हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
अभिव्यक्ति निष्पक्ष तो लड़ाई पक्षीय क्यों?

अभिव्यक्ति निष्पक्ष तो लड़ाई पक्षीय क्यों?

by आशीष अंशू
in राजनीति, विशेष, सांस्कुतिक भारत दीपावली विशेषांक नवंबर-2022
0

भारत देश में एक चलन सा बन गया है कि हिंदू देवी-देवताओं को लेकर किया गया आपत्तिजनक व्यवहार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मान लिया जाता है, जबकि इस्लाम को लेकर कही गई सामान्य बात भी अपमान मान ली जाती है। देश का तथाकथित बौद्धिक वर्ग इस पर चुप रहता है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर यह दोहरी मानसिकता बंद होनी चाहिए।

न लोग हैं जो अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में आई स्टैंड विद जुबैर का हैस टैग ट्रेंड करा रहे थे जबकि जुबैर ने नुपूर के खिलाफ जो अभियान चलाया था, उसका परिणाम उदयपुर के एक दर्जी कन्हैया लाल का सिर काटने जैसी घटना से सामने आया। यदि आई स्टैंड विद जुबैर कहने वाले वास्तव में उसके कहने की आजादी के साथ खड़े हैं तो यह आजादी नुपूर शर्मा, अमन चोपड़ा, अर्णव गोस्वामी, केतकी चितले, कमलेश तिवारी के लिए क्यों नहीं है?

जिस आल्ट न्यूज में जुबैर काम करते थे, प्रतीक सिन्हा और वे दोनों संस्थापक सदस्य थे। प्रतीक ने कभी इस्लामिक प्रतीकों का मजाक नहीं उड़ाया। जुबैर ने ऐसा करने के लिए फेसबुक पर अपना एक पेज ही बना लिया था। जिसे उसने खुद गिरफ्तारी से कुछ दिनों पहले डिलीट कर दिया। जुबैर ने यदि कुछ गलत नहीं किया था तो फिर उसे अपना पेज अचानक क्यों डिलीट करना पड़ा?

यदि बात नुपूर शर्मा के बयान की करें तो वह बयान इस मुद्दे पर चले किसी बहस में चलाया नहीं गया। ऐसी क्या बात कर दी थी नुपूर शर्मा ने जिस पर इस देश में विमर्श नहीं हो सकता। जबकि यही देश है, जहां विद्यार्थियों ने गालियों पर भी शोध किया है। सवाल यह है कि नुपूर ने ऐसा क्या कह दिया जो मकबूल फिदा हुसैन के देवी सरस्वती की न्यूड पेंटिंग से भी अधिक अपमानजनक था। उस पेंटिंग के बाद प्रगतिशीलों ने कांग्रेस सरकार के समर्थन से मकबूल को दुनिया का सबसे अच्छा पेंटर साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

क्या नुपूर शर्मा का बयान – जेएनयू की पूर्व छात्रा शुभम श्री की ‘मिस वीणावादिनी, तुम्हारी जय हो बेबी’ की तुकबंदी से – अधिक अश्लील था। जिसे कविता कहकर ‘भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार’ दिया गया। उसे अपनी अश्लीलता के लिए सम्मान भी मिला और ‘ओएनजीसी’ की नौकरी भी। ऐसी कविता शुभमश्री ने आयशा, खदीजा या जैनब पर लिखी होती तो सिर तन से जुदा का फरमान आ चुका होता। जहां तक बात मकबूल फिदा हुसैन की है, जिन्होंने स्त्रियों को न्यूड पेंट करने में कला नजर आती थी। उन्होंने करोड़ों भारतीयों की आराध्य मां देवी सरस्वति को भी न्यूड पेंट किया लेकिन जब उन्होंने अपनी मां जैनब की एक पेंटिंग बनाई तो इस बात का पूरा ख्याल रखा कि उनकी शरीर का कोई हिस्सा पेंटिंग में दिखाई नहीं देना चाहिए। मकबूल मराठी सुलेमानी बोहरा परिवार से ताल्लुक रखते थे और उनकी प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा बड़ोदरा के एक मदरसा में हुई थी। यह मदरसा से मिले ज्ञान का प्रभाव था कि उनकी कूंची एक कट्टरपंथी पेंटर की तरह आजीवन इस्लामिक सवालों को उठाते हुए खामोश रही। जो भी इस्लाम में है, वह अच्छा है। यह मानकर वे हिंदू स्त्रियों को न्यूड पेंट करते रहे। उन दिनों जो लोग मकबूल की अभिव्यक्ति की आजादी के लिए अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर लड़ रहे थे, उनमें शबाना आजमी और जावेद अख्तर अग्रीम पंक्ति के नेता थे। इस देश में हमेशा से कहने की आजादी के साथ भेदभाव हुआ है।

इस देश में प्रेस की स्वतंत्रता के पक्ष में बोलने वाले दो महत्वपूर्ण संस्थानों में प्रेस क्लब आफ इंडिया और एडिटर्स गिल्ड का नाम आता है। पिछले दिनों देश के सम्मानित सम्पादकों में से एक अर्णब गोस्वामी को उनके घर से अपमानजनक तरीके से महाराष्ट्र पुलिस लेकर गई। ना एडिटर्स गिल्ड ने एक शब्द कहा और ना ही प्रेस क्लब आफ इंडिया की तरफ से कोई विज्ञप्ति आई।

नुपूर के मामले में भी अभिव्यक्ति की आजादी का कोई बड़ा चैम्पियन सामने से बोलने के लिए नहीं आया। ना ही नुपूर का बयान उसका विरोध कर रहे लोगों ने दुहराया। जिससे भारतीय समाज उस बयान की समीक्षा कर पाता। नुपूर के पक्ष में बयान आया तो दूर देश नीदरलैंड से। वहां के सांसद गीर्ट वाइल्डर्स ने नुपुर शर्मा के पक्ष में बयान दिया। उन्होंने कहा कि नुपूर को अपने बयान या उदयपुर हिंसा के लिए माफी नहीं मांगनी चाहिए। वह उदयपुर हिंसा के लिए जिम्मेदार नहीं है। नुपूर के नाम पर चल रही तमाम हिंसा के लिए कट्टरपंथी असहिष्णु मुसलमान जिम्मेदार हैं, और कोई नहीं। नुपूर के बयान के नाम पर भारत में हिंसा रूकने का नाम नहीं ले रहीं थी।

राजस्थान के श्रीगंगागर में बीएसएफ ने एक पाकिस्तानी नागरिक को पकड़ा था। जांच से यह बात सामने आई कि नूपुर शर्मा की हत्या के इरादे से 24 साल का आरोपी रिजवान अशरफ इंटरनेशनल बॉर्डर पार करने की कोशिश कर रहा था। वह पाकिस्तानी पंजाब के बहाऊद्दीन जिले का रहने वाला है।

छत्तीसगढ़ जिला दुर्ग के राजा जगत (22) को नुपुर शर्मा के पक्ष में इंस्टाग्राम पर पोस्ट लिखने के कारण जान से मारने की धमकी मिली।

वामपंथी पत्रकार रवीश कुमार ने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि किसी भी व्यक्ति के अपमान की कीमत सवा रुपए होनी चाहिए। उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या वे नुपूर शर्मा से सवा रुपए लेकर अपनी यू ट्यूब या प्राइम टाइम की अदालत में उसकी ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का केस लड़ेंगे?

इस्लामिक कट्टरपंथियों ने ट्विटर स्पेस पर नुपूर शर्मा मामले पर एक चर्चा रखी, जिसका शीर्षक दिया गया – ‘लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी और ईशनिंदा।’ लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी पर हो रही चर्चा में स्पेस पर मौजूद विद्वानों का आजादी पर कम और हत्या पर जोर अधिक था।

इस चर्चा के सम्बंध में आप इंडिया लिखता है कि ट्विटर स्पेस पर इस्लामिक कट्टरपंथ को कई इस्लामिक स्कॉलर और फतवों का हवाला देते हुए ईशनिंदा के आरोपित की हत्या को जायज बताया जा रहा था। स्पेस के दौरान एक कट्टरपंथी बताता है कि, एक छोटा उदाहरण लो, अगर कोई पैगम्बर मोहम्मद के बॉडी कलर को काला कह देता है तो इतने पर भी भी वो गुस्ताख कहलाएगा और उसकी कत्लबाजी हो जाएगी।

जब शुभम श्री द्वारा फैलाई गई अश्लीलता की बात हो तो इसे फ्रीडम आफ स्पीच की श्रेणी में रखा जाता है और जब नुपूर शर्मा की बात होती है तो फ्रीडम आफ रिलीजियस बिलिफ की बात प्रारम्भ कर दी जाती है। हिंदूओं के ‘रिलीजियस बिलिफ’ का क्या इसलिए समाज में कोई महत्व नहीं है क्योंकि यहां सिर तन से जुदा होने का खतरा नहीं है। जैसा कि नुपूर शर्मा के मामले में उन्हें समर्थन देने के नाम पर आधा दर्जन से अधिक लोगों की हत्या कर दी गई। बड़ी संख्या में लोगों को जान से मारने की धमकी मिली सो अलग।

34 साल पहले सलमान रश्दी ने ‘शैतानी आयतें’ नाम से एक किताब लिखी थी। उनके विरोध में दुनिया भर के मुसलमान खड़े हो गए। भारत का सारा जनवादी और प्रगतिशील लेखकों का समूह चुप्पी तान चुका था। उन दिनों इन जनवादी लेखकों की कायरता पर भारतीय समाज हंस रहा था। भारत में अपेक्षित समर्थन की जगह उनकी किताब प्रतिबंधित कर दी गई। लेकिन उस प्रतिबंध का कोई विरोध नहीं हुआ। मानों जनवाद और प्रगतिशीलों के अंदर का शैतान सलमान रश्दी की किताब से बाहर निकल कर प्रतिबंध पर ठहाके लगा रहा हो। अट्टाहास कर रहा हो। जनवादियों के चोले पर और प्रगतिशीलों के झोले पर हंस रहा हो लेकिन इससे प्रगतिशील लेखकों को कोई खास फर्क नहीं पड़ा। वे सब बेशर्म सी चुप्पी ओढ़कर पड़े रहे।

किताब लिखने के 34 साल के बाद उन्हें इसी 12 अगस्त को न्यू यार्क में चाकूओं से गोद दिया गया। वे एक साहित्य उत्सव में भाग लेने के लिए न्यूयार्क आए थे। कथित तौर पर उन्हें अपने किताब लिखने की सजा तीन दशकों के बाद मिली। यही इस्लाम का खौफ है, जिसकी वजह से सारे आंदोलनजीवी इस्लाम के नाम पर खामोश रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं।

इस घटना से दो दिन पहले ही रश्दी ने 100 लेखकों के साथ एक विश्वव्यापी संघ पेन अमेरिका और पेन इंटरनेशनल के साथ पत्र पर हस्ताक्षर किया था। दिलचस्प है कि यह पत्र अभिव्यक्ति की आजादी पर चिंता जाहिर करते हुए लिखा गया था। जिसमें राष्ट्रपति से लोकतांत्रिक मूल्यों के समर्थन की अपील की गई थी। यह पत्र 14 तारीख को भारत के राष्ट्रपति के नाम पर भेजा गया। उसके दो दिन पहले ही न्यूयार्क में सलमान पर हमला हो चुका था लेकिन यह पूरा ‘हस्ताक्षर गिरोह’ उस हमले पर खामोश नजर आया। कायदे से तो इन सभी लेखकों को तमाम इस्लामिक देशों को लोकतांत्रिक मूल्यों के सम्मान में साथ आने के लिए लिखना चाहिए था। वह नहीं हुआ।

लेखकों ने 14 अगस्त को लिखे अपने पत्र की शुरूआत इन पंक्तियों से की – ‘हम आपसे भारत की स्वतंत्रता की भावना में स्वतंत्र अभिव्यक्ति को बढ़ावा देने और उसकी रक्षा करने वाले लोकतांत्रिक आदर्शों का समर्थन करने और एक समावेशी, धर्मनिरपेक्ष, बहु-जातीय और धार्मिक लोकतंत्र के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को बहाल करने का आग्रह करते हैं, जहां लेखक नजरबंदी के खतरे, जांच, शारीरिक हमले या प्रतिशोध के बिना असहमति या आलोचनात्मक विचार व्यक्त कर सकते हैं।’

सलमान रश्दी के अलावा पत्र पर झुम्पा लाहिरी, अब्राहम वर्गीज, शोभा डे, राजमोहन गांधी, रोमिला थापर, आकार पटेल, अनीता देसाई, गीतांजलि श्री, पेरुमल मुरुगन, पी. साईनाथ, किरण देसाई, सुकेतु मेहता और जिया जाफरी के भी हस्ताक्षर थे। यह पत्र मोहम्मद जुबैर, सिद्दीकी कप्पन, तीस्ता सीतलवाड़, अविनाश दास और फहद शाह का बचाव करने के लिए लिखा गया था।

यह सूची तो तब पूरी मानी जाती कि जहां गोविंद पंसारे का जिक्र हुआ, वहां कमलेश तिवारी का भी जिक्र होता। जहां तीस्ता और मोहम्मद जुबैर का जिक्र हुआ, वहां नुपूर शर्मा और तेलंगाना के टाइगर राजा सिंह का भी जिक्र होता। जब तक यह लड़ाई एक पक्षीय होगी। तब तक अभिव्यक्ति की कोई भी लड़ाई हम ईमानदारी से नहीं लड़ पाएंगे।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp

आशीष अंशू

Next Post
दिग्भ्रमित ना हो भाजपा

दिग्भ्रमित ना हो भाजपा

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0