रकार हैं।महिला सशक्तिकरण. गुलामी की निशानी हटाने वाले अलग अलग उपक्रम .पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर टिप्पणी. मातृभाषा मे शिक्षा  पर जोर. सामाजिक समता और समरसता क्यों आवश्यक है इसका प्रतिपादन. जनसंख्या संतुलन रखने के लिए जनसंख्या नियंत्रण पर जोर. संविधान का गौरवपूर्ण उल्लेख.

मोहन भागवत जी का संपूर्ण भाषण विवेक के बहुतांश पाठकों ने या तो पढ़ा होगा  या सुना होगा ।इसलिये उसकी पुनरावृत्ती करने की आवश्यकता नही है। केवल दो सवालों का यहाँ विचार करते हैं। संघ कुछ विचारधाराओं की दृष्टि से हमेशा ही टीका का विषय रहा है ।राजकीय क्षेत्र में उसका प्रतिनिधित्व राहुल गांधी करते है ।उनकी कंटेनर यात्रा शुरू है।उस हर स्थान पर वे संघ की विचारधारा ने देश का नुकसान किया है ।ऐसे रटे-रटाए वाक्य  बोलते रहते है। मोहनजी ने इसका कुछ भी उत्तर नही दिया ।जो विषय उत्तर देने के लायक नहीं है ,उनको मोहनजी छूते तक नही है। मोहन भागवतजी कुछ भी कहते है ,तो ओवेसी तुरंत औरंगजेब शैली मे अपनी प्रतिक्रिया देते है। उनका मोहनजी गलती से भी उल्लेख नही करते ।बुद्धिमान व्यक्ती मूर्ख के पीछे ना लगे। इसकी अनेक कथायें है ।उसमे से यह एक कथा है।

यह एक जातक कथा है जो गौतम बुद्ध द्वारा बताई  गई है।हिमालय पर एक गुफा के पास, सिंहों की सभा होती है। सारे सिंह गर्जना करके ,एक दुसरे का स्वागत करने लगते हैं। सिंह के राजा को भी सारे,सिंहगर्जना करके वंदन करते है ।थोडी दूर पहाडी पर लोमड़ीयों का झुंड इकठ्ठा होता है ।सिंहगर्जना को प्रतिसाद देने के लिए, वो भी चिल्लाने लगते है। यह सुनकर सारे सिंह मौन हो जाते है। युवराज सिंह अपने पिता से पूछता है “आप सब मौन क्यों हो गये ?” उनकी आवाज से डर गये क्या? राजा सिंह ने कहा” बेटा वे लोमडी हैं। उनकी आवाज को सिंहगर्जना करके उत्तर देना ,मतलब अपनी अप्रतिष्ठा करना है। इसीलिए सारे सिंह मौन बैठे हैं ।”मोहनजी इन सबको उत्तर नहीं देते ।इसका यही कारण है

दुसरा सवाल यह है कि, ऊपर जो विषय दिये हैं,वही विषय इस बार मोहनजी ने क्यों चुने? यदि देश का विचार किया जाए, तो  प्रश्नों की कोई कमी नही है। इंधन मे दरवृद्धी ,चीन की घुसपैठ,नक्सलवादी आंदोलन ,धर्मांतरण मे वृद्धी, मुस्लिम कट्टरतावाद, स्त्रियों पर अत्याचार ,अतिवृष्टी से होने वाले नुकसान, आदि असंख्य विषय हैं।परंतु मोहनजीने इन विषयों में से ,किसी भी विषय को महत्व न देते हुए ,महिला सशक्तिकरण पर विस्तृत भाष्य किया। स्त्री और पुरुष राष्ट्रीय जीवन के दो चक्के हैं। इसीलिए दोनों का संतुलित सशक्तिकरण होना बहुत आवश्यक है। दीर्घ काल तक हम परतंत्र रहे। इसलिये यह हो ना सका ।परंतु अब इस पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। यह बहुत महत्वपूर्ण विचार है ।हिंदू धर्म मे स्त्रियों को दुय्यम स्थान दिया जाता है, इसकी कहानियां हिंदू विरोधक, बहुत बडी संख्या मे बताते हैं। उनकी कहानियों को उत्तर देने के लिए यह विषय नही है। बल्कि राष्ट्र जीवन के लिए, यह आवश्यक विषय है।इतना ध्यान रखा जाना चाहिए।

यही बात जनसंख्या संतुलन के संबंध मे है ।अपेक्षानुसार मोहनजी का यही मुद्दा, मुस्लिम तुष्टीकरण करने वालों को बुरी तरह चुभा है  ।इन्ही तुष्टीकरण करने वालों ने ,1947 मे देश का विभाजन किया था। फिर भी वे कुछ सीखने को तैयार नही हैं।दुनिया मे जहाँ जहाँ जनसंख्या का संतुलन बिगड़ता है ,वहाँ वहाँ देश विभाजित होता है ।इसके अनेक उदाहरण मोहनजी ने ,अपने भाषण मे दिये। स्वयं का ,अपने बच्चों का, अपने नाती पोतो के,  हितों और सुरक्षा का विचार करते हुए, इन प्रश्नों के बारे मे गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है।जो तुष्टीकरण में अंधे हो गये हैं,उन लोगों को समाज द्वारा, किसी भी तरह की शक्ति का दिया जाना मतलब अपने पेट मे स्वयम् छुरा घोंपने जैसा है ।भलेही मोहनजी ने ऐसा कुछ कहा ना हो ।मगर एक स्वयंसेवक होने के नाते मैं इसका अर्थ अच्छी तरह समझता हूँ।

उनका तीसरा अत्यंत महत्वपूर्ण विषय ,अपनी मातृभाषा मे शिक्षा लेना है ।मातृभाषा  मे  शिक्षा का महत्व बताने वाली पूरी फौज देश में  है । इनमे से अधिकांश के बच्चे अंग्रेजी शालाओं में पढ़ते हैं ।मोहनजी ने सारे समाज को  आवाहन किया  कि देखें, क्या आप अपने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देते है? क्या आप अपने हस्ताक्षर मातृभाषा मे करते हैं? क्या आपके दरवाजे पर लगी आपके नाम की तख्ती मातृभाषा मे होती है ? इन सबकी खोज की जानी चाहिये। जब तक आप ठान नहीं लेते, तब तक परिवर्तन होना असंभव है ।सामाजिक विषमता क्या है ?संविधान का कानून समता लाने वाला है। फिर भी विषमता है ।क्योंकि वो हमारे मन में है ।मन से इसका उच्चाटन किया जाना चाहिए। तभी यह दूर होगी।

देश के प्रश्नों को यदि श्रेणीवार किया जाय, तो कुछ प्रश्न तात्कालिक होते हैं।कुछ प्रश्न परिस्थितिजन्य होते है। कुछ प्रश्न दूरगामी विचार करने वाले होते है ।यह दूरगामी विचार करने वाले प्रश्न ही सही अर्थो मे राष्ट्रीय प्रश्न होते है ।इन प्रश्नों के समाधान  पर ही ,राष्ट्र की उन्नती या अवनती निर्भर करती है। इसीलिए इसका विचार दूरगामी दृष्टी रखकर करना पडता है। प्रश्नों का केवल विचार करने से नही होता। प्रश्नों का समाधान कैसे किया जाय ।इसकी कृती रूप योजना भी बनानी पडती है ।मोहन भागवतजी ने जो प्रश्न हमारे सामने रखे हैं। उनमे कोई भी प्रश्न या विषय आज कृति की और कल वह विषय खत्म हो गया।ऐसा नही होता । इसके लिये  दीर्घकालीन योजना बनाने की आवश्यकता होती है

योजना बनाने का कार्य शासकीय तंत्र का होता है ।नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा की बहुत बडी गुंजाइश दी गई है ।शासन की यह नीति सफल होने के लिए समाज को उसे स्वीकारना होगा। यदि समाज ने उसे स्वीकार नहीं किया, तो नीति कितनी भी अच्छी हो ,सफल नही होगी।सरकार ,समाज में परिवर्तन लाने का कार्य एक सीमा तक ही कर सकती है। सरकार को कानून बनाने और कानून का पालन करवाने का अधिकार होता है ।परंतु कानून और अधिकार से समाज परिवर्तन नही होता ।और यहीं से सही मायनों में समाज के अच्छे लोगो का कार्य शुरू होता है। विविध धार्मिक संघठन , सामाजिक संघठन, सेवाभावी संस्थायें,परिवारिक संस्थायें, इनके द्वारा यदि उपदेश दिया गया या समझाया गया, तो महिला सशक्तिकरण अवश्य होगा ।जनसंख्या संतुलन की समस्या दूर होगी ।एवं मातृ भाषा मे शिक्षा का विषय भी आगे बढ़ेगा।

राष्ट्रीय प्रश्नों  को  छूने वाले सर संघचालक के भाषण ,सभी राजकीय द्वेष दूर रख कर, चिंतन और मनन करने लायक है। यह प्रक्रिया तुरंत ही शुरू होगी ,ऐसी बात नही है। परंतु इस बार के भाषण पर जो चर्चा  चल रही है  और उस पर जो अलग अलग विचार आ रहे है ।उनसे पता चलता है कि समाज भी राजनीति को दूर रख कर, राष्ट्रीय प्रश्नों पर विचार करने की ,भूमिका मे आ रहा है ।यह सीमातिक्रमण स्वागत करने लायक है।

Leave a Reply