विश्व स्तर पर हिन्दू विरोधी घटनाओं का सच

हाल के दिनों में हिंदुओं एवं हिंदू संगठनों के लिए विश्व के कई स्थानों से चिंताजनक समाचार आए हैं। लिस्टर सहित इंग्लैंड के कई शहरों में हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा और आक्रामक नारेबाजी आदि के समाचार तो विश्व की सुर्खियां बने और 180 संगठनों ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि उन्हें डर के साए में जीना पड़ रहा है। सामान्यता हिंदू संगठन इस तरह पत्र नहीं लिखते। स्पष्ट है कि स्थिति ज्यादा गंभीर हुई है। विश्व भर में स्वयं को लिबरल डेमोक्रेसी का झंडाबरदार मानने वाला अमेरिका दुराग्रह बड़े हिंदू विरोध के मामले में तत्काल आगे निकल रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी हिंदू संगठनों की घोर विरोधी बनकर सामने आया है। कैलिफोर्निया और न्यूजर्सी में टीनेक डेमोक्रेटिक म्यूनिसिपल कमेटी या टीडीएमसी एलेक्जेंडरा सोरियानो टावेरेस के नेतृत्व में हिंदू संगठनों के खिलाफ आपत्तिजनक और अस्वीकार्य प्रस्ताव पारित किया गया है। इसमें विश्व हिंदू परिषद, सेवा इंटरनेशनल, हिंदू स्वयंसेवक संघ समेत सात संगठनों को फासिस्ट यानी फासीवादी कहा गया है।

प्रस्ताव में यहां तक लिखा है कि ये संगठन नफ़रत और आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत और अमेरिका में अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाते हैं। यह कोई अकेला मामला नहीं है। अलग-अलग जगहों से डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता वहां के हिंदू संगठनों और नेताओं के बारे में इसी तरह का बयान दे रहे हैं। उन्हें सांप्रदायिक, विभाजनकारी, फासिस्ट, उग्रवादी, हिंसक और न जाने क्या-क्या नाम दिया जा रहा है। जब दो स्थानों पर प्रस्ताव पारित हुआ तो आगे और भी हो सकता है। डेमोक्रेटिक सीनेटर बॉब मेनेंडेज और कोरी बुकर को अमेरिका में सक्रिय हिंदू संगठनों की फंडिंग की जांच करने को कह दिया गया है। वास्तव में हिंदू फोबिया कभी विरोधियों के लिए एक शब्द रहा होगा लेकिन विरोधियों के शक्तिशाली इकोसिस्टम ने इसे सच के रूप में स्थापित करने में सफलता पाना शुरू कर दिया है।

इसका असर कई तरीकों से हो रहा है।अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत में 14 ऐसी हिंदू महिलाओं पर हमले किए गए, जिन्होंने साड़ी या उसी प्रकार की कोई अन्य पारंपरिक पोशाक पहन रखी थी, बिंदी लगा रखी थी और आभूषण धारण कर रखे थे। सांता क्लारा काउंटी के डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी के कार्यालय के अनुसार, 37 वर्षीय लाथन जॉनसन ने हिंदू महिलाओं को निशाना बनाया और उनके आभूषण भी छीन लिए। जून में शुरू हुआ यह सिलसिला करीब दो महीने चला। एबीसी 7 न्यूज ने बताया कि आरोपी ने इस दौरान कई महिलाओं को चोट भी पहुंचाई, जिनमें से अधिकतर की आयु 50 साल से 73 साल के बीच थी। उसने एक महिला को जमीन पर धक्का दिया, उसके पति के चेहरे पर मुक्का मारा और महिला का हार छीनकर एक कार में बैठकर फरार हो गया। इसी प्रकार के एक हमले में एक महिला की कलाई टूट गई। जॉनसन को सांता क्लारा पुलिस विभाग और यूएस मार्शल के कार्यालय ने गिरफ्तार किया है।  ‘हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन’ के सदस्य समीर कालरा का बयान है कि हम घृणा अपराध और ऑनलाइन हिंदूफोबिया (हिंदुओं के प्रति घृणा) के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इस मामले में अभियोग चलाकर हम एक मजबूत संदेश देंगे।

किसी समुदाय के संगठनों के फंडिंग की जांच करने का अर्थ है कि इन्हें संदिग्ध गतिविधियों में सम्मिलित माना गया है। हिंदू संगठनों को लेकर ऐसी स्थिति अमेरिका में कभी पैदा नहीं हुई। साफ है कि विरोधियों ने संगठित रूप से दुष्प्रचार किया और इसके आधार पर प्रस्ताव पारित कर दिया गया। भले प्रस्ताव दो ही जगह पारित हुआ लेकिन डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं का बड़ा समूह, अमेरिका के बौद्धिक वर्ग का एक तबका, मीडिया, मानवाधिकार संगठन आदि की टिप्पणियों में आपको इसी तरह की आलोचना और विरोध के स्वर सुनाई देंगे। सच यही है कि हिंदू संगठनों और हिंदुओं के विरुद्ध अमेरिका सहित कई देशों में नफरत का वातावरण बनाया जा रहा है। हिंदू फोबिया को यह हकीकत मानकर व्यवहार करने लगे हैं। अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी की तरह ही ब्रिटेन में लेबर पार्टी का रवैया है। इसी तरह की दूसरी पार्टियां फ्रांस, जर्मनी बेल्जियम आदि देशों में काम कर रही है। कनाडा की ज्यादातर पार्टियां हिंदू विरोधी मानसिकता से काम कर रही है। निष्कर्ष यही है किभारत और हिंदुओं के विरुद्ध विश्वव्यापी नफरत का माहौल बनाया जा रहा है।

अमेरिकी की ही एक प्रतिष्ठित शोध संस्था ‘नेटवर्क कॉन्टेजियन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ ने अमेरिका और दुनिया के कई हिस्सों में हिंदू समुदाय के लोगों पर हुए हमलों का जिक्र करते हुए कहा है कि इस समुदाय के लोगों के प्रति नफरत का माहौल बन रहा है। इसके सह संस्थापक तथा मुख्य विज्ञान अधिकारी जोएल फिनकेलस्टीन ने पिछले 22 सितंबर को अमेरिकी संसद भवन परिसर में ‘कोलिजन ऑफ हिंदूज ऑफ नार्थ अमेरिका’ (सीओएचएनए) द्वारा आयोजित एक कार्यकम में अपने नवीनतम शोध के महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित करते हुए कहा कि हाल के महीनों में अमेरिका और कनाडा में हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ की घटनाएं बढ़ी हैं।

जोएल ने इंग्लैंड में लिस्टर, बर्मिंघम एवं अन्य जगहों पर हिंदुओं को निशाना बनाए जाने को रेखांकित करते हुए कहा कि अब हम देख रहे हैं कि इंग्लैंड में किस प्रकार का निम्न स्तरीय विरोध हो रहा है। यह एक गैर लाभकारी संगठन है जो गलत सूचनाओं, भ्रमित करने वाली सामग्री तथा सोशल मीडिया में नफरत फैलाने वाली बातों का अध्ययन करती है। इस संस्था के अध्ययन में उदाहरण देकर बताया गया कि हिंदुओं के खिलाफ नफरत का माहौल बन रहा है। फिनकेलस्टीन ने आगाह किया है कि दुनिया भर में हिंदू समुदाय के लोगों के खिलाफ नफरत बढ़ने की आशंका है। सीओएचएनए संगठन ने एफबीआई के आंकडों को आधार बनाकर बताया है की भारतीय-अमेरिकियों के खिलाफ घृणा अपराध के मामले 500 प्रतिशत बढ़े हैं।

अमेरिका के बौद्ध सांसद हांक जॉनसन ने अमेरिका में हिंदुओं के प्रति नफरत की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की। जॉनसन का बयान है कि हमें हमारे धर्म, नस्ल तथा पृष्ठभूमि के प्रति नफरत के खिलाफ एकजुट होना चाहिए लेकिन दुर्भाग्य से नफरत से जुड़ी घटनाएं खासतौर पर हिंदू अमेरिकियों के खिलाफ, अमेरिका में हुई हैं।

 वस्तुतः आप देखेंगे कि अमेरिका सहित कई देशों में पिछले कुछ महीनों में हुई घटनाओं को लेकर हिंदू विरोधी लोगों ने लगातार संगठनों पर हमला किया । अमेरिका में भारतीयों के स्वतंत्रता दिवस परेड को डेमोक्रेट पार्टी के नेताओं ने अपनी आलोचना का शिकार बना दिया । इसमें तख्तियों, प्रतीकों आदि को लेकर सवाल उठाए गए। इस परेड में बुलडोजर की आकृति को भी रखा गया था और बताया गया था कि इसने किस तरह माफिया और अपराधियों के विरुद्ध काम किया है। स्वाभाविक ही इसे एक उपलब्धि के रूप में पेश किया गया।जैसा आप हम जानते हैं बुलडोजर इस समय उत्तर प्रदेश में भू माफियाओं या अपराधियों की संपत्ति को ध्वस्त करने के रूप में काफी लोकप्रिय हुआ और दूसरे राज्यों ने अपनाया है। लेकिन इसको लेकर दुनियाभर में आक्रामक संगठित झूठ फैलाया गया है। इसे भी केंद्र के नरेंद्र मोदी सरकार तथा प्रदेश की योगी सरकार तथा संघ के आक्रामक अल्पसंख्यक विरोधी खासकर मुस्लिम विरोधी आचरण का प्रमाण बताया गया है ।

दुष्प्रचार करने वाले कभी तथ्यों की जांच नहीं करते। अमेरिका एवं यूरोप के कुछ देशों के इस श्रेणी के नेताओं के साथ- साथ नागरिकों का एक वर्ग हिंदुत्व ,वर्तमान केंद्र सरकार ,प्रदेश की भाजपा सरकार ,संघ से जुड़े संगठन आदि के बारे में अपनी धारणाएं इन्हीं दुष्प्रचारों के आधार पर बनाया है या स्वयं दुष्प्रचारों के अंग रहे हैं ।  हिंदू वर्चस्व का प्रतीक बताते हुए यह प्रचारित किया गया है कि अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को डराने धमकाने और उनको कमजोर करने के लिए उन्हीं की संपत्तियों को ध्वस्त किया जाता है । बुलडोजर के बारे में कहा गया कि यह तो समाज में विभाजन का प्रतीक है। पीडीएमसी का प्रस्ताव तथा हिंदू संगठनों के फंडिंग की जांच बनाए गए माहौल की ही परिणति है ।

निस्संदेह,  अमेरिका में टीडीएमसी प्रस्ताव में हिंदू संगठनों के बारे में जो कुछ कहा गया वो आपत्तिजनक है। हिंदू संगठन भी इसके विरुद्ध खड़े हुए हैं। इन लोगों ने कहा है कि प्रस्ताव पेश करते समय हमें अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया। प्रस्ताव एकतरफा सोच के अनुसार पारित कर दिया गया जो नैतिक रुप से भी गलत है।  इनने अपने बयान में स्पष्ट किया है कि इससे अमेरिका में रहने वाले हिंदुओं की छवि खराब हुई है। यह हमें बदनाम करने का षड्यंत्र है। संगठन से जुड़े लोगों ने बयान दिया है कि हमारी पृष्ठभूमि विविधता पूर्ण है….हम सिर्फ वैज्ञानिक नहीं हैं और न ही कक्षा में बैठे उबाऊ लोग…। हम शांतिपुर समुदाय हैं और शांतिपूर्ण समुदाय पर कोई दुर्भाग्यपूर्ण आरोप लगाता है तो उसे भी इसका परिणाम भुगतना पड़ता है।

हिंदू संगठनों के विरोध या ऐसे ही कुछ संस्थाओं की रिपोर्टों और वक्तव्यों का बिल्कुल असर नहीं होगा यह नहीं कहा जा सकता। किंतु अमेरिका, यूरोप व अन्य जगह जिस प्रकार का माहौल भारत ,हिंदू और हिंदू संगठनों के विरुद्ध बनाने की कोशिश हुई है उसको खत्म कर पाना मुश्किल है।  हिंदुओं को डराने और कमजोर करने के षडयंत्र और अभियानों का ही परिणाम है कि अमेरिका में  हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों पर मुकदमे दायर कराए गए हैं। अभी हाल ही में पता चला कि एक मुकदमे में वादी एक दलित कर्मचारी है। उसने मुकदमे में आरोप लगा दिया कि हिंदू जाति के उच्च  श्रेणी के लोगों ने उनके साथ भेदभाव किया है। यानी यह मुकदमा जातिगत आधार पर भेदभाव का है। बताने की आवश्यकता नहीं कि अमेरिका में रंग नस्ल आदि के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध कठोर कानून है।

इस तरह की स्थिति एकाएक और अनायास पैदा नहीं हुई है। आप देखेंगे कि पिछले कुछ समय से भारत की शासन व्यवस्था, माहौल, सत्तारूढ़ पार्टी ,संघ परिवार और इससे जुड़े संगठनों आदि को लेकर दुनिया भर में नेताओं, एनजीओ, थिंक टैंक, मानवाधिकार संगठनों और मीडिया के के एक तबके ने जबरदस्त दुष्प्रचार अभियान चलाया है। जिस ढंग से पिछले कुछ सालों में भारत वैश्विक स्तर पर प्रखर और मुखर हुआ है तथा विश्व भर में भारतीय अपने सभ्यता संस्कृति धर्म पहचान आदि के साथ भारत के हित में खुलकर सामने आए हैं तब से उनकी आंखों के कांटा बन गए हैं । दूसरे कट्टर मुस्लिम भी इसमें भूमिका निभा रहे हैं। कई जगह पाकिस्तानी मुसलमानों पर आरोप लगा कर मामले को छोटा कर दिया जाता है।  अमेरिका और ब्रिटेन में मस्जिदों की भारी संख्या है ।

एक आकलन के अनुसार केवल न्यूयॉर्क में 350 के आसपास मस्जिद हैं। इन सबमें भारत सरकार और हिंदुओं के विरुद्ध तकरीरें होती हैं। अपनी संख्या और संगठित चरित्र के कारण ये वहां नेताओं और प्रशासन के साथ मीडिया थिंक टैंक इन एनजीओ मानवाधिकार संगठनों तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब हो रहे हैं। इनसे जुड़े लोग वहां अलग-अलग थिंकटैंक से लेकर मीडिया संस्थान और राजनीतिक दलों में भी हैं। इनका मुख्य फोकस दुष्प्रचार अभियान है। आम भारतीय ,जिनमें हिंदू ,सिख, बौद्ध जैन और मुसलमान शामिल हैं, भी वहां प्रभावी हैं लेकिन वे संगठित रूप से किसी के विरुद्ध दुष्प्रचार अभियान नहीं चलाते या अपने विरोध हुए दुष्प्रचार अभियान के लिए काम नहीं करते। दूसरे, अमेरिका की डेमोक्रेटिक और ब्रिटेन की लिबरल पार्टी के साथ वहां भी लिबरल तबका है जो छोटी- छोटी घटनाओं को तिल का ताड़ बनाता है।

विशेष तौर पर अमेरिका का क्या तबका मानता है कि पिछले दो राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय मूल के लोगों ने डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन किया था तथा अभी भी डोनाल्ड ट्रंप के अभियानों में इनकी सक्रियता है। वहां डोनाल्ड ट्रंप के साथ कई जगह नरेंद्र मोदी तक की तस्वीरें लगाकर कई आपत्तिजनक बातें लिखी गई। इनका असर दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में भी है।  नूपुर शर्मा के साथ टेलीविजन विवाद में शामिल जुबेर अहमद तथा इसके साथ अल्ट न्यूज़ में सह संस्थापक प्रतीक सिन्हा को नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित करने वाली लौबी कितनी तगड़ी है और इनका इकोसिस्टम कितना सशक्त है इसका अनुमान लगाइए। नोबेल पुरस्कार की दौड़ में कौन शामिल है इसका खुलासा नोबेल समिति 50 वर्षों तक नहीं करती। नोबेल पुरस्कार की दौर शामिल होने वालों का खुलासा नोबेल समिति 50 वर्षों तक नहीं करती। जानबूझकर उसका नाम नॉर्वे के सांसदों के द्वारा बाहर लाया गया, टाइम मैगजीन ने इस पर रिपोर्टिंग की और रायटर्स ने सर्वे कर दिया। जाहिर है, ऐसे विस्तृत संगठित समूह से मुकाबले की लंबी योजना से काम करना होगा, अन्यथा हमें और आने वाली पीढ़ियों को सब भुगतना पड़ेगा जिसकी आज हमें कल्पना नहीं होगी।

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